Monday, October 29, 2007

सरकारी देरी की कीमत देश भर चुका है 24,000 करोड़ रु, आगे कितना भगवान जाने?

मैं मुंबई से इलाहाबाद के सफर में रेलगाड़ी की 2-3 घंटे की देरी पर गुस्साता हूं। चिढ़ भी आती है, जब अच्छी भली चली आ रही रेलगाड़ी अचानक किसी आउटर पर लाल सिगनल के आगे बेबस खड़ी हो जाती है और देरी पर देरी होने लगती है। मुझे लगता था मेरे जैसे इस रेलगाड़ी में बैठे कितने लोगों का समय बरबाद हो रहा है। लेकिन, सिर्फ समय बरबाद हो रहा है ऐसा नहीं है। इस तरह की सरकारी देरी की वजह से देश के लोगों का 24,000 करोड़ रुपया अब तक बरबाद हो रहा है। और, सरकारी प्रोजेक्ट में देरी कितनी बढ़ेगी और आपकी जेब पर कितना बोझ बढ़ेगा, इसका सही-सही अंदाजा लगा पाना कौन बनेगा करोड़पति के सवाल के जवाब देने जैसा ही है।
मुझे अकसर अपनी रेलगाड़ी की देरी की चिंता सताती रहती है। लेकिन, आज मिनिस्ट्री ऑफ स्टैटिस्टिक्स एंड प्रोग्राम इंप्लीमेंटेश की एक रिपोर्ट देखने के बाद समझ में आया कि इस तरह की छोटी-छोटी सरकारी देरियों की हमें कितनी कीमत चुकानी पड़ रही है। इसी रिपोर्ट के मुताबिक, रेलवे के 32 प्रोजेक्ट देरी से चल रहे हैं। यानी इनकी शुरुआत मे जो, समयसीमा तय की गई थी वो, पूरी नहीं हो पा रही है। शायद यही वजह है कि लालू के चमत्कारी मैनेजरों! ने 178 प्रोजेक्ट की कोई समयसीमा ही नहीं तय की है। साफ है जब समयसीमा ही नहीं होगी तो, रेल बजट में लालू को कोई देरी पर उंगली नहीं उठा पाएगा। और, ये नुस्खा सिर्फ लालू का ही मंत्रालय नहीं आजमा रहा है। दूसरे मंत्रालयों ने 218 से ज्यादा प्रोजेक्ट की कोई समयसीमा नहीं रखी है।
रेलवे जैसे देश के लोगों की दूसरी जरूरी जरूरतों के प्रोजेक्ट भी लगातार पिछड़ रहे हैं। रोड ट्रांसपोर्ट यानी सड़क-पुल-फ्लाईओवर के 93 प्रोजेक्ट देरी से चल रहे हैं। रेलवे, सड़क देरी से बन रही हैं तो, तेजी से बढ़ते एविएशन सेक्टर की बुनियाद की शुरू में ही बुरा हाल है। अभी एविएशन के 12 प्रोजेक्ट देर हो चुके हैं। बुनियादी जरूरतों में जगह बना चुके टेलीकॉम का भी यही हाल है। टेलीकम्युनिकेशन के 36 प्रोजेक्ट देरी से चल रहे हैं। बिजली जैसी दूसरी बड़ी जरूरत के 27 प्रोजेक्ट समय से बहुत पीछे चल रहे हैं। हर गरमी में बिजली पर सरकारें राजनीति खूब कर लेती हैं। लेकिन, समय से प्रोजेक्ट पूरा कराने की दिशा में कोई खास कदम नहीं उठा पाती।
पेट्रोलियम और कोयला के 25 और शिपिंग के 22 प्रोजेक्ट अपने तय समय से काफी पीछे चल रहे हैं। शहरी विकास मंत्रालय का भी हाल अच्छा नहीं है। शहरी विकास के 11 प्रोजेक्ट समय से पूरे होते नहीं दिख रहे। और यही हाल स्टील मंत्रालय का भी है।
हाल ये है कि 1,000 करोड़ रुपए से ज्यादा के 63 से ज्यादा प्रोजेक्ट देरी से पूरे हो रहे हैं। 100 करोड़ रुपए से कम वाले तो, 426 प्रोजेक्ट पूरा होने का इंतजार कर रहे हैं। ये प्रोजेक्ट एक महीने से 16 साल तक की देरी से चल रहे हैं। यही वजह है कि अटल बिहारी बाजपेयी की एनडीए सरकार के समय में शुरू हुई स्वर्णिम चुतुर्भुज योजना अभी कई जगह आपस में जुड़ ही नहीं सकी है।
अब जब इतने बड़े-बड़े प्रोजेक्ट में देरी पर सरकार को कोई चिंता नहीं होती है। तो, मेरे जैसे कुछेक हजार खर्च कर रेलगाड़ी से घर जाने वालों के समय की चिंता सरकार को भला क्यों होगी।

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