Monday, October 17, 2011

ये अन्ना की जीत तो बिल्कुल नहीं है!

रामलीला मैदान में अन्ना के अनशन के दौरान एक समर्थक
हिसार में मिले वोट- कुलदीप बिश्नोई 355941, अजय सिंह चौटाला 349618, जय प्रकाश 149785। बिश्नोई चुनाव जीते। भजनलाल के बेटे हैं। हरियाणा के गैर जाट नेता। बीजेपी के समर्थन के बिना बिश्नोई नहीं जीतते, अब तो ये साफ है। भ्रष्टाचार के गंभीर आरोपों से जूझ रहे चौटाला करीब साढ़े तीन लाख वोट पा गए। और, अन्ना का तो सारा आंदोलन ही भ्रष्टाचार विरोधी है। कैसे कोई कह रहा है कि अन्ना की जीत है। कांग्रेस के जयप्रकाश भी डेढ़ लाख पा गए। अब भी लोग कह रहे हैं कि अन्ना इफेक्ट है। अरे कहिए अन्ना की इज्जत बच गई। यूपी में इज्जत बचानी है तो, पहले से तैयारी कर ले टीम अन्ना।

Friday, October 14, 2011

अन्ना को ये फैसला तुरंत लेना होगा

कश्मीर बयान पर प्रशांत की पिटाई
विजय चौक पर हम लोग खड़े थे। तभी खबर आई कि सुप्रीमकोर्ट के चैंबर में कुछ लड़कों ने वकील प्रशांत भूषण को पीट दिया है। तब तक किसी बीजेपी कवर करने वाले पत्रकार ने कहा- अरे तेजिंदर बग्गा ने तो मारा है। वही भारतीय जनता युवा मोर्चा वाला। हम लोग जितने लोग थे सभी पत्रकारों के मुंह से निकला- अब तो बीजेपी का बेड़ा गर्क हो जाएगा। आडवाणी की यात्रा की खबर गई काम से। अब तो, सिर्फ यही चलगा फासीवादी भाजपा का असली चेहरा। लेकिन, हमारा ये आंकलन जल्दबाजी का था। प्रशांत को पीटने वालों के पर्चे में साफ लिखा था- कश्मीर हमारा था, है और रहेगा। दरअसल ये अन्ना टीम के सदस्य अन्ना की पिटाई हुई ही नहीं थी। ये अरुंधति रॉय के दोस्त अन्ना की पिटाई हुई थी।
अन्ना हजारे के साथ की वजह से भले ही प्रशांत भूषण की छवि दूसरी हो गई। और, उन्हें सम्मानित नजरों से देखा जाने लगा। लेकिन, ज्यादा समय नहीं हुआ जब प्रशांत भूषण को देखने के लिए सिर्फ विवादित नजरों का ही सहारा लेना पड़ता था। क्योंकि, बिना विवाद के प्रशांत भूषण का मतलब ही नहीं था। हाईप्रोफाइल मामलों के पीआईएल का विवाद हो या फिर। अमर सिंह सीडी विवाद। और, टीम अन्ना के सहयोगियों में अकेले अन्ना ही थे जिन्हें हमने कभी भी रामलीला मैदान या अन्ना आंदोलन की दूसरी कवरेज के दौरान तिरंगा लहराते नहीं देखा था। मतलब साफ है प्रशांत भूषण वैसे, तो तिरंगा लहराने का जिम्मा लेने की जरूरत रामलीला मैदान में किसी को थी ही नहीं। क्योंकि, भ्रष्टाचार से त्रस्त भारत बोल रहा था- मैं अन्ना हूं और वो, तिरंगा दूसरी आजादी के लिए लहरा रहा था। फिर भी किरन बेदी का लगातार 4-6 घंटे तक तिरंगा लहराना और जोर से अपनी खास आवाज में बोलना भारत माता की जय, वंदेमातरम् लोगों को अजब सा सम्मोहित कर रहा था।
·         आंदोलन बड़ा हो गया तो, कई तरह के विवाद आए कि ये संघ समर्थित था या नहीं। दिग्विजय सिंह फुल फॉर्म में आ गए। लगा इसी से कमाल कर देंगे। पुरानी आदत के मुताबिक, वो, कभी वो बात साबित करने की कोशिश करते हैं जिसका कोई पक्का सबूत उन्हें मिल नहीं रहा। वो, ये कि संघ आतंकवादी संगठन है। फिर कभी वो ये बात साबित करने की कोशिश करते हैं कि संघ, अन्ना के आंदोलन में शामिल है। जो, सब जानते हैं। उसके समर्थन में जो, चिट्ठी वो आज दिखा रहे हैं वो, पहले से ही मीडिया में है। और, चिट्ठी क्या, संघ प्रमुख से लेकर कई संघ नेताओं ने बाकायदा अन्ना आंदोलन का खुलेआम समर्थन किया था। अन्ना की दी गई सलाह अब सही लगने लगी है।

इस सबके बीच हिसार का लोकसभा उपचुनाव। यहां पहले से ही हवा ये बता रही थी कि लगभग तय है कि कुलदीप बिश्नोई ही जीतेंगे। हां, अन्ना टीम के आंदोलन से शायद उन्हें ज्यादा फायदा हो जाए। लेकिन, अचानक टीम अन्ना का हर मुद्दे पर टिप्पणी करने की लालसा आंदोलन पर भारी पड़ती दिख रही है। एक और बात जो, पहले दिन से खटकती थी कि शांति भूषण और प्रशांत भूषण पिता-पुत्र दोनों को अपने साथ टीम में रखना कितना सही है। लेकिन, सरकारी चालबाजियों और सरकारी वकीलों की टीम से निपटने के लिए ये फैसला ठीक लगने लगा था। जबकि, शांति भूषण और प्रशांत भूषण के अलावा टीम अन्ना का कोई सदस्या ऐसे विवाद में कभी नहीं रहा। जिससे भ्रष्टाचार के खिलाफ लड़ाई में जरा सा भी बाधा दिखी हो।
किरण बेदी और अरविंद केजरीवाल की ख्याति सबको पता है। ये दोनों चेहरे जाने ही जाते हैं भ्रष्टाचार के खिलाफ लड़ाई लड़ने के लिए। दोनों अपने पेशे में जब तक रहे ईमानदारी से जिया है। प्रशांत भूषण के साथ एक और जो, बड़ी वाली समस्या है वो, अन्ना को आगे और परेशान कर सकती है। क्योंकि, अन्ना को वो वाली बीमारी है जो, देश के कई तथाकथित बुद्धिजीवियों को बुरी तरह परेशान करती रहती है। और, इस परेशानी को दूर करने के लिए वो, सोचते हैं कि देश की जनता के खिलाफ कुछ ऐसा बोलते-करते रहा जाए जिससे उन्हें देश की जनता, मौका पड़ने पर लतियाए, जूतियाए और इस जूतियाए जाने से ग्लोबल इंडियन, बुद्धिजीवी बनकर अंतर्राष्ट्रीय मंचों पर जगह और पुरस्कारों की सूची में उनका नाम भी जुड़ जाए। ऐसा नहीं है कि ये बुद्धिजीवी हमेशा ही गलत बोलते हैं। ये सही मुद्दों पर भी आवाज उठाते रहते हैं जिससे लोग उनकी बात सुनते भी रहें। अरुंधति रॉय से लेकर प्रशांत भूषण तक यही जमात है।
·         खैर, अब तो, मुद्दा ये है कि प्रशांत भूषण की अतिबुद्धिजीवीपना और अरुंधति रॉय का दोस्ती, अन्ना के आंदोलन पर भारी पड़ चुकी है। अच्छा खासा भ्रष्टाचार के खिलाफ देश में माहौल बना है। इसमें क्या जरूरत थी प्रशांत भूषण को अतिबुद्धिजीवीपना दिखाने की। अन्ना ने भूषण के बयान से साफ किनारा कर लिया। सैनिक रहे अन्ना ने साफ कर दिया कि कश्मीर भारत का अभिन्न हिस्सा था, है और रहेगा। प्रशांत को मारने वाले के पर्चे में भी यही लिखा था। और, ये मारने वाले पिछले काफी समय से मैं अन्ना हूं की टोपी लगाए भ्रष्टाचार मुक्त, सशक्त भारत के लिए लड़ाई भी लड़ रहे थे। इसलिए मीडिया कृपया अब ये दिखाने से बचे कि अन्ना समर्थकों को श्रीराम सेना समर्थकों ने पीटा। और, अन्ना के लिए कठिन समय आ पड़ा है। उन्हें कुछ समय के लिए मीडिया का मोह छोड़ देना चाहिए और इस बात पर गंभीर विचार करना चाहिए कि प्रशांत भूषण जैसे ग्लोबल बुद्धिजीवी का साथ लंबे समय में उनकी लड़ाई में काम आएगा या नुकसान पहुंचाएगा।

Tuesday, October 04, 2011

50 घंटे, 12313 फीट की ऊंचाई चूमकर वापस

ये यात्रा बिल्कुल तय नहीं थी। सच तो ये था कि ये यात्रा हमारे मित्र मनीष शुक्ला की वजह से हुई। बहुत दिनों से मनीष कह रहे थे कि बद्रीनाथ दर्शन को जाना है। इच्छा हमारी भी थी लेकिन, परिवार के साथ। समस्या इसमें ये थी कि परिवार के साथ जाने के लिए समय ज्यादा चाहिए था। और, छोटे बच्चों को लेकर जाने के लिए अपनी मन:स्थिति के साथ बच्चों की स्थिति का भी ख्याल रखना था। तो, तय हुआ और हम दोनों मित्र निकल पड़े। शुक्रवार की रात 11.55 पर नई दिल्ली स्टेशन से दिल्ली-देहरादून एसी एक्सप्रेस से निकले। टिकट भी जुगाड़ डॉट कॉम से पक्का हुआ। ठीक चार बजे हम लोग हरिद्वार स्टेशन पर थे। अचानक नींद खुली तो, उठकर देखा तो, हरिद्वार आ गए थे। जल्दी से मनीष को भी जगाया और सीधे पहुंचे वेटिंग रूम में। टैक्सी वाला समय का पक्का था। फोन किया और वहीं वेटिंग रुम में फ्रेश हुए और चाय पीकर शुरू हो गई यात्रा।
बद्रीनाथ के रास्ते में भूस्खलन के बाद रास्ते की सफाई
ऋषिकेश से ऊपर डराने वाली सड़कों का डर मनोहारी दृश्य काफी कम कर देते हैं। हम लोग चूंकि समय से करीब पांच बजे हरिद्वार से निकल चुके थे इसलिए रास्ता खाली मिल रहा था। लेकिन, प्राकृतिक बाधाओं के निशान निरंतर मिल रहे थे। हां, अच्छी बात ये रही कि कहीं भी प्राकृतिक व्यवधान 5-10 मिनट से ज्यादा का नहीं रहा। सीमा सड़क संगठन के लोग किस तरह से काम कर रहे हैं। और, उनके काम की वजह से ही पहाड़ों में लोगों की सुखद, सुरक्षित यात्राएं संभव भी हैं। उनके काम को सलाम।
जेपी हाइड्रोप्रोजेक्ट के आसपास शानदार सड़कें
लेकिन, एक और बात जो, ज्यादातर गलत नजरिये से ही देखी जाती है। वो, है निजी कंपनियों को दिया जाने वाला काम। उत्तराखंड में जेपी ग्रुप कई बड़ी परियोजनाओं पर काम कर रहा है। जेपी के हाइड्रो पावर प्रोजेक्ट के आसपास पहुंचते ही खतरनाक पहाड़ों पर भी चिकनी मैदानों जैसी शानदार सड़क नजर आने लगती है। शायद उसके पीछे बड़ी वजह ये होगी कि छोटा हिस्सा उनके पास प्रबंधन के लिए है और वहां से मिलने वाले मुनाफे की वजह से वो, लगातार उसे बनाते रहते होंगे। लेकिन, मुझे लगता है कि अगर सरकारें निजी कंपनियों को प्रोजेक्ट देने के साथ उन पर ये दबाव भी निरंतर बनाए रखें कि वो, उस इलाके का बेहतर प्रबंधन करें और उन्हें सामाजिक सुरक्षा के साथ आधारभूत सुविधाएं देने की भी शर्त रखें तो, शायद सच में पब्लिक प्राइवेंट पार्टनरशिप का मतलब निकलकर आएगा। क्योंकि, प्राकृतिक संसाधनों से युक्त उत्तराखंड जैसे राज्य में पर्यटन ही वहां के लोगों की रोजी-रोटी का जरिया बनता है। अब अगर निजी कंपनियां आधारभूत सुविधाएं बेहतर करेंगी तो, निश्चित है पर्यटक भी ज्यादा आएंगे और स्थानीय लोगों की कमाई भी बढ़ेगी। वैसे, उत्तराखंड सरकार वहां के प्राकृतिक संसाधनों का दोहन करने में कमी नहीं छोड़ रही है। शायद जरूरत भी होगी। जेपी के अलावा जीवीके, जीएमआर और दूसरी कई कंपनियों के बोर्ड बद्रीनाथ के ही रास्ते में हमें दिख गए। ज्यादातर हाइड्रोपावर प्रोजेक्ट वाले ही थे। सरकारी कंपनी एनटीपीसी तो है ही।
बद्रीनाथ जाते समय श्रीनगर से आगे बन रहा बड़ा बांध
श्रीनगर के पास भी एक बड़ा बांध बन रहा है। समय की कमी की वजह से ये तो मैं नहीं जान पाया कि ये किसी निजी कंपनी के मुनाफे का जरिया बन रहा है या फिर सिर्फ सरकार और लोगों के सचमुच के साधन जुटाने की कोशिश है। वैसे, जितना बड़ा बांध बन रहा है जाहिर है, अबाध वेग से आती नदी को ऐसे रोकेंगे तो, भूस्खलन और दूसरी प्राकृतिक आपदाओं को निमंत्रण मिल ही जाएगा।

हेमकुंडसाहिब से श्रद्धालुओं को लेकर लौटता हेलीकॉप्टर

वैसे, उद्यमिता स्वभाव का हिस्सा होती है। कैप्टन गोपीनाथ याद हैं ना। अरे वही सबसे सस्ते हवाई सफर की शुरुआत करने वाले या यूं कहें कि रेल और बस से सफर करने वाले को हवाई सफर कराने वाले। कैप्टन गोपीनाथ की डेक्कन एयरवेज हालांकि, लिवलाइफ किंग साइज वाले वियज माल्या ने खरीद ली और उसे किंगफिशर रेड बनाकर लो कॉस्ट एयरलाइन बनाए रखा। अब सुन रहे हैं माल्या साहब को कम दाम वाली एयरलाइन शान पर धब्बा लग रही है इसलिए उसे खत्म कर रहे हैं। लेकिन, उद्यमी गोपीनाथ ने पहले कार्गो सेवा डेक्कन 360 शुरू की। और, अब बद्रीनाथ यात्रा के दौरान जब हवा में उड़ता हेलीकॉप्टर दिखा तो, गाड़ी रुकवाकर मैंने जानना चाहा कि किस कंपनी ने कहां के लिए ये हवाई सफर शुरू किया है। उतरते ही हेलीपैड के पास डेक्कन का बोर्ड दिखा। पूछा तो, पता चला वही बंगलुरू वाले कैप्टन गोपीनाथ हैं। अब छोटे जहाज से यात्रियों को करीब चार हजार में हेमकुंड साहिब के और नजदीक ले जाते हैं और वापसी का टिकट डिस्काउंट पर ढाई हजार में ही मिल जाता है। गोपीनाथ उद्यमी हैं। उन्हें पता है हेमकुंड साहिब के दर्शन को आने वाले लोगों के पास पैसे ज्यादा हैं और वक्त कम। देखिए कैप्टन साहब बद्रीनाथ, केदारनाथ कब तक लो कॉस्ट में हवाई सफर कराते हैं।

पाण्डुकेश्वर गेट पर केसर,शिलाजीत बेचता 14 साल का दिलीप
धंधा तो, फिर धंधा होता है। छोटा हो या फिर बड़ा। कैप्टन हवाई जहाज से आसमान तक हैं तो, पाण्डुकेश्वर में एक और उद्यमी मिला। 14 साल का दिलीप। वो, भी हवाई सफर कराने का यकीन दिलाता है। हालांकि, उसका धंधा थोड़ा अलग है। वो, केसर और शिलाजीत बेचता है। हमने गाड़ी का शीशा उतारा तो, दिल्ली कहने लगा- शिलाजीत जोड़ों और कमर के दर्द से मुक्ति दिलाता है। ये मार्केटिंग फंडा काम नहीं आया तो, उसने तुरंत अमोघ अस्त्र छोड़ा। मजा आ जाएगा साहब शिलाजीत खाने के बाद सेक्स पावर बढ़ जाता है। खैर, हमें तो सेक्स पावर बढ़ाने की इच्छा थी नहीं इसलिए बच गए। लेकिन, बहुतेरे होंगे जो, ये बिना सोचे कि अगर ये सच का केसर-शिलाजीत होता तो, ये इतने बुरे हाल में इसे बेचते क्यों फिरते, खरीद लेते होंगे। दिलीप ने हमारा सामान्य ज्ञान बढ़ाया कि शिलाजीत मतलब- पत्थर का पसीना। जाहिर है पत्थर का पसीना होगा तो, फिर ... । वैसे, पाण्डुकेश्वर में पुलिस वाले जानबूझकर गेट लगा देते हैं जिससे वहां के दिलीप जैसे धंधेबाजों को थोड़ा कमाई का मौका मिल जाए। इस गेट पर शॉल, कंबल सब मिलता है।
पीछे दिख रही इसी धर्मशाला में हम रुके
बद्रीनाथ किसी का स्थाई घर नहीं है। क्योंकि, जैसे ही बर्फ पड़नी शुरू होती है। बद्रीनाथ के कपाट बंद हो जाएंगे और, सेना वहां की धर्मशालाओं, घरों और दुकानों को सील करके अपना कैंप बना लेती है। वैसे, हर तरह के खाने, रहने का इंतजाम वहां है। ज्यादातर अच्छे आश्रम हैं जो, सचमुच उचित दर पर रहने का इंतजाम कर देते हैं। लेकिन, कई आश्रम ऐसे भी हैं जिनको सरकार ने वहां बड़ी जमीन आवंटित कर दी है और वो, डीलक्स, सुपर डीलक्स कैटेगरी के कमरे के किराए भक्तों से ग्राहक के अंदाज में ले रहे हैं। इस पर सरकार को ध्यान देना चाहिए। खैर, हमें सचमुच के आश्रम में जगह मिली। सुबह 5 बजे हरिद्वार से हम लोग निकले थे और रास्ते में एक जगह चाय और पीपलकोटी में खाना खाने के अलावा हम कहीं रुके नहीं थी। पाण्डुकेश्वर गेट पर थोड़ा और एकाध जगह तस्वीरें लेने में भले थोड़ी देर रुके हों या फिर भूस्खलन की वजह से। इस सबके बाद भी हम 5 बजते-बजते बद्रीनाथ पहुंच गए थे।
बद्रीविशाल के दर्शन के बाद मंदिर के बाहर
आश्रम में गए। फ्रेश हुए। फ्रेश होने के बाद तक वहां ठंड बढ़ चुकी थी। जैकेट तो, पहले ही हम पहन चुके थे। इनर की भी सख्त जरूरत महसूस होने लगी। पानी जहां भी छू रहा था लग रहा था वो, जगह सुन्न हो गई है। जल्दी से एक चाय पी गई और सीधे चल पड़े मंदिर की ओर। मंदिर के सामने तप्तकुंड का पानी कुछ ज्यादा ही गरम था। क्योंकि, शाम की वजह से लोग कम थे। वैसे, इस कुंड के बारे में मान्यता यही है कि ये पानी गरम कितना भी हो। शरीर जलता नहीं है और न ही छाले पड़ते हैं। हमें भी कुछ ऐसा ही अनुभव हुआ। हम लोगों ने स्नान किया। प्रसाद की थाली लेकर मंदिर में पहुंच गए। ऑफ सीजन होने से भीड़ नहीं थी। आराम से बद्रीविशाल के दर्शन हुए।
सुबह के दर्शन के बाद
दर्शन से लौटकर थोड़ी देर सामने की बाजार में घूमे और फिर सोने की कोशिश में लेट गए। जिससे सुबह जल्दी उठकर सुबह का एक दर्शन और कर लें। सुबह की आरती का रेट ज्यादा था तो, हम लोगों ने तय किया कि सामान्य दर्शन ही सुबह का करेंगे। साढ़े छे बजे के बाद सामान्य दर्शन शुरू हो जाता है। लेकिन, नींद सुबह करीब तीन बजे से ही खुल गई। क्योंकि, हम मंदिर के सबसे नजदीक की धर्मशाला/आश्रम में थे। सुबह तीन बजे से ही घंटे और मंत्रोच्चार से नींद खुल गई। लेकिन, हमें पता था कि साढ़े छे के पहले मंदिर पहुंचने का फायदा नहीं। इसलिए साढ़े पांच बजे उठे। ठंड भगाने के लिए एक चाय और फिर तप्तकुंड में स्नान और सुबह का भव्य दर्शन हुआ। दर्शन के बाद वापस आकर सामने के रेस्टोरेंट में आकर चाय पी और इडली सांभर नाश्ता किया। और, ठीक साढ़े सात बजे बद्रीनाथ से हरिद्वार के लिए निकल पड़े।
एकाधन जगह चाय पीने के बाद इस बार भोजन हम लोगों ने किया श्रीनगर में। श्रीनगर बड़ा सेंटर। विश्वविद्यालय होने की वजह से नौजवान नजर आते हैं। रौनक बनी रहती है। छात्र राजनीति के जरिए आगे बढ़ने की चाह रखने वाले छात्रनेताओं के पोस्टर भी दिखे। वहां से चले तो, ऋषिकेश के पहले एक और चाय पी। और, पांच बजे तक हरिद्वार में प्रवेश हो गया। हरिद्वार घुसते ही तेज बारिश। अब मुझे दिल्ली लौटना था और हमारे मित्र मनीष को लखनऊ। उन्हें वहां से जौनपुर लौटना था। पता किया गया। दिल्ली के लिए रात दस बजे की वॉल्वो थी और लखनऊ के लिए 9.50 की दून एक्सप्रेस। वॉल्वो का मैंने टिकट बुक कराया और जीआरपी सीओ की मदद से दून एक्सप्रेस का एक पक्का टिकट। रात ढाई बजे वॉल्वो ने मुझे वसुंधरा के सामने एनएच 58 पर उतार दिया। शुक्रवार की रात 11.55 पर दिल्ली से निकले और रविवार की रात 2.37 मिनट पर वसुंधरा गाजियाबाद वापस।
दरअसल, हरिद्वार में एक बार रुकने की इच्छा भी हो रही थी थकान की वजह से। लेकिन, अगले दिन सोमवार को शहर में 32 रुपए और गांव में 26 रुपए रोजाना से ज्यादा कमाने वाले को गरीबी रेखा से ऊपर बताने वाले अपने हलफनामे पर योजना आयोग के उपाध्यक्ष मोंटेक सिंह अहलूवालिया, ग्रामीण विकास मंत्री जयराम रमेश के साथ मिलकर सफाई पेश करने वाले थे। इसलिए हरिद्वार रुकने का जो, थोड़ा मन भी बना था वो, रद्द हुआ। हालांकि, मोंटेक, जयराम की सफाई और भ्रम फैला गई।

हिन्दू मंदिर, परंपराएं और महिलाएं निशाने पर क्यों

हर्ष वर्धन त्रिपाठी Harsh Vardhan Tripathi अभी सकट चौथ बीता। आस्थावान हिन्दू स्त्रियाँ अपनी संतानों के दीर्घायु होने के लिए निर्जला व्रत रखत...