Friday, October 12, 2007

कांग्रेस लोकसभा चुनाव अभियान शुरू कर चुकी है

लेफ्ट-कांग्रेस के बीच परमाणु समझौते पर भले ही मोहलत-धमकी के खेल में 22 अक्टूबर तक की मोहलत मिल गई हो। लेकिन, कांग्रेस ने अपनी चुनावी तैयारी शुरू कर दी है। कांग्रेसी मंत्रियों के सुर बदल गए हैं। आर्थिक सुधार के अगुवा वित्त मंत्री पी चिदंबरम को किसानों के कर्ज की सुध आ रही है तो, अब तक सिर्फ इंडस्ट्री के हितों की खातिर आवाज बुलंद करने वाले वाणिज्य मंत्री कमलनाथ कह रहे हैं कि विकास का असली मतलब तभी है जब गांवों तक इसका हिस्सा पहुंचे।

गुरुवार को कैंबिनेट की नियमित प्रेस ब्रीफिंग में सूचना प्रसारण मंत्री प्रियरंजन दासमुंशी के तेवर किसी सरकार के बजाए किसी पार्टी के प्रवक्ता की तरह लग रहे थे। लग रहा था कांग्रेस पार्टी अपना चुनावी एजेंडा पेश कर रही हो। अचानक रेलवे कर्मचारियों के लिए 70 दिन के बोनस का ऐलान कर दिया गया। मुंशीजी ने ये भी साफ कर दिया कि फिलहाल मार्च तक तो, पेट्रोल-डीजल के दाम बिल्कुल भी नहीं बढ़ने वाले हैं। घाटे से थोड़ी राहत के लिए तेल कंपनियों को ऑयल बांड जारी करने की इजाजत भले ही मिल गई है।

इससे पहले सरकार ने गेहूं का समर्थन मूल्य भी 850 रुपए से बढ़ाकर 1000 रुपए क्विंटल कर दिया है। इससे पहले किसान लगातार रोते-चिल्लाते रहे लेकिन, सरकार के कान पर जूं तक नहीं रेंगी। विदेशों से महंगा घटिया गेहूं और किसानों को कम कीमत देने का हल्ला बार-बार होता रहा। अब जब चुनाव सिर पर आते दिखे तो, जल्दी से गेहूं का समर्थन मूल्य बढ़ा दिया गया। धान के लिए भी सब्सिडी का ऐलान है। लगातार मार खा रहे चीनी उद्योग के लिए भी आनन-फानन में राहत पैकेज का ऐलान कर दिया गया।

अब तक सिर्फ GDP, BULLISH MKT ECONOMY GROWTH PROSPECT का बाजा बजाने वाले वित्त मंत्री को भी गांवों किसानों की सुध आने लगी है। वित्त मंत्री 500-500 करोड़ रुपए के दो फंड बनान का ऐलान कर दिया जो, उन लोगों तक आसानी से वित्तीय सुविधाएं पहुंचाएंगे जो, अब तक बैंकिंग-फाइनेंशियल इंस्टिट्यूट्स से दूर थे। वित्त मंत्री ने सरकारी बैंकों को तो, हिदायत तक दे डाली कि सभी को कर्ज आसानी से दिया जाए। पता नहीं अब तक सरकार के ढाई साल से भी ज्यादा समय बीत जाने पर चिदंबरम बाबू को ये बात ध्यान में क्यों नहीं आई।

SEZ से लेकर दूसरे कई मुद्दों पर वित्त मंत्रालय को लंगड़ी मारने की कोशिश करने वाले वाणिज्य मंत्री कमलनाथ भी बदले-बदले से दिख रहे हैं। दून स्कूल से पढ़े कमलनाथ कहते हैं कि विकास का असली मतलब तभी है जब इसका फायदा गांवों को मिले। एक्सपोर्टर्स को मजबूत रुपए की आदत के साथ कारोबार की सलाह दे रहे कमलनाथ का सुर कुछ धीमा पड़ा है। सरकार ने 9 आइटम्स पर सर्विस टैक्स रिफंड भी लागू कर दिया है। SEZ में जिन किसानों की जमीन जा रही है उनके लिए भी पुनर्वास पैकेज का ऐलान कर दिया गया है।
लेकिन, कांग्रेस अच्छे से बताना चाहती है कि उसे गांव-गरीब-आम आदमी की इंदिराजी के समय से सोनिया गांधी के मालिकाना यानी आज तक सुध है। इसीलिए इसके लिए बाकायदा प्रचार अभियान की तैयारी कर ली गई है। एनडीए के समय में प्रचार में इंडिया शाइनिंग का नारा था तो, काग्रेस के प्रचार अभियान में भारत निर्माण और सर्व शिक्षा अभियान की उपलब्धियां चमकती दिखाई देंगी। जनता के लिए कांग्रेस ने कितना कुछ किया है, सिर्फ इसे बताने वाले प्रचार अभियान पर 70-80 करोड़ रुपए खर्च किए जाएंगे।

2 comments:

  1. राजनीति पूरी तरह धंधा है। विज्ञापन करो तभी तो लोग आपका माल या सेवा पसंद करेंगे। कांग्रेस तो वैसे भी हीनताबोध से ग्रस्त पार्टी है। उसका स्वाभिमान तो कब का खत्म हो चुका है।

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  2. मेरे विचार से भारतीय जनता कॉग्रेस या कॉंग्रेस जनता पार्टी जैसी पार्टी होनी चाहिये वाम या लुटुर-पुटुर फ्रण्ट के खिलाफ। नीतियों में ज्यादा मतभेद नहीं हैं। उससे लाभ होगा कि 10-20 सांसदों के गुटों का लीवरेज खतम होगा। स्टेबिलिटी आयेगी।
    पर यह कैसे हो सकता है - हमें नहीं मालूम। पर मायावती दलित ब्राह्मण कॉम्बिनेशन चला सकती हैं तो यह क्यों नहीं हो सकता?

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