Tuesday, February 26, 2013

रेल बजट की कहानी मेरे FB स्टेटस अपडेट की जुबानी

में कई साल पहले कुछ की बात सुनी थी जिसके किनारे 36 नए शहर बसने थे। इस बजट में उसके बारे में किसी ने कुछ सुना है क्या?

#RailBudget में किराया इस खूबी से बढ़ाया गया है जैसे, डीजल-पेट्रोल की कीमत बाजार के हवाले करके इस खबर को खबर जैसा ही नहीं रहने देती सरकार !

उम्मीद है कि जोड़तोड़ से अगर UPA 3 बना तो रायबरेली या अमेठी में #RailBudget में रेलवे हेडक्वार्टर का एलान हो सकता है।

उत्तर प्रदेश बिना जीते न बीजेपी को सत्ता मिलेगी न कांग्रेस के दिन लौटेंगे। लेकिन, कांग्रेस है कि सारी मेहनत सिर्फ 2 सीटों के लिए ही करती है। #RailBudget


बस pawan bansal साहब अब रुलाएंगे क्या? #RailBudget में हमें कुछ नहीं चाहिए। घाटा सुनकर रोना आ गया।


#RailBudget पेश करते pawan bansal साहब से बाजार बद्तमीजी कर रहा है। सेंसेक्स करीब 200 प्वाइंट गिर गया।

#RailBudget में बंसल साहब ने सारी समस्याएं समझ ली हैं। सारी समस्याएं ठीक हों ये वो कह रहे हैं। कैसे करेंगे पता नहीं क्योंकि, सबसे बड़ी समस्या वो घाटा बता रहे हैं।

#RailBudget पेश करने से पहले राजीव गांधी को याद करने और सोनिया गांधी को शुक्रिया करने से क्या रेल बजट बेहतर बनता है?


200 KM/H स्पीड वाली ट्रेन की कल्पना गुदगुदाती है कि 3.5 घंटे में दिल्ली से इलाहाबाद। सपना कब पूरा होगा। #RailBudget

Tuesday, February 12, 2013

मोदी की ये पैकेजिंग बिकाऊ लगती है?

ये महज संयोग है या सचमुच एक फैसला कितने संयोगों को जन्म दे देता है ये समझने की बात है। लेकिन, भारतीय जनता पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष पद से नितिन गडकरी की विदाई क्या हुई, अचानक भारतीय जनता पार्टी के पक्ष में एक अजीब सा माहौल बनता दिख रहा है। नरेंद्र मोदी उतना ही कह सुन रहे हैं जितना वो, हमेशा कहते सुनते थे लेकिन, संयोग देखिए कि उनका कहा अब काफी सुनने वाले दिखने लगे हैं। इतने कि दिल्ली के प्रतिष्ठित श्रीराम कॉलेज ऑफ कॉमर्स के बच्चों को उनका कहा रतन टाटा और राहुल गांधी के कहे से ज्यादा मूल्यवान दिखा और नरेंद्र मोदी जब वहां पहुंचे तो, श्रीराम कॉलेज ऑफ कॉमर्स के छात्रों को अपने किए फैसले पर फक्र होता दिखा।

नरेंद्र मोदी ने वहां कई बातें अपने पक्ष में कहीं जिसमें देश के इसी संविधान, कानून, लोग, अफसर और दफ्तर से गुजरात को बेहतर बनाने के बहाने देश को बेहतर बनाने का रास्ता दिखाने की कोशिश की। आधा भरा और आधा खाली गिलास वाले नजरिए को श्रीराम कॉलेज ऑफ कॉमर्स के छात्रों के सामने नरेंद्र मोदी ने तीसरे नजरिए में बदल दिया कि गिलास आधा भरा या खाली नहीं होता। गिलास तो पूरा भरा ही होता है और फिर आधा पानी से भरा हो सकता है आधा हवा से। नरेंद्र मोदी का यही अलग नजरिया खुद उनके लिए और उनकी पार्टी भारतीय जनता पार्टी के लिए सुखद संयोग बनाता दिख रहा है। और, मोदी के नजरिए में सबसे खास बात कि पैकेजिंग सही नहीं तो, अच्छा से अच्छा उत्पाद नहीं बिक सकता। नरेंद्र मोदी ने हालांकि ये बात आयुर्वेद के संदर्भ में कही थी लेकिन, अवधारणा, भावना और प्रतीकों से नेता मानने वाले भारत में ये पैकेजिंग हमेशा काफी महत्वपूर्ण रही है। फिर चाहे वो नेहरू रहे हों, इंदिरा रही हों, राजीव रहे हों, वी पी सिंह रहे हों या फिर खुद बीजेपी के अकेले प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी।

गुटनिरपेक्ष, उदार छवि वाले नेहरु को तुरंत आजाद हुए भारत ने सिर आंखों पर बैठाया तो, उनकी बेटी इंदिरा को संसद में अटल बिहारी वायपेजी ने जो, दुर्गा की छवि दी थी। उसे जनता ने भी सम्मान दिया। इसीलिए इंदिरा की तानाशाही भी इस देश की जनता को पसंद आई। राजीव गांधी को राजनीति नहीं आती थी लेकिन, पैकेजिंग भावना में एक बेहद सच्चे इंसान की हो गई। फिर कंप्यूटर क्रांति भी हिस्से में जुड़ी। कांग्रेस सरकार के भ्रष्टाचार के खिलाफ देश में अलख जगाने वाले वी पी सिंह राजा नहीं फकीर है भारत की तकदीर है के नारे के साथ प्रधानमंत्री बन गए। अटल बिहारी वाजपेयी की छवि गलत पार्टी में सही नेता की रही। ये सब मामला पैकेजिंग का ही था।

अब मामला आज का है। आज की बात करें तो, दुनिया भर में मंदी है। बड़ी मुश्किल से दस प्रतिशत की तरक्की का मनमोहिनी सपना दिखाने वाली सरकार का ताजा अनुमान कह रहा है कि इस वित्तीय वर्ष में तरक्की की रफ्तार पांच प्रतिशत रहेगी। यानी, सपना आधा हो चुका है। वहीं दस प्रतिशत के आसपास की तरक्की लगातार नरेंद्र मोदी के गुजरात में कायम है। इसलिए मोदी राष्ट्रीय राजनीति के दरवाजे पर खड़े होकर भी गर्वी गुजरात का गान करने में नहीं हिचकते। वजह साफ है। ये गर्वी गुजरात की पैकेजिंग बिक गई तो, भारत की तरक्की के लिए मोदी को नेता मानने का संयोग बन जाएगा। वैसे, ये महज संयोग नहीं हो सकता कि श्रीराम कॉलेज ऑफ कॉमर्स में जब मोदी कॉमर्स यानी कारोबार, तरक्की का सपना बेच रहे थे तो, इलाहाबाद के कुंभ में बीजेपी के नए अध्यक्ष राजनाथ सिंह और उसके बाद सारे हिंदुत्व के पुरोधा संगम की रेती पर संतों के साथ राम लला के भव्य मंदिर की बात कर रहे थे। ये पैकेजिंग ही है। ये पैकेजिंग है बीजेपी को असल मुद्दों से भटकी पार्टी का आरोप लगाने वाले पुराने कार्यकर्ताओं, मतदाताओं को नजदीक लाने की। साथ ही नए भारत या यूं कहें कि भारत से इंडिया बन गए यूथ को अपने साथ लाने की। इसीलिए संतों के सामने इलाहाबाद में राजनाथ नतमस्तक थे तो, श्रीराम कॉलेज ऑफ कॉमर्स में मोदी नौजवानों को न्यू एज पावर बता रहे थे और ये भी कि सारी समस्याओं का समाधान विकास में है। श्रीराम और कॉमर्स का ये संयोग, ये पैकेजिंग नरेंद्र मोदी के लिए बड़ी संभावना बना रहा है।

पैकेजिंग इतनी ही नहीं है। ये भी महज संयोग तो नहीं हो सकता कि दिसंबर में गुजरात विधानसभा चुनाव के ठीक पहले नरेंद्र मोदी से मिलने के लिए ब्रिटिश हाई कमिश्नर जेम्स बेवन गांधीनगर आते हैं और, गुजरात दंगों के बाद से बंद कारोबारी रिश्ते सामान्य करने की बात करते हैं। और, अभी नरेंद्र मोदी कुंभ के कलश से अमृत चखने पहुंचे नहीं हैं उससे पहले ये भी खबर आ गई है कि यूरोपीय यूनियन भी उनके साथ काराबोरी और दूसरे रिश्ते सामान्य करने की कोशिश में लग गया है। नरेंद्र मोदी की पैकेजिंग बिकाऊ दिख रही है। ज्यादा उग्र नहीं लेकिन, समय के साथ श्रीराम का नाम और कॉमर्स के काम वाली जो पैकेजिंग दिल्ली के श्रीराम कॉलेज ऑफ कॉमर्स से मोदी ने देश की जनता को बेची है। काफी बिकाऊ दिख रही है। इस पैकेजिंग की रही-सही कसर ये खबर पूरी करती दिख रही है कि नरेंद्र मोदी अटल बिहारी वाजपेयी की लोकसभा सीट यानी उत्तर प्रदेश की राजधानी लखनऊ से चुनाव लड़ सकते हैं। वैसे, भी उत्तर प्रदेश में लक्ष्मीकांत बाजपेयी की अध्यक्षी में पार्टी बेहतर करती दिख रही है। कल्याण सिंह पार्टी को चुनाव जिताएंगे खुद चुनाव लड़ने-जीतने से बचेंगे। और, साफ दिख रहा है कि राजनाथ सिंह को पता है कि सहमति की तलाश में ही उन पर प्रधानमंत्री बनने का कांटा रुक सकता है लेकिन, इसके लिए पहले बीजेपी को उस स्थिति तक पहुंचना होगा और उस स्थिति में नरेंद्र मोदी के अलावा कोई और नाम बीजेपी को पहुंचा नहीं सकता तो, साफ है कि राजनाथ सिंह इस दूसरे मिले कार्यकाल को खराब नहीं करना चाहेंगे। ये सारी पैकेजिंग नरेंद्र मोदी के पक्ष में बिकाऊ लग रही है।

Monday, February 11, 2013

हम हादसे को हराना कब सीखेंगे ?


कुंभ में इलाहाबाद रेलवे स्टेशन पर हुई भगदड़ ने कुंभ के सारे इंतजामों पर सवाल खड़े कर दिए हैं। लेकिन, यहां सच यही है कि कुंभ क्षेत्र यानी गंगा की रेती पर बसा अस्थाई शहर पूरी तरह से इंतजाम से दुरुस्त था। असल गड़बड़ी रेलवे की है। और, इस एक गड़बड़ी ने दुनिया भर से इस नायाब मेले को देखने-समझने आए और इससे अभिभूत लोगों के सामने भारतीय सरकार की बदइंतजामी जाहिर कर दी। इसे बेहतर करने की जरूरत है। कम से कम इसी बहाने अगर रेलवे के देश में कम से कम एक दोहरे ट्रैक की जरूरत पूरी की जा सके। रेल बजट और बजट के महीने का भी संयोग बन रहा है।

हिन्दू मंदिर, परंपराएं और महिलाएं निशाने पर क्यों

हर्ष वर्धन त्रिपाठी Harsh Vardhan Tripathi अभी सकट चौथ बीता। आस्थावान हिन्दू स्त्रियाँ अपनी संतानों के दीर्घायु होने के लिए निर्जला व्रत रखत...