Tuesday, July 22, 2008

आडवाणी ने बड़ा मौका खो दिया

मनमोहन की सरकार बचेगी या जाएगी ये, आज तय हो जाएगा। बीजेपी के बागी सांसद मनमोहन की डूबती नैया पार कराते दिख रहे हैं। खैर, सरकार बचे या जाए कोई बहुत बड़ा फरक इससे नहीं पड़ने वाला। लेकिन, कल विश्वासमत के विरोध की शुरुआत करने वाले लालकृष्ण आडवाणी ने एक बहुत बड़ा मौका गंवा दिया लगता है।

दरअसल, PM IN WAITING के खिताब से खुद को नवाजने वाले लालकृष्ण आडवाणी को विश्वासमत पर बहस के दौरान हर कोई सुनना चाहता था। उनके प्रधानमंत्री बनने की इच्छा रखने वाले भी उनके आजीवन PM IN WAITING रह जाने की इच्छा रखने वाले भी। सब ये देखना चाहते थे कि अटल बिहारी वाजपेयी के वारिस लालकृष्ण आडवाणी वाजपेयी के कहीं आसपास तक पहुंच पाते हैं या नहीं। लेकिन, ज्यादातर लोगों को मेरी तरह निराशा ही हाथ लगी। मौका ये था कि इस मौके का इस्तेमाल चुनावी रैली की तरह करते।

विश्वासमत के खिलाफ बोलने खड़े हुए आडवाणी से हर किसी को उम्मीद यही थी कि वो, परमाणु करार पर बीजेपी का पूरा पक्ष रखने के साथ ही महंगाई और दूसरे मुद्दों पर सरकार के खिलाफ चुनावी बिगुल की शुरुआत करेंगे। आडवाणी के पास बड़ा मौका था कि वो, संसद में मिले मौके का सदुपयोग करते और वाजपेयी की कमी को पूरा करते। लेकिन, आडवाणी बड़ा मौका चूक गए। पता नहीं कौन से रणनीतिकार-सलाहकार आजकल आडवाणी के चारों तरफ हैं जिन्होंने इतने अहम मौके पर आडवाणी को अंग्रेजी ज्ञान पेलने की सलाह दे डाली।

अब क्या आडवाणी इंटरनेशनल मीडिया और अमेरिका भर को ही अपनी बात सलीके से समझाना चाहते थे। क्योंकि, देश की करोड़ो जनता जो आज कल के प्रधानमंत्री को देखने बैठी थी। उसे तो आडवाणी छू भी नहीं पाए होंगे। हां, इसमें मायावती ने बाजी मार ली। मैंने बहुत पहले लिखा था कि किस तरह मायावती, फिर से बीजेपी के नजदीक आती दिख रही हैं। और, उत्तर प्रदेश के समीकरणों के लिहाज से आडवाणी और मायावती में एक अनकहा समझौता भी हो गया है। लेकिन, अब मायावती का प्रधानमंत्री बनने का दावा और मजबूत होता दिख रहा है। और, अब अगर लोकसबा चुनाव के बाद समझौते की नौबत आई तो, साफ ज्यादा सांसद संख्या के साथ आई मायावती और तीसरे मोरचे का साथ आडवाणी की बीजेपी-एनडीए को मायावती का साथ देने के लिए मजबूर कर देगा।

इधर, लोकसभा में आडवाणी ने बोलना शुरू किया। कुछ ही देर बाद संसद में आडवाणी के बोलने के साथ-साथ मायावती की प्रेस कांफ्रेंस की तस्वीर भी नजर आने लगी। और, मायावती की हैसियत की झलक ये थी कि ज्यादातर हिंदी चैनलों ने मायावती का ऑडियो बढ़ा दिया और आडवाणी सिर्फ दिखते रह गए। उनका कहा किसी को सुनाई नहीं दे रहा था। वजह ये कि वैसे भी वो अंग्रेजी में बोल रहे थे जो, हिंदी दर्शकों कम ही लुभा रहा था। इसी फॉर्मूले पर अंग्रेजी चैनलों को आडवाणी की ही बोली अच्छी लग रही थी। लेकिन, वोट अंग्रेजी चैनल का दर्शक शायद ही देता हो। इस मामले में बंगाल के सीपीएम सांसद मोहम्मद सलीम भी शानदार हिंदी भाषण देकर महफिल लूटने में कामयाब रहे।

5 comments:

  1. कल सुन रहा था अडवानी जी को और मुझे भी यही आश्चर्य हो रहा था कि आखिर कौन सा सलाहकार मंडल है उनका जो इतना बेहतरीन मौका हाथ से यूँ ही सरक जाने दे रहा है.

    साथी चन्द्रा बाबू तो मौके पर मायावति का नाम लपका कर अपनी राजनीति खेल गये और मायावति की महारत है कि उसने मौके का भरपूर फायदा लिया.

    मगर सबके निचोड़ में अपरोक्ष रुप से फायदा कांग्रेस को ही हुआ है. विश्वास मत में तो जो हो-पूरी हार हुई बाजी कुछ हिस्से तक वापस लौट ली है कांग्रेस के ही पक्ष में.

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  2. मायावती की एंट्री से अब ये भी लगने लगा है कि आडवाणी जी पीएम इन वेटिंग ही रह जाएंगे।

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  3. आडवानी मौका न प्रयोग कर पाये तो इसमें उनका अपना दोष है। मौका तो बहुत अच्छा मिला था उन्हें।

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  4. आडवाणी के ग्रह-नक्षत्र खराब चल रहे हैं। …जब नाश मनुज पर छाता है, पहले विवेक मर जाता है…

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  5. Acha hua jo yeh Mauka Adwani jee ke hanth se nikal gaya.. pata nahi kyon lekin Adwani mujhe kabhi bhi kisi bhi roop mein pasant nahi aaye

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