Saturday, October 06, 2007

हम आदिवासी युग में लौट रहे हैं?

अंग्रेज जब हमें आजाद करके गए तो, पूरी दुनिया में उन्होंने भारत की छवि एक ऐसे देश की बनाई जो, बाबा-ओझा-जादू-टोना-नाग-नागिन का देश था। आजादी के बाद भारत ने तेज तरक्की की। दुनिया में भारत से निकले दिमाग का लोहा माना जाने लगा। अंग्रेजों को हम भारतीयों ने उनकी अंग्रेजी में भी मात दे दिया। दुनिया में भारत की छवि एक ऐसे देश की बनी जहां, तेज दिमाग वाले लोग हैं। दुनिया के सबसे तेजी से तरक्की करते देशों में भारत शामिल हो गया। हमारी छवि बदल ही रही थी कि टीवी की टीआरपी फिर से हमें आदिवासी युग में लौटाने की कोशिश में लग गई है।

अगर अंग्रेज या दुनिया के दूसरे हिस्से में रहने वाले भारतीय हिंदी टेलीविजन चैनल को देखकर भारत के बारे में अंदाजा लगाना चाहें तो, वो फिर से भारत को बाबा-ओझा-जादू-टोना-नाग-नागिन का देश मान लेंगे। ऐसे करतब जिसे मोहल्ले में दिखाकर लोग मुश्किल से ही अपनी रोजी जुगाड़ पाते थे। आजकल टीवी के हीरो बने हुए हैं। कुछ भी थोड़ा सा अलग कर जाइए। टीवी पर कम से कम 2-4 मिनट की फुटेज के हकदार तो हो ही जाएंगे।

टीआरपी की रेस के साथ विज्ञापनों की रेस में इंडिया टीवी पिछड़ा तो, उसे अपने को रेस में लाने का यही फॉर्मूला नजर आया। फिर क्या था बिहार के किसी पिछड़े इलाके में भाला गाल के आर पार करने की खबर हो या फिर उत्तर प्रदेश के गोरखपुर के पास के इलाके में छोटे बच्चों को एक ब्लेड से काटकर देवी को खून चढ़ाने की खबर हो, सब चैनल पर धड़ल्ले से एक्सक्लूसिव के नाम पर चलने लगा। इंडिया टीवी का ये फंडा काम करने लगा तो, आपकी अदालत लगाने वाले शर्माजी की हिम्मत भी बढ़ने लगी। फिर क्या था, इंडिया टीवी पर हर पांचवें-दसवें मिनट में नाग-नागिन का बदला, 5 किलो दूध पीने वाला बच्चा, शेर के बच्चे के साथ रहता बिल्ली का बच्चा, गरम सलाख से रोग दूर करने वाला बाबा जैसी खबरें अवतरित होने लगीं। कुछ ही दिनों में टीआरपी की रेस और विज्ञापन के मामले इंडिया टीवी सबसे तेज आजतक को टक्कर देने लगा।
फिर क्या था। सब जुट पड़े, ऐसे अजूबे की खोज में जो, पहले किसी ने न दिखाया हो। टीवी चैनल गिनीज वर्ल्ड रिकॉर्ड का देसी संस्करण नजर आने लगे। अजब-गजब, पहले कभी देखा नहीं होगा, देखेंगे तो दंग रह जाएंगे जैसे कार्यक्रमों की टीवी चैनलों पर बहार आ गई है। अब तो हाल ये हो गया है कि साइकिल चलाते-चलाते नहाने-धोने-कपड़े बदलने का करतब दिखाने वाला भी मशहूर हो रहा है। इतने से बात नहीं बनी तो, मोटरसाइकिल पर ये सारे करतब करने वाले को टीवी के धुरंधर रिपोर्टर खोजकर ले आए।

तीन किलो मिर्ची खाने वाला, घंटों शंख बजाने वाला, दो जीभ वाली गाय, नाक-कान से गुब्बारा फुलाने वाला, दिन भर में पचासों लीटर पानी पीने वाला, पैर की बजाए हाथ से चलने वाला, पेट पर से मोटरसाइकिल गुजारने वाला सब टीआरपी बढ़ाने का जरिया बन गए। वैसे ये टीवी चैनल बार-बार लोगों को सावधान करते रहते हैं लेकिन, सवाल ये है कि ये सब दिखाकर टीवी चैनल साबित क्या करना चाहते हैं। अब इसमें ये दलील कि यही लोग देखना चाहते हैं तो, ये तर्क तो मुझे हीं पचता। बचपन में मुझे याद है कि मोहल्ले में घंटों बिना साइकिल से उतरे अजीबो गरीब करतब दिखाने वाले को लोग दस मिनट से ज्यादा नहीं देखते थे। कुछ बच्चे जरूर ताली बजाने के लिए मिल जाते थे। और, उसे मुश्किल से ही कुछ 10-20 चवन्नियां मिल पाती थीं। अब ये करतब इन चैनल वालों को हजारों-लाखों के विज्ञापन कैसे दिला रही है ये तो, भगवान ही जाने। लेकिन, इन चैनलों को देखकर इस बात का अंदाजा आसानी से लगाया जा सकता है कि आदिवासी युग में क्या-क्या होता रहा होगा। इतनी तरक्की के बाद फिर से हमें पूर्वजों के यानी आदिवासी युग के दर्शन कराने के लिए हमें टीवी चैनलों का शुक्रगुजार होना होगा।

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