Thursday, September 17, 2020

गांधी के बाद जनजुड़ाव वाले सबसे बड़े नेता हैं नरेंद्र मोदी


 मोहनदास करमचंद गांधी आधुनिक भारत में सबसे ज्यादा जनजुड़ाव वाले नेता के तौर पर जाने जाते हैं। उस समय कोई सर्वे या पोल नहीं होता था, लेकिन आज जैसे संचार माध्यमों के न होने के बावजूद अंग्रेजों को भारत छोड़ने के लिए मजबूर करने की ताकत गांधी जी को उसी जनजुड़ाव से मिली और इसीलिए गांधी जी हमेशा एक बात पर स्पष्ट रहते थे कि अपना समाज विभाजित रहेगा तो हम एकजुट होकर अंग्रेजों के खिलाफ संघर्ष नहीं कर सकते। छुआछूत के खिलाफ 1933 में गांधी जी ने स्वयं की शुद्धि के लिए 21 दिनों का उपवास किया था और हरिजन नामक एक साप्ताहिक पत्रिका भी निकाली थी। स्वच्छता पर गांधी जी का जोर इन्हीं सब वजहों से था। जनजुड़ाव की उस शैली को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने आगे बढ़ाया है क्योंकि उन्हें पता था कि देश की समस्याओं का समाधान तक न पहुंच पाने की सबसे बड़ी वजह राजनेताओं पर जनता का भरोसा न होना है और, जनजुड़ाव की इस निरंतरता को प्रधानमंत्री बनने से पहले ही नरेंद्र दामोदरदास मोदी ने अपने जीवन का अभिन्न अंग बना लिया था। इसमें राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के प्रचारक के तौर पर बीता उनका जीवन विशेष स्थान रखता है। राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के प्रचारक रहने के दौरान देश की असली समस्याओं को उन्होंने बहुत नजदीक से देखा और उनके रास्ते में आने वाली बाधाएं भी उन्हें पता थीं, इसीलिए पहले गुजरात के मुख्यमंत्री के तौर पर और बाद में देश के प्रधानमंत्री के तौर पर उन्हें क्या करना है, यह स्पष्ट था। 

भ्रष्टाचार के बिना कोई नेता हो सकता है, सार्वजनिक जीवन जी सकता है, कल्पना में भी ऐसा सोचना भारतीयों को कठिन लगता था जब राजनीतिक तौर पर नरेंद्र मोदी सक्रिय हो रहे थे। नेताओं के घर-परिवार, और संबंधियों का भ्रष्टाचार सामान्य चर्चा का हिस्सा रहते थे, ऐसे समय में नरेंद्र मोदी ने देश को यह आश्वस्त करने में सफलता प्राप्त कर ली कि देश में नेता ईमानदार भी हो सकता है। आजाद भारत की पहली सरकार से घोटालों की खबरें सुनते भारतीयों को भरोसा देने वाली यह सबसे बड़ी बात थी। इसके बाद नरेंद्र मोदी ने उन मुद्दों पर काम करना शुरू किया, जिसे लेकर भारतीय चौक-चौराहों-नुक्कड़ पर बात करते थे और यह कहते हुए उठ जाते थे कि इसका समाधान नहीं है, इसी के साथ जीना होगा। महात्मा गांधी के लिए यह अच्छा था कि अंग्रेजों से लड़ाई में उन्हें भारतीयों को एकजुट करने की बुनियाद स्वत: मिली थी, लेकिन नरेंद्र मोदी की मुश्किल गुजरात के मुख्यमंत्री से लेकर भारत के प्रधानमंत्री बबनने तक यही थी कि देश में सांप्रदायिक और जातीय विभाजन सुरसा के मुंह की तरह बड़ा ही होता जा रहा था और ऐसे में देश की मूल समस्याओं पर बात करने का साहस दिखाना कठिन था। विपक्षी नेता के तौर पर हर समस्या पर जनकर भाषण करना बेहद आसान रहता है, लेकिन मुख्यमंत्री, प्रधानमंत्री के तौर पर समस्या का समाधान ही भरोसा देता है। इसकी शुरुआत 2001 में भुज भूकंप के बाद उस शहर के पुनर्निर्माण से हुई थी। जब पूरा शहर तबाह हो गया था और केशुभाई पटेल के बाद नरेंद्र मोदी को गुजरात का मुख्यमंत्री बनाया गया। मोटरसाइकिल पर पीछे बैठकर भुज की तबाह गलियों में जाने वाली मोदी की तस्वीरें गुजरातियों के दिल को छू गईं थीं। गुजरातियों का भरोसा जीतने की वही सबसे पक्की बुनियाद थी। इसके बाद अवैध शराब भट्ठियों से साबरमती रिवरफ्रंट बन जाना, कच्छ में रणोत्सव हो या फिर वाइब्रैंट गुजरात गुजरात मॉडल की बुनियाद मजबूत होती गई। गुजरात देश का पहला राज्य बना, जहां मुख्यमंत्री, सभी मंत्री और सभी अधिकारियों को गर्मी के समय 2 रातें गांव में गुजारना पड़ा, लेकिन गुजरात मॉडल को हमेशा गोधरा और गुजरात के दंगों से इस कदर जोड़ने की पुख्ता कोशिश होती रही कि दिल्ली आने पर प्रधानमंत्री के सामने नये सिरे से 6 करोड़ गुजरातियों जैसा भरोसा 135 करोड़ भारतीयों के मन में जमाने की थी।  

15 अगस्त के भाषण में स्वच्छता, शौचालय, बेटी बचाओ-बेटी पढ़ाओ जैसे अभियान की शुरुआत की बात होगी, यह कल्पना देश में किसी को नहीं थी। यह चर्चा तो चौक चौराहों पर प्रतिदिन यह कहते शुरू और खत्म होती थी कि इसका कोई समाधान नहीं है और जब नरेंद्र मोदी ने झाड़ू उठाई तो इसका मजाक भी खूब बना, लेकिन आज स्वच्छता को लेकर देश की संवेदनशीलता विश्व पटल पर चर्चा में है। हिन्दुओं, भारतीयों की आस्था का भी सेक्युलरिज्म की आड़ में खूब मजाक सरकारी तौर पर बनाया जाता रहा। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने फर्जी सेक्युलरिज्म को ओढ़ने से इनकार कर दिया। दुनिया भर के राष्ट्राध्यक्ष भारत आए तो उन्हें भारत की असली पहचान, संस्कृति से परिचित कराया। प्रयागराज में हुए महाकुम्भ में संगम स्नान की तस्वीरें हर आस्थावान हिन्दू के मन में बसीं, लेकिन उससे भी ज्यादा प्रभाव उस चित्र ने पैदा किया, जिसमें प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी सफाईकर्मियों के पांव पखार रहे थे। कतार में खड़े जिस आखिरी व्यक्ति की बात महात्मा गांधी करते थे, पंडित दीनदयाल उपाध्याय के एकात्म मानव दर्शन में जिस व्यक्ति का चित्र दिखता है, बाबा साहब जिस वंचित, शोषित की लड़ाई की बात करते थे, उसी को नरेंद्र मोदी सरकार की नीतियां मजबूत कर रहीं थीं। इसीलिए उज्ज्वला योजना का प्रभाव पत्रकारों को तब समझ में आया, जब नतीजे आ गये। अभी प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने पौने दो लाख लोगों को प्रधानमंत्री आवास योजना ग्रामीण के जरिये घर दिया। यह सारे घर चाइनीज वायरस की मुश्किल के दौरान तैयार हुए हैं। विद्वानों, पत्रकारों, राजनीतिक विश्लेषकों को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का हर भाषण दोहराव लगता है, लेकिन प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को पता है कि यही समस्याएं हैं, जो भारतीय प्रतिदिन चौक-चौराहे पर बैठे भारतीयों की चर्चा का केंद्रबिंदु होती हैं और उन्हें लगता है कि यह समस्याएं कभी खत्म नहीं होने वालीं। इसलिए उन समस्याओं को खत्म करने की बात मोदी जब भाषण में करते हुए बताते हैं तो समस्या से मुक्त हुआ कतार में खड़े आखिरी व्यक्ति का मोदी पर भरोसा और बढ़ जाता है। 

मन की बात भी जनजुड़ाव का अनूठा कार्यक्रम है। राजनीति के शीर्ष पर बैठे व्यक्ति की पूर्ण रूप से सामाजिक चर्चा, पारंपरिक, सड़ी-गली राजनीति से ऊबे भारतीयों को ताजा हवा के झोंके की तरह लगती हैं। ऐसा नहीं हैं कि यह सारे अवसर पहले के नेताओं के पास नहीं थे, लेकिन एक या कई वजहों से पहले के नेता इसे छोड़ते चले गये और मोदी ने उन्हीं रास्तों पर चलकर देश का भरोसा जीत लिया। नरेंद्र मोदी गुजरात से देश के नायक यूं ही नहीं बन गये, इसे समझने के लिए उनके व्यक्तित्व और उनके व्यवहार का आंकलन ठीक से किया जाना चाहिए जो शायद अभी उनके प्रधानमंत्री रहते ईमानदारी से नहीं किया जाता है, लेकिन निश्चित तौर पर भारतीय इतिहास में महात्मा गांधी के बाद नरेंद्र मोदी को सर्वाधिक जनजुड़ाव वाले नेता के तौर पर स्थान मिलेगा।

हिन्दू मंदिर, परंपराएं और महिलाएं निशाने पर क्यों

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