प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह और वित्त मंत्री चिदंबरम देश को तरक्की की राह पर ले जाने का लगातार दावा करते दिखते हैं। 9-10 प्रतिशत की विकास दर अब भारत पा सकता है। इस बारे में अर्थसास्त्री-बाजार के जानकार लोगों को टीवी-अखबारों के जरिए ज्ञान दर्शन कराते रहते हैं। लेकिन, इस खबर पर चर्चा कम ही होती है कि आखिर संपन्नता के कुछ टीले बनाकर देश को 10 प्रतिशत की भी विकास दर मिल जाए तो, उसका क्या मतलब होगा।
कभी-कभी वित्त मंत्री खेती-किसानों की चर्चा आने पर कह देते हैं कि देश का विकास अच्छे से हो इसके लिए जरूरी है कि कृषि विकास दर 4-4.5 प्रतिशत हो। अभी ये 2.5 प्रतिशत भी नहीं है। लेकिन, ये विकास दर कैसे हासिल होगी इस बारे में शायद ही कभी सरकारों की तरफ से कोई ठोस फॉर्मूला सुनने में या हो। हाल ये है कि देश के किसान कर्ज के बोझ में दबकर ऐसे आत्महत्या कर रहे हैं कि अब उनका मर जाना भी इस देश में खबर नहीं बन पाता।
अभी तीन दिन पहले नासिक के एक और किसान ने आत्महत्या कर ली। देश के सबसे संपन्न राज्यों में से एक महाराष्ट्र में ही नासिक है। दुनिया भर के अमीरों को धूल चटाने वाले अंबानी, टाटा, बियानी, गोदरेज जैसी बड़ी जमात इसी राज्य में पाई जाती है। लेकिन, महाराष्ट्र ही देश का ऐसा राज्य है जहां के विदर्भ में दो जून की रोटी न जुटा पाने से किसान लगातार आत्महत्या कर रहे हैं। प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह और राज्य के मुख्यमंत्री विलासराव देशमुख यहां आकर पैकेज का ऐलान करते हैं और अखबारों-टीवी चैनलों की सुर्खियां बन जाते हैं लेकिन, पैकेज के ऐलान के समय पहले पन्ने की सुर्खियों वाले किसान की आत्महत्या की खबर अगले ही दिन सातवें-आठवें पेज पर छोटी सी छपकर रह जाती है।
किसानों के हालात इतने खराब हैं कि 1997 से 2005 के बीच डेढ़ लाख से ज्यादा किसान आत्हमत्या कर चुके हैं। यानी हर रोज 50 से ज्यादा किसानों ने आत्महत्या कर ली। ये किसी भी त्रासदी से मारे गए लोगों से ज्यादा है। सबसे ज्यादा ध्यान देने की बात ये है कि देश के बीमारू राज्यों के अगुवा बिहार और उत्तर प्रदेश में किसानों की आत्महत्या का एक भी मामला सामने नहीं आया है। आत्महत्या करने वाले किसानों में दो तिहाई संपन्न राज्यों महाराष्ट्र, कर्नाटक के अलावा आंध्र प्रदेश, केरल और मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़ के थे। साफ है संपन्न राज्यों में अमीर-गरीब के बीच बढ़ती खाई भी इसकी एक बड़ी वजह दिख रही है।
किसान ज्यादातर उन्हीं राज्यों में आत्महत्या कर रहे हैं जहां कैश क्रॉप का चलन है। यानी ऐसी खेती जो व्यवसायिक दृष्टि से की जाती है। जैसे विदर्भ में कपास की खेती। इस तरह की खेती के लिए किसान बड़ी रकम कर्ज के तौर पर लेता है और एक बार कर्ज न चुका पाने पर वो उसी जाल में ऐसा फंसता है कि जान गंवाने के बाद ही मुक्ति मिल पाती है। सिर्प महाराष्ट्र में ही 2005 में 3926 किसानों ने आत्महत्या कर ली। यानी हर रोज 10 से ज्यादा किसान जान गंवा बैठे। खेती में 4 प्रतिशत की विकास दर की उम्मीद जता रहे चिदंबरम सुन रहे हैं क्या।
कभी-कभी वित्त मंत्री खेती-किसानों की चर्चा आने पर कह देते हैं कि देश का विकास अच्छे से हो इसके लिए जरूरी है कि कृषि विकास दर 4-4.5 प्रतिशत हो। अभी ये 2.5 प्रतिशत भी नहीं है। लेकिन, ये विकास दर कैसे हासिल होगी इस बारे में शायद ही कभी सरकारों की तरफ से कोई ठोस फॉर्मूला सुनने में या हो। हाल ये है कि देश के किसान कर्ज के बोझ में दबकर ऐसे आत्महत्या कर रहे हैं कि अब उनका मर जाना भी इस देश में खबर नहीं बन पाता।
अभी तीन दिन पहले नासिक के एक और किसान ने आत्महत्या कर ली। देश के सबसे संपन्न राज्यों में से एक महाराष्ट्र में ही नासिक है। दुनिया भर के अमीरों को धूल चटाने वाले अंबानी, टाटा, बियानी, गोदरेज जैसी बड़ी जमात इसी राज्य में पाई जाती है। लेकिन, महाराष्ट्र ही देश का ऐसा राज्य है जहां के विदर्भ में दो जून की रोटी न जुटा पाने से किसान लगातार आत्महत्या कर रहे हैं। प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह और राज्य के मुख्यमंत्री विलासराव देशमुख यहां आकर पैकेज का ऐलान करते हैं और अखबारों-टीवी चैनलों की सुर्खियां बन जाते हैं लेकिन, पैकेज के ऐलान के समय पहले पन्ने की सुर्खियों वाले किसान की आत्महत्या की खबर अगले ही दिन सातवें-आठवें पेज पर छोटी सी छपकर रह जाती है।
किसानों के हालात इतने खराब हैं कि 1997 से 2005 के बीच डेढ़ लाख से ज्यादा किसान आत्हमत्या कर चुके हैं। यानी हर रोज 50 से ज्यादा किसानों ने आत्महत्या कर ली। ये किसी भी त्रासदी से मारे गए लोगों से ज्यादा है। सबसे ज्यादा ध्यान देने की बात ये है कि देश के बीमारू राज्यों के अगुवा बिहार और उत्तर प्रदेश में किसानों की आत्महत्या का एक भी मामला सामने नहीं आया है। आत्महत्या करने वाले किसानों में दो तिहाई संपन्न राज्यों महाराष्ट्र, कर्नाटक के अलावा आंध्र प्रदेश, केरल और मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़ के थे। साफ है संपन्न राज्यों में अमीर-गरीब के बीच बढ़ती खाई भी इसकी एक बड़ी वजह दिख रही है।
किसान ज्यादातर उन्हीं राज्यों में आत्महत्या कर रहे हैं जहां कैश क्रॉप का चलन है। यानी ऐसी खेती जो व्यवसायिक दृष्टि से की जाती है। जैसे विदर्भ में कपास की खेती। इस तरह की खेती के लिए किसान बड़ी रकम कर्ज के तौर पर लेता है और एक बार कर्ज न चुका पाने पर वो उसी जाल में ऐसा फंसता है कि जान गंवाने के बाद ही मुक्ति मिल पाती है। सिर्प महाराष्ट्र में ही 2005 में 3926 किसानों ने आत्महत्या कर ली। यानी हर रोज 10 से ज्यादा किसान जान गंवा बैठे। खेती में 4 प्रतिशत की विकास दर की उम्मीद जता रहे चिदंबरम सुन रहे हैं क्या।
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