Wednesday, July 09, 2008

आखिर क्यों मनमोहन के सर ठीकरा फूटा

क्या मनमोहन सिंह कांग्रेस में इस स्थिति में हैं कि उनके आत्मसम्मान को बचाने के लिए सरकार को दांव पर लगाया जाता। कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी और दूसरे कांग्रेसी ये जानने के बावजूद की अभी के हालात में चुनाव जीतना बहुत मुश्किल होगा और चुनाव होना अभी बचा भी लें तो, इसके लिए सरकार पर समर्थन की जो शर्तें समाजवादी पार्टी जैसे दल लादेंगे वो, और भी बड़ी कीमत होगी और क्या उसकी भरपाई हो पाएगी।

आखिर हो भी तो यही रहा है सरकार के समर्थन की कीमत कभी राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार चुका रहे हैं तो, कभी पीएमओ से लेकर दूसरे मंत्रालयों के बड़े-बड़े अफसर। अमर सिंह का सूखा चेहरा फिर खिल गया है। राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार अमर सिंह और मुलायम सिंह यादव को परमाणु समझौते पर सफाई देते हैं। इतने पर ही बात नहीं बनी तो, अमर सिंह के दुश्मन कॉरपोरेट घरानों (अनिल अंबानी के विरोधी भाई मुकेश अंबानी की कंपनी रिलायंस इंडस्ट्रीज पढ़िए।) के पर कतरने पर भी सहमति बनने लगी है। दिग्गज वित्त मंत्री पी चिदंबरम और पेट्रोलियम मंत्री मुरली देवड़ा हटें न हटें उनके विभाग के अफसर अमर सिंह के सामने दरबारी की मुद्रा में खड़े हैं। प्रधानमंत्री कार्यालय में विशेष सचिव टीकेए नायर अमर सिंह की अगुवाई में खडे हैं। क्या इतना सिर्फ मनमोहन के उस आत्मसम्मान को बचाने के लिए सोनिया कर सकती हैं जो, मनमोहन ने बुश के साथ परमाणु समझौते पर आगे बढ़कर वादा किया था।

मुझे तो ये लगता है कि चुनाव की तय तारीख के कुछ महीने पहले प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह के सर लेफ्ट से गठजोड़ टूटने का ठीकरा फोड़ने के पीछे कुछ और ही वजह है। दरअसल प्रधानमंत्री पद त्यागने के बाद कांग्रेस के सबसे कमजोर नेता को जिस तरह से देश का सबसे कमजोर प्रधानमंत्री बनाकर गद्दी पर सोनिया गांधी ने बैठाया। उसके बाद ये तो संभव नहीं था कि वो फिर से प्रधानमंत्री की गद्दी के लिए खुद को पेश करतीं। इससे फिर से संघ परिवार और बीजेपी को विदेशी मूल का मुद्दा मिलने का भी खतरा था।

यही वजह है कि येन केन प्रकारेण सोनिया ने राहुल गांधी को इस पद के लिए सबसे योग्य प्रत्याशी बनाने की हरसंभव कोशिश की। अखिल भारतीय कांग्रेस कमेटी (जिसको हमारे इलाहाबाद में बड़की कांग्रेस कहते हैं)में राहुल गांधी को महासचिव बना दिया गया। साथ में राहुल की उम्र के कई खानदानी कांग्रेसी विरासत वाले नेता सचिव बना दिए गए। फिर राहुल ने यूपी चुनाव से पहले ऊटपटांग बयान देकर बड़ा नेता बनने की कोशिश की। फिर फेल हो गए। राहुल अपने परदादा जवाहर लाल नेहरू की किताबों से सीखकर इंडिया डिस्कवर करने निकले। इस सबके बीच मीडिया के जरिए ये भी खबरें आईं कि प्रधानमंत्री पद का उम्मीदवार होने की वजह से राहुल ने मंत्री बनने इनकार कर दिया।

इस बीच मानव संसाधन मंत्री अर्जुन सिंह और कुछ दूसरे दरबारी कांग्रेसियों ने भी राहुल गांधी को प्रधानमंत्री पद के लिए काबिल बता दिया। इस पर जब सारे मीडिया में कई दिनों तक जमकर हल्ला हो चुका। उसके बाद राहुल गांधी ने कहाकि मनमोहन सिंह योग्य प्रधानमंत्री हैं। सोनिया ने भी कहा- राहुल बाबा सही कह रहे हैं। और, जब सब मानने लगे कि मनमोहन ही प्रधानमंत्री पद के अगले उम्मीदवार होंगे। तो, अब आखिर क्या जरूरत थी सोनिया को लेफ्ट को नाराज करने के लिए प्रधानमंत्री से हवाई जहाज से जापान जाते समय हवा-हवाई बयान दिलाने की। अब ये तो कोई नहीं मानेगा कि इतना महत्वपूर्ण बयान सोनिया से बिना पूछे मनमोहन दे डालेंगे। मुझे तो ये लगता है कि सोनिया ने दूरदृष्टि की वजह से ये बयान मनमोहन से दिलाया।

मुझे लगता है कि मनमोहन सिंह की शहादत पर राहुल की ताजपोशी की कहानी शुरू होगी। अब ये तो सोनिया को क्या सबको अच्छे से पता है कि शायद ही अगली सरकार बिना गठजोड़ के बन सकेगी। ये भी तय है कि जब ध्रुवीकरण होगा तो, लेफ्ट को कांग्रेस के ही साथ आना होगा। अब साफ है कि जब लोकसभा चुनाव के बाद लेफ्ट को कांग्रेस की अगुवाई वाली यूपीए को समर्थन करना होगा तो, लेफ्ट के लोग भी कम से कम इतना तो करेंगे ही कि गठजोड़ टूटने की वजह बनने वाले मनमोहन की अगुवाई से मना कर दें। और, तब राहुल गांधी के नाम पर सहमति बनवाना सोनिया गांधी के लिए शायद सबसे आसान होगा। मुझे तो मनमोहन सिंह के सर ठीकरा फूटने की यही वजह लगती है। आपको क्या लगता है बताइए।

4 comments:

  1. Bilkul sahi disha me soch rahe hain...

    Aisa bahut kam hi hota hai jab '9 mahine' baad kya hoga iska pata pahle se chal jaaye...

    Agar BJP (NDA) koi kamaal kar de to alag baat hai... warna fir se UPA-Left ka palda bhaari rahaa to kahaani bilkul yahi hogi...

    Aur tab ham is blog par fir milenge...

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  2. ठीक ठीक कुछ कह नहीं सकता ।

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  3. विश्लेषण अच्छा है। लेकिन राजनीति किसी की चेरी नहीं है। कल क्या होगा, इसका पता चलना मुश्किल है तो इतना आगे के बारे क्या सोचें। यहाँ स्थाई है तो सिर्फ़ ‘स्वार्थ’ जो कभी ढका-छुपा रहता है तो कभी नंगा हो जाता है। राजनीति तो बस इसी स्वार्थ का प्रबंधन है। only a management of self-interest…

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  4. सोनिया जी का वन ताइन अजेंडा तो यही है कि वे राहुल को पी एम की कुर्सी पर बैठा सकें । ुसी दिशा में ये सब प्रयत्न है । अब आगे क्या होगा वोतो हम सब देखेंगे ही ।

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