Tuesday, July 01, 2008

इसके बिना बात पूरी नहीं होगी

मेरे घर वाले कश्मीर से लौट आए हैं। मैंने पिछले लेख में बात यहां खत्म की थी कि अगर राजनीति इसी तरह से घाटी को दहशत के माहौल में धकेलती रहेगी। तो, कैसे कोई दुबारा किसी को कश्मीर घूमने जाने की सलाह दे पाएगा और बेरोजगार कश्मीरी महबूबा, उमर अब्दुल्ला और गुलाम नबी आजाद की बात समझेगा या फिर आतंकवादियों की।

लेकिन, आज जब मेरी घर वालों से बात हुई तो, उन्होंने जिस तरह से अपने कैब ड्राइवर की तारीफ की। उससे साफ है कि कश्मीरी बहुत सच्चे और साफ दिलवाले हैं। और, घाटी में एक दशक से जो कुछ शांति आई है। और, इससे वहां जिस तरह से मौके और रोजगार मिल रहा है वो, उसे आसानी से नहीं गंवाएंगे। गुलमर्ग से लौटते समय जब राजनीति दलों की क्षुद्र स्वार्थों को पूरा करने वाले मुट्ठी भर बहके लोग और जाने-अनजाने आतंकवादियों के हितों को पूरा कर रहे लोगों ने गाड़ी रोककर उसे तोड़ने-जला देने की धमकी दी तो, कश्मीरी टैक्सी ड्राइवर ने मेरे घरवालों को भरोसा दिलाया मेरी लाश से गुजरने के बाद ही ये लोग आपको छू सकेंगे। मुसलमान टैक्सी ड्राइवर पर मेरे घर वालों को भरोसा कुछ इतना हो गया था कि जिस दिन वो लोग कहीं घूमने नहीं जा पाए थे तो, भी वो बोट पर घरवालों के साथ था। इस जज्बे को सलाम औऱ उम्मीद यही कि घाटी में मुसलमान कैब ड्राइवर जैसे लोग ज्यादा मजबूत होंगे।

और, मेरा भरोसा फिर से मजबूत हो गया है कि कश्मीर को बंदूक और बारूद की आग से बाजार ही बचा पाएगा।

8 comments:

  1. हमें अच्छे की कामना करनी चाहिए.


    कैब ड्राइवर जैसे भले लोगो का साथ देना चाहिए.

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  2. umeed par duniya kayam hai....dekhiye halat kis aor jaate hai.

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  3. हर्ष भाई , भरोसा करने में हम दरिद्र कब रहे है ? विवेकजीवी आज निचली सतह पर है .बुद्धिजीवी आग उगलता है .आम मुसलमानों को अपने दिल की बात सुनने भर की देर है ,स्थिति संभलते देर नही लगेगी .
    टैक्सी ड्राइवर टैक्सी ही नही समाज ड्राइव कर रहा है .बाकी लोग ड्रामा कर रहें है और बहुत बड़ा हिस्सा डर भी रहा है . मजा तो तब आए जब डर ख़त्म हो !

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  4. कैब ड्राइवर के बारे में पढ़ कर अच्छा लगा। इस दुनियाँ में निखलिस्तान (Oasis) भी हैं!

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  5. संसार में सही लोग भी हैं। समय ऐसा है कि कोई बुरा नहीं है यह जानकर ही संतोष हो जाता है। यदि कोई भला हो तो फिर बात ही क्या !
    घुघूती बासूती

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  6. इन्सान नहीं खराब होता है-सियासी चालों के मकड़जाल में ऐसा उलझ जाता है कि भीड़ में गिनती बढ़ाता है बस!!

    शुभकामनाऐं.

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  7. अभी बेंगाणी जी की पोस्ट पर टिपिया कर आ रहा हूँ। राजनीति भारत के चेहरे पर चेचक की तरह धब्बे छोड़ रही है। संजय जी के आलेख पर की गई टिप्पणी यहाँ भी छोड़ रहा हूँ।

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  8. संजय बेंगाणी जी की पोस्ट की टिप्पणी......
    “अगर कश्मीर के तरह भारत में भी जनसंख्या का अनुपात उलट होता तो? क्या भारत एक धर्मनिरपेक्ष लोकतंत्र होता या भारत की स्थिती भी कश्मीर जैसी होती?”
    पहले तो आप यह गलती ठीक कीजिए कि कश्मीर भारत के बाहर नहीं। जनसंख्या कितनी ही और कैसी ही हो जाए कठमुल्लावादी, साम्प्रदायिक और धर्म की राजनीति भारत में तो सफल हो नहीं सकती। यह षडदर्शनों का जन्मदाता देश है। लोग भले ही अपने विश्वासों को बदलते रहे हों। लेकिन उन की संस्कृति गंगा-जमुना की संस्कृति रही है। धर्म बदल लेने पर भी वह समाप्त नहीं होती। अन्यथा ईसाइयों में पण्डित और मुसलमानों में रंगरेज, भिश्ती और कुरेशी न होते। मजारों पर सजदा और ताजिए न होते।
    मन को कड़ा रखिए, और एक बार सस्वर गा कर देखिए - हिन्दी हैं हम, वतन है हिन्दोस्ताँ हमारा। हज के लिए जाने वाला हर पाकिस्तानी-भारतीय मुसलमान अरब में हिन्दी ही कहाता है। इस पहचान से कैसे पीछा छूटेगा?

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