अच्छा हुआ प्रियदर्शन ने इस बार सिर्फ कॉमेडी नहीं बनाई। ज्यादातर फिल्म समीक्षक भूलभुलैया को एक ऐसी फिल्म बता रहे हैं जो, कॉमेडी और थ्रिलर के बीच फंसी है। किसी ने इसे 2 से ज्यादा रेटिंग देना भी ठीक नहीं समझा। लेकिन, मुझे लगता है कि लोगों को हंसाने की गारंटी देने वाली प्रियदर्शन की फिल्मों में भूलभुलैया एक अलग किस्म की सार्थक फिल्म की श्रेणी में शामिल हो जाएगी।
फिल्म की कहानी की अच्छी बात ये है कि शुरुआत से आप इस फिल्म की कहानी का बहुत साफ-साफ अंदाजा नहीं लगा सकते। फिल्म दर्शकों को अच्छे से बांधे रखती है। कहीं हंसाती है, कहीं-कहीं डराती भी है। फिल्म के कई चरित्रों पर दर्शकों का संदेह बार-बार पुख्ता करती रहती है। लेकिन, फिल्म की जो, सबसे अच्छी बात मुझे लगी, वो ये कि फिल्म ने बड़े सलीके से भूत-प्रेत-ओझा-बाबा को खारिज किया है।
शाइनी आहूजा और विद्या बालन के महल में पहुंचने से लेकर महल के भूत को भगाने के लिए आने वाले आचार्य तक हर जगह फिल्म ने वहम को दूर करने की कोशिश की है। अंधविश्वास को तोड़ने की कोशिश की है। कहानी में हर मोड़ पर लगता था कि ये कहानी किसी राजमहल में सत्ता हासिल करने के लिए रची गई साजिश की कहानी भर रह जाएगी। लेकिन, प्रियदर्शन सबको बार-बार चौंकाते रहे।
विद्या बालन को मानसिक बीमारी और उसके इलाज के लिए आचार्य की मदद, अनूठा प्रयोग सिर्फ फिल्म में अक्षय कुमार ने ही नहीं किया है। उससे बड़ा प्रयोग प्रियदर्शन ने इस विषय पर फिल्म बनाकर की है। परेश रावल और असरानी को महल में भूत दिखने से लेकर फिल्म के अंत तक सब साफ-साफ दिख रहा था कि कम से कम भूत प्रेत तो कुछ होते ही नहीं हैं। भूत भगाने आए आचार्य भी मनोचिकित्सा पर अमेरिका में लंबे-चौड़े भाषण देकर लौटे हैं।
कुल मिलाकर भूलभुलैया अंधविश्वास पर एक तगड़ी चोट है। साथ ही इस फिल्म में परंपरा-आस्था बचाते हुए ये सब प्रियदर्शन ने किया है जो, ज्यादा बड़ी चुनौती थी। ढोल जैसी पकाऊ कॉमेडी के बाद प्रियदर्शन का ये अच्छा प्रयास है। मैं तो, सभी को ये सलाह दूंगा कि ये फिल्म जरूर देखकर आएं। क्योंकि, मुझे पूरी उम्मीद है कि इस फिल्म को देखने के बाद अंधविश्वास कुछ तो कम होगा ही। भूत-प्रेत मानने वाले कई लोगों की प्रेत बाधा भी दूर होगी।
फिल्म की कहानी की अच्छी बात ये है कि शुरुआत से आप इस फिल्म की कहानी का बहुत साफ-साफ अंदाजा नहीं लगा सकते। फिल्म दर्शकों को अच्छे से बांधे रखती है। कहीं हंसाती है, कहीं-कहीं डराती भी है। फिल्म के कई चरित्रों पर दर्शकों का संदेह बार-बार पुख्ता करती रहती है। लेकिन, फिल्म की जो, सबसे अच्छी बात मुझे लगी, वो ये कि फिल्म ने बड़े सलीके से भूत-प्रेत-ओझा-बाबा को खारिज किया है।
शाइनी आहूजा और विद्या बालन के महल में पहुंचने से लेकर महल के भूत को भगाने के लिए आने वाले आचार्य तक हर जगह फिल्म ने वहम को दूर करने की कोशिश की है। अंधविश्वास को तोड़ने की कोशिश की है। कहानी में हर मोड़ पर लगता था कि ये कहानी किसी राजमहल में सत्ता हासिल करने के लिए रची गई साजिश की कहानी भर रह जाएगी। लेकिन, प्रियदर्शन सबको बार-बार चौंकाते रहे।
विद्या बालन को मानसिक बीमारी और उसके इलाज के लिए आचार्य की मदद, अनूठा प्रयोग सिर्फ फिल्म में अक्षय कुमार ने ही नहीं किया है। उससे बड़ा प्रयोग प्रियदर्शन ने इस विषय पर फिल्म बनाकर की है। परेश रावल और असरानी को महल में भूत दिखने से लेकर फिल्म के अंत तक सब साफ-साफ दिख रहा था कि कम से कम भूत प्रेत तो कुछ होते ही नहीं हैं। भूत भगाने आए आचार्य भी मनोचिकित्सा पर अमेरिका में लंबे-चौड़े भाषण देकर लौटे हैं।
कुल मिलाकर भूलभुलैया अंधविश्वास पर एक तगड़ी चोट है। साथ ही इस फिल्म में परंपरा-आस्था बचाते हुए ये सब प्रियदर्शन ने किया है जो, ज्यादा बड़ी चुनौती थी। ढोल जैसी पकाऊ कॉमेडी के बाद प्रियदर्शन का ये अच्छा प्रयास है। मैं तो, सभी को ये सलाह दूंगा कि ये फिल्म जरूर देखकर आएं। क्योंकि, मुझे पूरी उम्मीद है कि इस फिल्म को देखने के बाद अंधविश्वास कुछ तो कम होगा ही। भूत-प्रेत मानने वाले कई लोगों की प्रेत बाधा भी दूर होगी।
लेकिन, फिल्म की जो, सबसे अच्छी बात मुझे लगी, वो ये कि फिल्म ने बड़े सलीके से भूत-प्रेत-ओझा-बाबा को खारिज किया है।
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अगर यह किया है तो बहुत अच्छा काम किया है। अन्यथा चलचित्र/टीवी ठस करते जा रहे हैं लोगों को!
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pandeyji ki baat se aur harshwardhan ji se poora ittefaq rakhta hoon. jahan aaj ke channel khauf, kal kapal mahakal jaise tariko se dara rahe hain wahi wah film is par chot kar rahi hai.
ReplyDeleteवाकई यह एक शानदार फ़िल्म है...अभी कुछ दिनों पहले ही मैंने इस फ़िल्म को देखा है...एक सकारात्मक प्रयास है यह
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