आपको लग रहा होगा ये कौन सी नई बात है। लेकिन, अब ये कानून बनने जा रहा है, बच्चे के पैदा होते देश का नागरिक होने के नाते उसे जो, पहला अधिकार मिलेगा वो, होगा मां के दूध का। नेशनल कमीशन फॉर द प्रोटेक्शन ऑफ चाइल्ड राइट्स इसे कानून बनाने के लिए पूरी तैयारी कर चुका है। कमीशन 6 साल से छोटे बच्चों के अधिकारों के लिए ऐसे कानून बनाने का प्रस्ताव कर रहा है।
दरअसल सरकार के पास जो रिपोर्ट है उसके मुताबिक, भारत में पैदा होने वाले सिर्फ 23 प्रतिशत बच्चों को ही पैदा होने के घंटे भर में मां का दूध मिल पाता है। और, 46 प्रतिशत ही बच्चे होते हैं जिनको पहले छे महीने तक मां का दूध पीने को मिल पाता है। नेशनल कमीशन फॉर द प्रोटेक्शन ऑफ चाइल्ड राइट्स चाहता है कि बच्चे को ज्यादा से ज्यादा समय तक मां का दूध पीने को मिले। क्योंकि, बाहर का दूध बच्चे की सेहत के लिए बहुत अच्छा नहीं होता है।
वैसे अभी के कानून के मुताबिक भी गर्भवती महिला को शिक्षित करने के लिए बच्चे के मां के दूध के फायदे बताना जरूरी है। साथ ही बच्चे को पैदा होने के घंटे भर के भीतर मां का दूध पिलाने की जिम्मेदारी नर्स की होगी। कानून में बदलाव के जरिए मैटरनिटी बेनिफिट एक्ट 1961 में बदलाव करके मैटरनिटी लीव 3 महीने से बढ़ाकर 6 महीने करने का भी प्रस्ताव है। वजह ये कि बच्चे को नियमित तौर पर 6 महीने तक मां का दूध पीने को मिलेगा। ज्यादातर डॉक्टर भी बच्चे को 6 महीने तक मां का दूध पिलाने की सलाह देते हैं।
वैसे मां-बच्चे के रिश्ते में कानून की दखलंदाजी ठीक तो नहीं लगती। लेकिन, जिस तरह से आज के भागमभाग वाले युग में मां बच्चे को जन्म देने के 15 दिन बाद फिर से ऑफिस के काम में जुट जाती है। हफ्ते-हफ्ते भर मां-बाप व्यस्तता की वजह से बच्चे को समय नहीं दे पाते। बच्चे को माता-पिता की संयुक्त भारी कमाई से मोटा जेब खर्च तो मिल जाता है लेकिन, समय नहीं मिल पाता। ऐसे में शायद इस कानून की वजह से ही कम से कम 6 महीने तक मां-बच्चे का भावनात्मक रिश्ता और मजबूत होगा। साथ ही जवान भारत भी मजबूती से दुनिया का मुकाबला कर सकेगा। और, दुनिया किसी भारतीय के बच्चे को ये चैलेंज तो नहीं ही कर सकेगी कि मां का दूध पिया है तो, सामने आ जा।
दरअसल सरकार के पास जो रिपोर्ट है उसके मुताबिक, भारत में पैदा होने वाले सिर्फ 23 प्रतिशत बच्चों को ही पैदा होने के घंटे भर में मां का दूध मिल पाता है। और, 46 प्रतिशत ही बच्चे होते हैं जिनको पहले छे महीने तक मां का दूध पीने को मिल पाता है। नेशनल कमीशन फॉर द प्रोटेक्शन ऑफ चाइल्ड राइट्स चाहता है कि बच्चे को ज्यादा से ज्यादा समय तक मां का दूध पीने को मिले। क्योंकि, बाहर का दूध बच्चे की सेहत के लिए बहुत अच्छा नहीं होता है।
वैसे अभी के कानून के मुताबिक भी गर्भवती महिला को शिक्षित करने के लिए बच्चे के मां के दूध के फायदे बताना जरूरी है। साथ ही बच्चे को पैदा होने के घंटे भर के भीतर मां का दूध पिलाने की जिम्मेदारी नर्स की होगी। कानून में बदलाव के जरिए मैटरनिटी बेनिफिट एक्ट 1961 में बदलाव करके मैटरनिटी लीव 3 महीने से बढ़ाकर 6 महीने करने का भी प्रस्ताव है। वजह ये कि बच्चे को नियमित तौर पर 6 महीने तक मां का दूध पीने को मिलेगा। ज्यादातर डॉक्टर भी बच्चे को 6 महीने तक मां का दूध पिलाने की सलाह देते हैं।
वैसे मां-बच्चे के रिश्ते में कानून की दखलंदाजी ठीक तो नहीं लगती। लेकिन, जिस तरह से आज के भागमभाग वाले युग में मां बच्चे को जन्म देने के 15 दिन बाद फिर से ऑफिस के काम में जुट जाती है। हफ्ते-हफ्ते भर मां-बाप व्यस्तता की वजह से बच्चे को समय नहीं दे पाते। बच्चे को माता-पिता की संयुक्त भारी कमाई से मोटा जेब खर्च तो मिल जाता है लेकिन, समय नहीं मिल पाता। ऐसे में शायद इस कानून की वजह से ही कम से कम 6 महीने तक मां-बच्चे का भावनात्मक रिश्ता और मजबूत होगा। साथ ही जवान भारत भी मजबूती से दुनिया का मुकाबला कर सकेगा। और, दुनिया किसी भारतीय के बच्चे को ये चैलेंज तो नहीं ही कर सकेगी कि मां का दूध पिया है तो, सामने आ जा।
अच्छी जानकारी दी आपने.धन्यवाद.
ReplyDeleteकानून बनाने से तो होने से रहा कुछ। कानून लागू कैसे होगा!
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ReplyDeleteकानून से ज्यादा जागरुकता की जरुरत है और ऐसे कुछ अभियान की जो यह बताये कि फीगर मेन्टेनेंस फीड करने के साथ साथ भी किया जा सकता है.
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