Thursday, November 29, 2007

ये असली हिंदुस्तानी हैं, ये हार नहीं मानेंगे

कई दिनों से मैं सोच रहा था कि जानवरों से भी बदतर कर्म करने वाले लोगों पर क्या लिखा जाए। जिन्होंने गुवाहाटी में अपनी ही बहन की इज्जत सरे बाजार नीलाम कर दी। जिन्होंने एक पल के लिए भी ये नहीं सोचा कि जो वो कर रहे हैं वो, तो खुद उनकी मां-बहन के साथ हो सकता है। भीड़तंत्र में वो कौन सी पिपासा मिटाना चाहते थे। मुझे पूरा यकीन है जिन नीच लोगों ने असम में एक 16 साल की लड़की को निर्वस्त्र किया, उनमें ये साहस नहीं होगा कि वो जिस समाज का प्रतिनिधि होने का दावा करते हैं, उसके सामने भी सीना तानकर ये कह सकें कि मैंने अपने समाज की भलाई के लिए ये सब किया। और, वो भला किस समाज के हितों की रक्षा करने सड़क पर उतरे थे।

गुवाहाटी में ऑल आदिवासी स्टूडेंट एसोसिएशन ऑफ असम के छात्र आदिवासियों को अनुसूचित जनजाति (ST) का दर्ज दिए जाने का मांग को लेकर शनिवार को रैली कर रहे थे। उस दौरान जो हादसा हुआ उसे पूरे देश ने देखा। 16 साल की एक लड़की को कुत्सित मानसिकता के लोगों ने निर्वस्त्र किया और उसके साथ दुर्व्यवहार किया गया। शर्मनाक ये है कि ये सब मुख्यमंत्री तरुण गोगोई के आवास से सिर्फ एक किलोमीटर की दूरी पर हुआ। फिर भी उस लड़की को बिना कपड़ों के आधा किलोमीटर तक अपनी जान बचाने के लिए भागना पड़ा और पुलिस उस लड़की की मदद के लिए नहीं आ सकी।

एक तो मुझे लगता है कि अब संविधान से आदिवासी शब्द को पूरी तरह हटा दिया जाना चाहिए। ये असली हिंदुस्तानी हैं। इन्हें आदिवासी कहकर क्यों राजनीति करने की कोशिश की जा रही है। आज तक मुझे देश के किसी भी हिस्से में एक भी घटना ऐसी सुनने को नहीं मिली कि कहीं आदिवासियों ने तथाकथित सभ्य समाज के लोगों के साथ कोई भी ऐसी हरकत की हो। हां, सभ्य समाज के पहरेदारों ने जरूर बार-बार इन असली हिंदुस्तानियों के साथ छलावा किया, धोखा किया है। अखबारों-टीवी चैनलों में भी मानवता को शर्मसार कर देने वाली तस्वीरें जमकर चलीं लेकिन, आज जब मैंने कोशिश की ये देखने कि किसी अखबार में मुझे इसकी खबर मिल जाए तो, इंडियन एक्सप्रेस के अलावा किसी भी अखबार में ये खबर मुझे नहीं मिली।

इंडियन एक्सप्रेस की खबर पढ़ने के बाद मेरा ये भरोसा और पक्का हुआ कि ये असली हिंदुस्तानी हैं ये हार नहीं मानने वाले हैं। सरकार, मीडिया किसी के सहारे की इन्हें जरूरत नहीं हैं। इंडियन एक्सप्रेस के संवाददाता ने उस लड़की के घर जाकर उससे और उसके परिवार वालों से बातचीत की। और, लड़की का पहला जवाब था। मैं इस घटना के बाद और मजबूत हुई हूं। मेरा सबसे पहला लक्ष्य दसवीं की परीक्षा पास करना है। अगले साल उसकी बोर्ड की परीक्षा है। वो, लड़की कम से कम ग्रेजुएशन की डिग्री हासिल करना चाहती है। जिसके बूते वो, तथाकथित सभ्य समाज के लोगों से अपने हक की लड़ाई आसानी से लड़ सके। गुवाहाटी से 240 किलोमीटर सोनितपुर जिले के एक छोटे से गांव से वो जागरुक लड़की अपने समाज के लोगों को हक दिलाने की रैली में शामिल होने गई थी। शनिवार को होने वाली रैली के लिए वो लड़की अपने भाइयों और साथियों के साथ सारी रात सफर कर गुवाहाटी पहुंची थी।

इतने मजबूत इरादों वाली लड़की का अपने समाज में तो आदर्श बनना तय ही था। ऑल आदिवासी महिला समिति की नेता लता लाकड़ा साफ कहती हैं कि ये लड़की आदिवासी समाज (असली हिंदुस्तानी) के दावे को और मजबूत करती है। लड़की के पिता को चिंता है कि अगर उनके तीन बेटों को नौकरी नहीं मिली तो, आठ बीघे जमीन पर धान की खेती से इतने बड़े परिवार का जीवन कैसे चल पाएगा। लड़की की मां पढ़ी-लिखी नहीं है लेकिन, पढ़ी-लिखी मांओं से ज्यादा समझदार है। अपनी बेटी के साथ खड़ी है, कह रही है- मुझे ये पता है कि मेरी बेटी के साथ बहुत बुरा हुआ। लेकिन, मुझे गर्व है कि उसने बहादुरी के साथ लड़ाई लड़ी है।

पिछले तीन दिनों से उस लड़की के घर पहुंचने वालों की लाइन लगी हुई है। वो, देखना चाहते हैं कि बांस के तीन कमरे के छोटे से घर में उसे इतने मजबूत हौसले कहां से मिले। उस लड़की ने ये भी बताया कि भीड़ के नरपिशाचों ने उसके साथ मानवता को शर्मसार कर देने वाला काम किया। लेकिन, निर्वस्त्र अवस्था में सड़क पर आधा किलोमीटर भागी लड़की को एक स्थानीय दुकानदार भागीराम बर्मन ने अपनी शर्ट उतारकर पहना दी। साथ ही उसे पुलिस तक पहुंचने में भी मदद की। बर्मन भी उसी समाज से है।

पिछले कई दिनों से लगातार मैं इस विषय पर लोगों के आक्रोश भरे, चेतावनी देने वाले लेख पढ़ रहा था। मेरी समझ में नहीं आ रहा था मैं क्या लिखूं। आज उस लड़की के बयान ने मेरा मानस साफ कर दिया कि ये असली हिंदुस्तानी हैं ये, हार नहीं मानेंगे। ये अपनी लड़ाई जीतकर दिखाएंगे। लोग मार-काट की बात कर रहे हैं। वो, लड़की ग्रेजुएट होने की बात कर रही है। अपने हक को लेकर वो कमजोर नहीं हुई है। और, मजबूत हुई है। वो, अपना हिस्सा छीनने आ रही है। वो, दूसरों की मां-बहन की इज्जत लेने की बात नहीं कर रही। तथाकथित सभ्य समाज के लोगों अपनी इज्जत, अपनी असली पहचान बचानी है तो, इन असली हिंदुस्तानियों को गले लगा लो। इनसे माफी मांगो। इनके पैरों पर गिरकर गिड़गिड़ाओ, प्रायश्चित करो। इनका हक जो, बरसों से तुम छीनकर खा रहे हो इन्हें वापस दो।


(इंडियन एक्सप्रेस के संवाददाता से लड़की के परिवार वालों ने निवेदन किया कि कृपया लड़की का असली नाम न छापें। मेरी आप सबसे अपील है कृपया अब उस लड़की की वो तस्वीर न दिखाएं जिसने मानवता को शर्मसार कर दिया है।)

Wednesday, November 28, 2007

महिलाओं को कम समझना बंद कीजिए

दया चौधरी पंजाब एंड हरियाणा हाईकोर्ट की पहली महिला जज बन गई हैं। सीनियर एडवोकेट दया को एडीशनल जज नियुक्त किया गया है। 88 साल के हाईकोर्ट के इतिहास में ये पहली बार है जब कोई महिला जज बनी है। दया चौधरी पंजाब एंड हरियाणा हाईकोर्ट बार की पहली महिला प्रेसिडेंट और केंद्र सरकार की एडीशनल सॉलीसिटर जनरल भी रह चुकी हैं।

पंजाब एंड हरियाणा हाईकोर्ट में एक महिला जज की नियुक्ति इसलिए भी मायने रखती है कि ये दोनों ही राज्य लड़के-लड़कियों के मामले में सबसे खराब अनुपात रखते हैं। पंजाब और हरियाणा से कन्या भ्रूण हत्या के भी बड़े मामले सामने आते रहे हैं। देश में लड़के-लड़कियों का सबसे खराब अनुपात इन्हीं दोनों राज्यों में है। पंजाब और हरियाणा में 1000 लड़कों पर सिर्फ 704 लड़कियां हैं। जबकि, देश में 1000 लड़कों पर 933 लड़कियां हैं।

पंजाब और हरियाणा की ही तरह चंडीगढ़, महाराष्ट्र, हिमाचल प्रदेश, गुजरात और उत्तरांचल में भी लड़कों के मुकाबले लड़कियां कम हो रही हैं। अमीर राज्यों के साथ ही दिल्ली के पॉश इलाके साउथ दिल्ली में कन्या भ्रूण हत्या सबसे ज्यादा होती है जो, साफ दिखाता है कि ज्यादा पढ़े-लिखे और समृद्ध भारत को लड़कियां कम पसंद हैं। इसका दुष्परिणाम भी सामने आता दिख रहा है। अगर यही हाल रहा तो, 42 साल बाद करीब 3 करोड़ लड़के कुंआरे रह जाएंगे।

सिर्फ केरल ही अकेला राज्य है जहां लड़कों से ज्यादा लड़कियां हैं। केरल में 1000 लड़कों पर 1058 लड़कियां हैं। देश में सामाजिक संतुलन बने इसके लिए जरूरी है कि ज्यादा से ज्यादा लड़कियों को समाज में आगे बढ़ने का मौका मिले। अब ये आश्चर्य की ही बात है कि 88 साल से पंजाब एंड हरियाणा हाईकोर्ट को एक लायक महिला वकील नहीं मिल पाई थी जो, जज बन सकती। दया चौधरी जैसे उदाहरण शायद लोगों को कन्या भ्रूण हत्या से रोक पाएं और भारत संतुलित विकास कर सके।

Tuesday, November 27, 2007

उत्तर प्रदेश में मायावती की बसपा के विधायक, नेता सिर्फ गुंडागर्दी कर रहे हैं

उत्तर प्रदेश में मायाराज के दरबारी सत्ता के मद में पगला गए हैं। 5 साल के लिए मायावती को प्रदेश की जनता ने सत्ता दी थी कि वो स्थिरता के साथ प्रदेश को उसकी खोई प्रतिष्ठा वापस लौटाए। मायावती ने सत्ता में आने के बाद प्रदेश से गुंडाराज, जंगलराज खत्म करने का भरोसा दिलाया। लेकिन, अब हाल ये है कि मायाराज में सत्ता में शामिल लोगों के अलावा किसी की भी इज्जत सुरक्षित नहीं है।

मायावती की बसपा के 3 नेताओं के काले कारनामे की वजह से प्रदेश के लोगों का डर अभी खत्म भी नहीं हुआ था कि एक और विधायक ने बसपा के जंगलराज को और पुख्ता कर दिया। इस बार मामला और संगीन है। वाकया बनारस का है। एक महिला का पति दूसरी शादी कर रहा था। उसे रोकने के लिए महिला कुछ पत्रकारों को साथ लेकर शादी में पहुंच गई। लेकिन, महिला को अंदाजा नहीं था कि मायाराज में लोकतंत्र खत्म हो चुका है।

महिला के पति की दूसरी शादी में बसपा के विधायक शेर बहादुर सिंह भी मौजूद थे। पहले महिला को स्टेज से धक्का दिया गया। और, जब पता चला कि महिला पत्रकारों को लेकर आई है, शेर बहादुर सिंह के अहम को चोट लग गई। विधायक और उनके आदमियों ने पत्रकारों को पकड़कर पीटना शुरू किया। कैमरामैन, रिपोर्टर सबको 5-6 आदमी एक साथ मिलकर पीट रहे थे। राइफल, पिस्तौल के बट से पत्रकारों को पीटा गया पत्रकारों के शरीर पर खून के जमे हुए निशान बता रहे हैं कि उनकी किस बेरहमी से पिटाई की गई है।

लेकिन, मायाराज में बसपा विधायक की गुंडागर्दी इतने पर ही खत्म नहीं हुई। विधायिका बेलगाम थी तो, फिर सत्ता चलाने वालों के लिए ही कानून की रखवाली करने वाले पुलिस वाले कैसे पीछे रहते। थाने में विधायक के खिलाफ रिपोर्ट लिखाने पहुंचे पत्रकारों को फिर से पुलिस ने दौड़ाकर पीटना शुरू कर दिया। लेकिन, मायावती के अपने गुंडाराज, जंगलराज में आतंक के काले कारनामे अभी और बाकी थे। चोट खाए, गुस्साए पत्रकारों ने मायावती का पुतला फूंकने की कोशिश की। तो, मायावती की निजी पुलिस की तरह काम कर रही उत्तर प्रदेश पुलिस आपे से बाहर हो गई। फिर से पत्रकारों को पीटा गया।

यहां सवाल सिर्फ पत्रकारों के पिटने का नहीं है। सवाल ये है कि क्या बसपा के राज में बसपा के नेताओं विधायकों और पुलिस वालों को कानून को ठेंगे रखने का हक मिल गया है। कानूनन कोई भी व्यक्ति एक महिला से शादी करने के बाद दूसरी महिला से शादी नहीं कर सकता जब तक कि उसको तलाक न मिल जाए। लेकिन, बसपा विधायक के प्रिय व्यक्ति पहली बीवी से बिना तलाक के ही दूसरी शादी कर रहे थे। इस तरह से विधायक शेर बहादुर सिंह भी कानून तोड़ने को दोषी हुए। उसके बाद तो विधायक ने कानून की ऐसी धज्जियां उड़ाईं जो, उत्तर प्रदेश के इतिहास में काले कारनामे में दर्ज हो गया है। लेकिन, पता नहीं अब इन घटनाओं को काला कारनामा माना भी जाता है या नहीं।

इसके बाद सरकारी खानापूरी करने के लिए विधायक शेर बहादुर सिंह, सीओ संसार सिंह और इंस्पेक्टर के खिलाफ मामला दर्ज किया गया। लेकिन, साथ ही पत्रकारों के खिलाफ भी कई मामले दर्ज कर दिए गए। अब जब पत्रकारों के खिलाफ भी मामला दर्ज कर लिया गया है तो, साफ है विधायक और दूसरे आरोपियों पर कोई कार्रवाई क्यों की जाएगी। 3 साल के शासन के बाद मुलायम राज में रहना दूभर हुआ था। अब बसपा का हाथी तो पूरे उत्तर प्रदेश को ही जंगल बनाकर उसे बरबाद करने पर जुटा गया है। उत्तर प्रदेश का अब राम भला करें।

देश भर में फैलने की तैयारी में उत्तर प्रदेश की ‘माया’

मायावती अब दिल्ली पर अपना कब्जा मजबूत करना चाहती हैं। मायावती इसके लिए पूरी तरह तैयार भी हैं। उत्तर प्रदेश में मायावती के लिए सत्ता पाने में तुरुप के इक्के जैसा चलने वाले सतीश चंद्र मिश्रा अपने यूपी फॉर्मूले का इस्तेमाल देश के दूसरे राज्यों में भी करना चाहते हैं। जिस तरह की रणनीति सतीश मिश्रा तैयार कर रहे हैं उससे ये साफ है कि अगले लोकसभा चुनाव में कई राज्यों में स्थापित पार्टियों की हाथी की दहाड़ सुनाई देगी।

कार्यकार्ता और वोटबैंक के लिहाज से उर्वर महाराष्ट्र में मायावती ने 25 नवंबर को एक बड़ी रैली कर दी है। महाराष्ट्र मायावती की योजना में सबसे ऊपर है। देश की राजधानी दिल्ली भी मायावती की योजना में ठीक से फिट बैठ रही है। कांग्रेस और बीजेपी के लिए चिंता की बात ये है कि पिछले नगर निगम चुनावों में दिल्ली में बसपा के 17 सभासद चुनकर टाउनहॉल पहुंच गए हैं। दिल्ली में दलित वोट 19 प्रतिशत से कुछ ज्यादा हैं। और, उत्तर प्रदेश से सटे होने की वजह से यहां के बदलाव की धमक वहां खूब सुनाई दे रही है।

बसपा के संस्थापक कांशीराम की जन्मभूमि पंजाब मायावती के लिए अच्छी संभावना वाला राज्य बन सकता है। मायावती ने महाराष्ट्र से पहले यहां भी एक सफल रैली की। 1984 में जब देश भर में इंदिरा गांधी की हत्या के बाद कांग्रेस की बयार बह रही थी तो, बसपा पहली बार संसद में पहुंची थी। पंजाब ऐसा राज्य है जहां देश की सबसे ज्यादा दलित आबादी (28.31 प्रतिशत) रहती है।

पंजाब के बाद देश में सबसे ज्यादा दलित (25.34 प्रतिशत) हिमाचल प्रदेश में रहते हैं। यही वजह है कि हिमाचल में बसपा ने सभी 68 सीटों पर प्रत्याशी उतारे हैं। अब इसे मायावती की अति ही कहेंगे कि मायावती ने कांगड़ा में एक विशाल रैली में मुख्यमंत्री पद का उम्मीदवार भी तय कर दिया। इस राज्य में अब तक मायावती को कोई बड़ी सफलता भले न मिली हो। लेकिन, विधानसभा चुनावों में तैयार जमीन लोकसभा चुनावों में मदद दे सकती है।

दिल्ली से ही सटा हरियाणा एक और राज्य है जिस पर बहनजी की नजर है। 19.75 प्रतिशत दलितों का होना भी मायावती को बल देता है। इस राज्य में 1998 में बसपा को एक लोकसभा सीट भी मिल चुकी है। हरियाणा में भी उत्तर प्रदेश से गए लोगों की बड़ी संख्या है। खासकर फरीदाबाद, सोनीपत और पानीपत में।

उत्तर प्रदेश से सटे मध्य प्रदेश में तो मायावती अच्छी स्थिति के बाद पार्टी के कद्दावर नेता फूल सिंह बरैया के पार्टी छोड़ने से फिर शून्य पर पहुंच गई है। लेकिन, 15 प्रतिशत के करीब दलितों का वोटबैंक किसी कांग्रेस-बीजेपी के अलावा किसी एक दलित नेता का विकल्प मिलने पर फिर से जिंदा हो सकता है। मध्य प्रदेश में बसपा को 1996 के लोकसभा चुनाव में 2 सीटें (8.7 प्रतिशत) मिली थीं। 1998 में तो 11 विधायक बसपा के थे। फिलहाल मध्य प्रदेश में मायावती को बसपा का झंडा उठाने के लिए कोई दमदार नेता नहीं मिल रहा है। मध्य प्रदेश से अलग हुए छत्तीसगढ़ में भी मायावती अपना प्रभाव जमाने की कोशिश कर रही हैं।

इसके अलावा दक्षिण भारत में तमिलनाडु है जो, देश के राजनीतिक विश्लेषकों को चौंका सकता है। ये अकेला राज्य है जहां मायावती को सर्वजन हिताय का नारा ओढ़ने (उत्तर प्रदेश के फॉर्मूले को इस्तेमाल करने) की जरूरत नहीं है। ये वो राज्य है जो, स्वाभाविक तौर पर दलित आंदोलन की जमीन है। पेरियार ने इसी जमीन पर ब्राह्मणवाद (सतीश चंद्र मिश्रा सुन रहे हैं ना) के खिलाफ प्रभावी आंदोलन खड़ा किया था। लेकिन, मायावती की मुश्किल इस राज्य में ये है कि 19 प्रतिशत से ज्यादा का दलित वोट अब तक करुणानिधि को अंधभाव से नेता मानता रहा हैं। और, उत्तर भारत से एकदम अलग शैली की राजनीति भी मायावती की फजीहत करा सकती है। लेकिन, मायावती तैयार हैं। बसपा का पहला राज्य कार्यालय चेन्नई में खुल चुका है। जिला स्तर पर भी समितियां बनाई जा रही हैं। 30 दिसंबर को चेन्नई में रैली कर मायावती भारत के दक्षिण दुर्ग में प्रवेश करने की पूरी कोशिश करेंगी।

मायावती जिस तरह से बदली हैं। उसे देखकर लगता है कि मायावती भारतीय राजनीति में बड़े और लंबी रेस के खिलाड़ी की तरह मजबूत हो रही हैं। लेकिन, मायावती की राजनीति की नींव ही जिस जातिगत समीकरण के आधार पर बनी है उससे, कभी-कभी संदेह होता है। साथ ही ये भी कि बसपा अकेली ऐसी पार्टी है जिसकी विदेश, आर्थिक, कूटनीतिक और रक्षा मसलों पर अब तक कोई राय ही नहीं है। उद्योगपति अभी भी मैडम मायावती से मिलने में हिचकते हैं। ये कुछ ऐसी कमियां हैं जो, मायावती को देश का नेता बनने से रोक सकती हैं।

Monday, November 26, 2007

महाराष्ट्र में ‘माया’ फैल रही है

हाथी की दहाड़ अब उत्तर प्रदेश के बाहर भी सुनाई देने लगी है। लोकसभा चुनाव के लिए मायावती पूरी तरह तैयार नजर आ रही हैं। उनके प्रमुख सिपहसालार सतीश चंद्र मिश्रा लोकसभा चुनाव के लिए 7-8 राज्यों में हाथी को दौड़ाने की रणनीति बनाने में लग गए हैं। मुंबई के छत्रपति शवाजी पार्क में हुई रैली उसी योजना का एक रिहर्सल थी। मायावती को भले ही महाराष्ट्र के नेता ये कहकर नकार रहे हों कि ये उत्तर प्रदेश नहीं लेकिन, मायावती की रैली में उमड़ी भीड़ ये साफ मान रही है कि दलितों को एक राष्ट्रीय नेता मिल गया है। और, ये दलित नेता ऐसी है जिसकी रणनीति में ब्राह्मण और पिछड़ी जातियों में दबा कुचला तबका सत्ता की सीढ़ी की तरह काम करने को तैयार दिख रहा है।

मायावती जिन राज्यों में बसपा का समीकरण काम करते देख रही हैं उनमें महाराष्ट्र सबसे ऊपर है। उत्तर प्रदेश का मुख्यमंत्री बनने के बाद महाराष्ट्र में हुई पहली बड़ी रैली ने साफ कर दिया है कि रामदास अठावले को अब अपना ठिकाना बचाने के लिए कुछ और जुगत करनी पड़ेगी। RPI के ज्यादातर कार्यकर्ता मानते हैं कि अठावले दलितों का सम्मान बचाने में कामयाब नहीं रहे हैं। डॉक्टर भीमराव अंबेडकर की कर्मभूमि होने की वजह से मायावती के लिए यहां दलितों को अपने पाले में खींचने में ज्यादा मुश्किल नहीं होगी। राज्य के 35 जिलों में बसपा की जिला समितियां काम करने लगी हैं। दलितों की 11 प्रतिशत आबादी मायावती की राह आसान कर रही है। महाराष्ट्र विधानसभा में नीले झंडे का प्रवेश होता साफ दिख रहा है।

मायावती अब एक परिपक्व राजनेता की तरह बोलती हैं। शिवाजी पार्क में उन्होंने किसी पार्टी, जाति के लिए अपशब्दों का प्रयोग नहीं किया। दलितों को वो समझा रही थीं कि दूसरी जातियों को अपने साथ लो और सत्ता का सुख भोगो। उत्तर प्रदेश में ब्राह्मणों का गारंटी कार्ड सतीश मिश्रा यहां भी मैडम के बगल में ही था। मायावती सर्वजन हिताय, सर्वजन सुखाय का नारा दे रही थीं।

मायावती ने कहा- झुग्गियां नहीं चलेंगी लेकिन, अगर उनकी सरकार आई तो, बिना घर दिए किसी की झुग्गी नहीं टूटेगी। विदर्भ से मायावती की रैली में अच्छी भीड़ आई थी। किसानों की आत्महत्या पर उन्होंने राज्य सरकार को लताड़ा। कहा- मेरे राज्य में कोई किसान आत्महत्या नहीं करता।

मायावती सबसे पहले मुंबई में पैठ जमाना चाहती हैं। उन्हें पता है कि यहां से पूरे राज्य में संदेश जाता है। मायावती जानती हैं कि उत्तर प्रदेश के लोगों को उनके जादू का सबसे ज्यादा अंदाजा है। इसलिए वो उत्तर प्रदेश से आए करीब 25 लाख लोगों को सबसे पहले पकड़ना चाहती हैं। यही वो वोटबैंक है जिसने पिछले चुनाव में शिवसेना-भाजपा से किनारा करके कांग्रेस-एनसीपी को सत्ता में ला दिया। मुंबई में हिंदी भाषी जनता करीब 20 विधानसभा सीटों पर किसी को भी जितान-हराने की स्थिति में है। जाति के लिहाज से ब्राह्मण-दलित-मल्लाह-पासी-वाल्मीकि और मुस्लिम मायावती को आसानी से पकड़ में आते दिख रहे हैं।

अब अगर मायावती का ये फॉर्मूला काम करता है तो, रामदास अठावले की RPI गायब हो जाएगी। और, सबसे बड़ी मुश्किल में फंसेगा कांग्रेस-एनसीपी गठबंधन। कांग्रेस-एनसीपी गठबंधन में कांग्रेस के साथ बड़ी संख्या में हिंदी भाषी हैं साथ ही दलित-मसलमानों का भी एक बड़ा तबका कांग्रेस से जुड़ा हुआ है। एनसीपी की OBC जातियों में अच्छी घुसपैठ है। साफ है, हाथी महाराष्ट्र में घुस चुका है लेकिन, ये जंगली हाथी नहीं है जो, पागल होकर किसी भी रास्ते पर जाकर उसे उजाड़ दे। ये मायावती के नए सामाजिक समीकरण को समझने वाले गणेशजी के प्रतीक हैं। सब इनकी पूजा कर रहे हैं। अब ये देखना है कि मायावती के आदर्श डॉक्टर भीमराव अंबेडकर की दीक्षाभूमि में हाथी का कैसा स्वागत होता है।

पाकिस्तानियों को मुशर्रफ, बेनजीर, नवाज किसी पर भरोसा नहीं


(पाकिस्तनियों को लगता है कि सत्ता जिसके भी हाथ में रही उसने सिर्फ पाकिस्तान को बरबार किया है। पाकिस्तान में आपातकाल लगने के बाद मैंने लिखा था कि दुनिया के लिए खतरा बन चुके पाकिस्तान की नई पीढ़ी किस तरह से मुशर्रफ का विरोध कर रही है। लेकिन, आज एक चौंकाने वाली बात मुझे जो जानने को मिली कि पाकिस्तान के नौजवानों को जितने बेइमान मुशर्रफ लगते हैं। उतने ही बेइमान बेनजीर, नवाज जैसे दूसरे नेता भी लगते हैं। पाकिस्तान के लोग मानते हैं अब इस देश को बचाने का रास्ता एक ही है कि बच्चों को सही सबक सिखाया जाए और बेहतर तालीम दी जाए।

पाकिस्तान के बिगड़े हालात का अंदाजा मुझे लगा कुछ पाकिस्तानी नौजवानों की मेल के जरिए। कुछ महीने पहले पाकिस्तान के बारे में ज्यादा जानकारी के लिए मैंने याहू पर पाकिस्तान मस्ती जोन में रजिस्टर किया था। उसके बाद मैं शायद ही कभी इस ग्रुप की मेल पढ़ता था। लेकिन, आज इस मेल में तीन मेल एक-दूसरे के जवाब में जो लिखा गई उसे पढ़कर मुझे लगा कि इसे दुनिया के हर आदमी को पढ़ना चाहिए इसलिए मैं वैसे का वैसे ही पेश कर रहा हूं।)


naraaz_pakistan wrote:
BEHKI BEHKI BATAIN AIK PAGAL PAKISTANI KI


Tera pakistan hay na mera pakistan hay. yea uska pakistan hay jo sadaar-e-pakistan hay. 60 saaloo say pakistan ka khoon choosnay waalay 6 lakh bheriaay is mulk ka wajood taak khatam karkay daam laingay. 16 karor aawam aik taaraf zaati mufaad aik taraf. yea musharaf ko baadshah kio nahi bana daitay siyaah karay yea safeed aanday day yea bachay koi rooknay waala nahi ho ga president bhi Chief of army staff bhi aur chief justice bhi. sabsay pehlay pakistan ka matlab hay kay sabsay pehlay zaati mufaad aur meri kursi pehlay tu kisy ki samjh may nahi aaya, aub samajh may aaya. Aafreen hay sirf aik shakhs ki khaatir jaab zaroorat parti hay aain ki dhaajia ura di jaati hain. Aur salute hay army kay (kutay say ziaada wafaadar) generaloo ko jinho nay sirf salute maarna seekha zehaan say soochna nai gheraatmandi ko topi may
daal kar pehaan li hay.

pakistan may emergency laagi hay yea media aur aadlia par shaab khoon maara gaaya hay. Aub humain samjh jaana chiay haawas iqtaadar kia hoti hay? Is mulk ka naam islami jamhoria Pakistan kay bajai Azaad Khiaal Martial Law pakistan or musharafistan. is say samjh may yea aata hay haalaat kharaab sirf parweezi hukoomat ko tool dainay kay liay ki gai taakay AAQA (America) kay maaqaasid poray kiay jaa sakay khuch aur begunahoo ka khoon bhaaya ja sakay. Dukh hay hum 16 karor ki booli sirf 16 Afsaaro nay laagai hoi jo humaay kabhi america tu kabhi birtish ko baich rahay hay yea phir apni hi inteligence kay aaqobat khaanoo may takhta maashq banay howay hain aur kisy kay maa baap biwi bachoo ko koi haaq haasil nai unko pata bhi
chalay wo zinda hay yea maar gai kisy judge nay pehli baar bera uthaaya tu agencies aur musharaf ko itna bura laga kay unko haata dia.

Yea wahi media hay jisay mainay independance di hay baqool baadshah salaamat pakistan aur zairay lab apnay khilaaf likhnay kay liay nahi di aazadi judicary ko aazadi di hay maagar aapnay khilaaf faisloo kay liay nahi kia aandhair naagri aur choopat raaj hay jiskay gaalay may phaanda aagaya phaansi usko dainy hay aur agencies ko 90 Aaraab lootnay waaloo ko steel mill saastay daamo beechnay waaloo ko aawaam ko dhaakia gaalia dainay waalay minister ko khuch nai kehna. haam murda qoam hain koi baahar say nai aaiy ga baachaanay. America aub emergency kay nifaaz paar jhoota wawela karay ga 2 din pehlay General Faalan apni behaan ka rishta le kar aaya tha musharaf kay pass.

Emergency lagnay kay baad condoleza rice taabsaray say inkaar china jaa kar tabsaara karo gi sab pata tha. Kia humaaray mulk may venezvella waalay haalaat paida ho rahay hain jaha CIA nay plotting ki Hugo chavez ko nikaal kar khud hookumat karnay ki maagar kia humaaray pass wo media hay jo ultaay howay taakhtay ko seedha kaarday kia wo awaam hay jo maazooll aur arrested saadar ko waapis lay aiy maagar ham saawal yea hay ham laai kisko yeha tu haar shaakhs ka daaman phaata howa hay kahi laachari say kahi corruption say kiski jhooli may daalaay yea zimadaari. Mubaarak musharaf tumhay aub khiaal karna american agenday ki taakmeel may waziristaan saawat maata
balochistan deeni madarsoo par qaatlay-aam aaraam say ho. Aub tu na koi aadliaa hay na aawaam na leader. sikaast khoorda fauj nay pehlay wazeeristan aur phir swaat may hatiaar daalnay kay baad aik baar phir apnay hi capital ko faatah karlia. 6 lakh ki fauj may aik shakhs bhi pakistan ka waafadaar nahi hay. may halaaf na lainay waalay judges ki aazmat ko salam karta ho aur uthaanay waaloo paar laanat bhaijta ho. aur jaab AAQA ko aitraaz nahi tu haam kon hotay hain taanqeed karnay walay pichli daafa AAQA nahi chaatay thay tu raat ko phone kardia is daafa chaatay hain tu daabi aawaz may muzaamat kar rahay hain aur imdaad jaari rahay gi ka naara.

In pakmastizone@ yahoogroups. com, Ricky Azmi wrote:
I certainly understand and respect your views. Magar humare mulk ka sab se bada masla yehi hai ke we get frustrated and make decisions based on our own liking and disliking, and then we turn to sources who we all know too well, ke na tou unho ne kal kabhi kuch kiya tha pakistan ke liye, aur na hi karenge, aur shayed kar bhi nahi karsakte. Wo suna hai na aapne..something like.."Khuda ne aajtak badli nahi
uss qaum ki haalat, na ho jisko khayaal khud aap apni haalat ke
badalne ka"....

Musharaf se peecha churayenge, tou kiya mulk sambhaljaayega? I dont think so. I think before we get too critical about country's leadership, the most important thing is to find ways to develop sense of responsibility and civics in our children, youth....then only we have some hope to look forward to a decent'modern' leadership. Warna Musharaf nahi tou Bhutto, Bhutto nahi tou, Nawaz, Nawaz nahi tou
shayed Altaf...magar ye drama sirf inhi characters tak limited rahega, aur Pakistan ki dhajiyan udti rahengi..aur hum sab, kalki tarha, aajki tarha....humesha ki tarha...kehtay rahenge..... Pakistan Zindabad.... Ye watan Tumhara hai, Tum ho Pasbaan Iske.....Pitty and Pathetic.... !
Ricky Azmi, Member PakMasti Zone
Jersey, Britain



A silent member...... Qaiser Majeed
I do agree with your comments 100%. We all Pakistanis should develop
sense of responsibility and civics in our children to make our
Pakistan better in future. May Allah help us to act on what we say....
(Amin)

Sunday, November 25, 2007

बाबूजी कानून मत बताइए

नियम-कायदे तोड़ना और उसी से तरक्की की कोशिश करना हमारे मिजाज में गजब का रच बस गया है। हाल ये है कि भ्रष्टाचार की हमें इस तरह आदत पड़ गई है कि इसके लिए हमने ढेर सारे तर्क-कुतर्क भी ढूंढ़ लिए हैं।

आज मैं अपने मोहल्ले की दुकान से स्प्राइट लेने गया। वैसे तो मैं कोई भी कोल्डड्रिंक नहीं पीता हूं। लेकिन, जब पेट साफ न हो रहा हो या फिर किसी पार्टी में तेल से भरा खाना ज्यादा खा लेने से पेट अजीब भाव दिखाने लगे तो, मैं कोल्डड्रिंक पी लेता हूं। और, ये मेरा भ्रम ही होगा लेकिन, मुझे लगता है कि कोल्डड्रिंक पी लेने के बाद पेट की सफाई बड़ी अच्छी हो जाती है।

खैर, मोहल्ले की दुकानवाले से मैंने स्प्राइट मांगा। बोतल पर MRP 20 रुपए लिखी हुई थी। 20 रुपए देने लगा तो, उसने 22 रुपए मांगे। मैंने कहा इस पर तो 20 रुपए लिखा है। उसने कहा तो, क्या बाबूजी हम कुछ न कमाएं। मैंने कहा कंपनी तो तुम्हें इस पर कमीशन देती ही है। फिर उसके पास जवाब तैयार था और इस बार पहले से तीखा जवाब था। बाबूजी कानून मत बताइए और जब आप इस तरह के सवाल कर रहे हैं तो, फिर इसे ठंडा करने में हमें जो बिजली का बिल देना पड़ता है। वो, कौन भरेगा। उसकी दुकान में फ्रिज भी कोल्डड्रिंक कंपनी का दिया हुआ लगा था।

मैंने कहा तुम्हारी दुकान में तो, फ्रिज भी कंपनी का ही दिया हुआ है। उसने फिर अचानक पैंतरा बदला। दुकानदार ने कहा साहब बहुत चोर कंपनियां हैं ये। अब दो-चार रुपए कमा लेता हूं इसलिए रखता हूं नहीं तो, ये सब सामान तो इस्तेमाल ही नहीं करना चाहिए पीने लायक थोड़े ना होता है। इसी बीच उसके मुंह से निकल गया बिना ठंडा किया लेना हो तो, ले लीजिए। मैं भी 2 रुपए ज्यादा न देने पर अड़ा था। मैं 20 रुपए में ही बोतल लेकर आ गया।

ये दुकानदार भ्रष्ट होने के लिए अजीब तर्क गढ़ रहा था। एक कंज्यूमर चैनल में काम करने के नाते मुझे अच्छे से पता है कि MRP पर ही बेचने वाले को कंपनियां कमीशन देती हैं। ये दुकानदार महाशय ज्यादातर दूध, दही, मक्खन जैसी चीजें बेचते हैं। उसमें भी हर आधे किलो के पैकेट 50 पैसे और एक किलो के पैकेट पर 1 रुपए ज्यादा उसे ठंडा रखने के नाम पर ले लेते हैं। शायद भ्रष्टाचार हमारी आदत में शामिल हो गया है। और, हमें लगता है कि अपनी तरक्की के लिए दूसरों से जरूरत से ज्यादा पैसे वसूल लेने से ही बड़ा आदमी बना जा सकता है।

Friday, November 23, 2007

अपंग सरकारों की गलत नीतियों से फिर मजबूत हो रहे हैं आतकंवादी

आज उत्तर प्रदेश के 3 शहरों में एक साथ फिर धमाके हुए। कम से कम 15 लोगों के मारे जाने की खबर हैं। सैकड़ो घायल हुए हैं। इस बार के हमले लखनऊ, वाराणसी और फैजाबाद की जिला कचहरियों में हुए। ये इत्तफाक ही नहीं है कि तीनों ही अदालतों में आतंकवादियों के खिलाफ मामलों की सुनवाई चल रही है। लखनऊ की अदालत में तो अभी कुछ दिन पहले ही तीन आतंकवादियों को वकीलों के गुस्से का शिकार होना पड़ा था। ये तीनों आतंकवादी राहुल गांधी या फिर दूसरे किसी नेता को अगवा कर देश की अलग-अलग जेलों में बंद 52 आतंकवादियों को छुड़ाना चाहते थे।

लखनऊ में वकीलों ने पेशी के समय इन्हीं तीनों आतंकवादियों की पिटाई कर दी थी। माना जा रहा है कि आज के धमाके करके आतंकवादी ये संदेश देना चाहते हैं कि कोई भी कहीं भी हो वो हमले कर सकते हैं। सबसे ज्यादा लोग वाराणसी की अदालत में हुए धमाके में मारे गए हैं। यहां एक और बहुचर्चित मामले की सुनवाई चल रही है। भाजपा विधायक अजय राय के भाई अवधेश राय की एक दशक पहले हुई हत्या के मामले में आज अजय राय की गवाही होनी थी। इस मामले में मऊ के माफिया विधायक मुख्तार अंसारी मुख्य आरोपी हैं। ये वही मुख्तार अंसारी हैं जो, सपा शासन के दौरान भाजपा विधायक कृष्णानंद राय की हत्या के भी आरोपी हैं। इसके अलावा मुख्तार पर मऊ में दंगे भड़काने और दंगे के दौरान नंगी रिवाल्वर लेकर कई गाड़ियों के काफिले के साथ खुलेआम दहशत फैलाने का भी आरोप है। पहले से भी इस बात की चर्चा होती रही है कि इन माफियाओं के संबंध दाऊद और आतंकवादी संगठनों से हैं।

पिछले कुछ समय से देश के अलग-अलग हिस्सों में हुई कट्टरपंथी घटनाओं को भी अगर साथ रखकर देखें तो, साफ-साफ दिखता है कि किस तरह आतंकवादी धीरे-धीरे फिर सिर उठा रहे हैं। वो, इतने मजबूत हो गए हैं कि टीवी चैनलों को मेल भेजकर बताया और उत्तर प्रदेश की तीन जिला अदालतों में बम धमाके करा दिए।

वैसे तो, उत्तर प्रदेश के इन तीन शहरों और कोलकाता में कोई रिश्ता नहीं दिखता है। लेकिन, मैं कोलकाता में दंगे जैसे हालात की वजह जानकर हैरान रह गया था। कोलकाता में कट्टरपंथी मुस्लिम तसलीमा को बंगाल से बाहर भगाने की बात कह रहे थे। मझे लग रहा था कि ये नंदीग्राम का गुस्सा है। लेकिन, नंदीग्राम की आड़ में आतंकवादी ताकतें कोलकाता को कबाड़ बनाने में सफल हो गईं। और, घुसपैठी बांग्लादेशियों को अपने वोटबैंक के तौर पर तैयार करने वाली सीपीएम की सरकार इतने बड़े खतरे से आंखें मूंदे बैंठी रही। हाल ये है कि बांग्लादेश से पश्चिम बंगाल से कई ऐसे रास्ते हैं जिसके जरिए लोग धड़ल्ले से आर पार आते जाते रहते हैं। यहां तक कि कई इलाकों में तो लोग बांग्लादेश का सिमकार्ड तक इस्तेमाल कर रहे हैं।

महाराष्ट्र के मालेगांव में धमाके, हैदराबाद के धमाके, हैदराबाद में तसलीमा के ऊपर हमला, कोलकाता मे तसलीमा के सिर पर ईनाम रखने वाला मौलवी। ये सारी ऐसी घटनाएं थीं जो, पूरी तरह से सोची समझी साजिश थी। इन सबको एक के बाद एक अंजाम दिया गया। लेकिन, सवाल ये कि देश भर में चल रही आतंकवादी हरकतों की जानकारी केंद्र सरकार को किस तरह से है। और, अगर इस खतरे की पूरी जानकारी है तो, इस मामले पर कड़ी कार्रवाई करने से क्यों बच रही है सरकार। क्या सिर्फ इस डर से कि मुसलमानों का वोटबैंक उसके हाथ से निकल जाएगा।

मुझे समझ में नहीं आता कि जमीन-जायदाद, हत्या, अपहरण के मामले में अदालतें समय लेते-लेते इतना समय ले लेती हैं कि न्याय के इंतजार में कई पीढ़ियों की जिंदगी खत्म हो जाती है। लेकिन, देश की अदालतें आतंकवादियों को सजा देने में इतना समय कैसे ले सकती हैं। आज आतंकवादियों ने सिर्फ इस बात पर हमला बोला है कि वकीलों ने उनके साथ मारपीट की और उनका केस लड़ने से मना कर दिया। कम से कम अदालतों को देश की सुरक्षा जैसे संवेदनशील मामले पर फैसला सुनाने में तो जल्दबाजी दिखानी ही होगी।

कांग्रेस की अगुवाई वाली सरकार के गृहमंत्री शिवराज पाटिल और गृह राज्यमंत्री श्रीप्रकाश जायसवाल को तो देखकर ही लगता है कि ये सोए-सोए से रहते हैं। धमाके के बाद श्रीप्रकाश जायसवाल शांति भाषण दे रहे थे और आतंकवादियों से लड़ने की उम्मीद प्रदेश की जनता से कर रहे थे। उनके बयान में आतंकवादियों के खिलाफ कड़ी कार्रवाई का एक भी शब्द नहीं फूटा। कांग्रेस और मुस्लिम तुष्टीकरण की राजनीति खेलने वाली पार्टियों ने संसद में पोटा कानून का विरोध इस तरह से किया था जैसे वो उनकी राजनीति ही खत्म कर दगा।

ये तुष्टीकरण की राजनीति ही है कि सुप्रीमकोर्ट से सजा सुनाए जाने के बाद भी संसद पर हमले का दोषी अफजल गुरू अब तक फांसी पर नहीं चढ़ाया जा सका है। मानवाधिकार संगठन अफजल गुरू के पक्ष में जनमत बनाने की कोशिश कर रहे हैं। उन्हें आतंकवादी हमले में मारे गए निर्दोषों के मानवाधिकार नजर नहीं आते। और, पूरी यूपीए सरकार चुपचाप अफजल को बचाने की मुहिम पर आंख मूंदे बैठी है। तसलीमा को बचाने के लिए सरकारों को तसलीमा को देश भर में भगाकर रखना पड़ रहा है। हम किससे डरे हुए हैं। इतने डरे लोगों को सौ करोड़ से ज्यादा आबादी वाले देश के भाग्य का फैसला करने का हक कैसे दिया जा सकता है। ऐसे में सचमुच लगता है कि इस नजरिए के साथ सत्ता में बैठे लोगों के हाथ में देश है तो, देश का भगवान ही मालिक है।

Monday, November 19, 2007

नंदीग्राम में वामपंथियों का नंगा नाच जारी है

गुजरात दंगों जैसा ही है नंदीग्राम का नरसंहार। नेशनल ह्यूमन राइट्स कमीशन के चेयरमैन जस्टिस एस राजेंद्र बाबू ने ये बात कही है। राजेंद्र बाबू कह रहे हैं कि जिस तरह से नंदीग्राम में अल्पसंख्यकों पर राज्य प्रायोजित अत्याचार हो रहा है वो, किसी भी तरह से गोधरा के बाद हुए गुजरात के दंगों से कम नहीं है। लेकिन, मुझे लगता है कि गुजरात दंगों से भी ज्यादा जघन्य कृत्य नंदीग्राम में हुआ है। नरेंद्र मोदी में भी कभी ये साहस नहीं हुआ कि वो उसे सही ठहराते लेकिन, बौराए बुद्धदेव तो इसे सही भी ठहरा रहे हैं।

दरअसल नंदीग्राम में स्थिति उससे भी ज्यादा खराब है जितनी राजेंद्र बाबू कह रहे हैं। लेफ्ट के गुडों का नंगा नाच अभी भी खुलेआम चल रहा है। बंगाल की बुद्धदेव सरकार अब सीआरपीएफ को काम नहीं करने दे रही है। सीआरपीएफ के देरी से आने का रोना रोने वाले बुद्धदेव के बंगाल के डीजीपी अनूप भूषण वोहरा ने सीआरपीएफ के डीआईजी को कहा है कि वो वही सुनें जो, राज्य पुलिस का स्थानीय एसपी (ईस्ट मिदनापुर) एस एस पांडा कह रहा हो। यानी केंद्र सरकार की ओर से राज्य में कानून व्यवस्था बनाने के लिए भेजी गई सीआरपीएफ पूरी तरह से राज्य पुलिस के इशारे पर चलेगी।

ये वही राज्य पुलिस है जो, लेफ्ट कैडर के इशारे के बिना सांस भी नहीं लेती। सीपीएम कार्यकर्ताओं के साथ मिलकर नंदीग्राम के निरीह किसानों की हत्या करने वाली पुलिस अब जो कहेगी वही सीआरपीएफ के जवानों को करना होगा। सीआरपीएफ के डीआईजी आलोक राज ने राज्य पुलिस से नंदीग्राम और आसपास के इलाके के अपराधियों की एक सूची मांगी थी अब तक सीआरपीएफ को वो सूची नहीं दी गई। आलोक राज ने कहा पुलिस का इतना गंदा रवैया उन्होंने अपने अब तक के कार्यकाल में नहीं देखा है।

सीआरपीएफ के 5 बेस कैंपों को हटाकर दूसरी जगह भेजा जा रहा है। ये वही बेस कैंप हैं जिन्हें बनाने के लिए सीआरपीएफ को लेफ्ट के अत्याधुनिक हथियारों, बमों से लैस गुंडों से छीनने के लिए काफी संघर्ष करना पड़ा था। इतना कुछ होने के बावजूद सीपीएम महासचिव की बेशर्म बीवी और सीपीएम पोलित ब्यूरो की पहली महिला सदस्य बृंदा करात टीवी चैनल पर नंदीग्राम के मसले पर इंटरव्यू के दौरान नंदीग्राम में महिलाओं के साथ हुए बलात्कार की तो चर्चा भी नहीं करना चाहतीं। और, वो इसी इंटरव्यू के दौरान बेशर्मी से हंसती भी दिख जाती है।

वहीं एक दूसरे चैनल पर सीपीआई नेता ए बी वर्धन नंदीग्राम को गुजरात से भी गंदा बताने पर भड़क जाते हैं। इन बेशर्मों को ये नहीं दिख रहा है कि नंदीग्राम के एक स्कूल में 1,200 से भी ज्यादा किसान शरण लिए हुए हैं। ये लोग भूमि उच्छेद प्रतिरोध कमेटी के सदस्य हैं। अब स्कूल का हेडमास्टर सीपीएम के दबाव में उन्हें स्कूल खाली करने को कह रहा है। कमेटी के 38 से ज्यादा सदस्य अभी भी लापता हैं। आशंका हैं कि गांव में कब्जे के दौरान सीपीएम कैडर ने इन लोगों की हत्याकर उनकी लाश कहीं निपटा दी है।

Sunday, November 18, 2007

दुनिया के 200 अच्छे विश्वविद्यालयों में एक भी भारत का नहीं है

इलाहाबाद में मैं जब तक था एक बड़ी गलतफहमी थी कि भारत की पढ़ाई दुनिया के दूसरे देशों से बहुत अच्छी है। शहर में डेढ़-दो लाख लड़के-लड़कियां ज्ञान पेलते दिखते थे। साल भर में 10-20 अपने जानने वाले IAS-PCS हो जाया करते थे। तब लगता था कि दुनिया के किस देश में यहां से ज्यादा पढ़े लिखे लोग होंगे। हर दूसरे लड़के के पास डबल MA की डिग्री होती थी। सब कुछ झमाझम था। लेकिन, इलाहाबाद विश्वविद्यालय को पूरब का ऑक्सफोर्ड कहा जाता था तो, मन मंछ टीस उठती थी कि किसी विदेशी विश्वविद्यालय से तुलना करके उसकी नकल भारत में इलाहाबाद विश्वविद्यालय को क्यों बताया जाता है।

इसकी साफ वजह अब समझ में आ गई है। ब्रिटेन की प्रतिष्ठित लीग टेबल में 200 विश्वविद्यालयों में भारत का एक भी विश्वविद्यालय नहीं है। दुनिया के सबसे प्रतिष्ठित विश्वविद्यालयों की इस सूची में चीन के 6 विश्वविद्यालय शामिल हैं। एशिया में चीन के अलावा जापान, सिंगापुर, हांगकांग, ताइवान और दक्षिण कोरिया के भी विश्वविद्यालयों को भी इस सूची में जगह मिल गई है।

यहां तक कि दुनिया भर में आपनी धाक जमाने वाला भारत का कोई IIT भी इस सूची में नहीं है। जबकि, इससे पहले एक साथ सारे IIT को मापने से उन्हें इस सूची में जगह मिल जाती थी। गनीमत बस इतनी है कि IIT दिल्ली और IIT मुंबई को दुनिया के 50 सबसे अच्छे तकनीकी संस्थानों में जगह मिल पाई है। लेकिन, ये दोनों भी 37वें और 33वें नंबर पर हैं। जबकि, चीन का सिंगहुआ विश्वविद्यालय 17वें नंबर पर है।

दुनिया के प्रतिष्ठित विश्वविद्यालयों की इस लीग लिस्ट में हमेशा की तरह ही अंग्रेज दुनिया का दबदबा कायम है। अमेरिका और ब्रिटेन के विश्वविद्यालय उच्चतर शिक्षा में सबसे आगे हैं। ये बात लगातार सामने आ रही है कि भारत के अच्छे संस्थानों में पढ़ाने के लिए अच्छे अध्यापक नहीं मिल रहे हैं। देश के विश्वविद्यालयों में शोध की हालत बिल्कुल ही खराब है। ऐसे में मनमोहन जी कहां से करिएगा शिक्षा क्रांति। और, उच्चतर शिक्षा की हालत सुधारने बिना तो तरक्की सबको नहीं मिलने वाली। कुछ अंबानी, टाटा, बिड़ला को भले मिल जाए।

अमीरों की दिल्ली पैसा, दारू और कार के पीछे भाग रही है

दिल्ली के लोग जमकर पैसा कमा रहे हैं। जमकर दारू पी रहे हैं और सड़कों पर तेज रफ्तार से कारें भगा रहे हैं। दिल्ली सरकार की ओर जारी ताजा आंकड़े ये बता रहे हैं। दिल्ली में एक व्यक्ति की औसत कमाई सालाना 61,676 रुपए हो गई है। अब दिल्ली सिर्फ गोवा से ही पीछे रह गई है। गोवा में लोगों की प्रति व्यक्ति कमाई सालाना 70,112 रुपए है।

कमाई बढ़ी तो, इसका जश्न मनाने के लिए दारू तो जरूरी है। और, दिलवालों की दिल्ली ने जमकर दारू पी। लेकिन, जश्न मनाने में थोड़ी कमी रह गई और दिल्लीवाले साल भर में एक लाख से काफी कम करीब 78,000 बोतल शराब ही पी पाए।

दिल्ली के लोगों ने इस साल करीब 16 लाख कारें खरीदी हैं। जो, पिछले साल से डेढ़ लाख ज्यादा हैं। अब दिल्ली वाले कमा ज्यादा रहे हैं तो, फिर बस या दूसरे पब्लिक ट्रांसपोर्ट से क्यों यात्रा करें। अपनी कार से चलते हैं, जमकर दारू पीते हैं तो, थोड़ी बहुत दुर्घटनाएं तो हो ही जाती हैं। लेकिन, 2,167 लोग दिल्ली की इस रफ्तार के चक्कर में अपनी जान गंवा बैठे।

Saturday, November 17, 2007

अमीरों का देश भुक्खड़ भारत!

दुनिया के भुक्खड़ देशों में भारत नेता बन गया है। ग्लोबल हंगर इंडेक्स (दुनिया के भुक्खड़ सूचकांक)
पर भारत की हालत इतनी पतली है कि नेपाल, पाकिस्तान भी हमको लंगड़ी मारकर आगे निकल गए हैं। 119 विकासशील देशों (भारत अभी भी विकासशील है) में भारत 96वें नंबर पर है।

भुक्खड़ देशों की सूची में पाकिस्तान हमसे 8 नंबर ऊपर 88वें नंबर पर है। जबकि, नेपाल 92वें पर है। बांग्लादेश के लोगों को भी भारत से ज्यादा खाने-पीने को मिल रहा है। म्यांमार और श्रीलंका जहां के आंतरिक हालात बेहद खराब हैं वो, भी हमसे बहुत आगे हैं। म्यांमार इसी लिस्ट में 68वें और श्रीलंका 69वें नंबर पर है।

इस खबर पर जब मेरी नजर पड़ी, उसी दिन मैं अपने चैनल पर फोर्ब्स मैगजीन की एक खबर उत्साह के साथ चलाकर घर लौटा था। फोर्ब्स मैगजीन की ताजा लिस्ट के मुताबिक, सबसे अमीर सिर्फ 3 भारतीयों की कुल संपत्ति चीन के 40 अमीरों की कुल संपत्ति से बहुत ज्यादा है। भारतीय मूल के 3 अमीर हैं एल एन मित्तल (इनको हम या दुनिया के लोग भारतीयों के साथ क्यों जोड़ते हैं पता नहीं), मुकेश अंबानी और उनके छोटे भाई अनिल अंबानी। इन तीनों की कुल संपत्ति मिलाकर करीब 160 अरब डॉलर है। जबकि, चीन के 40 अमीरों की कुल संपत्ति 120 अरब डॉलर ही है।

मैंने भी अतिउत्साह में उस खबर को अच्छे से चलाया और लिखा 12 चीनियों पर भारी 3 हिंदुस्तानी। लेकिन, जब मैंने भुक्खड़ भारत की ये पहचान मिलाई तो, चीनी ड्रैगन भारतीय हाथी को निगलता नजर आया। चीन ग्लोबल हंगर इंडेक्स में 47वें नंबर पर है। यानी उस लिहाज से अगर भारत में 10 हिंदुस्तानी भूखे सोते होंगे। तो, सिर्फ 1 चीनी ऐसा होगा जिसे खाना नहीं मिलता होगा।

इन आंकड़ों को देखकर ज्यादा चिंता इसलिए भी होती है क्योंकि, ये सर्वे ऐसे लोगों पर किया गया जो, एक डॉलर से भी कम पर पूरा दिन बिता देते हैं। चिदंबरम-मनमोहन की जोड़ी के हर दूसरे दिन देश की तरक्की के भाषण मेरा खून जलाने लगे हैं। भारत की इस भुक्खड़ पहचान ने मेरा सारा जोश ठंडा कर दिया है।

इस देश में अभी और कितने किसान मरेंगे

प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह और वित्त मंत्री चिदंबरम देश को तरक्की की राह पर ले जाने का लगातार दावा करते दिखते हैं। 9-10 प्रतिशत की विकास दर अब भारत पा सकता है। इस बारे में अर्थसास्त्री-बाजार के जानकार लोगों को टीवी-अखबारों के जरिए ज्ञान दर्शन कराते रहते हैं। लेकिन, इस खबर पर चर्चा कम ही होती है कि आखिर संपन्नता के कुछ टीले बनाकर देश को 10 प्रतिशत की भी विकास दर मिल जाए तो, उसका क्या मतलब होगा।

कभी-कभी वित्त मंत्री खेती-किसानों की चर्चा आने पर कह देते हैं कि देश का विकास अच्छे से हो इसके लिए जरूरी है कि कृषि विकास दर 4-4.5 प्रतिशत हो। अभी ये 2.5 प्रतिशत भी नहीं है। लेकिन, ये विकास दर कैसे हासिल होगी इस बारे में शायद ही कभी सरकारों की तरफ से कोई ठोस फॉर्मूला सुनने में या हो। हाल ये है कि देश के किसान कर्ज के बोझ में दबकर ऐसे आत्महत्या कर रहे हैं कि अब उनका मर जाना भी इस देश में खबर नहीं बन पाता।

अभी तीन दिन पहले नासिक के एक और किसान ने आत्महत्या कर ली। देश के सबसे संपन्न राज्यों में से एक महाराष्ट्र में ही नासिक है। दुनिया भर के अमीरों को धूल चटाने वाले अंबानी, टाटा, बियानी, गोदरेज जैसी बड़ी जमात इसी राज्य में पाई जाती है। लेकिन, महाराष्ट्र ही देश का ऐसा राज्य है जहां के विदर्भ में दो जून की रोटी न जुटा पाने से किसान लगातार आत्महत्या कर रहे हैं। प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह और राज्य के मुख्यमंत्री विलासराव देशमुख यहां आकर पैकेज का ऐलान करते हैं और अखबारों-टीवी चैनलों की सुर्खियां बन जाते हैं लेकिन, पैकेज के ऐलान के समय पहले पन्ने की सुर्खियों वाले किसान की आत्महत्या की खबर अगले ही दिन सातवें-आठवें पेज पर छोटी सी छपकर रह जाती है।

किसानों के हालात इतने खराब हैं कि 1997 से 2005 के बीच डेढ़ लाख से ज्यादा किसान आत्हमत्या कर चुके हैं। यानी हर रोज 50 से ज्यादा किसानों ने आत्महत्या कर ली। ये किसी भी त्रासदी से मारे गए लोगों से ज्यादा है। सबसे ज्यादा ध्यान देने की बात ये है कि देश के बीमारू राज्यों के अगुवा बिहार और उत्तर प्रदेश में किसानों की आत्महत्या का एक भी मामला सामने नहीं आया है। आत्महत्या करने वाले किसानों में दो तिहाई संपन्न राज्यों महाराष्ट्र, कर्नाटक के अलावा आंध्र प्रदेश, केरल और मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़ के थे। साफ है संपन्न राज्यों में अमीर-गरीब के बीच बढ़ती खाई भी इसकी एक बड़ी वजह दिख रही है।

किसान ज्यादातर उन्हीं राज्यों में आत्महत्या कर रहे हैं जहां कैश क्रॉप का चलन है। यानी ऐसी खेती जो व्यवसायिक दृष्टि से की जाती है। जैसे विदर्भ में कपास की खेती। इस तरह की खेती के लिए किसान बड़ी रकम कर्ज के तौर पर लेता है और एक बार कर्ज न चुका पाने पर वो उसी जाल में ऐसा फंसता है कि जान गंवाने के बाद ही मुक्ति मिल पाती है। सिर्प महाराष्ट्र में ही 2005 में 3926 किसानों ने आत्महत्या कर ली। यानी हर रोज 10 से ज्यादा किसान जान गंवा बैठे। खेती में 4 प्रतिशत की विकास दर की उम्मीद जता रहे चिदंबरम सुन रहे हैं क्या।

Wednesday, November 14, 2007

दो बूढ़े वामपंथियों के अहं की लड़ाई में बरबाद हो रहा है बंगाल

रिजवानुरहमान की मौत के बाद पश्चिम बंगाल के पूर्व मुख्यमंत्री ज्योति बसु का बयान- इस मामले में राज्य सरकार ने सही समय पर सही कदम नहीं उठाया।

नंदीग्राम और सिंगूर मामले पर राज्य सरकार सलीके से लोगों को समझा नहीं पाई- ज्योति बसु।

पुराने वामपंथी लकीर के फकीर हैं। वो, समय के साथ खुद को बदल नहीं पा रहे हैं- बुद्धदेव भट्टाचार्य

बंगाल के नौजवानों को रोजगार की जरूरत है और वो बिना पूंजी के संभव नहीं। पूंजी के लिए पूंजीवादियों का सहारा लेना ही होगा। ये समय की जरूरत है- बुद्धदेव भट्टाचार्य


पिछले कुछ महीने में पश्चिम बंगाल के मुख्यमंत्री बुद्धदेव भट्टाचार्य और पूर्व मुख्यमंत्री ज्योति बसु के बीच हुए अघोषित शीत युद्ध की ये कुछ बानगियां हैं। कैडर के दबाव और स्वास्थ्य की मजबूरियों ने ज्योति बसु पर बुद्धदेव को कुर्सी देने का दबाव तो बना दिया। लेकिन, ये बूढ़ा वामपंथी अभी भी बंगाल पर अपना दखल कम नहीं होने देना चाहता। और, बंगाल की राजनीति को नजदीक से समझने वालों की मानें तो, इन दो बूढ़े वामपंथियों के अहम की लड़ाई में बंगाल बरबाद होता जा रहा है।

ज्योति बसु ने हर उस नाजुक मौके पर बुद्धदेव के हर फैसले को गलत ठहराने की कोशिश की। जब बुद्धदेव को बचाव की जरूरत थी। इसी रस्साकशी का परिणाम था कि दो दशकों ज्योति बसु के खिलाफ मोर्चा खोलने वाली ममता सिंगूर के मुद्दे पर ज्योति बसु के घर चाय-नाश्ता मंजूर कर लेती हैं। लेकिन, बुद्धदेव से मिलने को भी तैयार नहीं होती हैं।

बंगाल में सीपीएम कैडर के खिलाफ सीपीएम का ही कैडर खड़ा है। इस बात में तो कोई संदेह हो ही नहीं सकता कि SEZ और जमीन के बहाने लड़ाई के जो तरीके इस्तेमाल हो रहे हैं वो, ताकत राज्य में सीपीएम कैडर के अलावा किसी और के पास नहीं है। बुद्धदेव हिंसा में माओवादियों का हाथ होने की बात कह रहे थे। लेकिन, रिपोर्ट साफ बताती है कि माओवादी कहीं नहीं हैं। माओवादी तरीका जरूर अपनाया जा रहा है।

कोलकाता में ये चर्चा आम है कि सबसे ज्यादा हिंसा बुद्धदेव का विरोधी खेमा ही कर रहा है। अब ये बताने की जरूरत तो नहीं है कि मुख्यमंत्री के अलावा राज्य में दूसरे किस वामपंथी नेता को कैडर का अंधा भरोसा हासिल है। दोनों बूढ़े वामपंथियों की लड़ाई में बंगाल बरबाद होता जा रहा है। और, अब लेफ्ट नेताओं को भी लगने लगा है कि इस लड़ाई में दुनिया के अकेली सबसे ज्यादा समय तक चलने वाली लोकतांत्रिक सरकार इतिहास बन सकती है। यही वजह है कि करात इस बार खुलकर बुद्धदेव के साथ खड़े हो गए। लेकिन, कुल मिलाकर बरबादी तो बंगाल की ही हो रही है। बंगाल के लोग अब तो जाग जाओ।

बौराए बुद्धदेव से कौन बचाएगा बंगाल को

नंदीग्राम में हालात इतने खराब हो गए हैं कि लोगों को अपनी जान बचाने के लिए राहत शिविरों में शरण लेनी पड़ रही है। सबसे ज्यादा हैरानी की बात तो ये है कि सरकारी स्कूलों में चल रहे इन राहत शिविरों में ज्यादातर वो मुसलमान हैं जो, अब तक सीपीएम का वोटबैंक माने जाते रहे हैं। महीने भर से करीब 5,000 से ज्यादा लोग अपने घरों को छोड़कर राहत शिविरों में डरे सहमे पड़े हुए हैं।

5-7 साल के बच्चों को सीपीएम कार्यकर्ता उनकी रैलियों में शामिल न होने पर पीट रहे हैं। 7 साल की अमीना खातून को 20 दिन पहले उस समय घर छोड़ना पड़ा जब उसके गांव पर सीपीएम कैडर ने गोली, बमों के साथ हमला कर दिया। इस गांव में तृणमूल कांग्रेस समर्थित भूमि उच्छेद प्रतिरोध कमेटी का दबदबा था। इसे हटाने के लिए सीपीएम कैडर ने गांव को बरबाद कर दिया। लोग जान बचाकर राहत शिविरों में भाग गए।

बंगाल के मुख्यमंत्री बुद्धदेव भट्टाचार्य और प्रकाश करात तो बेशर्मी की सारी हदें पार कर गए हैं। वो कह रहे हैं सीपीएम कार्यकर्ताओं को उनके घर नहीं जाने दिया जा रहा था। इसलिए सीपीएम कैडर को हथियार उठाना पड़ा। बुद्धदेव इतने पर ही नहीं माने। वो कह रहे हैं कि यहां हुई हिंसा के लिए केंद्र सरकार जिम्मेदार है। केंद्र से बार-बार सीआरपीएफ मांगने के बाद भी समय से सुरक्षा बल के जवान नहीं पहुंचे। इसीलिए नंदीग्राम में इतनी हिंसा हुई।

बुद्धदेव को शर्म नहीं आती जब पूरा देश ये देख रहा है कि नंदीग्राम और आसपास के गांवों में सीआरपीएफ के जवानों को हथियारबंद सीपीएम कैडर और बंगाल की पुलिस घुसने ही नहीं दे रही है। और, अगर बुद्धदेव के बयान पर भरोसा करें तो, क्या वो ये मान रहे हैं कि बंगाल में सरकार का कोई नियंत्रण नहीं है। फिर ऐसी सरकार के बने रहने का क्या तुक है। चुनी हुई राज्य सरकारों के तख्तापलट के लिए छोटी-छोटी बातों पर राष्ट्रपति शासन का इस्तेमाल करने वाली कांग्रेसी सरकार क्यों कान में तेल डालकर बैठी हुई है।

साफ है कांग्रेस और लेफ्ट के बीच तू मेरी गलती को छिपा मैं तेरी गलती को अच्छाई में बदलता हूं, वाला फॉर्मूला चल रहा है। यानी दलालों की सरकार हमारे ऊपर राज कर रही है।

Tuesday, November 13, 2007

पाकिस्तान और पश्चिम बंगाल कितने एक से दिखने लगे हैं

पाकिस्तान में मुशर्रफ की तानाशाही चलती है ये, दुनिया जानती है। पश्चिम बंगाल में वामपंथियों का कैडर पिछले 30 सालों से तानाशाही चला रहा है लेकिन, पश्चिम बंगाल सरकार को दुनिया की सबसे ज्यादा समय तक चलने वाली लोकतांत्रिक तरीके से चुनी हुई सरकार कहा जाता है।
मुशर्रफ ने अभी पाकिस्तान में आपातकाल लगाया है। पश्चिम बंगाल में पिछले 30 सालों से सीपीएम कैडर का अघोषित आपातकाल चल रहा है।
मुशर्रफ दुनिया के सामने पाकिस्तान को बचाने के लिए आपातकाल जरूरी बताते हैं। पश्चिम बंगाल के मुख्यमंत्री बुद्धदेव भट्टाचार्या और सीपीएम महासचिव प्रकाश करात बंगाल के विकास के लिए हर उस व्यक्ति को कुचल देने की हिमायत कर रहे हैं जो, इस रास्ते में रोड़ा बन रहा हो।
मुशर्रफ बेनजीर को वतन लौटने की इजाजत देते हैं लेकिन, पाकिस्तान में आते ही आत्मघाती दस्ते बेनजीर का स्वागत करते हैं। पश्चिम बंगाल में रहकर दुनिया भर में अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का हल्ला करने वालों को वामपंथी सरकार सर पर बिठाकर उन्हें ट्रेडमार्क की तरह इस्तेमाल करती है लेकिन, अगर बंगाल में सरकारी और लाल झंडा कैडर की काली करतूतों के खिलाफ कोई कुछ बोला तो, मेधे पाटेकर की तरह उसकी कार पर हमला बोल दिया जाता है।
पाकिस्तान में मुशर्रफ ने पहले जेहादियों को पैदा किया। उन्हें भारत के खिलाफ और पाकिस्तान में अपने विरोधियों के खिलाफ इस्तेमाल किया। अब वही जेहादी लाल मस्जिद जैसे कांड कर रहे हैं और मुशर्रफ के लिए ही मुश्किल बन गए हैं। वामपंथी विचारधारा से निकले माओवाद और माओवादियों का इस्तेमाल सीपीएम ने पूरे देश मे अपने विरोध में उठने वाले हर विचार को दबाने में किया। अब जब बंगाल में अपनी जमीन बचाने के लिए किसान माओवादी तरीके अपना रहे हैं तो, करात और दूसरे वामपंथी कह रहे हैं कि ममता बनर्जी वामपंथी सरकार गिराने के लिए माओवादियों का इस्तेमाल कर रही हैं।
पाकिस्तान में कई इलाके ऐसे हैं जहां सेना की भी घुसने की हिम्मत नहीं होती। पाकिस्तान के ऐसे इलाकों में अक्सर जेहादियों की अत्याधुनिक हथियार लहराते टीवी चैनल्स अखबारों में दिखते रहते हैं। पश्चिम बंगाल में हाल और भी खराब है। सीपीएम कैडर के साथ वहां की पुलिस मिली हुई है। बंकर बनाकर सीआरपीएफ के जवानों को घुसने से रोका जा रहा है। सीआरपीएफ को जमीन-रास्ते में जगह-जगह बारूद-बम बिछे मिले हैं।
पाकिस्तान में मुशर्रफ जजों की और उनके बेटे-बेटियों की अश्लील तस्वीरें खींचकर अपने साथ रहने के लिए ब्लैकमेल कर रहे हैं। तो, पश्चिम बंगाल में सरकार के कुकृत्यों पर आंख मूंदे रखने के लिए वामपंथी केंद्र सरकार पर दबाव (परमाणु समझौता, FDI और ऐसे ही दूसरी बातों के जरिए) बनाए रखते हैं। यही वजह है कि सीपीएम कैडर के इतने नंगे नाच के बाद भी केंद्र सरकार ने कोई भी कड़ा कदम नहीं उठाया है। दूसरी कोई सरकार होती तो, राष्ट्रपति शासन के बहाने अब तक कांग्रेस ही वहां राज कर रही होती।
नंदीग्राम में 14 लोगों की हत्या के आंकड़े सरकारी थे। असली आंकड़ा छिपा लिया गया। सीबीआई जांच में ये साबित हो गया था कि सारी हत्याएं सीपीएम कैडर और उसके साथ मिले पुलिस वालों ने की। लेकिन, कुछ नहीं हुआ। सिंगूर में सीपीएम का कैडर एक नाबालिग लड़की के बलात्कार और उसकी हत्या के आरोप में जेल में है।
सीएनएन-आईबीएन और आईबीएन 7 पर एक महिला चीख-चीखकर बता रही थी कि सीपीएम के कैडर ने उसे मारा पीटा और फिर उसके और उसकी बेटियों के साथ बलात्कार किया। उसके बाद वो दरिंदे उसे उठा ले गए और अब तक उसकी बेटियों का पता नहीं हैं। टीवी चैनलों पर नंदीग्राम की हकीकत देखने के बाद मन बहुत ज्यादा खिन्न हो गया है। बस इतना ही कहूंगा कि पाकिस्तान में और पश्चिम बंगाल दोनों ही जगहों पर जितने ज्यादा दिनों तक तानाशाही रहेगी, भारत देश के लिए खतरा उतना ही बढ़ता जाएगा।

सलाह की कमाई, कमाई से इज्जत

अक्सर बड़े बुजुर्गों को कहते सुना जाता है कि कभी किसी को बिना मांगे सलाह नहीं देनी चाहिए। साथ ही ये भी गलत सलाह लेने-देने से खराब कुछ नहीं हो सकता। लेकिन, अब अच्छी सलाह आपकी कमाई बढ़ा सकती है तो, एक गलत सलाह आपके कमाई के मौके पर असर डाल सकती है।

बचपन में मैंने एक कहानी भी सुनी थी कि एक गांव के मुखियाजी की सलाह हर कोई मानता था। मुखियाजी से किसी ने पूछा कि आप कैसे इस तरह की सलाह दे पाते हैं। मुखियाजी ने कहा- सलाह लेने वाले की जरूरत, हैसियत और उसकी मन:स्थिति (मन की इच्छा), इन तीनों बातों का पता लगाने के बाद उसके लिए सबसे उपयोगी सलाह मैं उसे देता हूं।

अगर आप भी मुखियाजी की तरह काम की सलाह दे सकते हैं। तो, अच्छी कमाई के साथ अच्छी साख भी बना सकते हैं। देश में अगले तीन सालों में तीन लाख से ज्यादा सलाह देने वालों की जरूरत है। वैसे तो, छोटी से छोटी दुकान और मॉल में सेल्सगर्ल/ब्वॉय भी खरीदने वाले की मन की इच्छा देखकर ही उसे खरीदने की सलाह देता है। यहां तक कि अगर आपका मन कम कीमत वाला सामान खरीदने की इच्छा है तो, वही सेल्सगर्ल/ब्वॉय आपको उस कम कीमत वाले सामान में ढेर सारी खूबियां बता देगा। जबकि, ज्यादा कीमत वाला सामान पसंद करने वाले को महंगे सामान में ढेर सारी खूबियां बताकर उसे सामान खरीदने की सलाह देते हैं।

ये तो थी सलाह देने की पहली सीढ़ी। लेकिन, सफल सलाहकार बनने के लिए जिस क्षेत्र की कंपनी के साथ आप काम करना चाहते हैं, उस क्षेत्र के बारे में अच्छी जानकारी होनी जरूरी होती है। कंसल्टेंट्स की ज्यादातर नौकरियां किसी न किसी कंसल्टेंसी फर्म के ही जरिए मिल रही हैं। भारत में कंसल्टेंसी का कारोबार करीब 13,000 करोड़ रुपए का है और ये हर साल 30 प्रतिशत बढ़ रहा है। यानी 2010 तक ये 17,000 करोड़ रुपए से ज्यादा कारोबार बन जाएगा।

अभी 4,000 कंसल्टेंसी फर्म हैं। जिनमें 10,000 लोग काम कर रहे हैं। 2010 तक 9,000 कंसल्टेंसी फर्म में 2,20,000 लोगों को नौकरियां मिलेंगी। और, सलाह देने-लेने का सबसे ज्यादा दिल्ली में मिलेगा। सारी नौकरियां का करीब 25 प्रतिशत दिल्ली में ही मिलेगा। तो, अगर आपको भी अच्छी सलाह देनी आती है तो, तैयारी कीजिए और लपक लीजिए नौकरी। अच्छे सलाहकार को 35-40 लाख रुपए सालाना की नौकरी मिल सकती है।

पुराने जमाने में गांव-समाज का सबसे बुजुर्ग या फिर रसूखदार (बड़ा) आदमी सलाह देने का काम करता था। अब जमाना बदल गया है। अब अच्छी सलाह देने वाले की कमाई बढ़ेगी और उस बढ़ी कमाई से समाज में रसूख भी (इज्जत)।

ज्यादा पढ़े-लिखे भारत को लड़कियां कम पसंद हैं

दीपावली बीत गई। सबने लक्ष्मी पूजन किया। घर की लक्ष्मी की भी इज्जत बढ़ाई। और, घर में ढेर सारी लक्ष्मी आने के लिए तरह-तरह की पूजा की, दीप जलाया, मिठाइयां बांटी। वैसे भी अक्सर भारतीय संस्कृति-संस्कारों में लड़की को मातृशक्ति, देवी, घर की मालकिन कहकर उसे ज्यादा इज्जत देने की कोशिश दिखती रहती है। लेकिन, हर साल तरक्की करता भारत शायद इसका दिखावा ही करता है। दरअसल ज्यादा पढ़ा-लिखा भारत लड़कियों से ज्यादा ही भेदभाव कर रहा है।

वर्ल्ड इकोनॉमिक फोरम के ताजा जेंडर गैप इंडेक्स में भारत सबसे नीचे के दस देशों में शामिल है। लड़कियों से भेदभाव के मामले में भारत की स्थिति और खराब हुई है। इस सर्वे में 128 देश शामिल हुए। इसमें भारत 115वें नंबर पर है। जबकि, पिछले साल भारत 98वें नंबर पर था। पिछले साल से इस साल में पढ़े-लिखे लोग तेजी से बढ़े। भारतीयों के घर सुविधाओं बढ़ीं और ज्यादा समृद्धि आई। लेकिन, आर्थिक, शैक्षिक, राजनीतिक और स्वास्थ्य के मामले में लड़कियों के साथ भेदभाव भी बढ़ता गया।

कुछ दिन पहले दिल्ली से एक सर्वे में ये साफ निकलकर आया था कि दक्षिण दिल्ली में सबसे ज्यादा कन्याएं गर्भ में ही मार दी जाती हैं। दक्षिण दिल्ली, सिर्फ दिल्ली का ही नहीं देश का वो इलाका है, जहां लोग ज्यादा पढ़े-लिखे हैं। ज्यादा तरक्की की है। किसी तरह की सुविधाओं की कमी नहीं है। इसके खतरे भी साफ नजर आने लगे हैं।

खैर वर्ल्ड इकोनॉमिक फोरम के सर्वे के मुताबिक, लड़कियों को आर्थिक तरक्की यानी रोजगार के मौके देने के मामले में भारत 128 देशों में 122वें नंबर पर चला गया है। इस मामले में भारत से खराब स्थिति सिर्फ ऐसे देशों की है जिनका जिक्र करने का भी मतलब नहीं है। तरक्की के मामले में अक्सर BRIC देशों (ब्राजील, रूस, इंडिया और चीन) की तुलना होती है। लड़कियों को समान मौके देने के मामले में ये देश भारत से बहुत आगे हैं। ब्राजील इसमें 62वें, रूस 16वें और चीन 60वें नंबर पर है।

दीपावली पर लक्ष्मी की पूजा करने वालों को ये समझ में क्यों नहीं आता कि अगर असल लक्ष्मी (लड़कियों) के साथ इसी तरह भेदभाव होता रहा। तो, लक्ष्मी किस बहाने ऐसे लोगों के घर आ पाएंगी। भारतीय शास्त्र और संस्कृति में तो ये भी कहा जाता है कि लक्ष्मी (पत्नी) के साथ की गई पूजा का फल जल्दी और ज्यादा मिलता है। तो, लक्ष्मी को सम्मान (बराबर का दर्जा) तो देना सीखो।

कर्नाटक में बी एस येदियुरप्पा के मुख्यमंत्री बनने का मतलब

दक्षिण भारत में भारतीय जनता पार्टी की पहली सरकार बन गई है। सिर्फ उत्तर भारत की पार्टी कही जाने वाली भाजपा का मुख्यमंत्री अब दक्षिण के एक सबसे समृद्ध राज्य की सत्ता संभाल रहा है। दक्षिण के किसी राज्य में भाजपा का मुख्यमंत्री बनना भारतीय राजनीतिक की एक ऐसी घटना के तौर पर दर्ज की जाएगी जो, देश में कांग्रेस का दर्जा भाजपा को मिलने की ओर इशारा करती है। वो, भी ऐसे समय में जब देश में कांग्रेस की अगुवाई वाली यूपीए सरकार सत्ता में है।

वैसे सच्चाई यही है कि कर्नाटक विधानसभा चुनाव में सबसे ज्यादा सीटें जीतने से ही भाजपा ने ये संकेत तो दे ही दिया था कि भाजपा देश में असल तौर पर कांग्रेस का विकल्प बनकर आ रही है। एक ऐसी पार्टी जिसको देश के शहरी भारत का सबसे ज्यादा भरोसा हासिल है। आज कर्नाटक में भाजपा का मुख्यमंत्री उस जनता दल के सहयोग से बना है। जो, अपने नाम में सेक्युलर लगाता है और इस पार्टी के मुखिया पूर्व प्रधानमंत्री एच डी देवगौड़ा की इस पार्टी के भाजपा सरकार को समर्थन देने से कुछ दिन पहले तक देवगौड़ा भाजपा को सांप्रदायिक बताकर उसका मुख्यमंत्री बनाने को राजी नहीं थे।

भाजपा और जनता दल एस के बीच मुख्यमंत्री पद को लेकर हुई नौटंकी के बाद ही बी एस येदियुरप्पा का नाम देश के दूसरे हिस्से के लोगों को पता लगा। इससे पहले येदियुरप्पा को कर्नाटक से बाहर कम ही लोग जानते हैं। कर्नाटक में भाजपा का चेहरा अनंत कुमार ही माने जाते रहे हैं। 1996 में पहली बार लोकसभा में पहुंचने वाले अनंत कुमार अभी कर्नाटक की कनारा लोकसभा सीट से तीसरी बार सांसद चुने गए हैं। विद्यार्थी परिषद के जरिए बीजेपी में पहुंचे अनंत कुमार ने छात्र राजनीति के समय से ही अच्छा संगठन तैयार कर लिया था। इसी दौरान येदियुरप्पा भी कर्नाटक की राजनीति में भगवा झंडे के साथ उतरे।

अनंत कुमार जहां कर्नाटक भाजपा का राष्ट्रीय चेहरा बने वहीं येदियुरप्पा ने राज्य में ही भगवा झंडे को परवान चढ़ाने का बीड़ा उठाया। 1982 में येदियुरप्पा ने बंधुआ मजदूरी के खिलाफ 300 किलोमीटर लंबा मार्च निकाला। युवा नेता येदियुरप्पा की राजनीति में वो पहली बड़ी शुरुआत थी। इस मार्च ने येदियुरप्पा को उनके अपने गृहजिले शिमोगा के शिकारीपुरा का हीरो बना दिया। अगले ही साल 1983 में हुए विधानसभा चुनाव में येदियुरप्पा विधानसभा के लिए चुन लिए गए और कर्नाटक के कद्दावर नेता रामकृष्ण हेगड़े की गठबंधन की सरकार में शामिल हुए। ये कर्नाटक में पहली गैर कांग्रेस सरकार थी।

कांग्रेस को तब मुश्किल से ही अंदाजा रहा होगा कि ये छोटा सा राजनीतिक घटनाक्रम आगे की राजनीति बदल देगा। खैर, जनता पार्टी और भाजपा की ये गठबंधन सरकार सिर्फ 18 महीने में ही गिर गई। लेकिन, येदियुरप्पा का सफर परवान चढ़ता गया। 1985 में 2 विधायकों वाली भाजपा 2004 में 79 विधायकों के साथ कर्नाटक की सबसे बड़ी पार्टी बन गई। 21 महीने बाद जनता दल एस के साथ हुए गठबंधन समझौते के मुताबिक, आखिर भाजपा ने कर्नाटक में सरकार बना ही ली। वैसे तो, राष्ट्रीय पार्टी का दर्जा भाजपा को बहुत पहले ही चुनाव आयोग से मिला हुआ है। लेकिन, सही मायने में भाजपा को अब राष्ट्रीय पार्टी के तौर पर कांग्रेस का विकल्प बनने का असली मौका मिला है।

देवगौड़ा के गिरगिट जैसे चरित्र को देखते हुए येदियुरप्पा और भाजपा को कितना समय अपनी पहचान छोड़ने के लिए मिल पाएगा ये तो, अंदाजा लगाना भी मुश्किल है। लेकिन, भाजपा के लिए कर्नाटक के जरिए तमिलनाडु में घुसने का एक अच्छा मौका साबित हो सकता है। राम सेतु मामले में करुणानिधि के खिलाफ मोर्चाबंदी में भाजपा के साथ जयललिता शामिल हुईं थीं। और, सिर्फ क्षेत्रीय पार्टियों के दबदबे वाले तमिलनाडु में फीकी पड़ चुकी कांग्रेस की जगह लेने के लिए भाजपा के लिए ये एक अच्छा मौका साबित हो सकता है। कर्नाटक में खिला कमल मुरझाए न इसके लिए भाजपा को कर्नाटक को उत्तर प्रदेश भाजपा बनने से बचाना होगा।

Friday, November 09, 2007

क्या आपको कल्याण सिंह-कलराज मिश्र याद हैं?

जी हां, मैं उत्तर प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री कल्याण सिंह की ही बात कर रहा हूं। 1991 में पूर्ण बहुमत के साथ सत्ता में आई भारतीय जनता पार्टी के नेता कल्याण सिंह। वही हर बात पर, सौगंध राम की खाते हैं, मंदिर वहीं बनाएंगे का नारा लगाने वाले कल्याण सिंह। क्या आपको पता है कि कल्याण सिंह अब क्या कर रहे हैं।
कलराज मिश्र, जी हां, वही जो भाजपा में संगठन का काम संभालने के उस्ताद माने जाते थे। लेकिन, कभी भी आजतक एक बार भी विधानसभा का चुनाव नहीं जीत पाए, विधानपरिषद और राज्यसभा के जरिए ही सत्ता का सुख लेते रहे। कलराज मिश्र और कल्याण सिंह को आपने कितने दिनों-महीनों से किसी टीवी चैनल या फिर अखबार में कोई बयानबाजी करते नहीं देखा। शायद महीनों से नहीं। अखबारों के स्थानीय संस्करणों में छपने को छोड़ दे तो।
अब सवाल ये है कि मैं आज अचानक इन दोनों नेताओं की चर्चा क्यों कर रहा हूं, जब मीडिया, इनकी अपनी पार्टी के कार्यकर्ता और जनता भी इन्हें नहीं पूछ रही। दरअसल इसी सवाल की वजह से मुझे इन दोनों नेताओं की याद आ गई।
6 दिसंबर 1992 को जब विवादित बाबरी ढांचा ढहाए जाने के बाद कल्याण सिंह सहित देश के 4 राज्यों की भाजपा सरकारें बर्खास्त कर दी गईं। उसके बाद भाजपा नेताओं के बीच सत्ता पाने के खेल में जो केल शुरू हुआ वही आज, वजह बन गया है कि इन दोनों नेताओं को याद करना पड़ रहा है कि वो कहां हैं। उत्तर प्रदेश भाजपा के बारे में मुझे जितनी जानकारी है- कल्याण सिंह और कलराज मिश्र की ही कार्यकुशलता का नतीजा था कि राज्य में बीजेपी राम लहर का फायदा उठाने में कामयाब हो पाई।
लेकिन, एक बार जब सत्ता का स्वाद इन्हें लगा तो, इन दोनों नेताओं के बीच शुरू हुई अहम की लड़ाई ने बीजेपी का बेड़ा गर्क कर दिया। अब तो, हाल ये है कि भाजपा कार्यालय पर इन दोनों नेताओं के आने पर भाजपा की नई पांत के नेता इन पर ध्यान देना भी मुनासिब नहीं समझते। लेकिन, अभी भी सच्चाई यही है कि इन दोनों नेताओं के भाजपा में किनारे पर होने की ही वजह है कि राज्य में भाजपा इतना किनारे हो गई है कि तीसरे नंबर की एक लगातार कमजोर होती पार्टी भर बन गई है।
भाजपा कार्यकर्ताओं को न तो, संगठन के किसी नेता पर भरोसा रह गया है। और, न ही राज्य में उन्हें कोई नेता नजर आ रहा है जो, मुख्यमंत्री पद के लिए मुलायम, मायावती के सामने दम से खड़ा हो सके। आज राजनाथ सिंह राष्ट्रीय अध्यक्ष हैं जो, कल्याण सिंह की सरकार में शिक्षा मंत्री थे तो, रमापति राम त्रिपाठी प्रदेश अध्यक्ष हैं जो, कलराज मिश्र के प्रदेश अध्यक्ष रहते जिलाध्यक्ष से प्रदेश महामंत्री की कुर्सी तक जा पहुंचे।
राजनाथ सिंह राष्ट्रीय अध्यक्ष हैं लेकिन, अभी भी उत्तर प्रदेश के किसी भी विधानसभा क्षेत्र में 5 हजार लोगों की भी भीड़ अपने अकेले के दम पर नहीं जुटा पाते हैं। वोट कितना दिला पाते हैं इसका अंदाजा तो, विधानसभा के इस चुनाव से सबको लग ही गया होगा। कल्याण सिंह और कलराज मिश्र की जोड़ी की जमीनी मजबूती का ही कमाल था कि भारत मां की तीन धरोहर – अटल-आडवाणी-मुरली मनोहर के लिए भाजपा कार्यकर्ता पलक पांवड़े बिछाए बैठे रहते थे। अब कोई इनको भी नहीं पूछ रहा। जमीनी स्तर पर कार्यकर्ताओं में जोश भरने वाला कोई है ही नहीं।
इन दोनों ने अपने अहम की लड़ाई में खुद के राजनीतिक करियर के साथ ही भाजपा की भी जमीन खिसका दी। संघ के जातिवाद को खत्म करने के आदर्शों पर सामाजिक जीवन का काम शुरू करने वाले कल्याण लोधों के और कलराज मिश्र सिर्फ ब्राह्मणों के नेता बनने की कोशिश करने लगे। इस कोशिश में ये कितना सफल हुए इसके लिए बस ये मुहावरा ही काफी है कि – धोबी का कुत्ता न घर का न घाट का।
बीच में कल्याण सिंह कुसुम राय के प्रेमपाश (आरोप ऐसे ही लगते रहे हैं) में ऐसे फंसे कि संघ, भाजपा और अटल बिहारी उन्हें दागदार नजर आने लगे। राष्ट्रीय क्रांति पार्टी बनाकर कल्याण सिंह ने मुलायम से भी हाथ मिलाने में परहेज नहीं किया। हिंदुत्व के पुरोधा को जब सिर्फ 4 सीटें मिलीं तो, उनका दिमाग ठिकाने आया लेकिन, कुसुम राय की क्रांति ऐसी कि भाजपा में कुसुम को साथ लाने की शर्त पर ही लौटे।
इस विधानसभा चुनाव में उत्तर प्रदेश भाजपा में संगठन मंत्री की जिम्मेदारी निभा रहे नागेंद्र नाथ ने नए लोगों को चुनाव में उतारकर प्रयोग करने की कोशिश की। नागेंद्र नाथ उत्तर प्रदेश और बिहार में विद्यार्थी परिषद के मुखिया रह चुके हैं और उन्होंने ABVP को लखनऊ, इलाहाबाद, बनारस और गोरखपुर विश्वविद्यालय में परिषद को स्थापित करने के लिए कई नए प्रयोग किए थे। उनके समय में तैयार हुआ विद्यार्थी परिषद का नेटवर्क अब उत्तर प्रदेश भाजपा में काम कर रहा है। नागेंद्र नाथ ने इस नौजवान टीम के 20 से ज्यादा लोगों को विधानसभा में टिकट दिया।
लेकिन, चुनाव में उत्तर प्रदेश भाजपा के पास न तो कोई मजबूत चेहरा था। न ही संगठन को संजोने वाला कोई नेता। उसकी वजह से विश्वविद्यालय की राजनीति से विधानसभा की राजनीति करने पहुंचे नेताओं को कोई ढंग का आधार ही नहीं मिल पाया। अब सवाल ये है कि मैं कल्याण-कलराज को याद क्यों कर रहा हूं। भाजपा के मजबूत होने का आधार क्यों ढूंढ़ रहा हूं।
दरअसल हम जैसे लोग जो, उत्तर प्रदेश को मायावती के सत्ता में आने के बाद सुधरता हुआ देख रहे थे। आनदंसेन यादव जैसे प्रकरणों के बाद हम जैसे लोगों को लग रहा है कि प्रदेश में मुलायम, मायावती के अलावा तीसरा कोई ध्रुव न होने से ये नेता निरंकुश हो गए हैं। और, इस बात से तो शायद ही किसी को संदेह होगा कि कल्याण सिंह से इमानदार मुख्यमंत्री शायद ही कोई हो। कल्याण सिंह के मुख्यमंत्री रहते अपराधी और भ्रष्टाचारियों की तो प्रदेश में सिर उठाने की हिम्मत नहीं ही पड़ती।

Thursday, November 08, 2007

क्या जरूरत थी उत्तर प्रदेश, बिहार से मुलायम-लालू को हटाने की?

उत्तर प्रदेश और बिहार में सत्ता परिवर्तन जरूरी है। मुलायम सिंह यादव और लालू प्रसाद यादव इन राज्यों को देश के सबसे बरबाद राज्यों में पहले नंबर पर रखे हुए हैं। कुछ ऐसे ही नारों के झांसे में आकर उत्तर प्रदेश और बिहार की जनता ने राज्यों में नए लोगों को सत्ता थमा दी।
सत्ता में आने के बाद नीतीश ने ऐलान किया कि बिहार में अब लालू का जंगल राज खत्म हो गया है। अब राज्य में भय का माहौल समाप्त कर दिया जाएगा। किसी को भी इस बात की इजाजत नहीं दी जाएगी कि वो, राज्य की कानून व्यवस्था के साथ खिलवाड़ कर सके। नीतीश पूरे दम से ये बोल रहे थे और उनकी पार्टी के अनंत सिंह जैसे नेता भी अपने लोगों को भरोसा दिला रहे थे कि अब लालू के लोगों का भय खत्म हुआ। अब बिहार के लोगों को छोटे सरकार (लोकतंत्र पर धब्बा अनंत सिंह का यही उपनाम है) के आतंक के साये में रहना सीखना होगा।
कुछ लोग पत्रकार होने के गुरूर में अनंत की अनंत कथा समझ नहीं पाए। और, उनके खिलाफ एक मामले में उनसे सफाई लेने पहुंच गए। बस फिर क्या नीतीश के भयमुक्त राज का उन्हें असली मतलब समझाया गया, पत्रकार पिटे थे इसलिए देश भर के मीडिया ने अनंत के काले कारनामों को नीतीश के साथ जोड़कर हंगामा किया तो, अनंत को नीतीश ने जेल भिजवा दिया। जैसे ही अनंत जेल गए, टीवी चैनलों से भी अनंत-नीतीश कलंक कथा गायब सी हो गई। मामला ठंडा पड़ा तो, पहली बात सामने आई कि जिस लड़की रेशमा की लाश होने की बात कही जा रही थी वो, लाश किसी और की थी। बस इसी आधार पर अदालत ने अनंत को और उसके गुंडों को जमानत दे दी। अनंत बाहर हैं। हो, सकता है कि नीतीश के ‘भयमुक्त’ राज को फिर से स्थापित करने में जी जान से जुटे भी हों।
लालू राज के बिहार जैसा ही राज उत्तर प्रदेश में मुलायम ने बनाए रखा। मुलायम सत्ता से गए तो, उनकी जगह आई मायावती ने भी बिहार के नीतीश राज से बराबरी शुरू कर दी। बिहार के एक विधायक अनंत सिंह पर लड़की से बलात्कार के बाद उसकी हत्या का आरोप दिखा तो, उत्तर प्रदेश के एक मंत्री आनंदसेन यादव ने यहां इसका जिम्मा संभाल लिया। उत्तर प्रदेश में और ही हद हो गई।
मंत्री आनंदसेन यादव के ऊपर आरोप है कि उन्होंने फैजाबाद में विधि स्नातक की छात्रा शशि के साथ अनैतिक संबंध कायम किए (अब तो मैं भ्रम में पड़ गया हूं कि ये अब अनैतिक रहा भी है क्या) फिर एक दिन अचानक शशि गायब हो गई। अंदेशा है कि उसकी हत्या कर दी गई। पुलिस शशि की लाश अब तक नहीं खोज पाई है। वैसे बिहार में भी रेशमा की लाश अब तक नहीं मिली है।
यहां भी मामला जब मीडिया में आया तो, एक दिन बाद मंत्री आनंदसेन ने इस्तीफा तो दे दिया। लेकिन, आश्चर्य है कि अब तक मंत्री आनंदसेन यादव के खिलाफ कोई जांच ही नहीं शुरू हुई है। जबकि, अब तक मिले सुबूतों से साफ है कि गायब होने से पहले शशि सुल्तानपुर में मंत्री आनंदसेन के साथ देखी गई थी। लेकिन, पुलिस सिर्फ शशि की लाश खोजने में लगी है। हां, आनंदसेन के ड्राइवर से जरूर पूछताछ चल रही है। अब सवाल ये है कि अगर आनंदसेन को सरकार दोषी नहीं मानती तो, उनसे इस्तीफा लेने की क्या जरूरत थी। और, अगर इस्तीफे का आधार आरोपी होना है तो, फिर एफआईआर में आनंदसेन का नाम क्यों नहीं है।
उत्तर प्रदेश में सारे समीकरणों को तोड़कर जनता ने मायावती को भय, भ्रष्टाचार और आतंक के खिलाफ पूर्ण बहुमत दिया। मायावती को सत्ता मिली तो, माया ने कहा – मायाराज में मलायम राज का भय, भ्रष्टाचार और आतंक-जंगलराज पूरी तरह से खत्म होगा। महीने भर में ही मुलायम के गुंडे अंदर हो गए। कानून का राज दिखने लगा। और, अब उत्तर प्रदेश में सिर्फ मायावती के लोगों को भय, भ्रष्टाचार और आतंकराज चल रहा है। मुलायम राज का भय, भ्रष्टाचार और आतंकराज खत्म हो गया। मैडम मायावती ने अपना चुनावी वादा पूरा कर दिया।
अब राज्य में इस राज्य के खात्मे के लिए लोगों को 5 साल इंतजार करना होगा। मैं सोचता हूं फिर जरूरत क्या थी उत्तर प्रदेश से मुलायम सिंह यादव और बिहार से लालू प्रसाद यादव को हटाने की। मैं नहीं समझ पाया- आपको समझ में आए तो मुझे बताइए।

Monday, November 05, 2007

भारत में कब किसी मंत्री पर जुर्माना लगेगा?

ब्रिटेन में एक मंत्री पर पुलिस ने जुर्माना लगा दिया है। गुनाह इतना छोटा था कि अगर भारत में मंत्रीजी ऐसा कर रहे होते तो, पुलिस उनकी तरफ देखती भी नहीं। ब्रिटेन के होम ऑफिस मिनिस्टर ऑफ स्टेट फॉर बॉर्डर एंड इमीग्रेशन को रोड ट्रैफिक एक्ट 1988 के तहत 208 डॉलर यानी करीब 8,000 रुपए का जुर्माना लगाया है। साथ ही ब्रिटेन के मंत्रीजी के लाइसेंस पर 3 पेनाल्टी प्वाइंट्स भी जोड़ दिए गए हैं।
लियाम बायर्ने ने अदालत से अपनी गलती की माफी मांगी है। और, कहा कि वो बहुत जरूरी कॉल थी। लेकिन, अदालत ने कहा कि वो इतने जिम्मेदार पद पर हैं इसलिए ये और जरूरी हो जाता है कि वो, इन नियमों का पूरी तरह से पालन करें। बायर्ने रोड सेफ्टी एक्ट बनाने वाली संसदीय समिति के सदस्य भी रहे हैं जिसने, गाड़ी चलाते वक्त मोबाइल पर बात करने वालों पर ज्यादा जुर्माना लगाने की सिफारिश की थी।
वैसे तो, भारत में भी मोबाइल फोन पर बात करना गुनाह है। और, दिल्ली में तो, इस पर हाईकोर्ट के आदेश के बाद पुलिस ने जुर्माना भी बढ़ा दिया है। लेकिन, पुलिस की क्या मजाल जो किसी मंत्री या आला अधिकारी को कभी इस गुनाह के लिए पकड़ने की हिम्मत कर पाए। हम तो उस दिन का इंतजार कर रहे हैं भारत के किसी मंत्रीजी से पुलिस फोन पर बात करने के लिए जुर्माना वसूल करने की हिम्मत जुटा पाए।

Sunday, November 04, 2007

दुनिया के लिए दहशत बन गया मुल्क पाकिस्तान

पाकिस्तान में कितने लोकतांत्रिक तौर पर चुने गए जनप्रतिनिधियों ने सत्ता संभाली और कितने तानाशाहों ने इस मुल्क पर राज किया। या फिर कितनी बार चुनाव हुए और कितनी बार वहां तख्त पलट कर-आपातकाल लगा। दोनों की ही गिनती लगभग बराबर ही निकलेगी। यहां तक कि लोकतांत्रिक सरकार से ज्यादा समय पाकिस्तान में तानाशाहों का शासन रहा। शायद यही वजह है कि पाकिस्तान सिर्फ एक मुल्क न रहकर दुनिया के लिए दहशत बन गया है।

पाकिस्तान की तानाशाही हुकूमतों ने वहां के लोगों के अधिकारों को इस तरह से कुचला है कि अब तो, वहां आपातकाल कोई बड़ी घटना जैसी भी नहीं लगती। लेकिन, अगर पाकिस्तान के सबसे कमीने तानाशाह शासक की बात होगी तो, मुशर्रफ पहले के सभी तानाशाहों को पानी पिला देंगे। यही वजह है कि मुशर्रफ के दांव के आगे पूरी पाकिस्तानी राजनीति चारों खाने चित्त हो गई है। मुशर्रफ ने पाकिस्तान में चरमपंथी (जिन्हें भारत में पिछले 60 साल से आतंकवादी बनाकर भेजा जाता रहा है) और न्यापालिका की अनावश्यक दखलंदाजी को आपातकाल लगाने की वजह बताया है। बेनजीर कह रही हैं ये आपातकाल नहीं मार्शल लॉ है। 

अब मुशर्रफ और बेनजीर इमरजेंसी और मार्शल लॉ पर क्यों लड़ रहे हैं। दरअसल ये पाकिस्तान की मुशर्रफ शैली की राजनीति की वजह से है। मुशर्रफ एक ऐसे तानाशाह हैं जो, बार-बार दुनिया के अलग-अलग मंचों से ये जाहिर करने की जी भरके कोशिश करते रहे हैं कि वो लोकतंत्र बहाली और पाकिस्तान में अमन चाहते हैं। मुशर्रफ अपने को वर्दी में लोकतंत्र का रक्षक साबित करना चाहते थे। इसीलिए अब मुशर्रफ इमरजेंसी कहकर देश के हितों का हवाला देकर राज करना चाहते हैं। जबकि, बेनजीर इसे मार्शल लॉ यानी सेना का राज बताकर देश की अवाम को लोकतंत्र बहाली के लिए मुशर्रफ के खिलाफ लड़ने के लिए तैयार करना चाहती हैं।

इन सबके बीच में हैं नवाज शरीफ जो, लंदन से इस्लामाबाद फतह करने निकले थे। लेकिन, शायद उनसे ज्यादा चालाक मुशर्रफ निकले। मुशर्रफ ने उन्हें बैरंग सऊदी पहुंचा दिया। शरीफ के समर्थक शरीफ के आसपास फटक तक नहीं पाए। वहीं जब बेनजीर ने मुशर्रफ से एक गुप्त समझौता किया तो, मुशर्रफ ने दुनिया को दिखाने के लिए बेनजीर को वतन वापसी का मौका दिया। और, उनके समर्थकों को जश्न मनाने का भी। लेकिन, ये जश्न मातम में बदल गया। जब, बेनजीर पर हुए आत्मघाती हमले में 150 से ज्यादा लोगों की जानें चली गईं।

दुनिया भर के टीवी चैनल के कैमरे दो दिन तक पाकिस्तान पर ही टिके रहे। एक बार शरीफ को बैरंग लौटाने वाले दिन। दूसरी बार बेनजीर के स्वागत और फिर मातम में बदलने के दिन। लेकिन, अगर दोनों दिनों के घटनाक्रम, टीवी पर दिख रही तस्वीरों को ध्यान से याद करें तो, साफ था कि पाकिस्तान में आपातकाल जैसा माहौल तो मुशर्रफ ने पहले ही तैयार कर रखा था। लेकिन, वो अमेरिका और दूसरे देशों के सामने ये साबित नहीं होने देना चाहता था कि वो लोकतंत्र विरोधी है। शरीफ ने मुशर्रफ के खिलाफ जेहादी बनने की कोशिश की थी। जबकि, बेनजीर शरीफ के बाहर जाने के बाद लोकतंत्र की उम्मीदों को जिंदाकर फिर से सत्ता हथियाना चाहती थीं। लेकिन, जब पाकिस्तान पहुंचने से ठीक पहले बेनजीर के सुर थोड़े बदलते दिखे तो, मुशर्रफ को फिर से आपातकाल की याद आई।

वैसे, मुशर्रफ ने अपनी जिंदगी में कितने भी झूठ बोले हों। आपातकाल लगाने की दोनों वजहें एकदम सही बताई हैं। मुशर्रफ को ये गुमान था कि चरमपंथ उनके कहे के मुताबिक चलेंगे। और, जब वो जितना जेहाद फैलाने का आदेश देंगे, उससे आगे कुछ नहीं होगा। जब ये भ्रम टूटने लगा तो, मुशर्रफ को गद्दी पर खतरा दिखने लगा। उस पर जब, जस्टिस इफ्तिखार चौधरी को मुशर्रफ ने चीफ जस्टिस के पद से हटाया तो, चौधरी पाकिस्तान में लोकतंत्र के नायक बन गए। दोनों मोर्चों पर मात खा रहे मुशर्रफ ने बेनजीर से गुप्त समझौता करके एक और दांव खेलने की कोशिश की। लेकिन, जब वो दांव भी बेकार गया तो, मुशर्रफ ने अपनी वो ताकत आजमाई जिसके बूते उन्होंने पहली बार लोकतंत्र को ठेंगे पर रखा था। आपातकाल की तैयारी में ही मुशर्रफ ने ISI चीफ हामिद गुल को बेदखल कर दिया था। शायद हामिद गुल के मन में भी कुछ तानाशाही विचार आने लगा था। यही वजह है कि आपातकाल लगते ही नेताओं के अलावा गिरफ्तार किए गए लोगों में हामिद भी शामिल है। इमरान खान नजरबंद हैं। अब तक ढेर सारे वकील और लगभग सभी राजनीतिक पार्टियों के नेता जेल पहुंच चुके हैं। लेकिन, सवाल ये है कि क्या 1999 में जब नवाज शरीफ की सत्ता पलटी थी। उसी तरह से मुशर्रफ आसानी से सत्ता हथियाकर हीरो बन जाएंगे।

मुझे लगता है कि इस बार मियां मुशर्रफ के लिए मुश्किलें ज्यादा हैं। पाकिस्तान में एक बड़ी जमात अमेरका-ब्रिटेन में रह रही है। वो, तरक्की चाहती है। उसे पाकिस्तान के भ्रष्ट नेताओं पर भरोसा कम ही है। लेकिन, इफ्तिखार चौधरी इस वर्ग के नए नेता बन गए हैं। आपातकाल के ऐलान के बाद इस नए पाकिस्तानी मुसलमानों की बदलती आवाज पर इंटरनेट पर साफ सुनी जा सकती है। ये साफ है कि मुशर्रफ के फिर से राष्ट्रपति पद के चुनाव जीतने पर सुप्रीमकोर्ट रोक लगाने वाला था। और, मुशर्रफ विरोध का जज्बा पाकिस्तान में कितना काम कर रहा है। इसका अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है कि इफ्तिखार चौधरी के अलावा 8 दूसरे जजों ने भी आपातकाल लगाने का मुशर्रफ का आदेश मानने से इनकार कर दिया।

पूरे पाकिस्तान में सेना असीमित अधिकार के साथ सड़कों पर है। नागरिक अधिकार समाप्त कर दिए गए हैं। संविधान बर्खास्त कर दिया गया है। निजी न्यूज चैनल बंद कर दिए गए हैं। मीडिया के दफ्तरों पर सेना तैनात है। लेकिन, सड़कों पर मुशर्रफ विरोध करने वाले उतर रहे हैं। वकीलों का एक बड़ा जत्था मुशर्रफ विरोध की अगुवाई कर रहा है। सेना में भी एक बड़ा जत्था मुशर्रफ के खिलाफ है। हामिद गुल उस गुट के नेता बन रहे थे। जस्टिस वजीहुद्दीन अहमद की मानें तो, सेना का बड़ा हिस्सा उनके साथ है। अहमद मुशर्रफ के खिलाफ राष्ट्रपति का चुनाव लड़ चुके हैं। अहमद कह रहे हैं कि आने वाले दिनों में पाकिस्तान दुनिया को चौका देगा। क्योंकि, सेना का बड़ा हिस्सा मार्शल लॉ नहीं कानून का राज चाहता है। अब अहमद की बात कब सही हो पाएगी ये तो, पता नहीं। लेकिन, ये होना इसलिए भी जरूरी है क्योंकि, पाकिस्तान में इस तरह के तानाशाही शासकों की वजह से ही पाकिस्तान दुनिया में दहशत फैलाने वाला मुल्क बनकर रह गया है। पाकिस्तान पूरे इस्लाम के लिए गाली बन गया है। पाकिस्तानी तानाशाहों की ही काली करतूतें हैं कि लंदन, न्यूयॉर्क से दिल्ली तक मुस्लिम जेहाद (आतंकवाद) का पर्याय भर बनकर रह गए हैं। किसी भी एक आतंकवादी घटना पर पाकिस्तानी ही नहीं दुनिया के दूसरे देशों में रह रहे भारतीय मुसलमान भी शक की नजर से देखे जाते हैं। इसलिए इस्लाम, पाकिस्तान और खासकर भारतीय मुसलमानों के हक में है कि जल्द से जल्द मुशर्रफ की तानाशाही पर रोक लगे।

आतंकवाद के खिलाफ लड़ाई का नाम देकर अमेरिका ने इराक को तबाह कर दिया। सद्दाम को फांसी चढ़ा दी। लेकिन, सच्चाई यही है कि इराक से आज तक किसी भी आतंकवादी को मदद की बात सामने नहीं आई है। न ही सद्दाम के राज में लादेन का आतंक इराक के रास्ते राज करता था। इराक अपने पड़ोसी देशों की परिस्थिति के लिहाज से उस तरह तैयार हुआ और वहां के जातीय संघर्ष में सद्दाम जैसा तानाशाह बना। लेकिन, सद्दाम की तानाशाही से खतरनाक मुशर्रफ की ये तानाशाही है क्योंकि, एक बार फिर से पाकिस्तान जेहादियों के लिए जन्नत बन सकता है। भारत के लिए ये सबसे ज्यादा चिंता की बात है। क्योंकि, इस्लाम विरोधी का तमगा हटाने के लिए मुशर्रफ जेहादियों को फिर से मदद देना शुरू कर सकते हैं। सर्दियों की शुरुआत हो रही है वैसे भी इस समय पाकिस्तानी फौज की गोलाबारी की आड़ में अक्सर जेहादी भारत में घुसते रहे हैं। डोडा में धारा 144 लगाई जा चुकी है। पाकिस्तान में आपातकाल के ऐलान के तुरंत बाद से सेना और पुलिस हाई अलर्ट पर है। ऐसे में भारत में स्थिरता के लिए भी जरूरी है कि पाकिस्तान में किसी भी तरह लोकतंत्र की बहाली हो सके।

Saturday, November 03, 2007

बिहार को बरबादी-बदनामी से रोकने का आखिरी मौका

ज्यादा आशंका इसी बात की है कि 7 नवंबर को अदालत से बौराए विधायक अनंत कुमार सिंह को जमानत मिल जाए। और, वो अपने शाही बंगले में पहुंचकर फिर से कानून और लोकतंत्र को अपनी जेब में रखने का अहंकार दिखाने लगे। पत्रकार पिटे औऱ जमकर पिटे। इस पिटाई ने बिहार में कानून व्यवस्था की पोल तो, खोलकर रख ही दी है। साथ ही ये भी साफ दिख रहा है कि नीतीश कुमार अगर इस मौके पर चूक गए तो, फिर से बिहार को बरबादी और बदनामी के चंगुल में पूरी तरह फंसने से कोई रोक नहीं सकता।
पत्रकारों के पिटने का बहाना लेकर राजनीति भी शुरू हो गई है। शुक्रवार को लालू की राष्ट्रीय जनता दल और रामविलास पासवान को लोक जनशक्ति पार्टी ने बंद रखा। और, राबड़ी देवी ने अनंत सिंह को फांसी देने की मांग भी कर डाली। पता नहीं राबड़ी देवी को याद है कि जेएनयू के पूर्व अध्यक्ष चंद्रशेखर की हत्या करवाने के आरोपी की उनके पति लालू प्रसाद यादव के शासन में कितनी चलती थी। जाहिर है ये सारे लोग अनंत कुमार के पागलपन और नीतीश कुमार के मजबूरी के शासन का फायदा उठाकर फिर से सत्ता में लौटना चाहते हैं।
दरअसल अनंत कुमार सिंह जैसे लोगों की उत्पत्ति लालू राज का वो कोढ़ है जो, अब ठीक नहीं पा रहा है। नीतीश कुमार ने बिहार में जनता के बदलते मूड को पकड़ा जिसकी वजह से जनता ने उन्हें उनके सपनों की कुर्सी पर बैठा दिया। लेकिन, नीतीश ने लालू के बाहुबलियों से मुकाबले के लिए अनंत कुमार सिंह और दूसरे कई बाहुबलियों को प्रश्रय देना भी शुरू कर दिया था। इन लोगों ने नीतीश कुमार के लिए चंदा भी जुटाया। गोली भी चलाई और अब वो सारे किए को बिहार की जनता से वसूल रहे हैं।

नीतीश के प्यारे छोटे सरकार (लोकतंत्र पर ऐसे विशेषण गाली की तरह हैं) जेल से राज चलाते हैं। नीतीश कुमार अनंत कुमार जैसे पागल गुंडे को सार्वजनिक मंच पर गले लगाकर गदगद हो जाते हैं। नीतीश को तब भी समझ में नहीं आता जब अनंत कुमार के यहां सार्वजनिक मौके पर एके 47 से गोलयां चलती हैं। नीतीश कुमार को इस पागलपन का अहसास तब भी नहीं होती। जब अनंत कुमार कानून को ठेंगा दिखाते हुए बड़े मजे से किसी चैनल पर कहते हैं कि हां, एक ठेकेदार ने उन्हें मर्सिडीज कार तोहफे में दी है। मैंने उसे कह दिया है कि अब जाओ मजे से काम शुरू करो। नीतीश कुमार को तब भी पता नहीं चलता कि वो बिहार को किस रास्ते पर ले जा रहे हैं। जब, उन्हें रेशमा खातून नाम की महिला अनंत कुमार सिंह की काली करतूतों के बारे में चिट्ठी लिखती है। साफ-साफ लिखती है कि अनंत कुमार सिंह उनके साथियों ने उसके साथ बलात्कार किया। अब उसकी कभी भी हत्या की जा सकती है। लेकिन, नीतीश सरकार कान में तेल डालकर बैठी रही। अब तो ये लगभग साफ हो गया है कि बेनामी लाश रेशमा खातून की ही है। यानी बिहार में मुख्यमंत्री से फरियाद भी गुंडों से नहीं बचा पाती है।

इसी मामले के बारे में पत्रकार जब अपने धर्म को निभाते हुए आरोपी से भी उनका पक्ष जानने गए तो, उन्हें बिहार के नए नीति नियंताओं ने मार-मारकर लहूलुहान कर दिया। मुझे लगता है, रेशमा खातून के पत्र की सच्चाई पर शक करने की अब तो कोई वजह नहीं दिखती। लालू के राज में हुए वसूली, बलात्कार, हत्या, अपहरण के मामलों को ही मुद्दा बनाकर नीतीश को सत्ता मिल गई। लेकिन, नीतीश के राज में भी वही सब होने लगा। बस, करने वालों के चेहरे बदल गए। नीतीश शायद कुर्सी पाने के बाद ये भूल गए हैं कि मुख्यमंत्री से सड़क पर सरकार का विरोध करने वाले नेता पर पड़ती सरकारी लाठी में बहुत ज्यादा फासला नहीं होता है।
अभी भी नीतीश कुमार के आशीर्वाद के भरोसे पगलाया अनंत कुमार पत्रकारों को जेल से ही मरवाने की धमकी दे रहा है। नीतीश कुमार के लिए ये आखिरी मौका होगा कि वो किसी भी तरह से अनंत कुमार जैसे लोगों के चंगुल से बिहार को बंधक बनाने से रोक लें। क्योंकि, अगर ये साबित हो गया कि बस चेहरे बदल गए हैं बिहार वैसे का वैसा ही है तो, फिर से बिहार की जनता परिवर्तन का मन बनाने में जाने कितने साल लगा देगी। नीतीश को ये समझना होगा कि बिहार में निवेशकों को बुलाने के सम्मेलन और कुछ सड़के, पुल बना देने भर से बिहार नहीं सुधरने-बदलने वाला।

बिहार का कोढ़ है यहां समाज व्यवस्था में घुस गया कानून को ठेंगे पर रखने का चलन। हर कोई इसी बात में खुश रहना चाहता है कि उसे कानून का कोई डर नहीं। अनंत कुमार को कड़ी सजा मिले ये नीतीश के कुद के स्वाभिमान को बचाए रखने के लिए जरूरी है। रेशमा खातून के पत्र में साफ लिखा था कि वो नीतीश को अपने छोटे-छोटे, लुच्चे-लफंगे टाइप के गुंडों के सामने भी अकसर गरियाता रहता है। साफ है अनंत कुमार के घर का चौकीदार भी नीतीश की इज्जत तो नहीं ही करता होगा। अब अगर नीतीश अपनी ही इज्जत नहीं बचा पाते हैं तो, फिर उनको बिहार की इज्जत बचाने का जिम्मा कैसे दिया जा सकता है। नीतीशजी आप सुन रहे हैं ना या आपको लुच्चों-लफंगों-गुंडों के अलावा किसी की आवाज भी सुनाई नहीं देती?

स्वस्थ रहना है तो, धुरंधर हिंदी ब्लॉगर बनो!

स्वस्थ रहने के लिए हिंदी ब्लॉगिंग भी एक अच्छा जरिया है। मेरी मॉर्निंग शिफ्ट लगी तो, मैं सुबह चार बजे ऑफिस जाने लगा इस वजह से इधर कई बार मैंने सुबह 5-6 बजे भी पोस्ट डाली है। मुझे ये लगा कि मेरी पोस्ट अब तो घंटों सबसे ऊपर दिखेगी। लेकिन, ये भ्रम घंटों छोड़िए कुछ ही मिनटों में टूट जाता है। क्योंकि, कई हिंदी ब्लॉगर अब तक ब्रह्म मुहूर्त में जागने के आदी हो चुके हैं। दनादन कई पोस्ट गिर जाती हैं।
दरअसल इस नए मीडिया में अभी व्यवसायिकता हावी नहीं है। लेकिन, स्वस्थ प्रतियोगिता जमकर हो रही है। इस वजह से लोग लिख रहे है। खूब लिख रहे हैं। अब लिख रहे हैं तो, थोड़ी बहुत तारीफ भी चाहते हैं। तारीफ के लिए जरूरी है कि ज्यादा से ज्यादा लोग पोस्ट देखें। इसके लिए जरूरी है कि एग्रीगेटर्स पर आपकी पोस्ट पहले पेज पर तो दिखे ही। बस इसी चक्कर में कुछ विद्वजन ब्लॉगर्स ने खोज निकाला कि ब्रह्म मुहूर्त के 3 घंटे में की गई पोस्ट सबसे ज्यादा समय तक एग्रीगेटर्स के पहले पेज पर दिखती है। मैंने भी इस चक्कर में कई बार सुबह उठकर पोस्ट डाली। वैसे वो पोस्ट मैं रात को ही लिख लेता था।

इस चक्कर में जो, हिंदी चिट्ठाजगत के धुरंधर लिक्खाड़ थे वो, ब्रह्म मुहूर्त में उठने लगे हैं। सुबह 4-5 या फिर 6 बजे उठकर पोस्ट डालते हैं। अब जो, काम बरसों की बुजुर्गों की नसीहत भी नहीं करा पा रही थी। वो, काम हिंदी ब्लॉगिंग ने करा दिया है। जाहिर है सुबह उठना है तो, थोड़ा समय से तो बिस्तर पर जाना ही होगा। स्वस्थ रहने का इससे अच्छा नुस्खा अब तक तो किसी ने नहीं बताया है। आपको ये नुस्खा जमा हो तो, जल्दी से हिंदी के धुरंधर ब्लॉगर बन जाइए।

Friday, November 02, 2007

वामपंथी खाते देश की हैं, चिंता चीन की करते हैं

अमेरिका के साथ भारत के परमाणु समझौते के विरोध की असली वजह करात ने बता ही दी। सीपीएम महासचिव प्रकाश करात इसलिए नहीं चिंतित हैं कि उन्हें भारत-अमेरिका परमाणु समझौते से भारते के हितों को नुकसान होता दिख रहा है। वो, परेशान इसलिए हैं कि भारत-अमेरिका के साथ समझौता करके चीन को कमजोर कर देगा।  कोलकाता में कल सोवियत क्रांति की 90वीं वर्षगांठ पर सारे कॉमरेडों के बीच में ये करात की स्वीकारोक्ति थी (देश की आजादी के कितने कार्यक्रम वामपंथियों को उत्साह से मनाते देख जाता है)। खैर, सोवियत क्रांति की 90वीं वर्षगांठ पर करात ने कहा कि हम तब तक आराम से नहीं बैठने वाले जब तक कि अमेरिका के साथ भारत की रणनीतिक साझेदारी को पूरी तरह खत्म नहीं कर देते। करात की दलील मानें तो, अमेरिका की नजर भारत के बाजार पर है। और, वो भी इसलिए कि अमेरिका भारत के बाजार में हिस्सा लेकर चीन से बढ़त बनाए रखना चाहता है। करात कहते हैं कि इसकी वजह साफ है कि चीन अकेला देश है जो, अर्थव्यवस्था के मामले में अमेरिका से आगे निकल सकता है।

करात को भरोसा है कि 2050 तक चीन अमेरिका से आगे निकल जाएगा। बस यही चिंता करात को खाए जा रही है कि भारत-अमेरिका की रणनीतिक साझेदारी से उनके सपनों का देश चीन कहीं पीछे न रह जाए। करात के पूरे भाषण में कहीं भी ये चिंता या खुशी नहीं दिखी कि अमेरिका से रणनीतिक साझेदारी से भारत को कितना नुकसान या फायदा होगा। कॉमरेड करात को ये भी लगता है कि लाल सलाम करने वाला चीन अकेला सबसे ताकतवर कम्युनिस्ट देश है जो, अमेरिका को चुनौती दे सकता है। करात को कभी ये सपने में भी नहीं आता होगा कि भारत चीन को या अमेरिका को चुनौती देने लायक कैसे बन सकता है। परमाणु समझौते पर लाल हो रहे करात ने एक और तथ्य का खुलासा किया कि अमेरिका ने पाकिस्तान को इसलिए छोड़ा क्योंकि, भारत उसे बड़ा बाजार दिख रहा है। अब साफ भारत की तकत को अमेरिका क्या दुनिया पूज रही है। लेकिन, करात को इससे एशिया में चीन को नुकसान होता दिख रहा है। इसलिए वो भारत के नुकसान पर भी समझौता करने के लिए तैयार हैं।

करात ने कॉमरेडों को भरोसा दिलाया कि पश्चिम बंगाल पूंजीवाद से मुकाबला करता रहा है (बुद्धदेव बाबू सुन रहे हैं) और आगे भी करता रहेगा। बूढ़े कॉमरेड ज्योति बसु ने महिला कैडर को यूपीए सरकार की ‘जनविरोधी’ (वो, हर बात जो कॉमरेडों को पसंद न आए) नीतियों के खिलाफ लड़ाई लड़ने को कहा। साथ ही बसु ने मजबूरी भी जताई कि विकल्पहीनता की वजह से वो कांग्रेस का समर्थन कर रहे हैं। मजबूरी सिर्फ बीजेपी के विरोध की है (पता नहीं वामपंथियों को ये भ्रम क्यों है कि चीन की वकालत करने वालों को देश के लोग देश अकेले चलाने का विकल्प दे देंगे)। ये वही बसु हैं जो, सरकार गिरने की नौबत पर सरकार बचाने के लिए लाल कॉमरेडों को मनाने में जी जान से जुटे हुए थे। अब ये कांग्रेस को मजबूरी का समर्थन दे रहे हैं। कोलकाता में पोलित ब्यूरो और कॉमरेड मीटिंग के बाद दिल्ली आते-आते वामपंथियों का चरित्र इतना क्यों बदल जाता है, ये सोचने वाली बात है। अब तक मेरे जैसे देश के बहुत से लोगों को ये लगता था कि वामपंथी भारत के हितों के लिए भारत-अमेरिका परमाणु समझौते का विरोध कर रहे हैं। अच्छा हुआ उनका दोगला चरित्र फिर से सामने आ गया। वैसे तो, अब ये चीन की भी हैसियत नहीं है। लेकिन, अब आप समझ सकते हैं कि अगर गलती से भी ऐसी संभावना बनी और चीन ने दुबारा हमारे देश पर हमला किया तो, वामपंथी किसके पक्ष में खड़े रहेंगे।

ये है मुंबई मेरी जान ... जान ले रही है

आज मुंबई में एक यात्री लोकल ट्रेन के ऊपर लगे बिजली के तारों से बुरी तरह झुलस गया। 25 हजार वोल्ट का करेंट छूने के बाद वो यात्री ट्रेन के ऊपर ही गिर गया। वो, बुरी तरह जल गया। उसके शरीर से धुंआ निकल रहा था। विजुअल मिल गए थे लोगों को खींचने वाले थे इसलिए टीवी चैनल पर भी ये खबर दिखाई जा रही थी और लगातार चेतावनी भी दी जा रही थी। लेकिन, सवाल ये है कि क्या किसी को शौक हो सकता है कि लोकल ट्रेन की छत पर चढ़कर सफर करे। मुंबई मुझे रहते हुए तीन साल हो गए हैं। लेकिन, अभी भी छोटी सी दूरी के लिए भी लोकल से सफर करने की हिम्मत नहीं पड़ती। कभी हिम्मत की भी तो, ट्रेन पहुंचते-पहुंचते दुबारा लोकल पर न चढ़ने की सौगंध भी खाई। ये अलग बात है कि कई बार मजबूरी में ये सौगंध टूटती भी है। लेकिन, लोकल पर थोड़ बहुत चलने और स्टेशन पर खड़े कई लोकल गुजर जाने के अनुभव से इतना तो साफ है कि लोकल की ट्रेन पर सफर करने वाला शाकिया ये हरकत नहीं करता।

अब सवाल ये है कि अगर देश की अकेली मायानगरी में रहने वालों को पब्लिक ट्रांसपोर्ट की सुविधा भी सरकार नहीं दे पा रही है तो, फिर मुंबई को देश का आर्थिक राजधानी होने का तमगा कैसे मिल सकता है। हर दूसरे दिन मुख्यमंत्री विलासराव देशमुख मुंबई को शंघाई बनाने का सपना दिखाते रहते हैं। लेकिन, इस शहर मे रहने वाले लोगों को चलने के लिए लोकल ट्रेन तक की सुविधा नहीं मिल पा रही है। मैं जब 3 साल पहले इस शहर में नौकरी करने के लिए आया था तो, एक दिन बांद्रा से लोवर परेल पहुंचने पर ट्रेन से कटकर एक आदमी की जान जाते देखी। मुझे इस घटना ने झकझोर दिया था। लेकिन, उधर से गुजर रहे लोग लाश को एक नजर देखने भर की संवेदना भी नहीं जुटा पा रहे थे। ऑफिस में आकर मैंने कहा कि ये तो खबर है तो, बताया गया कि कैसी बात कर रहे हो यहां, हर रोज लोकल से कोई न कोई गिरकर या मर जाता है। या फिर किसी का हाथ पैर टूट जाता है। ये तो, सामान्य बात है। मुंबई की इस लाइफलाइन से जिंदगी जाने को इस तरह से सामान्य घटना होना सुनकर मुझे तगड़ा झटका लगा था। लेकिन, उसके बाद जब मैंने ध्यान से यहां के अखबारों को देखना शुरू किया तो, लगा कि ऑफिस के लोग सही ही कह रहे थे। अब सवाल ये है कि क्या रेलवे सिर्फ लोगों को सावधान करने भर की बात कहकर बच सकता है। प्रशासन और रेलवे आखिर लोगों को ट्रेन पर अपनी जान जोखिम में डालने से क्यों नहीं रोक पाता। मुंबई में सड़क के रास्ते से जाने की इच्छा रखने वालों को भी मायूसी ही हाथ लगती है। किसी भी सड़क से उतनी ही दूरी तय करने पर ट्रेन से दुगुना समय तो, लगता ही है। जेब भी काफी ढीली हो जाती है। अब टैक्सी-ऑटो का खर्च बर्दाश्त करना सबके बस का तो नहीं ही है।
यहां जिंदगियां कैसे जी जा रही हैं।

इसका अनुपम उदाहरण सुबह-सुबह किसी भी फ्लाईओवर के नीचे देखा जा सकता है। मैं सुबह ऑफिस जाता हूं तो, बिग बाजार से शुरू होकर एंपायर कॉम्प्लेक्स के सामने खत्म होने वाले फ्लाईओवर के नीचे सैकड़ो लोग सो रहे होते हैं। इतना ही नहीं। सड़के के किनारे खड़ी ज्यादातर टैक्सियों का दरवाजा खुला दिखता है। इन सभी टैक्सियों में कोई न कोई सो रहा होता है। इनकी भी मजबूरी है क्योंकि, इनमें से किसी के पास भी रहने के लिए एक कमरे की जगह भी नहीं है। अब क्या ये सरकार की जिम्मेदारी में शामिल नहीं है। अगर शामिल नहीं है तो, फिर सरकार क्या सिर्फ सत्ता का सुख लूटने के लिए चुनी जाती है। ऐ दिल है मुश्किल जीना यहां ... जरा हटके जरा बचके ... ये है मुंबई मेरी जां ... ये लाइनें लिखते वक्त शायद ही लिखने वाले को मुंबई की इस मुश्किल का अहसास रहा होगा। लेकिन, इस शहर में रहने वाले सचमुच जरा हट के ... जरा बचके के ही अंदाज में अपनी जिंदगी बिता रहे हैं। पता नहीं ये रास्ता कितना कारगर है। लेकिन, जब यहां लोगों को इस तरह से मौत के हाथों हारता हुआ देखता हूं तो, लगता है कि शिवसेना का अतिवादी सुझाव क्यों न मान लिया जाए। मुंबई शहर में बाहर से आने वालों पर रोक लगाई जाए। लेकिन, ये समस्या का सही निदान तो नहीं ही है।
वैसे, इस तरह की दुर्घटनाओं से बेखबर मुंबई अपनी रफ्तार में भाग रही है। लोकल ट्रेन के ऊपर बिजली के तार से छूकर जलने वाले का किस्सा 2-4 दिन लोकल में चलने वालों का टाइमपास बनेगा और कुछ दिन बाद डिब्बे की दमघोंटू भीड़ से बचने के लिए लोकल की छत पर चढ़ेगा। और, फिर से खबर भर बनकर रह जाएगी। लेकिन, संवेदना खोते लोग इसे मुंबई की जिंदादिली कहकर भुला देना चाहेंगे। जबकि ये कहने वाले भी जानते हैं कि ये जिंदादिली सिर्फ मजबूरी की ही है।

Thursday, November 01, 2007

42 साल बाद 2.80 करोड़ लड़कों की शादी नहीं होगी!

हैदराबाद में एशिया पैसिफिक कांफ्रेंस में एक डराने वाली बात सामने आई है कि 2050 तक करीब 3 करोड़ लड़कों को शादी के लिए लड़की नहीं मिलेगी। भारत में गर्भ में ही लड़कियों को मार देने का चलन न रुक पाने की वजह से लड़कों-लड़कियों के बीच का अनुपात घटता ही जा रहा है। लेकिन, अभी भी भारतीय समाज शायद इस बात को गंभीरता से नहीं ले रहा है। ये कितना बड़ा खतरा है इसका अंदाजा उत्तर प्रदेश के एक गांव की कहानी से लगाया जा सकता है। यहां अभी ही लड़कियां खोजने से नहीं मिल रही हैं। शाहजहांपुर के बहादुरपुर गांव में दस से बारह लड़कों के बीच में अकेली लड़की परिवारों में जन्म ले पा रही है। सिर्फ एक गांव की ये बुरी हालत नहीं है। जिले की सदर तहसील में लड़कों के आधे से थोड़ी ज्यादा ही लड़कियां हैं। सदर तहसील में 1,000 लड़कों पर सिर्फ 535 लड़कियां हैं।

शाहजहांपुर के शहरी इलाके में भी लड़कों के लिए लड़कियां खोजे नहीं मिल रही है। 1,000 लड़कों के बीच सिर्फ 678 लड़कियां हैं। हाल ये है कि एक-एक परिवारों में छे-छे लड़कों के बीच में अकेली बहनें हैं। शाहजहांपुर में लड़कियों को गर्भ में ही मार देने का चलन ऐसा है कि खुद महिलाएं अबॉर्शन की बात मानती हैं। वो, भी खुश हैं कि बेटी की शादी के लिए दहेज जुटाने की चिंता से वो मुक्त हैं। लड़कियों के हर क्षेत्र में लड़कों के साथ कदम से कदम मिलाकर चलने के बाद भी हर साल एक करोड़ लड़कियों को गर्भ में ही मार दिया जाता है। मुझे समझ में नहीं आता कि वो कौन से लोग हैं जो, अपने ही बच्चे को गर्भ में मारकर दहेज बचा लेने की चिंता दूर होने से खुश होते हैं। मैं तो, अब ये सोचता हूं कि हमारे समाज के वो लोग ज्यादा भले हैं जिन्होंने लड़कों की चाहत में कई लड़कियों को जन्म दिया। कम से कम यहां लड़के की चाहत किसी लड़की जिंदगी तो नहीं ले रही है।
पता नहीं कब हम भारतीय ये समझ पाएंगे कि दस लड़के पैदा करने से अच्छा है कि एक-दो लड़कियों को ही इतनी अच्छी परवरिश दे दी जाए कि वो लड़के भी उनकी किस्मत से रश्क करें। उम्मीद करता हूं कि कम से कम हमारी पीढ़ी 2050 में आने वाली पीढ़ी के लिए ऐसी सामाजिक विसंगति तैयार करके नहीं देगी।

तहलका और आज तक मोदी के प्रचारक बन गए हैं!

ये बात आश्चर्य में डालती है कि तहलका और आज तक नरेंद्र मोदी के प्रचारक कैसे हो गए। जबकि, इन दोनों ने मिलकर तो, मोदी को गोधरा के बाद हुए 2002 के गुजरात दंगों का साजिश रचने वाला साबित कर दिया है। लेकिन, गुजरात चुनाव के पहले चुनाव परिणामों पर लगने वाला सट्टा तो, कुछ ऐसे ही संकेत दे रहा है। तहलका-आजतक के ऑपरेशन कलंक के बाद नरेंद्र मोदी और बीजेपी की हैसियत बढ़ गई है। ऑपरेशन कलंक का सीधा फायदा इन्हें होता दिख रहा है।
राजनीतिक विश्लेषकों के साथ सट्टाबाज भी ये मान रहे हैं कि ऑपरेशन कलंक ने नरेंद्र मोदी को उनका प्रिय चुनावी विषय दे दिया है। अब तक सट्टेबाज जहां बीजेपी को 182 में से 96 सीटें मिलने का अनुमान लगा रहा था। वहीं अब मोदी के नेतृत्व में बीजेपी को 112 सीटें मिलने का सट्टा सबसे ज्यादा भाव पा रहा है। वैसे कांग्रेस को इस मुद्दे को न उछालना कुछ कामयाब रणनीति दिख रही है। साथ ही बीजेपी के बागी और एनसीपी के साथ के बाद बीजेपी की सीटों का अनुमान फिर से 98 के आसपास पहुंच गया है।
अब सवाल यही है कि आज तक-तहलका ने जब कुछ नया खुलासा नहीं किया तो इसे ठीक चुनाव शुरू होने के समय ही क्यों किया। साफ है टीवी को टीआरपी चाहि थी और मोदी को चुनावी एजेंडा। मोदी ने और कोई प्रतिक्रिया न देकर सिर्फ इतना कहा कि वो अल्पसंख्यकवाद के विरोधी हैं। क्या इससे मोदी को फिर से अपना एजेंडा चुनावी नारे की तरह इस्तेमाल करने का मौका नहीं मिला। क्या इससे ये नहीं लगता कि ऑपरेशन कलंक मोदी के चुनावी अभियान की मजबूत शुरुआत बन गया है।

पहले की रियायत मोदी को अब फायदा दे रही है?
कांग्रेस ने चुनाव आयोग से अपील की है कि गुजरात चुनाव के दौरान बीजेपी के खर्चों पर जरा कड़ी नजर रखे। कांग्रेस का आरोप है कि नरेंद्र मोदी ने सत्ता में रहते हुए कई उद्योगपतियों को करोड़ो रुपए की टैक्स छूट दी है। जिसका फायदा उन्हें इन चुनावों में भारी चंदे के तौर पर मिल सकता है। कांग्रेस की मानें तो, मोदी ने कई बड़े उद्योगपति घरानों को 15,000 करोड़ रुपए से ज्यादा की छूट दी है। विधानसभा में विपक्ष के नेता अर्जुन मोरवादड़िया तो, ये भी आरोप लगा रहे हैं कि मोदी उद्योगपतियों को चंदे के लिए धमका भी रहे हैं। उन्होंने ऐसे 35 उद्योगपतियों की सूची भी जारी की है।

केंद्रीय वाणिज्य मंत्री कमलनाथ गुजरात में बीजेपी के ‘प्रचार’ में!

कांग्रेस नरेंद्र मोदी की शैली से नहीं निपट पा रही है। मोदी गुजरात के चुनाव प्रचार में कांग्रेसी नेता और केंद्रीय वाणिज्य मंत्री कमलनाथ का भी सहारा ले रहे हैं। बीजेपी की चुनावी प्रचार की सीडी ‘India Tomorrow — The Gujarat Miracle’ में कमलनाथ गुजरात की मोदी सरकार की जमकर तारीफ करते नजर आ रहे हैं। इसमें कमलनाथ कह रहे हैं “When you show-case India, you show-case Gujarat. When you showcase Gujarat you showcase India,”। बीजेपी इस सीडी का जमकर इस्तेमाल कर रही है। जबकि, इससे गुजरात के कांग्रेस नेता गुस्से से आग बबूला हो रहे हैं। इसी सीडी के दूसरे हिस्से में आतंकवाद से मुकाबला करने में यूपीए सरकार को पूरी तरह से अक्षम बताया गया है। सीडी में 2003 में फर्जी एनकाउंटर में मारे गए सोहराबुद्दीन को आतंकवादी बताया गया है। वैसे सीडी में गोधरा और गुजरात दंगों का कोई जिक्र नहीं है। गुजरात में ये जुमला चल रहा है कि ये काम तो टीवी चैनल कर ही रहे हैं।

मोदी के गुजरात में गांधी की खादी नहीं बिक रही!

अक्टूबर के महीने में देश भर में भले ही खादी की बिक्री घट गई है। वो, भी तब जब गुजरात में चुनावी मौसम है। लेकिन, लोग खादी के कुर्ते कम ही खरीद रहे हैं। ऐसा नहीं है कि खादी नहीं बिक रही है। जो, खादी बिक भी रही है वो मोदी स्टाइल का खादी का कुर्ता है। चाइनीज कॉलर वाला आधी बांह का खादी कुर्ता ‘मोदी कुर्ता’ के नाम से ही प्रसिद्ध है और इससे पहनने वाले भी खूब बढ़े हैं। वैसे मोदी के पूरे राज में ही खादी की बिक्री घटी है। पिछले छे सालों में लगातार खादी एंपोरियम में बिक्री घटी है। इसकी सबसे बड़ी वजह है गुजरात में खादी के कपड़ों पर छूट कम मिल रही है। खादी के कपड़ों पर गुजरात में 20 प्रतिशत से ज्यादा छूट नहीं दी जा सकती है। जबकि, दूसरे राज्यों में खादी के कपड़े पर छूट 30 प्रतिशत है।

चुनाव के रंग से शादी में भंग!

शादियां भले ही जन्नत में तय होने की मान्यता हो। लेकिन, धरती पर चुनाव इनके रंग में भंग डाल रहे हैं। गुजरात चुनाव में कुछ ऐसा ही हो रहा है। राजकोट में चुनावों की वजह से कई शादियां अधर में अंटक गई हैं। राजकोट के म्युनिसिपल कॉरपोरेशन ने चुनावों की वजह से हॉल की बुकिंग शादी के लिए कैंसिल कर दी है। इससे 75 से ज्यादा जोड़े शादी के पहले शादी करने की जगह की मुश्किल में फंस गए हैं। चुनाव आयोग के निर्देश के बाद नगर निगम ने सभी 12 हॉलों की बुकिंग रद्द कर दी है। अब 2 दिसंबर से सभी बुकिंग अपने आप रद्द हो गई हैं। अब जोड़ों को शादी के लिए दूसरी जगह खोजनी होगी क्योंकि, यहां गुजरात में शांति से चुनाव कराने के लिए अर्द्धसैनिक बलों के जवान रहेंगे।

एक देश, एक चुनाव से राजनीति सकारात्मक होगी

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