Thursday, April 30, 2020

ऐतिहासिक अवसर है, चूकिए मत मोदी जी !


चीन का डर, भारत का अवसर बनेगा ?

चाइनीज वायरस को पूरी तरह से खत्म होने में वक्त लगेगा, लेकिन इस वायरस का प्रकोप खत्म होते पूरी विश्व संरचना बदल जाएगी। इसमें भारत की भूमिका भी बदल सकती है, बेहतर हो सकती है, लेकिन प्रश्न है कि क्या हमारी नीतियां और उन्हें लागू करने में तेजी भारत को पुन: विश्व गुरु का दर्जा दिला पाएंगी। 3 मई को जब देशबंदी का दूसरा चरण समाप्त होगा, उसके बाद भारत सरकार और राज्य सरकारें विश्व निवेशकों को क्या सकेंते देंगे, उसी से तय होगा कि भारत इस ऐतिहासिक अवसर का कितना लाभ उठा पाएगा। हालांकि, इस बात का अन्दाजा भारत सरकार को भी बहुत अच्छे से है। केंद्रीय सड़क परिवहन एवं राजमार्ग और सूक्ष्म, लघु और मध्यम उद्योग मंत्री नितिन गडकरी कह रहे हैं कि वायरस के बाद चीन के प्रति दुनिया भर के अविश्वास का लाभ भारत को उठाना चाहिए। उन्होंने यह भी भरोसा जताया है कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की अगुआई में भारत सरकार इस अवसर का लाभ उठाने में कामयाब होगी। भारत सरकार में मंत्री होने के नाते नितिन गडकरी की यह सदिच्छा स्वाभाविक दिखती है और देश भी इसी तरह से देख रहा है कि चीन से कंपनियां जब बाहर निकलेंगी तो उनका स्वाभाविक ठिकाना भारत होगा। ताजा यूबीएस मार्केट रिपोर्ट के मुताबिक चीन से बाहर जाने वाली कंपनियों के लिए भारत सर्वाधिक उपयुक्त स्थान हो सकता है। यूबीएस ने 500 बड़ी कंपनियों के बड़े अधिकारियों से बातचीत के आधार पर यह रिपोर्ट जारी की थी। इसका सीधा सा मतलब समझा जा सकती है कि सिर्फ भारत सरकार या उनके मंत्री ही नहीं, दुनिया भर की एजेंसियां यह मान रही हैं कि चीन से बाहर निकलने की इच्छा रखने वाली कंपनियों के लिए भारत सर्वोत्तम स्थान हो सकता है, लेकिन सिर्फ इस तरह की सद्भावना रिपोर्ट से निवेश नहीं आता है। चीन जैसे देश से कंपनियां अपनी मैन्युफैक्चरिंग इकाई भारत लेकर आएं, इसके लिए सबसे जरूरी है कि भारत की सरकार चीन में निर्माण इकाई लगाने वाली कंपनियों की एक रिपोर्ट तैयार करते कि आखिर किन वजहों से यह कंपनियां चीन में जमी हुई हैं। सस्ता श्रम और नीतियों में एकरूपता के मुकाबले में भारत चीन से प्रतिस्पर्धी हो चुका है, लेकिन क्या दूसरे मानकों पर भारत सरकार के विदेश और वित्त मंत्रालय के अधिकारियों ने ऐसी कोई रिपोर्ट तैयार की है, इसका जवाब फिलहाल नहीं में ही दिख रहा है और यहीं पर आकर यह समस्या बड़ी होती दिखती है कि भावनात्मक सद्भावना रिपोर्ट से चीन से बाहर निकलने वाली कंपनियां भारत में कैसे आएंगी।
अमेरिका और चीन के बीच कारोबारी युद्ध के दौरान ही अमेरिकी, जापानी और दक्षिण कोरियाई कंपनियां चीन से बाहर निकलने की तैयारी करने लगीं थीं। उसी समय भारत सरकार को यह तैयारी युद्धस्तर पर करना चाहिए था, लेकिन भारत सरकार इस काम में फिलहाल सफल नहीं हो सकी है। निश्चित तौर पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और विदेश मंत्री एस जयशंकर ने राजनयिक स्तर पर अमेरिकी, जापान, दक्षिण कोरिया और दूसरे देशों के साथ संबंध इतने बेहतर किए हैं कि सद्भावना के तहत इन देशों की कंपनियों की पहली प्राथमिकता भारत हो सकता है, लेकिन जैसा मैंने पहले कहाकि बड़ी कंपनियां सद्भावना रिपोर्ट के आधार पर अपना निवेश एक देश से दूसरे देश में नहीं ले जाती हैं। खासकर, चीन से कंपनियों को अपनी निर्माण इकाई दूसरे देश में ले जाना ज्यादा मुश्किल इसलिए भी है क्योंकि चीन में कंपनियों ने भारी निवेश कर रखा है। इस उहापोह के बीच ज्यादातर कंपनियां अमेरिका और चीन के कारोबारी युद्ध के दौरान योजना ही बनाती रहीं, लेकिन विश्वव्यापी चाइनीज वायरस के फैलाव के बाद सभी बड़ी कंपनियों ने अपनी निर्माण इकाइयां चीन से बाहर ले जाने के बारे में सोच रही हैं। सच्चाई यह भी है कि चीन में स्थापित कई विदेशी कंपनियां भारतीय कंपनियों से बात कर रही हैं। दक्षिण कोरिया, जापान और अमेरिका की कंपनियां दूसरे देशों पर भारत को प्राथमिकता दे रही हैं, लेकिन भारत सरकार को इसके लिए आक्रामक नीति तुरन्त लागू करने की जरूरत है। टेलीडाइन, एम्फीनॉल और जॉनसन एंड जॉनसन जैसी कंपनियां अपना कारोबार चीन से समेटना चाह रही हैं। अमेरिका और चीन के बीच कारोबारी युद्ध की चपेट में आने से बचने के लिए जापानी कंपनियां रीको, सोनी और एसिक्स पहले ही चीन से बाहर अपनी उत्पादन इकाई ले जाने की योजना बना रही थीं और चाइनीज वायरस के संक्रमण के बाद जापान सरकार की 2.2 बिलियन डॉलर के प्रस्ताव ने दूसरी जापानी कंपनियों को भी चीन से बाहर निकलने के लिए तैयार कर लिया है, लेकिन मुश्किल वही है कि क्या इस अवसर का लाभ भारत पूरी तरह से उठा पाएगा या फिर नोमुरा की रिपोर्ट में दिख रहा संकट भारत की हानि बढ़ने वाला है। अब जरा कुछ तथ्य देखिए, चाइनीज वायरस के प्रकोप से पहले ही बीते जुलाई रीको ने प्रिंटर उत्पादन इकाई को चीन शेनझेन से थाईलैंड में ही शिफ्ट कर दिया था। नाइके वियतनाम और थाईलैंड के साथ भारत भी आने की संभावना तलाश रही है। तिमाही नतीजों का एलान करते पैनासोनिक के CFO हीरकाजू उमेडा ने स्पष्ट किया था कि उनकी कंपनी चीन से बाहर जाने की संभावना तलाश रही है। भारी खर्च के बावजूद जापानी कार कंपनी माजदा ने चीन के जियांगसू से अपना उत्पादन मेक्सिको के गुआनजुआटो इसी महामारी के बीच ही शिफ्ट कर लिया है। और, यह सब इसके बावजूद हो रहा है कि भारत सरकार ने मेक इन इंडिया के तहत विदेशी कंपनियों को भारत में लाने के लिए कॉर्पोरेट टैक्स 35 प्रतिशत से घटाकर 25.17 प्रतिशत कर दिया है। कई मामलों में तो यह 22 प्रतिशत तक और नई कंपनियों के मामले में 15 प्रतिशत से कुछ ही ज्यादा है।
भारत को एक और बड़ा लाभ सभी देशों के मुकाबले यह भी है कि भारत ऐसा मैन्युफैक्चरिंग हब बन सकता है, जहां उत्पादन की खपत भी पूरी हो सकती है, दुनिया का सबसे बड़ा बाजार भी यहीं मौजूद है। चीन के बाद भारत के पास ही इस तरह का बाजार है, लेकिन इस सबके बावजूद वियतनाम, मलेशिया, ताइवान और थाईलैंड भारत से बाजी मार ले जा रहे हैं तो इसका सीधा दोष सरकारी नीतियों को लागू करने में शिथिलता पर ही जाएगा। चीन से ढेर सारी कपनियां बाहर निकलने की कोशिश कर रही हैं। कंपनियों ने चीन में इतना भारी निवेश कर रखा है कि एक साथ वहां से निकलना संभव नहीं, इसलिए कंपनियां दूसरे देशों में अपना छोटी-बड़ी आधार इकाई लगा रही हैंस जिससे उन्हें चीन से अपना कारोबार पूरी तरह समेटने में आसानी हो। फिलहाल शुरुआती इकाई लगाने के लए चीन से निकलने वाली कंपनियां भारत पर वियतनाम, मलेशिया, सिंगापुर को चुन रही हैं। भारत की प्राथमिकता थाईलैंड और फिलीपींस जैसे देशों से बस थोड़ा ही ऊपर है। नोमुरा ने चीन से बाहर जाने वाली कंपनियों पर एक अनुमान लगाया है। नोमुरा प्रोडक्शन रीलोकेशन इंडेक्स 3 पैमाने पर बना है। पहला- चीन की ही तरह जिस देश से दुनिया भर में निर्यात किया जा सके, दूसरा- बहुराष्ट्रीय कंपनियों की गुणवत्ता सर्वेक्षण और तीसरा विदेशी निवेश FDI आकर्षित करने में नोमुरा के सूचकांक में स्थिति। इन तीनों पैमानों पर अगर कंपनियों को चीन से निकलना पड़ा तो उनकी पहली पसंद वियतनाम है, उसके बाद मलेशिया, सिंगापुर और भारत का स्थान आता है।
भारत सरकार उम्मीद कर रही थी कि चीन से आने वाली ज्यादातर कंपनियों के लिए पहली पसंद भारत बनेगा, लेकिन नोमुरा की रिपोर्ट इसके ठीक उलट बता रही है। नोमुरा ने चीन से बाहर जा रही 56 कंपनियों पर रिपोर्ट बनाई है और इसके मुताबिक 26 कंपनियां वियतनाम जा रही हैं, इसके बाद 11 कंपनियां ताईवान और 8 कंपनियां थाईलैंड संभावनाएं तलाश रही हैं, 56 में से सिर्फ 3 कंपनियां भारत आ रही हैं। वियतनाम को चीन के जैसे वातावरण का भी लाभ मिल रहा है। लेकिन यह प्रश्न बड़ा हो रहा है कि क्या कम्युनिस्ट शासन वाले चीन से कंपनियां कम्युनिस्ट शासन वाले वियतनाम, इस्लामिक देश या फिर राजशाही वाले थाईलैंड में जाना पसंद कर रही हैं जबकि भारत में लोकतांत्रिक व्यवस्था में ढेर सारे आर्थिक सुधार हुए हैं। वियतनाम भी कम्युनिस्ट देश है और घोषित तौर पर समाजवादी नीतियों वाला देश होने के बावजूद तेजी से पूंजीवादी नीतियों को आगे बढ़ा रहा है। CCP यानि चाइनीज कम्युनिस्ट पार्टी की तरह वियतनाम में CPV कम्युनिस्ट पार्टी ऑफ वियतनाम का शासन है। ताइवान को वन चाइना पॉलिसी के तहत अपना हिस्सा मानता है हालांकि ताइवान चीन से संघर्ष कर रहा है और अमेरिका के साथ है। मलेशिया इस्लामिक देश है। इतनी विसंगतियों वाले देश अगर पूर्ण बहुमत की लोकतांत्रिक तरीके से चुनी हुई सरकार के शासन वाले भारत पर भारी पड़ रहे हैं तो यह चाइनीज वायरस के खात्मे के बाद बदली विश्व परिस्थितियों में अच्छा संकेत नहीं होगा। आरसीईपी से भारत के बाहर निकलने की घरेलू उद्योगों की चिंता के अलावा एक बड़ी वजह यह भी थी कि चीन, वियतनाम और दूसरे देशों के जरिये अपना औद्योगिक उपनिवेश स्थापित कर सकता है। चीन से बाहर निकलने वाली करीब आधी कंपनियां अगर वियतनाम के रास्ते जा रही हैं तो यह लगभग वही स्थिति हो जाएगी।  नोमुरा की रिपोर्ट स्पष्ट बता रही है कि भारत सरकार को अपनी नीति बनाने और उसे लागू करने में देर नहीं करनी चाहिए वरना उसे बड़ी हानि हो सकती है।
अभी चीन से बाहर निकलने वाली कंपनियां अगर भारत नहीं आ रही हैं तो उसकी एक बहुत बड़ी वजह यह भी है कि चीन से निकलने वाली कंपनियां भारतीय कंपनियों से बात करती हैं तो पता चल रहा है कि फिलहाल यहां कारोबार कब शुरू होगा, इसके बारे में कोई स्पष्टता ही नहीं है। इसलिए जरूरी है कि सरकार, चीन से बाहर निकल रही कंपनियों को भारत लाने के लिए बात करते हुए, देश में कारोबार को चरणबद्ध तरीके से शुरू करे। चाइनीज वायरस के बाद बदलते विश्व में भारत को ऐतिहासिक अवसर मिल रहा है, यह अवसर चूके तो हम कभी विश्व गुरू थे, यह बताएंगे और यह अवसर चुनौती की तरह लेकर अपने पक्ष में कर लिया तो विश्व गुरू भारत को दुनिया मान लेगी। इस ऐतिहासिक अवसर को भारत के पक्ष में कैसे बदलना है, इसकी योजना बनाकर लागू करने के लिए ही जनता ने प्रचण्ड बहुमत से नरेंद्र मोदी को प्रधानमंत्री के तौर पर चुना है। 

Thursday, April 23, 2020

चाइनीज वायरस के बाद के विश्व में भारत की भूमिका

चाइनीज वायरस का प्रकोप खत्म होने के बाद विश्वनेता कौन सा देश होगा। यह प्रश्न अब तर्कों, तथ्यों और आंकड़ों के आधार पर दुनिया में पूछा जाने लगा है। इसके उत्तर में ढेर सारे विकल्प सामने आते हैं, लेकिन एक विकल्प पर आश्चर्यजनक रूप से दुनिया सहमत होती जा रही है कि अमेरिका अब पहले जैसा दुनिया के किसी संकट में प्रभावी भूमिका में नहीं रहा है। डोनाल्ड ट्रम्प बड़बोले बयानों की वजह से चर्चा में रहते हैं, लेकिन जब किसी बड़े फैसले को अमेरिका के लिहाज से अपने पक्ष में करने की बात आती है तो हमेशा एक कदम पीछे जाते हुए दिखते हैं। उत्तर कोरिया के तानाशाह किम जोंग उन का मसला हो, ईरान के साथ युद्ध जैसी स्थिति में पहुंचने का या फिर हाल ही चीन के साथ कारोबारी युद्ध विराम का, हर मौके पर अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड, व्हाइट हाउस में विराजने वाले दुनिया के सर्वशक्तिमान व्यक्ति की तरह प्रभावी नहीं दिखे। इसमें कोढ़ में खाज चाइनीज वायरस से लड़ाई में दुनिया की अगुआई नही कर पाना हो गया है। चाइनीज वायरस के बारे में खुलकर बोलने भर से अमेरिकी राष्ट्रपति को दुनिया पहले की तरह नहीं देख रही है। अमेरिकी राष्ट्रपति ने विश्व स्वास्थ्य संगठन का फंड भी रोक दिया, लेकिन इससे मामला ज्यादा उलट हो गया है। विश्व स्वास्थ्य संगठन के प्रमुख टेड्रोस अब अमेरिकी राष्ट्रपति को सीख दे रहे हैं, साथ ही चीन के पक्ष में खुलकर माहौल बनाने लगे हैं। विश्व स्वास्थ्य संगठन के प्रमुख इसमें अगर कहीं थोड़ी सी रियायत बरत रहे हैं तो वह देश भारत है। इसकी सबसे बड़ी वजह यही है कि भारत ने चाइनीज वायरस पर देश के भीतर और बाहर बहुत बेहतर तरीके से विश्व नेता राष्ट्र की तरह व्यवहार किया है। भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का व्यवहार कुछ उसी तरह का है जैसा एचआईवी एड्स या इबोल की विश्वव्यापी बीमारी में पहले के अमेरिकी राष्ट्रपति करते रहे हैं।
अब प्रश्न यह खड़ा होता है कि क्या अमेरिकी-सोवियत संघ के बाद अमेरिका-चीन वाले ध्रुवीय विश्व की संरचना चाइनीज वायरस का प्रकोप खत्म होने के बाद विश्व चीन-भारत ध्रुवीय होने जा रहा है। सामान्य तरीके से देखने पर यह प्रश्न आधारहीन सा दिखने लगता है। क्योंकि अमेरिका और चीन दोनों हर तरह से महाशक्ति हैं। फिर सामरिक मसला हो या आर्थिक। दोनों के पास अपनी गोलबंदी भी है, लेकिन भारत उन पैमानों पर इन दोनों देशों के आगे खड़ा नहीं होता है। चाइनीज वायरस से निपटने में समय से लिए गए नरेंद्र मोदी सरकार के निर्णय से भारत इस बीमारी पर काबू पाने की ओर बढ़ता दिख रहा है, लेकिन आर्थिक तौर पर होने वाला गम्भीर नुकसान भारत को चीन-भारत ध्रुवीय विश्व की परिकल्पना से आसानी से बाहर कर देता है। हालांकि, यह सिक्के का एक पहलू है। अब सिक्के के दूसरे पहलू पर नजर डालते हैं। यूरोपीय राष्ट्र और अमेरिकी जब सिर्फ अपने लोगों की जान बचाने के लिए जूझ रहे थे, उस समय भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भारतीयों के जीवन की सुरक्षा के लिए देशबंदी जैसा कड़ा निर्णय लेने के साथ ही भारत के पड़ोसी देशों के संगठन सार्क का आह्वान किया कि इस लड़ाई में हम साथ रहकर ही जीत सकते हैं और पाकिस्तान की जाहिल हरकत के बावजूद सभी सार्क देश भारत की अगुआई में इस लड़ाई से लड़ने की अच्छी तैयारी करने में कामयाब रहे। कोविड 19 से लड़ने के लिए भारत की अगुआई में सभी सार्क देशों ने फंड तैयार किया और भारत ने सबसे बड़े देश होने के अपने दायित्व का बखूबी निर्वहन किया, जिससे दुनिया ने भारत को देखने का नजरिया बदला है। इसके बाद एक वाकया और हुआ, जिसे मोदी विरोधी भारतीय मीडिया के साथ ही विश्व मीडिया ने भी भारतीय प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और भारत की छवि एक कमजोर राष्ट्र के तौर पर पेश करने की कोशिश की और वह घटनाक्रम था, अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प का बड़बोलेपन में एक रिपोर्टर के सवाल का जवाब देना। हालांकि, अगले ही दिन अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प ने एक टीवी चैनल को साक्षात्कार देकर उसी स्पष्टता कर दी और भारत देश के साथ भारतीय प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की महानता के कसीदे पढ़े।
जाने-अनजाने हुए इस वाकये ने भारत की छवि चाइनीज वायरस से जूझ रहे समय में एक विश्वनेता की बना दी है। इस घटनाक्रम के पहले ही भारतीय प्रधानमंत्री नरेंद्र ने जी 20 देशों का आह्वान किया और रणनीतिक तौर पर उस बैठक में कोविड 19 की उत्पत्ति के मसले पर चर्चा नहीं की, लेकिन चीन रहित सभी जी 20 देशों ने भारत की महत्वपूर्ण भूमिका को समझा। जिस हाइड्रोक्सीक्लोरीक्वीन दवा को देने मसले पर अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प के बयान से दुनिया भर के मीडिया ने भारत की गलत छवि बनाने की कोशिश की थी, अब उसी हाइड्रोक्सीक्लोरीक्वीन ने विश्व के महत्वपूर्ण राष्ट्रों के सामने भारत की छवि बहुत बड़ी बना दी है। ब्राजील के राष्ट्रपति ने भारत की मदद को वैसा ही बता दिया जैसा मूर्छित लक्ष्मण को जीवन देने वाली संजीवनी बूटी लाने के लिए हनुमान जी की मदद थी। यहां यह याद रखना भी जरूरी है कि ब्राजील के शिक्षामंत्री ने खुले तौर पर वुहान से उत्पन्न हुए वायरस को चाइनीज वायरस कहा था और बीजिंग के कड़े प्रतिरोध के बावजूद उस पर सफाई देने के बजाय ब्राजील के शिक्षामंत्री अब्राह्म विनटॉब ने कहाकि वो अपनी टिप्पणी पर कायम हैं। ब्राजील और अमेरिका सहित विश्व के 13 देशों को भारत दवाई भेज रहा है। अमेरिका, स्पेन, जर्मनी, बांग्लादेश, भूटान, ब्राजील, नेपाल, बहरीन, अफगानिस्तान, मालदीव, सेशेल्स, मॉरीशस, डोमिनिकन रिपब्लिक की चाइनीज वायरस से लड़ाई में भारत की भेजी दवा काम आ रही है। जर्मनी दवाओं के लिए भारत का धन्यवाद कर रहा है और जर्मनी के सबसे बड़े अखबार बिल्ड के प्रधान संपादक ने अपने संपादकीय में चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग पर सीधा हमला बोला है। अखबार लिखता है कि शी जिनपिंग के कार्यकाल में चीन कोरोना वायरसस और कम्युनिस्ट शासन के मानवाधिकार उल्लंघनों पर भयानक आरोपों से घिरा हुआ है। बिल्ड अखबार के प्रधान संपादक जूलियन रीशेल्ट साफ लिखते हैं कि शी जिनिपंग, चीन की कम्युनिस्ट सरकार और चीन के वैज्ञानिकों को बहुत पहले पता लग जाना चाहिए था कि कोरोना वायरस भयानक तौर पर संक्रामक है, लेकिन आपने दुनिया को अंधेरे में रखा। आपके बड़े जानकारों ने पश्चिमी शोधकर्ताओं की उस आशंका को खारिज कर दिया, जब उन्होंने वुहान वायरस के खतरे के बारे में चेताया। चीन के लोगों से भी आपने इसे छिपाया, आपकी सरकार राष्ट्रीय शर्म है। जर्मनी के सबसे बड़े अखबार के प्रधान संपादक का ऐसा खुला आरोप साफ दिखा रहा है कि पश्चिमी देशों का चीन के प्रति अविश्वास कितना गहरा हो गया है।
चीन भी दुनिया भर के देशों को लगातार उपकरण भेज रहा है, लेकिन ज्यादातर उपकरण खराब निकल रहे हैं। दूसरे मेड इन चाइना उत्पादों की ही तरह इस महामारी के समय में भी चीन का स्वास्थ्य संबंधी सामान भी खराब निकल रहा है। ज्यादातर देशों को बेचे गए चीनी स्वास्थ्य उपकरण, टेस्ट किट खराब निकले हैं। खराब पाए जाने पर स्पेन ने 50 हजार टेस्ट किट चीन को वापस कर दिया है। नीदरलैंड में भेजे गए चीनी मास्क नीदरलैंड के पैमाने पर खरे नहीं उतरे और चीन की बेशर्मी देखिए को वो अपनी गलती मानने के बजाय नीदरलैंड पर दोष मढ़ रहा है। दुनिया का चीन से भरोसा पूरी तरह से उठ गया है, चीन ने पहले भी वुहान वायरस पर दुनिया को गफलत में रखा और अभी भी इस वायरस से होने वाली मौतों की सही संख्या नहीं बता रहा है। अभी भी चीन में मौतें हो रही हैं, लेकिन चीन ने कारोबार शुरू कर दिया है। इटली को तो चीन ने उसी का भेजा सामान वापस बेच दिया है जबकि, इटली जी 7 देशों में अकेला देश है जिसने चीन के बोल्ट एंड रोड इनीशिएटिव में शामिल होने का जोखिम उठाया और चीन के साथ आवाजाही बंद करने में देरी का खामियाजा इटली बुरी तरह भुगत रहा है। चीन की तानाशाही की वजह से दुनिया का भरोसा चीन पर पहले से कम था और अब चाइनीज वायरस के संक्रमण से तबाह दुनिया को चीन दैत्याकार नजर आ रहा है क्योंकि अमेरिका पहले जैसा शक्तिशाली नहीं दिख रहा है और विश्व के एकध्रुवीय होने का खतरा है। इस खतरे के बीच प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की अगुआई में भारत ही ऐसा देश दिख रहा है जो देवरूप नजर आ रहा है। भारत भी चाइनीज वायरस से जूझ रहा है। चीन से आई 60 हजार पीपीई किट खराब निकली है। भारतीय कंपनियां अपनी वैक्सीन बनाने पर काम कर रही हैं। भारतीय चिकित्सा अनुसंधान परिषद बाकायदा इसके शोध पर काम कर रहा है। इस सबके बीच जब वामपंथी मीडिया के लोग नरेंद्र मोदी की इस बात के लिए आलोचना कर रहे थे कि देश में जरूरत है और मोदी सरकार, सर्बिया दवा भेज रही है, भारत सरकार ने सर्बिया को उस दौर में भी स्वास्थ्य संबंधी उपकरण भेजे, दवाइयां भेजीं। भारत हर दृष्टि से चीन के सामने दूसरे ध्रुव के तौर पर सबसे अच्छी पसंद हो सकता है। चीन से निकलने वाली दूसरे देशों की कंपनियों के भारत स्वाभाविक पसंद भी बन सकता है, हालांकि ब्लैकस्टोन ग्रुप के CEO, चेयरमैन और को फाउंडर स्टीव श्वॉर्जमैन स्पष्ट करते हैं ऐसा नहीं होगा कि सभी कंपनियां अपना पूरा कारोबार चीन से समेट लेंगी, लेकिन बड़ा हिस्सा चीन से बाहर जाएगा। भारत दुनिया भर की कंपनियों को कैसे आकर्षित कर रहा है, इसका अन्दाजा श्वॉर्जमैन की बात से लगाया जा सकता है। ब्लैकस्टोन ग्रुप सिर्फ भारत में ही नहीं दुनिया में सबसे बड़ा जमींदार है, इसका मतलब कि सबसे ज्यादा संपत्तियां इसी समूह के पास हैं। स्टीव श्वॉर्जमैन की बात इसलिए भी ज्यादा महत्व की हो जाती है क्योंकि श्वॉर्जमैन को ही अमेरिका और चीन के बीच चल रहे ट्रेड वॉर को खत्म कराने वाले कारोबारी के तौर पर देखा जाता है। एक साक्षात्कार में श्वॉर्जमैन कहते हैं कि वो मार्च के पहले सप्ताह यूरोप में थे और उनकी मुलाकात एक बहुत बड़े व्यक्ति से हुई जो एक बड़ी कंपनी के देश प्रमुख थे। उन्होंने कहाकि चीन में कारोबार करने वाले, मैन्युफैक्चरिंग प्लांट लगाने वाले बहुत चिंतित हैं। एक ही जगह पर पूरा कारोबार होने से अचानक आपूर्ति की बड़ी समस्या खड़ी हो गई है। मनुष्य का स्वभाव है कि एक स्थिति में संकट झेलने के बाद वह स्थिति परिवर्तन करता है और अब चीन में स्थापित कंपनियां ऐसा ही सोच रही हैं। श्वॉर्जमैन कहते हैं कि भारत को इस मौके का फायदा उठाने के लिए कई बड़े बदलाव करने की जरूरत है।
भारत के लिए अच्छी स्थिति यह है कि कई देशों की सरकारें अपनी कंपनियों को चीन से निकलने के लिए सहायता दे रही हैं। जापान की सरकार ने चीन से अपनी कंपनियों को वहां से निकलने को कहा है। जापान के उप प्रधानमंत्री तारा आसो ने वहां की संसद में चाइनीज वायरस बताया। इसके लिए जापान ने 2.2 बिलियन डॉलर की मदद का एलान किया है। बाकायदा जापान की सरकार ने ऑनलाइन मदद की योजना डाल दी है। चीन, जापान का सबसे बड़ा कारोबारी सहयोगी है। अमेरिका में भी इस तरह की मांग उठ रही है। आईएमएफ के मुताबिक, जी 20 देशों में भारत सहित सिर्फ 3 देश हैं, जिनकी जीडीपी ग्रोथ इस वर्ष भी पॉजिटिव रहेगी। IMF के मुताबिक FY 22 में भारत की तरक्की की रफ्तार 7.4% रह सकती है। G 20 देशों में सबसे बेहतर ग्रोथ हमारी होगी। चाइनीज वायरस का प्रकोप खत्म होने के बाद द्विध्रुवीय विश्व में चीन के सामने दूसरा ध्रुव भारत होने की भूमिका मजबूत हो रही है।
(यह लेख दैनिक जागरण के राष्ट्रीय संस्करण में 23 अप्रैल 2020 को छपा है)

Monday, April 20, 2020

ऱाज सत्ता में धर्म का श्रेष्ठ उदाहरण योगी आदित्यनाथ ने प्रस्तुत किया

उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने श्रेष्ठ उदाहरण प्रस्तुत किया है। योगी जी अपने पिता की अंत्येष्टि में शामिल नहीं हो रहे हैं, लेकिन इसकी वजह उनका योगी होना नहीं है। इसकी वजह है मुख्यमंत्री के तौर पर चाइनीज वायरस के समय लड़ाई को सेनापति के तौर पर लड़ना। योगी जी का यह शोक सन्देश उदाहरण के तौर पर पेश किया जाएगा। एक बार मैंने प्रशासनिक उलझनों में फंसे योगी आदित्यनाथ के लिए लिखा था कि मुख्यमंत्री आदित्यनाथ पर भारी पड़ रहे हैं योगी आदित्यनाथ। हाल में जिस तरह से देश के सबसे बड़े राज्य को उन्होंने चलाया है, उसने मेरे पुराने अन्देशे को खत्म कर दिया है। नागरिकता कानून विरोधी आन्दोलन का समय हो या फिर वैश्विक महामारी के समय, उत्तर प्रदेश ने देश में सर्वश्रेष्ठ प्रस्तुत किया है और आज अपने पिता की अंत्येष्टि में न जाकर उन्होंने सेनापति की तरह आगे रहकर युद्ध में रहना प्रस्तुत किया है।


हिन्दू मंदिर, परंपराएं और महिलाएं निशाने पर क्यों

हर्ष वर्धन त्रिपाठी Harsh Vardhan Tripathi अभी सकट चौथ बीता। आस्थावान हिन्दू स्त्रियाँ अपनी संतानों के दीर्घायु होने के लिए निर्जला व्रत रखत...