Tuesday, October 30, 2007

महाराष्ट्र में महा "माया" की आहट

उत्तर प्रदेश विधानसभा में बसपा के कब्जे के बाद मुंबई में जगह-जगह नीले निशान नजर आने लगे। फ्लाईओवर और चौराहों पर नीले रंग से उत्तर प्रदेश के बाद अब दिल्ली-महाराष्ट्र की बारी है, लिखा दिखने लगा। वैसे तो, ये अकसर होता है कि किसी राज्य में पार्टी का मुख्यमंत्री बनने पर दूसरे राज्यों में भी उस पार्टी के कार्यकर्ता अपनी थोड़ी उपस्थिति दर्ज कराते हैं। लेकिन, इस बार मामला थोड़ा अलग है। उत्तर प्रदेश से सटे होने की वजह से दिल्ली मे बसपा के झंडे लगी गाड़ियां अब घूमती हुई मिल भी जाती हैं। लेकिन, मायावती की असल नजर महाराष्ट्र पर है और मायावती ने इसकी तैयारी भी शुरू कर दी है।

उत्तर प्रदेश की मुख्यमंत्री बनने के बाद से मायावती ने महाराष्ट्र के लिए अपनी जमीन मजबूत करनी शुरू कर दी थी। यही वजह थी कि रिपब्लिकन पार्टी ऑफ इंडाय यानी RPI के अध्यक्ष रामदास अठावले के बुलाने पर भी मायावती उनके सम्मेलन में नहीं आईं। मायावती का इरादा साफ है दलित नेता के तौर पर देश में वो किसी और के साथ मंच साझा नहीं करना चाहतीं। सत्ता के लिए दूसरी जातियों के साथ समीकरण बिठाने का उत्तर प्रदेश का आजमाया दांव वो महाराष्ट्र में भी खेलने जा रही हैं। फर्क सिर्फ इतना होगा कि महाराष्ट्र में मायावती ब्राह्मण-दलित के साथ अन्य पिछड़ी जातियों को भी अपने साथ जोड़ने की कोशिश करेंगी। यहां मुलायम जैसा पिछड़ों का कोई एक नेता न होने का लाभ मायावती लेना चाहती हैं। और, मायावती पिछड़ी जातियों में भी जो ज्यादा दबी हुई जातियां हैं, उन्हें पटाने की है। क्योंकि, पिछड़ी जातियां शिवसेना-एनसीपी-कांग्रेस में बंटी हुई हैं। खैरलांजी हत्याकांड जैसे मामले मायावती के राज्य में आने की अच्छी जमीन तैयार कर चुके हैं। उत्तर प्रदेश के कानपुर में अंबेडकर की मूर्ति का सिर टूटने के बाद उत्तर प्रदेश से ज्यादा तगड़ी प्रतिक्रिया महाराष्ट्र में हुई थी। जिससे एक बात तो, साफ है दलितों को नेता मिलने भर की देर है जो, शिवसेना-एनसीपी-कांग्रेस के क्षत्रपों को उन्हीं की भाषा में जवाब दे सके। और, मायावती इस काम में माहिर हैं, इसमें किसी को शक नहीं होना चाहिए।

साथ ही मायावती के खेल में बिहार-उत्तर प्रदेश से आकर महाराष्ट्र में आकर बस गए लोग भी अच्छे से फिट हो रहे हैं। मराठियों के अलावा बाहर से आकर राज्य में बसने वाले करीब 10 प्रतिशत हैं। उत्तर प्रदेश में सत्ता आने के बाद वहां से आए हुए परिवारों में आसानी से बसपा की वकालत करने वाले लोग भी मिल जाएंगे। बाहर से आए लोग जिस तरह से शिवसेना-महाराष्ट्र नवनिर्माण सेना के निशाने पर रहते हैं, उससे मायावती को इन्हें इकट्ठा करने में आसानी होगी। मायावती अपनी शुरुआत उन दस लाख दलितों-बौद्धों से करना चाह रही हैं। जो, अभी उहापोह की स्थिति में हैं। रामदास अठावले की RPI का कैडर मायावती के लिए ही मजबूत आधार बनता दिख रहा है। पंचायत चनावों में बसपा के पक्ष में ये बदलाव साफ दिखा। कई जिला परिषद और पंचायत समितियों में भी लाल झंडा लहरा रहा है। बसपा अकेले लड़कर म्युनिसिपल काउंसिल की 24 सीटें जीतने में कामयाब हुई है। म्युनिसिपल कॉरपोरेशन में भी उसे 20 सीटें मिली हैं। हालांकि, सीटों के लिहाज से ये कोई खास संख्या नहीं हैं। लेकिन, शून्य से मायावती के लिए विधानसभा चुनाव के लिए अच्छे संकेत माने जा सकते हैं।

मायावती ने सामाजिक जोड़तोड़ भी शुरू कर दी है। महाराष्ट्र में ब्राह्मण और ऊंची जातियां चार प्रतिशत से कुछ ज्यादा ही हैं लेकिन, मायावती ने इनके बड़े हिस्से को पटाने की मुहिम शुरू कर दी है। मायावती ब्राह्मणों की एक बड़ी रैली दिसंबर में करने वाली हैं। नासिक के एक प्रभावी ब्राह्मण महंत सुधीरदास बसपा के लिए रणनीति तैयार करने में लगे हैं। कुल मिलाकर मायावती ने अपनी तरफ से महाराष्ट्र में एक नए ध्रुवीकरण की मजबूत तैयारी कर ली है। लेकिन, मायावती के लिए महाराष्ट्र में आने वाले विधानसभा चुनाव में बहुत अच्छे परिणाम की उम्मीद इसलिए नहीं की जा सकती क्योंकि, यहां उत्तर प्रदेश की तरह ध्रुवीकरण नहीं है। सामाजिक समीकरण भी वहां से बहुत अलग हैं। लेकिन, इतना तो तय है कि ये चुनाव महाराष्ट्र में ‘माया’ के आने वाले समय के संकेत तो दे ही जाएंगे।

3 comments:

  1. सवर्णों को बुरा भला कहने वाली मायावती अब उन्हीसे अपनी स्ट्रेटेजी तस्सार करवा रहीं हैं । दो नावों पर सवारी महंगी बी पड सकती है ।

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  2. तस्सार नही तय्यार

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  3. अच्छा विश्लेषण है. मेरा सिर्फ़ इतना कहना है कि माया की राजनीति अन्य दलों की अपेक्षा अधिक स्पष्ट है. आगे चलकर उन्हें भी कांग्रेस या भाजपा का चोला पहनना पड़ सकता है. फिलहाल महाराष्ट्र में रिपब्लिकन दलों की आपसी फूट का फायदा उन्हें मिलना ही है, और मिलना भी चाहिए, क्योंकि उन्होंने यूपी में सरकार बनाकर दिखा दी जबकि महाराष्ट्र में आरपीआई वाले 'दाल में नमक' जितना असर भी नहीं रखते.

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