स्टेट
बैंक ऑफ इंडिया के चेयरमैन प्रतीप चौधरी की मानें तो १५ जुलाई को जो फैसला उन्हें
लेना था वो उन्होंने १५ सितंबर के बाद किया। यानी पूरे दो महीने इंतजार करने के
बाद देश के सबसे बड़े सरकारी बैंक ने ब्याज दरें बढ़ा दीं। अब सबसे बड़ा सवाल यही
है कि आखिर प्रतीप चौधरी किस बात का इंतजार कर रहे थे। हमारी समझ ये कहती है कि
प्रतीप चौधरी को इंतजार था कि डी सुब्बाराव के जाने के बाद नया गवर्नर जो आएगा वो
शायद रिजर्व बैंक ऑफ इंडिया के फोकस का एजेंडा बदलेगा। क्योंकि, जो बातें नॉर्थ ब्लॉक के
गलियारों में चर्चा में थीं वो ये कि वित्त मंत्री पी चिदंबरम ग्रोथ पर फोकस करना
चाहते हैं जबकि, रिजर्व
बैंक के गवर्नर डी सुब्बाराव सरकार के इशारे के बाद भी ब्याज दरों में कटौती करने
या कटौती करने के संकेत देने तक को तैयार नहीं हैं। ये लगभग तय था कि जब चार
सितंबर को डी सुब्बाराव की गवर्नर पद से विदाई होगी तो, कोई ऐसा व्यक्ति ही पद
संभालेगा जो वित्त मंत्रालय के सुर के साथ ताल मिला सके। यानी ब्याज दरें कम करके
तरक्की की रफ्तार बढ़ाने पर फोकस कर सके। क्योंकि, चुनावी साल में महंगाई
को फोकस बताने वाला रिजर्व बैंक अभी की सरकार की संभावनाओं को धूमिल करेगा। इसीलिए
अनुमानों के मुताबिक पहले से ही सरकार के सुर के साथ ताल मिलाने का अभ्यास कर चुके
रघुराम राजन को रिजर्व बैंक का काम सौंपा गया।
प्रभावशाली, सुदर्शन व्यक्तित्व के
स्वामी रघुराम राजन ने डी सुब्बाराव की जगह ली तो सबको लगा कि अब सब ठीक हो जाएगा।
काफी हद तक ठीक भी हुआ। चार सितंबर को रघुराम राजन ने दिल्ली के नॉर्थ ब्लॉक के
वित्त मंत्रालय के सलाहकार वाला पद छोड़कर मुंबई के रिजर्व बैंक ऑफ इंडिया के गवर्नर
का पद क्या संभाला कमजोर हुआ रुपया भी ताल ठोंकने लगा। दे दनादन बाजार में भी तेजी
के सारे संकेत मिलने लगे। अठारह हजार के आसपास लहरा रहा सेंसेक्स तेजी से बीस हजार
के पार चला गया। लग रहा था कि रुपया सत्तर के पार अब गया कि तब गया लेकिन रघुराम
राजन के साथ से रुपये ने तेजी से मजबूती हासिल की और डॉलर के मुकाबले करीब दस
रुपये तक चढ़ गया। रुपये की लीकेज यानी जहां जहां डॉलर लेने के लिए रुपया देने
वाली स्थितियां थीं उनको कम करने की कोशिश की और काफी हद तक सफल भी रहे। लगे हाथ
अंतर्राष्ट्रीय बाजार से भी अच्छी खबरें आने लगीं। रुपया मजबूत हो रहा था और कच्चा
तेल भी धीरे-धीरे पटरी पर आ रहा था। रघुराम राजन के गवर्नर का पद संभालने के ठीक
एक दिन पहले जो कच्चा तेल एक सौ बारह डॉलर प्रति बैरल के ऊपर था वो एक सौ सात डॉलर
प्रति बैरल तक आ गया। लेकिन, दबे
छिपे एक गड़बड़ हो रही थी। वो गड़बड़ ये थी कि बैंकों के कर्ज धीरे से महंगे हो
रहे थे। एक सुबह मुझे भी झटका लगा जब मेरे बीस साल यानी दो सौ चालीस महीने के कर्ज
की सीमा मेरे निजी बैंक ने बढ़ाकर दो सौ पचपन महीने यानी इक्कीस साल से ज्यादा कर
दी। असल खतरा यही था। और सरकार की सामाजिक वोट बैंक की जरूरत पूरी करने के लिए
निजी बैंक भला क्यों इंतजार करते। लेकिन, सरकारी बैंक के नाम में
ही सरकार है तो वो इंतजार कर रहे थे। यही वो इंतजार था जो स्टेट बैंक ऑफ इंडिया के
प्रमुख प्रतीप चौधरी कर रहे थे। उनको लग रहा था कि बीस सितंबर की रिजर्व बैंक की
क्रेडिट पॉलिसी में कम से कम चौथाई प्रतिशत की कमी तो होगी ही। लेकिन, रघुराम राजन की नीति से
शॉर्ट टर्म में रुपया बाजार भले खुश हुआ। राजन का इरादा लंबे समय के लिए कर्ज लेने
वाले भारतीयों को खुश करने का कतई नहीं थी। इसीलिए राजन ने जब ये संकेत दिए कि
कड़वी दवा भी पीनी पड़ेगी तो मिडटर्म रिव्यू के ठीक एक दिन पहले ही स्टेट बैंक ऑफ
इंडिया ने ब्याज दरें बढ़ा दीं। निजी बैंक तो पहले ही ये काम कर चुके थे। यानी
महंगे कर्ज का दौर अभी लंबा चलेगा इसके लिए भारतीयों को तैयार रहना होगा।
महंगाई
का दौर जारी रहेगा। इसके लिए सिर्फ बैंकों का कर्ज जिम्मेदार नहीं है। हमारी-आपकी
हर तरह की महंगाई बढ़ रही है। खाना सबसे महंगा हो रहा है। अगस्त महीने के महंगाई
दर के जो आंकड़े आए हैं उनसे ये संकेत मिल रहे हैं कि महंगाई कम नहीं होने वाली।
ये आंकड़े थोक महंगाई दर के हैं। हालांकि, आंकड़ों
में ये 5.79% से
बढ़कर 6.10% ही
हुए हैं। लेकिन, खतरनाक बात इसमें जो
छिपी थी वो ये कि महंगाई दर को करीब दशमलव दो प्रतिशत बढ़ाने में खाने-पीने के
सामानों की बड़ी अहम भूमिका है। वैसे तो समय-समय पर सरकार की नीति से
खाने-पीने के सामान की महंगाई बढ़ती रहती है। लेकिन, पहले
की तरह इस बार भी तगड़ा मोर्चा प्याज ने संभाला है। प्याज ने किचन का बजट पीटकर
पटरा कर दिया है। प्याज कीमतें 250 प्रतिशत से ज्यादा बढ़ीं थीं। प्याज की कीमतें
बढ़ी हैं ये खबरें मीडिया में आने के तुरंत बाद ही बिचौलयों ने मोर्चा संभाल लिया।
नासिक से लेकर दिल्ली तक हर जगह प्याज की कमी थी। और कमी की खबरों के साथ तेजी से
बढ़ रही प्याज की कीमतों की भी खबर थी। इसने साहसी रघुराम राजन के सारे साहस की
हवा निकाल दी। महंगाई से तरक्की पर फोकस ले जाने की बात करने वाले रघुराम राजन भी
महंगाई को बैंक की प्राथमिकता में ले आए। प्याज की हॉरर स्टोरी ने उनके
अर्थशास्त्र के सारे सिद्धांतों को ध्वस्त कर दिया। राजन सुब्बाराव वाले सुर में आ
गए। विकास की जगह महंगाई रिजर्व बैंक के एंजेडे में आने से हम महंगाई के दुष्चक्र
में फंसे रहेंगे। क्योंकि, अगस्त
के भाव सितंबर में भी भाव बढ़ा चुके हैं। सितंबर की भी महंगाई दर अब घटेगी नहीं।
फिर त्यौहारों के सीजन में तो हम भारतीय कर्ज लेकर भी मस्त रहते हैं। रघुराम राजन
के पास अच्छा मौका था। रुपया काबू में था। बाजार भरोसे में दिख रहा था। जिनकी छींक
से हमारे बाजार को निमोनिया हो जाता है वो, अमेरिकी
फेडरल रिजर्व भी अच्छी बातें कर गया था। सेंसेक्स इक्कीस हजार की दिशा में जा रहा
था। लेकिन, रघुराम राजन ने इस अच्छे
मौके को बेकार कर दिया। दो हजार अंकों से ज्यादा चढ़े सेंसेक्स ने फिर उल्टी दिशा
पकड़ ली है। रघुराम राजन का पहला दिन जितना एतिहासिक इस मामले में रहा कि तेजी से
सब सुधरता दिख रहा है। रघुराम राजन की पहली मौद्रिक नीति का एलानठीक इसके उलट दिशा
में जा रहा है कि अभी सब बिगड़ा ही रहेगा। वैसे भी पॉलिसी ही कह रही है कि महंगाई
अनुमान से ज्यादा ही रहेगा। अब सारा कुछ दारोमदार इस साल की दूसरी छमाही में
बुनियादी परियोजनाओं को कितनी तेजी मिली इस पर निर्भर होगा। लेकिन रघुराम राजन के
रेपो रेट बढ़ाने के फैसले पर देश यही कह रहा है कि हे राजन ये तुमने क्या किया।
कभी कभी लगत है कि कारण और प्रभाव अपना स्पष्ट संबंध खो चुके हैं।
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