Sunday, July 20, 2008

संगत से गुण होत हैं संगत से गुण जात ...

ये कहावत बहुत पुरानी है। लेकिन, मुझे आज ये याद आ गई जब मैं ज़ी टीवी पर सारेगामापा देख रहा था। संगीत की महागुरू आशाताई के साथ संगीत के चार धुरंधर आदेश, हिमेश, प्रीतम और शंकर महादेवन बैठे थे। एक सिंगर ने गाना गाया उसमें सुरेश वाडेकर की झलक मिली। इस पर चारों धुरंधरों में थोड़ी बहस हुई।

बहस खत्म किया संगीत की महागुरू आशाताई ने ये कहकर कि – आज बॉलीवुड में ऐसे ही सिंगर की जरूरत है जो, वर्सेटाइल हो। यानी एक फिल्म के अलग-अलग गानों की जरूरत एक ही सिंगर से पूरी होती है – फिर आशाजी ने थोड़ा pause लिया और कहा ऐसा ही वर्सेटाइल सिंगर जैसे आशा भोसले।

आशाजी के गाने का मैं बहुत बड़ा प्रशंसक हूं। मैं क्या कई पीढ़ियां होंगी। और, इसमें भी कोई शक नहीं कि आशाजी जैसे वर्सेटाइल सिंगर इंडस्ट्री में कम ही हैं। लेकिन, क्या आशाजी का खुद अपने मुंह से खुद की ही तारीफ करना ठीक है। आशाजी ऐसी ही थीं, बड़ा सिंगर होने की वजह से ये चरित्र दिखता कम था या फिर ये संगत का असर है। क्योंकि, वो उसी हिमेश रेशमिया के साथ मंच पर थीं जिसे कभी उन्होंने थप्पड़ मारने की बात कही थी। आप सबकी रा जानना चाहूंगा।

अजीत वडनेरकर जी से निवेदन है कि वो ‘संगत’ के शब्दों का सफर बताएं तो, अच्छा लगेगा।

4 comments:

  1. हमें भी अखरा था... आपने दुरुस्त फरमाया कि ..... बड़ा ....होने की वजह से ये चरित्र दिखता कम है....

    ReplyDelete
  2. यदि कोई गरीब ज्यादा मात्रा में खाना खाते दिख जाय तो कहा जाता है- “देखो, कैसा दरिद्र की तरह भकोस रहा है।” लेकिन यदि कोई सम्पन्न व्यक्ति उतना ही खाना खाता हो तो बोलेंगे- “साहब की डाइट अच्छी है।”
    तो हर्ष जी, इस ग्लैमर की दुनिया में पोलिटिकली करेक्ट बनने से काम नहीं चलेगा । इसमें तो टिके रहने के लिए अपना भोंपू ख़ुद ही बजाना पड़ेगा। सभी तो बजा रहे हैं।

    ReplyDelete
  3. अपने मूँह से ऐसा कहना-वो भी आशा जी के कद पर-कतई उचित नहीं लगता.

    ReplyDelete
  4. Is mamle me Lata ji ka jabab nahi,Aasha ji shuru se thoda dikhati hai

    ReplyDelete

एक देश, एक चुनाव से राजनीति सकारात्मक होगी

Harsh Vardhan Tripathi हर्ष वर्धन त्रिपाठी भारत की संविधान सभा ने 26 नवंबर 1949 को संविधान को अंगीकार कर लिया था। इसीलिए इस द...