ऱाहुल गांधी भ्रमित भर हैं। या वो, ताउम्र ऐसी ही बचकानी राजनीतिक बयानबाजी के सहारे जीवन चलाते रहेंगे। राजीव गांधी का अक्स राहुल में देखने वालों को राहुल लगातार निराश कर रहे हैं। लोकसभा चुनावों की तैयारी में पिछले करीब साल भर से जुटी कांग्रेस ने अब चुनावी तैयारी पर पूरा जोर लगा दिया है। कांग्रेस महासचिव और देश की राजनीति का सबसे ताकतवर युवा चेहरा राहुल गांधी इस समय इंडिया डिस्कवर कर रहा है।
राहुल गांधी डिस्कवर इंडिया कैंपेन के बहाने देश भर में कांग्रेस की राजनीतिक संभावनाओं को मजबूत करने की कोशिश में लगे हैं। इसकी शुरुआत उन्होंने उड़ीसा से की है। लेकिन, राहुल के डिस्कवर इंडिया कैंपेन की शुरुआती डिस्कवरीज ने ही बता दिया है कि क्यों बीमारी के बाद भी सोनिया को कांग्रेस की कमान अपने हाथ में ही रखनी पड़ रही है। और, सोनिया को अपने पुराने कांग्रेसी खिलाड़ियों पर ही क्यों भरोसा करना पड़ रहा है। क्योकि, सोनिया के इन पुराने खिलाड़ियों ने बजट में और बजट के करीब छे महीने पहले से जो चुनावी राजनीति शुरू की है उसका कोई जोड़ नहीं।
डिस्कवर इंडिया की उड़ीसा रैली में राहुल ने जो दो बातें कहीं, मैं उन्हीं का जिक्र करना चाहूंगा। राहुल गांधी कह रहे हैं कि देश की राजनीति में युवाओं को जगह नहीं मिल पा रही है। राहुल ने यहां ईमानदारी बरती है और कह रहे हैं कि कांग्रेस तक में युवाओं को राजनीतिक जमीन मिलनी मुश्किल है। दूसरी बात राहुल ने कहा कि वो समझते थे कि उत्तर प्रदेश ही सबसे पिछड़ा राज्य है। वहां बिजली, पानी, सड़क नहीं है। लेकिन, उड़ीसा आकर उन्हें पता चला कि ये तो उत्तर प्रदेश से भी पिछड़ा राज्य है। और, उन्होंने फिर से वही राग अलापा कि उत्तर प्रदेश की ही तरह बरसों से यहां भी कांग्रेस की सरकार न होने से राज्य की ये दुर्दशा हुई है।
राहुल की डिस्कवर इंडिया कैंपेन की शुरुआती रैली की ये दोनों बातें साफ कर रही हैं कि राहुल अभी राजनीति में सचमुच बच्चे ही हैं। अभी उन्हें परिपक्व राजनेता बनने के लिए बहुत कुछ करना पड़ेगा। अब देश की आधी से ज्यादा आबादी 35 साल से कम की है सिर्फ इसलिए ये बयान दे देना कि राजनीति में किसी भी पार्टी में युवाओं के लिए जगह नहीं है। कोई राजनीति का ककहरा जानने वाला भी बता सकता है कि इससे राहुल को युवा सिर-आंखों पर चढ़ाने से रहे। राहुल कांग्रेस महासचिव हैं। उनके साथ खानदानी राजनीति करने वाले नौजवानों की पूरी टीम सोनिया ने राहुल के कहने पर ही कांग्रेस में डाल दी और राहुल को उनका नेता बना दिया। दूसरी पार्टियों की तो छोड़िए फिर, कांग्रेस में युवाओं को मौका देने के लिए उन्हें किसकी मदद की दरकार थी। बाप-दादा के जमाने से कांग्रेस की राजनीति करने वाले परिवार के अलावा एक भी सामान्य पृष्ठभूमि से आया युवा कांग्रेस की राष्ट्रीय इकाई में जगह क्यों नहीं बना पाया।
राहुल गांधी के सक्रिय राजनीति में आने के बाद भी यूपीए में कांग्रेस कोटे से बने मंत्रियों की लिस्ट देख लें तो, समझ में आ जाएगा कि कांग्रेस में अहमियत हासिल करने में कितनी उम्र जाया हो जी है। अर्जुन सिंह, प्रणव मुखर्जी, जगदीश टाइटलर, कमलनाथ और दूसरे दिग्गज मंत्री राहुल के पिता राजीव गांधी के भी पहले से कांग्रेस का राजनीति में हैं। और, गांधी-नेहरू परिवार के खास दरबारियों में से हैं। उत्तरांचल में कांग्रेस के हारने के पहले तक किसी तरह चल पाने वाले नारायण दत्त तिवारी मुख्यमंत्री थे। अब भी वो कांग्रेसी निष्ठा के आरक्षण के कोटे से आंध्र प्रदेश के राज्यपाल हैं। हो सकता है कि कांग्रेस उन्हें निकालकर-झाड़-पोंछकर कहीं से फिर से चुनावी राजनीति में धकेल दे।
राहुल युवा नेताओं को तैयार करने के लिए कितना मुस्तैद हैं, इसका अंदाजा एक और खबर से लगता है। खबर है कि दिल्ली में कांग्रेस महासचिव राहुल गांधी के ऑफिस का काम अब डेल कार्नेगी के प्रोफेशनल संभालेंगे। डेल कार्नेगी न्यूयॉर्क की ट्रेनिंग फर्म है जो, दुनिया भर की नामी कंपनियों के लोगों को बिजनेस स्किल (कारोबारी क्षमता बढ़ाने की कला) बेहतर करने की ट्रेनिंग देती है। अब यही फर्म राहुल की यूथ ब्रिगेड के कार्यकर्ताओं को ट्रेनिंग देगी। अमेरिकी फर्म की देसी इकाई डेल कार्नेगी ट्रेनिंग इंडिया कांग्रेस की युवा इकाई यूथ कांग्रेस और छात्र संगठन NSUI यानी भारतीय राष्ट्रीय छात्र संगठन को लोकसभा चुनावों के लिए तैयार करेगी। सवाल ये है कि बिजनेस के सधे-सधाए फॉर्मूलों को सलीके से अमल में लाने की ट्रेनिंग देने वाली कंपनी क्या इस देश के लोकतंत्र के लिए नौजवान नेता तैयार कर पाएगी। बात कुछ अटपटी लग रही है। लेकिन, कांग्रेस की अगली पीढ़ी के चेहरे राहुल ऐसी ढेर सारी अटपटी हरकतें कर रहे हैं।
वैसे राहुल की इस अटपटी हरकत की एक और वजह चिदंबरम के बजट भाषण को ध्यान से सुनने पर पता चलेगी। चिदंबरम ने बजट में युवाओं को तैयार करने के लिए राष्ट्रीय स्तर के नॉन प्रॉफिट स्किल डवलपमेंट कॉरपोरेशन का ऐलान किया है। इस कॉरपोरेशन को चलाने पर 15,000 करोड़ रुपए का खर्च आएगा। सरकार कॉरपोरेशन को 1,000 करोड़ रुपए का शुरुआती फंड दे रही है। सूत्रों के मुताबिक, चिदंबरम ने ये ऐलान राहुल गांधी की ही सिफारिश पर किया है। और, इस कॉरपोरेशन के जरिए यूथ डेवलपमेंट का काम डेल कार्नेगी फर्म ही करेगी। यही फर्म राहुल गांधी के संसदीय क्षेत्र अमेठी में युवा कांग्रेस कार्यकर्ताओं के लिए 16 दिन की स्किल डेवलपमेंट वर्कशॉप लगा चुकी है। अब तो समझ में आ ही गया होगा कि दुनिया के बिजनेस दिग्गजों को ट्रेनिंग देनी वाली फर्म कांग्रेसी युवा कार्यकर्ताओं को ट्रेनिंग क्यों दे रही है। वजह यही कि राहुल गांधी मानते हैं कि युवाओं को राजनीति में मौका नहीं मिल रहा है।
राहुल गांधी कह रहे हैं उड़ीसा इतना पिछड़ा है कि उन्हें अंदाजा ही नहीं लग पा रहा था। क्या ये मान लिया जाए कि अब तक राहुल गांधी उत्तर प्रदेश और दिल्ली के अलावा किसी और राज्य से वाकिफ ही नहीं थे। इसीलिए उन्हें उत्तर प्रदेश सबसे पिछड़ा राज्य लगता था। क्या कालाहांडी जैसी जगह का नाम राहुल ने अब तक सुना ही नहीं था। दरअसल राहुल के ये दोनों बयान कुछ उसी तरह के बचकाने बयान हैं जैसा, राहुल ने उत्तर प्रदेश चुनावों के समय दिया था।
राहुल गांधी ने बयान दे दिया था कि अगर गांधी परिवार का कोई सत्ता में होता तो, बाबरी मस्जिद न गिरती। राहुल भूल गए थे कि बाबरी मस्जिद का ताला राजीव गांधी के समय में ही खुला था। लेकिन, उन्होंने एक उस समय के कांग्रेस प्रधानमंत्री पी वी नरसिम्हाराव को, जिसकी गलती सिर्फ इतनी थी कि वो नेहरू-गांधी खानदान का नहीं था, उसे कठघरे में खड़ा कर दिया। राहुल ने मुसलमानों को पटाने के लिए ये बयान दे दिया था। लेकिन, कुछ फायदा नहीं हुआ। वजह ये कि कांग्रेस पार्टी की जो हालत है उसमें अगर अगले पचास सालों तक गांधी परिवार का कोई न भी शामिल रहे तो, भी कांग्रेसी भरत की तरह सिंहासन पर गांधी परिवार की राम पादुका के ही सहारे सत्ता चला पाएंगे।
उत्तर प्रदेश चुनावों के समय राहुल गांधी ने कहा था कि हमें इस विधानसभा चुनाव के लिए नहीं अगले विधानसभा चुनाव की तैयारी करनी है। तब जो खबरें आईं थीं कि राहुल के पास नौजवानों की एक पूरी टीम है जो, दिल्ली में उनके कार्यालय से लेकर उत्तर प्रदेश के हर जिले में राहुल के निर्देश पर पार्टी को मजबूत करने के लिए काम कर रही है। तब ये माना गया था कि राहुल सचमुच किसी लंबे समय की योजना पर काम कर रहे हैं। लेकिन, अब लोकसभा चुनावों की आहट से पहले राहुल का ये बचकाना बयान बताता है कि अभी राहुल को कांग्रेस का नेता बनने के लिए बहुत मेहनत करनी पड़ेगी। और, उनकी युवाओं की टीम भारतीय राजनीति की असलियत से वाकिफ ही नहीं है।
राहुल गांधी डिस्कवर इंडिया कैंपेन के बहाने देश भर में कांग्रेस की राजनीतिक संभावनाओं को मजबूत करने की कोशिश में लगे हैं। इसकी शुरुआत उन्होंने उड़ीसा से की है। लेकिन, राहुल के डिस्कवर इंडिया कैंपेन की शुरुआती डिस्कवरीज ने ही बता दिया है कि क्यों बीमारी के बाद भी सोनिया को कांग्रेस की कमान अपने हाथ में ही रखनी पड़ रही है। और, सोनिया को अपने पुराने कांग्रेसी खिलाड़ियों पर ही क्यों भरोसा करना पड़ रहा है। क्योकि, सोनिया के इन पुराने खिलाड़ियों ने बजट में और बजट के करीब छे महीने पहले से जो चुनावी राजनीति शुरू की है उसका कोई जोड़ नहीं।
डिस्कवर इंडिया की उड़ीसा रैली में राहुल ने जो दो बातें कहीं, मैं उन्हीं का जिक्र करना चाहूंगा। राहुल गांधी कह रहे हैं कि देश की राजनीति में युवाओं को जगह नहीं मिल पा रही है। राहुल ने यहां ईमानदारी बरती है और कह रहे हैं कि कांग्रेस तक में युवाओं को राजनीतिक जमीन मिलनी मुश्किल है। दूसरी बात राहुल ने कहा कि वो समझते थे कि उत्तर प्रदेश ही सबसे पिछड़ा राज्य है। वहां बिजली, पानी, सड़क नहीं है। लेकिन, उड़ीसा आकर उन्हें पता चला कि ये तो उत्तर प्रदेश से भी पिछड़ा राज्य है। और, उन्होंने फिर से वही राग अलापा कि उत्तर प्रदेश की ही तरह बरसों से यहां भी कांग्रेस की सरकार न होने से राज्य की ये दुर्दशा हुई है।
राहुल की डिस्कवर इंडिया कैंपेन की शुरुआती रैली की ये दोनों बातें साफ कर रही हैं कि राहुल अभी राजनीति में सचमुच बच्चे ही हैं। अभी उन्हें परिपक्व राजनेता बनने के लिए बहुत कुछ करना पड़ेगा। अब देश की आधी से ज्यादा आबादी 35 साल से कम की है सिर्फ इसलिए ये बयान दे देना कि राजनीति में किसी भी पार्टी में युवाओं के लिए जगह नहीं है। कोई राजनीति का ककहरा जानने वाला भी बता सकता है कि इससे राहुल को युवा सिर-आंखों पर चढ़ाने से रहे। राहुल कांग्रेस महासचिव हैं। उनके साथ खानदानी राजनीति करने वाले नौजवानों की पूरी टीम सोनिया ने राहुल के कहने पर ही कांग्रेस में डाल दी और राहुल को उनका नेता बना दिया। दूसरी पार्टियों की तो छोड़िए फिर, कांग्रेस में युवाओं को मौका देने के लिए उन्हें किसकी मदद की दरकार थी। बाप-दादा के जमाने से कांग्रेस की राजनीति करने वाले परिवार के अलावा एक भी सामान्य पृष्ठभूमि से आया युवा कांग्रेस की राष्ट्रीय इकाई में जगह क्यों नहीं बना पाया।
राहुल गांधी के सक्रिय राजनीति में आने के बाद भी यूपीए में कांग्रेस कोटे से बने मंत्रियों की लिस्ट देख लें तो, समझ में आ जाएगा कि कांग्रेस में अहमियत हासिल करने में कितनी उम्र जाया हो जी है। अर्जुन सिंह, प्रणव मुखर्जी, जगदीश टाइटलर, कमलनाथ और दूसरे दिग्गज मंत्री राहुल के पिता राजीव गांधी के भी पहले से कांग्रेस का राजनीति में हैं। और, गांधी-नेहरू परिवार के खास दरबारियों में से हैं। उत्तरांचल में कांग्रेस के हारने के पहले तक किसी तरह चल पाने वाले नारायण दत्त तिवारी मुख्यमंत्री थे। अब भी वो कांग्रेसी निष्ठा के आरक्षण के कोटे से आंध्र प्रदेश के राज्यपाल हैं। हो सकता है कि कांग्रेस उन्हें निकालकर-झाड़-पोंछकर कहीं से फिर से चुनावी राजनीति में धकेल दे।
राहुल युवा नेताओं को तैयार करने के लिए कितना मुस्तैद हैं, इसका अंदाजा एक और खबर से लगता है। खबर है कि दिल्ली में कांग्रेस महासचिव राहुल गांधी के ऑफिस का काम अब डेल कार्नेगी के प्रोफेशनल संभालेंगे। डेल कार्नेगी न्यूयॉर्क की ट्रेनिंग फर्म है जो, दुनिया भर की नामी कंपनियों के लोगों को बिजनेस स्किल (कारोबारी क्षमता बढ़ाने की कला) बेहतर करने की ट्रेनिंग देती है। अब यही फर्म राहुल की यूथ ब्रिगेड के कार्यकर्ताओं को ट्रेनिंग देगी। अमेरिकी फर्म की देसी इकाई डेल कार्नेगी ट्रेनिंग इंडिया कांग्रेस की युवा इकाई यूथ कांग्रेस और छात्र संगठन NSUI यानी भारतीय राष्ट्रीय छात्र संगठन को लोकसभा चुनावों के लिए तैयार करेगी। सवाल ये है कि बिजनेस के सधे-सधाए फॉर्मूलों को सलीके से अमल में लाने की ट्रेनिंग देने वाली कंपनी क्या इस देश के लोकतंत्र के लिए नौजवान नेता तैयार कर पाएगी। बात कुछ अटपटी लग रही है। लेकिन, कांग्रेस की अगली पीढ़ी के चेहरे राहुल ऐसी ढेर सारी अटपटी हरकतें कर रहे हैं।
वैसे राहुल की इस अटपटी हरकत की एक और वजह चिदंबरम के बजट भाषण को ध्यान से सुनने पर पता चलेगी। चिदंबरम ने बजट में युवाओं को तैयार करने के लिए राष्ट्रीय स्तर के नॉन प्रॉफिट स्किल डवलपमेंट कॉरपोरेशन का ऐलान किया है। इस कॉरपोरेशन को चलाने पर 15,000 करोड़ रुपए का खर्च आएगा। सरकार कॉरपोरेशन को 1,000 करोड़ रुपए का शुरुआती फंड दे रही है। सूत्रों के मुताबिक, चिदंबरम ने ये ऐलान राहुल गांधी की ही सिफारिश पर किया है। और, इस कॉरपोरेशन के जरिए यूथ डेवलपमेंट का काम डेल कार्नेगी फर्म ही करेगी। यही फर्म राहुल गांधी के संसदीय क्षेत्र अमेठी में युवा कांग्रेस कार्यकर्ताओं के लिए 16 दिन की स्किल डेवलपमेंट वर्कशॉप लगा चुकी है। अब तो समझ में आ ही गया होगा कि दुनिया के बिजनेस दिग्गजों को ट्रेनिंग देनी वाली फर्म कांग्रेसी युवा कार्यकर्ताओं को ट्रेनिंग क्यों दे रही है। वजह यही कि राहुल गांधी मानते हैं कि युवाओं को राजनीति में मौका नहीं मिल रहा है।
राहुल गांधी कह रहे हैं उड़ीसा इतना पिछड़ा है कि उन्हें अंदाजा ही नहीं लग पा रहा था। क्या ये मान लिया जाए कि अब तक राहुल गांधी उत्तर प्रदेश और दिल्ली के अलावा किसी और राज्य से वाकिफ ही नहीं थे। इसीलिए उन्हें उत्तर प्रदेश सबसे पिछड़ा राज्य लगता था। क्या कालाहांडी जैसी जगह का नाम राहुल ने अब तक सुना ही नहीं था। दरअसल राहुल के ये दोनों बयान कुछ उसी तरह के बचकाने बयान हैं जैसा, राहुल ने उत्तर प्रदेश चुनावों के समय दिया था।
राहुल गांधी ने बयान दे दिया था कि अगर गांधी परिवार का कोई सत्ता में होता तो, बाबरी मस्जिद न गिरती। राहुल भूल गए थे कि बाबरी मस्जिद का ताला राजीव गांधी के समय में ही खुला था। लेकिन, उन्होंने एक उस समय के कांग्रेस प्रधानमंत्री पी वी नरसिम्हाराव को, जिसकी गलती सिर्फ इतनी थी कि वो नेहरू-गांधी खानदान का नहीं था, उसे कठघरे में खड़ा कर दिया। राहुल ने मुसलमानों को पटाने के लिए ये बयान दे दिया था। लेकिन, कुछ फायदा नहीं हुआ। वजह ये कि कांग्रेस पार्टी की जो हालत है उसमें अगर अगले पचास सालों तक गांधी परिवार का कोई न भी शामिल रहे तो, भी कांग्रेसी भरत की तरह सिंहासन पर गांधी परिवार की राम पादुका के ही सहारे सत्ता चला पाएंगे।
उत्तर प्रदेश चुनावों के समय राहुल गांधी ने कहा था कि हमें इस विधानसभा चुनाव के लिए नहीं अगले विधानसभा चुनाव की तैयारी करनी है। तब जो खबरें आईं थीं कि राहुल के पास नौजवानों की एक पूरी टीम है जो, दिल्ली में उनके कार्यालय से लेकर उत्तर प्रदेश के हर जिले में राहुल के निर्देश पर पार्टी को मजबूत करने के लिए काम कर रही है। तब ये माना गया था कि राहुल सचमुच किसी लंबे समय की योजना पर काम कर रहे हैं। लेकिन, अब लोकसभा चुनावों की आहट से पहले राहुल का ये बचकाना बयान बताता है कि अभी राहुल को कांग्रेस का नेता बनने के लिए बहुत मेहनत करनी पड़ेगी। और, उनकी युवाओं की टीम भारतीय राजनीति की असलियत से वाकिफ ही नहीं है।
किसी भी पुरानी नीति-रीति और नारो वाला युवा नेता नहीं बन सकता। राहुल में नयी सोच ही नहीं है। वे जब बनेंगे पुरानेता ही बनेंगे।
ReplyDeleteबड़ी गहरी पड़ताली पोस्ट है भाई..राहुल गाँधी पर.
ReplyDeleteबड़ा रोचक रहेगा राहुल को भविष्य में देखना। मुझे यह लगता है कि अन्य नेता भी कद्दावर नहीं हैं और उनमें भी आवश्यक दूर दृष्टि नहीं है। ऐसे में राहुल चल सकते हैं।
ReplyDeleteकैसे उबरें? कांग्रेस वाले उबरने दें तब न!
ReplyDeleteRahul apni manzil pe pahunchne ke pehle hi bhatak gaye hain.
ReplyDeleteLekin afsos to iss baat ka hai ki elderly politicians bhi Rahul ki stale philosophy ko follow kar rahe hain.