Sunday, August 10, 2008

क्या आपके यहां बेटी का पैर छुआ जाता है

आप लोगों में से कितने लोगों के यहां बेटियों का पैर छुआ जाता है। यानी, मां-बाप अपनी बेटी से पैर छुआते नहीं हैं। बल्कि, खुद उनका पैर छूते हैं। सामान्य तौर पर हो सकता है कि मां-बाप बेटी के पैर न छूते हों। लेकिन, याद करके बताइए शादी के समय जब पिता लड़की का कन्यादान करता है तो, क्या उसके बाद पिता, बेटी और दामाद का पांव पूजता है।

और, कितने लोगों के यहां ये और आगे जाता है। यानी शादी के बाद भी लड़की-दामाद का पैर छूते हैं। आप सभी लोगों से मैं जानना चाहता हूं कि आपके ये रस्म किस तरह से है। शादी की सबसे जरूरी रस्म कन्यादान के बाद पांव पूजने की रस्म होती है या नहीं। बताइएगा जरूर। क्योंकि, उसके बाद मैं अपनी अगली पोस्ट में इस पर और विस्तार से चर्चा करने वाला हूं।

20 comments:

  1. jee narmdet braman parivaaron men
    betiyon ke pair chhue jaate hain
    damad ke saath aai betee kaaswagat ghar kaa har purush maan,badi bahan,usake charn shparsh kar ke karaten hai jabaki daamad sasuraal men sabhee sarhajon,saas,saali,ke charn sparsh karaten hain
    ab post likhie

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  2. मे पंजाब से हू, ओर पुरे पंजाब मे लडकियो से पाव नही छुयाए जाते, लेकिन लडकी के मां बाप भी कभी भी लडकी के या दामद के पाव नही छुटे, हा दामाद अपने सास ससुर के पाव जरुर छुता हे.

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  3. हर्ष जी मैंने तो बेटी को मान-बाप के पाँव छूते हुए सिर्फ़ फिल्मों में देखा है.

    अच्छा सवाल है - आपकी अगली पोस्ट की प्रतीक्षा रहेगी.

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    1. Purvi uttar pradesh mai bhi beti maa baap bhai sabke pair chhuti h

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  4. हमारे यहाँ तो नहीं छूते-मगर मध्य प्रदेश में कई जगह यह रिवाज है.

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  5. Anonymous8:38 AM

    kayastho mae yae hota haen
    kanyadan par maat pita putri aur damad kae paer chhutaey haen . phearo kae baad jab asshirvaad laetaa haen nav vivahit jodaa to ladki waalo kae paaer nahin chhutaa . shadi kae baad to maen kanya kae mat pita ko beti damad kae paer chutaey nahin daelha laekin woh apne paer chunaey bhi nahin daete aur kewal naati hii unkae paer chu sakta haen naatin ko bhi yae adhikaar nahin haen

    maerii nazar mae yae sabse vidrup paramparaa haen

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  6. हमारे पूर्वी उत्तर प्रदेश और बिहार में शादी के समय लड़की के माँ-बाप एक साथ अपनी बेटी और दामाद का न सिर्फ पैर छूते हैं बल्कि पाँव भी पखारते (धोते) हैं। यह कन्या-दान की रस्म के समय ही होता है। इससे पहले तिलक के समय भी लड़की का भाई (छोटा या बड़ा)अपने बहनोई का पाँव पखारता है। शादी हो जाने के बाद आने-जाने के अवसर पर उम्र या पद में छोटे लोग बड़ों का पैर छूते हैं। हाँ, बेटियों का पैर छूकर उनके आशीर्वाद से लक्ष्मी की कृपा अर्जित करने का विश्वास भी बहुतों में है। ऐसे लोग अल्पवयस्का कुँवारी कन्याओं के पैर भी छूकर आशीर्वाद माँगते मिल जाते हैं। हमारे यहाँ घर की बहुएं अपनी ननद (छोटी या बड़ी) का पैर छूती हैं

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  7. हमारे मामा जी व चाचा जी आज भी कहीं बाहर आते जाते वक़्त घर के बड़ों के साथ सभी लड़कियों व महिलाओं के पैर छूते हैं ।

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  8. नहीं हमारे यहाँ तो यह रिवाज नहीं किंतु मध्यप्रदेश में कई स्थलों पर यह मैने देखा है।


    ***राजीव रंजन प्रसाद

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  9. झारखण्ड का कोयलांचल के इलाके में शादी से पहले और बाद दोनों समय लड़की और दामाद ही पिता के पैर छूती है

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  10. पूर्वी उत्तर प्रदेश से हूँ. हमारे यहाँ कन्यादान से पहले लड़की और दामाद का पैर (पखारने) धोने का रिवाज है. सामान्य तौर पर किसी त्यौहार या अन्य अवसर पर भी लड़कियों का पैर छूया जाता है.

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  11. मेरे मातापिता जो उत्तराखंडी कुमाऊँनी हैं, लड़की के माता पिता कन्यादान के बाद वर वधू के पैर छूते हैं। इसका कारण उस समय उन्हें लक्ष्मी नारायण मानना बताया गया। परन्तु यदि ऐसा है तो फिर अन्य लोगों जैसे वर के माता पिता के लिए भी तो लक्ष्मी नारायण होंगे। मुझे वृद्ध पूजनीय माता पिता से यह कराना सही नहीं लगा। सो पहले से मना कर दिया था। हमने भी अपनी बेटियों के विवाह में ऐसा नहीं किया।
    कुमाऊँ में जैसे घर के पुत्र माता पिता व अन्य बड़ों के पैर छूते हैं वैसे ही पुत्रियाँ भी छूती हैं सिवाय विवाह के एक अवसर के मातापिता या कोई भी बड़ा पुत्रियों के पैर नहीं छूता। (यह जानकारी मेरी है़ गलत भी हो सकती है। जो अपने घर में देखा वह बताया है।)
    हाँ, नवरात्रियों में छोटी लड़कियों को जब भोजन खिलाते हैं तब उनके पैर धोए जाते हैं।
    घुघूती बासूती

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  12. हमारे यंहा भी बेटियों का पैर नहीं छुआ जाता.
    और नहीं बेटों का छुआ जाता है.

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  13. बिहारी हूँ .पर सम्पूर्ण बिहार के रिवाज़ से परिचित हूँ नही . सीतामढी , शिवहर ,दरभंगा ,मधुबनी ,मुजफ्फरपुर ,समस्तीपुर , दोनों चंपारण तक शायद एक ही रिवाज़ चलता हो .
    यहाँ कन्यादान के वक्त बेटी दामाद दोनों के पैर पूजा का रश्म है .जल पुष्प अक्षत चंदन अर्पित होते हैं .पर विदाई के समय बेटी और दामाद सभी बड़ों का आशीर्वाद उनके पैर छूकर ही लेते हैं . कन्या पूजन के अवसर को छोड़ दें तो सारी जिदगी उम्र और रिश्ते में छोटे हमेशा बड़ों का पैर छूते हैं .

    पैर पूजने का अर्थ भरपूर सम्मान देना होता है ,और सम्मान प्रचुर मात्रा में बेटी और दामाद दोनों को जीवन पर्यंत दी जाती है . हर बेटी को सीता और हर दामाद को राम जैसा सम्मान मिलता है .

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  14. humare yaha bhi beti damad ke pair chue jate hai lekin mai iske sakht khilaaf hu kanya ke mata pita bhi var ke ma-baap ke barabar hi samman ke patra hai maine soocha tha ki mai apni shadi me pair pujne ki ye rasam nahi hone dungi koi bhi sudhar sabse pehle apne se hi shuru hona chahiye isi wagah se maine aarya samaj riti se shadi rakhi lekin mere sasural ki taraf se sanatani riti se sari rasme hui mai chahte hue bhi kuch nahi kar payi koshish karungi ki mai apne bete ki shadi me ye na hone du mai apne mata pita ke pair chuti hu ab to mere pati bhi unke pair chune lage hai.

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  15. Mai chitrakoot up se hu hamare haha betimes ko Janm se betimes ko ka nga lami manate hai said home party damage ko Narayan Samajh ker jeevan bhar samman determined hai

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  16. हा सर् हुमारे यहाँ ये रस्म होती है और शादी बाद भी बेटी और दामाद के पैर छुए जाते है बड़े बूढ़े छोटे सभी बेटी दामाद के पैर छुटे है।
    और इसे जीवन भर निभाया जाता है। जबकि मध्य प्रदेश के ही रेवा सतना तरफ खास तौर से मैंने ठाकुरों में देखा है कि वहां ये नही होता हर 50-100 किलोमीटर पेर ये परंपराएं बदलती जाती है ऐसा प्रतीत होता है।
    होशंगाबाद, मध्यप्रदेश

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  17. कन्यादान के समय बेटी और दामाद के पैर छूना अधिकांशतः पाया गया है। सामान्यकाल में बेटी दामाद के पैर छूना मन बुद्धि से उसी दृष्टि का विस्तार है, जो हर क्षण हृदय में विद्यमान है।
    अर्थात कर्म और विचार का उत्तम सामञ्जस्य / एकीकरण।
    अन्यथा ढकोसला/HIPPOCRICY.

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  18. कन्यादान के समय बेटी और दामाद के पैर छूना अधिकांशतः पाया गया है। सामान्यकाल में बेटी दामाद के पैर छूना मन बुद्धि से उसी दृष्टि का विस्तार है, जो हर क्षण हृदय में विद्यमान है।
    अर्थात कर्म और विचार का उत्तम सामञ्जस्य / एकीकरण।
    अन्यथा ढकोसला/HIPPOCRICY.

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