प्रिंट से टीवी- टीवी से इंटरनेट- इंटरनेट से फिर प्रिंट में। ब्लॉगिंग संसार में कुछ ऐसी ही धारा बह रही है। हिंदी ब्लॉग जगत के मंजे खिलाड़ी आजकल किसी न किसी पत्रिका-अखबार में ब्लॉग पर कुछ न कुछ लिख रहे हैं। कादंबिनी में बालेंदु शर्मा का ब्लॉग जगत की हलचल पर छपा लेख आजकल ब्लॉग्स पर सबसे ज्यादा चर्चा में है। उससे लगे-लगे कुछ और चिट्ठे भी लिखे गए जिसमें, बताया गया कि कौन सी पत्रिका- ब्लॉग पर केंद्रित कॉलम शुरू कर रही है। कौन सी पत्रिका-अखबार में कौन से ब्लॉगर की दिहाड़ी पक्की होने वाली है।
ब्लॉग पर तरह-तरह के तरीके भी बताए जा रहे हैं कि कैसे अपने ब्लॉग को ज्यादा से लोगों की नजर में लाया जा सकता है। कैसे ब्लॉग पर गूगल एड सेंस के विज्ञापन या फिर दूसरे विज्ञापन लगाकर हिट के जरिए कमाई की जा सकती है। कुल मिलाकर स्वांत: सुखाय के लिए शुरू हिंदी ब्लॉग धीरे-धीरे व्यवसाय की ओर बढ़ रहा है। अच्छी बात है कि हिंदी ब्लॉगिंग करने वाले भी धीरे-धीरे कुछ कमाई करना शुरू कर रहे हैं। लेकिन, इसमें एक चीज जो अच्छी नहीं हो रही है वो, ये कि ज्यादातर ब्लॉगर जो किसी पत्रिका-अखबार में कॉलम लिखने जा रहे हैं। वो, कहीं से भी हिंदी ब्लॉगिंग की बढ़त में तो शामिल नहीं ही किए जा सकते। इसे किसी ब्लॉग लेखक के लिए ब्लॉग से अलग एक जरिया तलाशना भर मानें तो, मुझे कोई ऐतराज नहीं लगता।
कुल मिलाकर ये चलन कुछ पुनर्मूषको भव जैसा ही दिख रहा है। हिंदी ब्लॉगिंग में अभी सक्रिय लोगों का एक बड़ा हिस्सा मीडिया से ही है। ये, ऐसे लोग हैं जिन्हें लगता है कि मीडिया बाजार के द्वारा नियंत्रित हो रहा है जिससे मीडिया बहुत सी वो बातें लोगों के सामने नहीं रख पा रहा है। इसी सोच वाले ज्यादातर लोग हिंदी ब्लॉगिंग संसार में लिखते-पढ़ते नजर आ रहे हैं। मेरे जैसे, जो अखबार के जरिए टीवी और फिर टीवी में काम करते-करते हिंदी ब्लॉगिंग में घुस गए, हिंदी के ब्लॉगर्स भी ढेर सारे हैं।
अब फिर से हाल ये हो रहा है कि प्रिंट से टीवी और टीवी से इंटरनेट पर स्वांत: सुखाय के बाद फिर से लोग अखबारों में लिखने का जरिया तलाश रहे हैं। कोई ब्लॉगिंग पर लिख रहा है तो, कोई दूसरे जरिए से अपने को ज्यादा से ज्यादा लोगों तक पहुंचाना चाह रहा है। लेकिन, मुझे ये बात इसलिए अच्छी नहीं लग रही है कि ब्लॉगर्स अगर अखबारों में ब्लॉग जगत पर कॉलम लिखकर ही पूरे ब्लॉग जगत की वाहवाही लूट ले गए तो, फिर ब्लॉग के एक संपूर्ण मीडिया के तौर पर शायद कुछ रुकावटें आने लगेंगी।
हिंदी ब्लॉगिंग की बढ़त तो तभी होगी जब, ब्लॉग्स पर अलग-अलग विषयों पर लिखे लेखों को ही उनकी गुणवत्ता के लिहाज से पैसे मिलने लगें। हिंदी ब्लॉगिंग की बढ़त कुछ एक अखबारों और पत्रिकाओं में ब्लॉग जगत की हलचल में हिंदी ब्लॉग से जुड़े कुछ लोगों की चर्चा से तो नहीं होने वाली। वैसे, थोड़ा सलीके से देखें तो, ये साफ दिखता है कि ये अखबारों में छपने की इच्छा ज्यादा से ज्यादा लोगों तक पहुंचने की है। तो, इसमें मुझे लगता है कि ब्लॉग को ही ज्यादा लोगों तक पहुंचाने की कोशिश ज्यादा बेहतर होगी। आज मैं अलग-अलग ब्लॉग्स पर सिर्फ टिप्पणी करने के मकसद से गया तो, समीर भाई उड़न तश्तरी के ब्लॉग पर एक-एक लेख पर 40-50 के बीच में टिप्पणियां मिलीं। आज मैंने भी करीब 10 टिप्पणियां कीं। ये एक दिन में मेरे द्वारा की गई सबसे ज्यादा टिप्पणी है। मुझे लगता है कि यही जरिया है जिससे ज्यादा से ज्यादा लोग हिंदी ब्लॉगिंग में आएंगे। टिप्पणी से प्रोत्साहन और ज्यादा पाठक संख्या।
और मुझे तो, अच्छा तब लगेगा जब, अखबारों का नियमित कॉलम लिखने वाला लेखक और टीवी की बहसों में अपना ज्ञान पेलने वाला किसी ब्लॉग पर अपना लेख लिखवाने के लिए अर्जी लगाएगा। खैर, उन सभी लोगों के लिए शुभकामनाएं जो, ब्लॉग को अखबारों के जरिए आम लोगों तक पहुंचा रहे हैं। ये अच्छी बात है। लेकिन, माफ कीजिएगा इसे ब्लॉग संसार की तरक्की में मैं शामिल नहीं कर सकता। क्योंकि, अगर ऐसा मान लिया गया तो, बरसों से हिंदी ब्लॉगिंग को आत्मनिर्भर बनाने के लिए अपने संसाधन, समय और पैसे खर्च करने वाले ब्लॉगर्स की कोशिशों पर पानी फिर जाएगा।
ब्लॉग पर तरह-तरह के तरीके भी बताए जा रहे हैं कि कैसे अपने ब्लॉग को ज्यादा से लोगों की नजर में लाया जा सकता है। कैसे ब्लॉग पर गूगल एड सेंस के विज्ञापन या फिर दूसरे विज्ञापन लगाकर हिट के जरिए कमाई की जा सकती है। कुल मिलाकर स्वांत: सुखाय के लिए शुरू हिंदी ब्लॉग धीरे-धीरे व्यवसाय की ओर बढ़ रहा है। अच्छी बात है कि हिंदी ब्लॉगिंग करने वाले भी धीरे-धीरे कुछ कमाई करना शुरू कर रहे हैं। लेकिन, इसमें एक चीज जो अच्छी नहीं हो रही है वो, ये कि ज्यादातर ब्लॉगर जो किसी पत्रिका-अखबार में कॉलम लिखने जा रहे हैं। वो, कहीं से भी हिंदी ब्लॉगिंग की बढ़त में तो शामिल नहीं ही किए जा सकते। इसे किसी ब्लॉग लेखक के लिए ब्लॉग से अलग एक जरिया तलाशना भर मानें तो, मुझे कोई ऐतराज नहीं लगता।
कुल मिलाकर ये चलन कुछ पुनर्मूषको भव जैसा ही दिख रहा है। हिंदी ब्लॉगिंग में अभी सक्रिय लोगों का एक बड़ा हिस्सा मीडिया से ही है। ये, ऐसे लोग हैं जिन्हें लगता है कि मीडिया बाजार के द्वारा नियंत्रित हो रहा है जिससे मीडिया बहुत सी वो बातें लोगों के सामने नहीं रख पा रहा है। इसी सोच वाले ज्यादातर लोग हिंदी ब्लॉगिंग संसार में लिखते-पढ़ते नजर आ रहे हैं। मेरे जैसे, जो अखबार के जरिए टीवी और फिर टीवी में काम करते-करते हिंदी ब्लॉगिंग में घुस गए, हिंदी के ब्लॉगर्स भी ढेर सारे हैं।
अब फिर से हाल ये हो रहा है कि प्रिंट से टीवी और टीवी से इंटरनेट पर स्वांत: सुखाय के बाद फिर से लोग अखबारों में लिखने का जरिया तलाश रहे हैं। कोई ब्लॉगिंग पर लिख रहा है तो, कोई दूसरे जरिए से अपने को ज्यादा से ज्यादा लोगों तक पहुंचाना चाह रहा है। लेकिन, मुझे ये बात इसलिए अच्छी नहीं लग रही है कि ब्लॉगर्स अगर अखबारों में ब्लॉग जगत पर कॉलम लिखकर ही पूरे ब्लॉग जगत की वाहवाही लूट ले गए तो, फिर ब्लॉग के एक संपूर्ण मीडिया के तौर पर शायद कुछ रुकावटें आने लगेंगी।
हिंदी ब्लॉगिंग की बढ़त तो तभी होगी जब, ब्लॉग्स पर अलग-अलग विषयों पर लिखे लेखों को ही उनकी गुणवत्ता के लिहाज से पैसे मिलने लगें। हिंदी ब्लॉगिंग की बढ़त कुछ एक अखबारों और पत्रिकाओं में ब्लॉग जगत की हलचल में हिंदी ब्लॉग से जुड़े कुछ लोगों की चर्चा से तो नहीं होने वाली। वैसे, थोड़ा सलीके से देखें तो, ये साफ दिखता है कि ये अखबारों में छपने की इच्छा ज्यादा से ज्यादा लोगों तक पहुंचने की है। तो, इसमें मुझे लगता है कि ब्लॉग को ही ज्यादा लोगों तक पहुंचाने की कोशिश ज्यादा बेहतर होगी। आज मैं अलग-अलग ब्लॉग्स पर सिर्फ टिप्पणी करने के मकसद से गया तो, समीर भाई उड़न तश्तरी के ब्लॉग पर एक-एक लेख पर 40-50 के बीच में टिप्पणियां मिलीं। आज मैंने भी करीब 10 टिप्पणियां कीं। ये एक दिन में मेरे द्वारा की गई सबसे ज्यादा टिप्पणी है। मुझे लगता है कि यही जरिया है जिससे ज्यादा से ज्यादा लोग हिंदी ब्लॉगिंग में आएंगे। टिप्पणी से प्रोत्साहन और ज्यादा पाठक संख्या।
और मुझे तो, अच्छा तब लगेगा जब, अखबारों का नियमित कॉलम लिखने वाला लेखक और टीवी की बहसों में अपना ज्ञान पेलने वाला किसी ब्लॉग पर अपना लेख लिखवाने के लिए अर्जी लगाएगा। खैर, उन सभी लोगों के लिए शुभकामनाएं जो, ब्लॉग को अखबारों के जरिए आम लोगों तक पहुंचा रहे हैं। ये अच्छी बात है। लेकिन, माफ कीजिएगा इसे ब्लॉग संसार की तरक्की में मैं शामिल नहीं कर सकता। क्योंकि, अगर ऐसा मान लिया गया तो, बरसों से हिंदी ब्लॉगिंग को आत्मनिर्भर बनाने के लिए अपने संसाधन, समय और पैसे खर्च करने वाले ब्लॉगर्स की कोशिशों पर पानी फिर जाएगा।
मेरी राय थोडी भिन्न है.
ReplyDeleteमैं तो यह मानता हूं कि इस प्रकार के लेखन से ब्लौगिंग के बारे में ज्यादा से ज्यादा लोगों की रुचि बढेगी.हिन्दी में ही क्यों ,बल्कि अंग्रेज़ी अथवा दूसरी भाषाओं में भी commercial blogging का अनुपात बहुत कम ही है. मैने बहुत ऐसे लेख तो नही पढे, परंत उदाहरण के लिये पिछ्ले रविवार को जनसत्ता में अविनाश के लेख को ही लें.
ऐसे लेखों से (1) ब्लौग के बारे में न जानने वालों को रुचि जाग्रत होगी, साथ ही (2) यह उन ब्लौगरों के लिये एग्ग्रीगटर ( मेरा आशय सूचना से है) का काम करेगा जो ब्लोग पर यदा कदा ही जाते है.
टिप्पणी की उप्योगिता से पूर्ण सहमत हू. ताजा पोस्ट में मैने अपने ब्लोग पर लिखा भी है
http://bhaarateeyam.blogspot.com
http://brijgokulam.blogspot.com
बात तो आपकी सही है.लेकिन यदि कोई ब्लॉगर कहीं छ्पे तो यह एक अच्छी बात है इसलिये क्योकि इससे भी बहुत से नवागंतुको को ब्लॉग पर लिखने की प्रेरणा मिलेगी...और प्रिंट में ब्लॉग के बारे में छ्पने से कई और लोग भी प्रेरित होंगे ब्लॉग लेखन के प्रति.
ReplyDeleteआपकी बात से सहमत हूं। लेकिन आज ब्लॉगरों की भीड में बकवास ब्लॉग लेखन वाले लोगों की ज्यादा भीड है। क्या केवल कादिम्बिनी में लेखन से ही ब्लॉगरों की टी आर पी बढेगी ?
ReplyDeleteप्रिण्ट मीडिया को मैं सनसनीखेज अहमियत नहीं देता।
ReplyDeleteअखबार का एक कालम ब्लाग जगत की तरक्की तो नहीं माना जा सकता है। हां चर्चा होने से और ब्लागर बढेंगे। यही उपलब्धि हो सकती है।
ReplyDeleteमैं आपकी बात से सहमत हूँ पर ब्लागिंग अखबार का हिस्सा तभी बनी है जब पहले उसकी लोकप्रियता
ReplyDeleteबढ़ी है और आपकी टिप्पणी काम में आ गई. आपके ब्लाग पर पहली बार आई हूँ और बहुत अच्छा लग पढ़ कर.
अखबार में या किसी और प्रिंट मीडिया में ज्यादातर वो ही लिखते हैं जो ज्यादातर लेखन के व्यवसाय से जुड़े हैं या उनका कोई वहाँ जानने वाला है। अब इससे कितना फायदा होगा नही जानता लेकिन कुछ लोगों को कम से कम से जरूर पता चल जायेगा कि पत्रकारिता के अलावा ब्लागिंग भी कोई चीज होती है।
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