Sunday, July 13, 2008

अमर सिंह ये न करें तो, क्या करें आप ही बताइए

शनिवार को जब मायावती प्रेस कांफ्रेंस कर रहीं थीं तो, ऑफिस में मेरे एक सहयोगी ने कहा- सर, ये मायावती जैसे नेता इस तरह के क्यों हैं। बोलने का तरीका ठीक नहीं है फिर भी राजनीति में इतने ऊपर कैसे हैं। ये सवाल सिर्फ मेरे सहयोगी का ही नहीं है। ज्यादातर हम जैसे लोगों (मिडिल क्लास) की चर्चा में ये बार-बार आता है कि बद्तमीज-गालियों की भाषा में मायावती बात क्यों करती है और करती है तो, फिर वो देश की राजनीति में इतनी अहम क्यों है।

मायावती की प्रेस कॉन्फ्रेंस कल थी तो, अमर सिंह की आज थी। थोड़ा अलग मायावती से लेकिन, अमर सिंह भी वैसे ही हैं जैसी मायावती है। अमर सिंह भी विरोधियों को गंदे-गंदे विश्लेषणों से नवाजते हैं। राजनीति के सॉफिस्टिकेटेड लोग कहते हैं कि अमर सिंह दलाल किस्म का नेता है। उसकी कोई राजनीतिक बिसात नहीं है। सिर्फ इसकी-उसकी दलाली (मध्यस्थता) करके अपनी हैसियत बनाता रहता है। अमर सिंह को कहा जाता है कि वो, अनिल अंबानी और दूसरे कॉरपोरेट्स के लिए सत्ता से मदद दिलाकर अपनी जेब भरते हैं तो, मायावती पर आरोप ये कि वो दलितों के हित के बहाने करोड़ो रुपए हड़प चुकी हैं।

मायावती के जन्मदिन पर 80 लाख का हार मीडिया के साथ सबकी आलोचना की वजह बनता है तो, अमर सिंह की शाही जीवन शैली पर सब सवाल उठा देते हैं। आलोचना करने वाले कहते हैं कि अमर सिंह ने समाजवादी मुलायम को बरबाद कर दिया। मायावती के लिए यही बात कि कांशीराम के नाम पर मायावती दलितों के बहुमत से सत्ता सुख लूट रही हैं। दोनों एक दूसरे को भी जमकर गरियाते रहते हैं। लेकिन, आलोचना को शह देने वाला बड़ा वर्ग खुद बरसों से यही सब करता आ रहा है। उस पर शायद ही किसी का ध्यान जाता हो।

राजनीति के अमर सिंह और मायावती जैसी ही हैं फिल्मी दुनिया में राखी सावंत। बर्थडे पर मीका के जबरिया चुंबन पर हंगामा किया और उसके बाद तो, राखी किसी को बख्शती नहीं। ये राखी का ही साहस है कि एक टीवी चैनल ने जब उनसे मजाक किया कि उन्हें फिल्म से डायरेक्टर ने निकाल दिया है क्योंकि, फिल्म में उनका सीन फिट नहीं बैठ रहा है। तो, ये राखी ही थीं कि उन्होंने तड़ाक से बोल दिया कि शाहरुख सुपरस्टार है इसलिए उसे निकालने की डायरेक्टर में हिम्मत तो है नहीं। बलि का बकरा तो, उन्हें ही बनाया जा सकता है।

राखी ब्वॉयफ्रेंड से नाराज होती हैं तो, मीडिया के सामने तमाचे जड़ देती हैं। राखी टीवी चैनल पर सारे देश की लड़कियों को चिल्लाकर धमकी देती हैं कि किसी ने अगर अभिषेक की तरफ आंख उठाकर देखा तो, बहुत बुरा होगा। राखी कहती हैं कि वो, करीना नहीं है कि आज इसके साथ तो, कल उसके साथ।

अब चूंकि मैं भी मिडिल क्लास हिंदुस्तानी हूं इसलिए मुझे भी ये तीनों नापसंद हैं। तीनों से समाज खराब हो रहा है इस राय से मैं भी सहमत हो जाता हूं। लेकिन, क्या ये राय सही है कि राखी सावंत, मायावती और अमर सिंह जैसे लोग ही समाज खराब कर रहे हैं। कुछ बातें जो, मेरे दिमाग में आ रही हैं

मायावती ने आज तक दलित हितों के साथ समझौता नहीं किया।
मायावती भी वही कर रही हैं जो, देश की सारी राजनीतिक पार्टियां अपने फायदे के लिए करती हैं।

मायावती पर भ्रष्टाचार के आरोप लगते हैं।
उनके ऊपर उतने ही आरोप हैं जितने दूसरी पार्टियों के अलग-अलग नेताओं के ऊपर।

अमर सिंह पर दलाली का आरोप लगता है। राजनीतिक और कंपनियों के हितों की दलाली का।
लेकिन, अमर सिंह जैसी ही राजनीतिक और कंपनियों की दलाली कांग्रेस-बीजेपी और लेफ्ट पार्टियों के भी नेता करते हैं- बस ये है कि इसके लिए काम करने वाला आदमी वहां आलाकमान के नीचे छिपछिपकर काम करता है। कांग्रेस में प्रणव मुखर्जी, भाजपा में भैरो सिंह शेखावत और दिवंगत प्रमोद महाजन, लेफ्ट पार्टी में हरकिशन सिंह सुरजीत और सीताराम येचुरी क्या यही रोल अपनी पार्टी के लिए नहीं करते।

किसी भी राजनीतिक नेता से ज्यादा अमर सिंह निजी जिंदगी में अपने मित्रों का साथ देते हैं।
भले ही इसके लिए ये हल्ला किया जाए कि सब राजनीतिक-आर्थिक फायदे के लिए हैं।

राखी सावंत के साथ आजतक अभिषेक के अलावा दूसरे लड़के का नाम नहीं सुनाई दिया।
पब्लिसिटी के लिए बॉलीवुड के बड़े-बड़े घराने की लड़कियां राखी सावंत से ज्यादा नंगई कर रही हैं। और, एक से बढ़कर एक अनोखे पब्लिसिटी स्टंट भी होते हैं।


फिर, इन्हीं लोगों को इतनी गाली देकर ऐसा बनाने की कोशिश क्यों होती है कि ऐसे लोग ही सब खराब कर रहे हैं। और, सारे लोग बहुत ही अच्छा कर रहे थे। दरअसल, इसका जवाब एक दूसरे सवाल में छिपा हुआ है। CNN IBN चैनल पर भारत के पहले फील्ड मार्शल और 1971 की बांग्लादेश लड़ाई जांबाज हीरो सैम मानेकशॉ का पुराना इंटरव्यू चल रहा था। सैम उसके एक दिन पहले ही पूरी जिंदगी जीकर धरती छोड़ स्वर्ग में जा चुके थे (मुझे पूरा भरोसा है सैम स्वर्ग में ही गए होंगे)।

करन थापर ने पहले बीबीसी के लिए सैम का इंटरव्यू किया था। और, वही इंटरव्यू चल रहा था। करन थापर हमेशा की तरह शानदार इंटरव्यू कर रहे थे। अच्छी दोस्ती की वजह से प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी को स्वीटी कहकर बुलाने वाले सैम का इंटरव्यू कर रहे करन कहीं भी कमजोर नहीं दिखे। जब मैंने विकीपीडिया पर करन की पारिवारिक पृष्ठभूमि जानी तो, दिखा कि करन के पिता सेना में जनरल थे। और, करन के पास दुनिया के कई विश्वविद्यालयों की डिग्री है।

अब, क्या करन किसी सामान्य पृष्ठभूमि से आए होते तो, क्या सैम का इंटरव्यू कर पाते और कर पाते तो, क्या इसी दम के साथ कर पाते। देश के सबसे काबिल पत्रकारों में से एक राजदीप सरदेसाई के पिताजी मशहूर क्रिकेटर दिलीप सरदेसाई थे। और, बरखा दत्त की मां खुद हिंदुस्तान टाइम्स की मशहूर पत्रकार थीं। भाषा, मजबूत पारिवारिक पृष्ठभूमि ऐसी ताकत है जो, एक बड़ा अंतर बना देती है। और, इसका फायदा इन्हें जमकर मिला। पत्रकारिता का मैं सिर्फ उदाहरण दे रहा हूं। राजनीति में तो ऐसे नाम गिनाना और भी आसान है लेकिन, आप किसी भी क्षेत्र के दस सबसे मशहूर लोगों का नाम लेकर देखिए। मेरी बात सही निकलेगी। दरअसल मैं ये नहीं कह रहा हूं कि इन तीनों की काबिलियत में कोई कमी है। लेकिन, सच्चाई यही है कि ये लोग उस वर्ग से आते हैं जहां शुरुआत में ही इन्हें एक ऐसा प्लेटफॉर्म मिल जाता है जिसके बाद बस थोड़ा सा काबिलियत संजोए चलने की जरूरत होती है।

दरअसल यही ये वजह है जिसकी वजह से अमर सिंह, मायावती और राखी सावंत जैसे लोगों को उस पियर ग्रुप (एक ऐसा वर्ग जो, समाज के ऊपरी वर्ग में शामिल है और किसी भी कीमत पर नीचे के वर्ग को ऊपर आने नहीं देना चाहता।) में शामिल होने के लिए ऐसा करना ही पड़ता है। और, सच्चाई यही है कि बात ऐसे ही बन रही है।

मायावती की इसी बद्तमीज छवि की हैसियत है कि विचारधारा के ही आधार पर लोगों से बातचीत, दाना-पानी रखने वाले सीपीएम महासचिव प्रकाश करात मायावती के दरवाजे पहुंच गए। भाजपा तो, 3-3 बार माया मैडम के साथ खड़ी रही। ज्यादा समय नहीं बीता है सोनिया गांधी, मायावती को गुलदस्ता देते हुए फोटो खिंचा रहीं थीं।

जो, अंबानी परिवार बड़े-बड़ों को भाव नहीं देता। उस अंबानी परिवार का अनिल अंबानी, अमर सिंह का दोस्त बनने में फक्र महसूस करता है। सदी के महानायक अमर सिंह की दोस्ती के लिए अपने पुराने दोस्त राजीव गांधी कि विधवा सोनिया के दुश्मन बन जाते हैं।

राखी सावंत के शो पर आमिर खान आकर इंटरव्यू देते हैं। न्यूज चैनल राखी सावंत पर घंटे-घंटे भर के स्पेशल शो करते हैं। मीका-राखी किस प्रकरण के बाद राजदीप सरदेसाई ने भी आधे घंटे का स्पेशल किया भले ही उसके बाद अंत में ये कहकर खत्म किया कि उन्हें अफसोस है कि राखी सावंत पर उन्हें आधे घंटे का स्पेशल करना पड़ रहा है।


तो, अगली बार जब आप राखी सावंत, अमर सिंह और मायावती को गाली देने जा रहे हों तो, सोचिएगा जरूर कौन सा ऐसा वर्ग है जो, ये चाहता है कि मिडिल क्लास सिर्फ उन्हीं की तारीफ करता रहे और उनके वर्ग को नीचे के वर्ग से चुनौती न मिले।

6 comments:

  1. बहुत बढिया लिखा है। बधाई।

    ReplyDelete
  2. yeh rakhi sawant ki bebaki ko aapka nazariya sahi tahrah rha hai ,kya apne ko bachane ke liye dusare ko beaabru karna karna thik hai...

    ReplyDelete
  3. good viewpoint. abhijaaty hinsaa itanee mukhar nahee hotee, par prabhaavee zaroor hotee hai.

    ReplyDelete
  4. आपने बहुत सही लिखा है हर्ष जी.

    ReplyDelete
  5. इस बार त आप सबको धकिया के आगे निकल गए जी . बढ़िया लतियाएं हैं .अब आप हमें पार्टी विहीन छवि के पत्रकार लगने लगे हैं . छवि बनी रहे .लोकतंत्र का एक पाया जरूर मजबूत होगा .

    ReplyDelete
  6. गजब.आपकी बात शत प्रतिशत सही है.बहुत अच्छा लगा.जगदीश त्रिपाठी

    ReplyDelete

एक देश, एक चुनाव से राजनीति सकारात्मक होगी

Harsh Vardhan Tripathi हर्ष वर्धन त्रिपाठी भारत की संविधान सभा ने 26 नवंबर 1949 को संविधान को अंगीकार कर लिया था। इसीलिए इस द...