मगांअंहिंविवि में सोशल मीडिया व राजनीति सत्र का संचालन करते हुए |
बहुत समय से भारत में ये बात बार-बार उठ रही थी कि क्या भारत में भी चुनावों में अमेरिकी चुनावों की तर्ज पर नेताओं को आमने सामने बहस करनी चाहिए। लेकिन, ये बात जितनी मजबूती से उठती थी उतनी ही मजबूती से खारिज भी हो जाती थी कि भारतीय लोकतंत्र में चुनाव का तरीका अलग है। यहां विधानसभा और संसद सदस्यों के चुनाव से आखिर में कोई राज्य का मुख्यमंत्री या प्रधानमंत्री चुना जाता है। सभी दल इस छद्म व्यवहार को ही असलियत का जामा पहनाने की हर संभव कोशिश करते हैं। इसीलिए प्रधानमंत्री या मुख्यमंत्री घोषित करने की परंपरा नहीं रही भले ही वो लगभग तय होता हो। लेकिन, तकनीक ने इन छद्म व्यवहार करने वाले राजनीतिज्ञों के लिए मुसीबत खड़ी कर दी है। ये तकनीक आई सोशल मीडिया की। जिसे ट्विटर, फेसबुक, ब्लॉग या दूसरे प्रचलित सामाजिक माध्यमों के जरिए जाना जाता है। ये सोशल मीडिया राजनीति का नक्शा बदलने के लिए तैयार है। और, कांग्रेस बार-बार ये स्थापित करने की कोशिश करती रहती है कि स्वर्गीय राजीव गांधी के प्रधानमंत्री रहते @pitrodasam की दूरदृष्टि ही थी जिसने भारत को इक्कीसवीं सदी में पहुंचाया। इक्कीसवीं सदी में पहुंचाने से उनका मतलब कंप्यूटर युग में था। हालांकि, इक्कीसवीं सदी अब कंप्यूटर के माउस को कब का दरकिनार करके स्मार्टफोन और टैबलेट के जरिए देखी जा रही है। और इसे इस्तेमाल करने वाला वो नौजवान है जो पिछले 2 दशकों में राजनीति के लिए तैयार तो हो गया था (उम्र 18 के पार जा पहुंची) लेकिन, राजनीति के लिए तैयार नहीं था न ही वोट डालने के लिए। लेकिन, इंटरनेट से युक्त स्मार्टफोन और टैबलेट राजनीति बदलने का साधन बनते दिख रहे हैं औऱ इसे बदलने के लिए आगे आ रहा है वही सोया हुआ नौजवान।
कांग्रेस भले ही ये स्थापित
करने की कोशिश करे कि इक्कीसवीं सदी में वही देश को लेकर गई। लेकिन, इक्कीसवीं सदी
में पहुंचे देश के नौजवान को सबसे सलीके से साधने में कामयाब होते दिख रहे हैं
गुजरात के मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी। नरेंद्र मोदी देश के ऐसे राजनेता बने
जिन्होंने नौजवान को उसके मौज मस्ती वाले अड्डे यानी सोशल मीडिया पर जाकर धर लिया और
ऐसा पकड़ा कि देश के ज्यादातर राजनेताओं को नौजवानी के मस्त अड्डे सोशल मीडिया पर
जाना पड़ रहा है। हालांकि, कांग्रेसी नेता और यूपीए मंत्री शशि थरूर नरेंद्र मोदी
से पहले से ट्विटर पर हैं और यूनाइटेड नेशंस में अहम पद पर रहे शशि थरूर की
फॉलोइंग भी भारतीय नेताओं में सबसे ज्यादा थी। लेकिन, शशि थरूर का ट्विटर अकाउंट
बेहद निजी था। उसे अभियान के तौर पर राजनीतिक इस्तेमाल करना सीखा नरेंद्र मोदी ने।
और यही वजह रही कि जब शशि थरूर से ज्यादा फॉलोअर नरेंद्र मोदी के ट्विटर अकाउंट के
हुए तो बीजेपी और नरेंद्र मोदी के सोशल मीडिया समर्थकों ने इसका जमकर जश्न मनाया।
अभी नरेंद्र मोदी के ट्विटर पर बीस लाख से ज्यादा समर्थक हैं। और, शशि थरूर के
करीब 18 लाख। ये फर्स्ट मूवर एडवांटेज यानी शुरू में ही इस अड्डे पर अपने राजनीतिक
फायदे के लिए पहुंचने का फायदा @narendramodi को होता दिख रहा है। @narendramodi इस सोशल मीडिया के अड्डे
पर पहले पहुंचे साथ ही वो तेजी से बदलती तकनीक के साथ खुद की पहुंच बढ़ाने के लिए
भी ढेर सारे बदलाव करते रहे। मोदी ट्विटर पर अब हिंदी, उर्दू के अलावा मराठी,
उड़िया, बांग्ला, तमिल, असमिया, कन्नड़, मलयालम में ट्वीट करते हैं। जाहिर है इसके लिए
उनकी एक पूरी आईटी आर्मी है जो ये काम करती है। इसके अलावा नरेंद्र मोदी फेसबुक पर
अब रिकॉर्ड बनाने के लिए मोदी के सोशल मीडिया रणनीतिकार उनके समर्थन में बने
अलग-अलग पन्नों को एक साथ जोड़ देने की कोशिश में लगे हैं। इसके लिए वो फेसबुक के मुख्यालय
में बात कर रहे हैं जिससे मोदी के समर्थकों की प्रभावी संख्या एक ही पन्ने पर नजर
आने लगे। सोशल मीडिया राजनीति बदल रहा है इसके तरीके भी। पहले चुनाव आते ही शानदार
नारे गढ़े जाने लगते थे। एक-दो शानदार नारे से पूरे चुनाव की नैया पार हो जाती थी।
लेकिन, सोशल मीडिया की लड़ाई एक दो नारों से नहीं चल सकती। हालांकि, इसमें भी कोई
एक दो सटीक हैशटैग लड़ाई को शानदार बना देते हैं। राहुल गांधी के लिए बीजेपी
समर्थक ट्विटरबाजों के #pappu
के इस्तेमाल से परेशान कांग्रेस की सोशल मीडिया
टीम ने नरेंद्र मोदी के लिए #feku हैशटैग को प्रचलित करने की कोशिश की और ये दोनों
कोशिशें सोशल मीडिया की राजनीति में जमकर सफल हुई हैं। ये आज के सबसे चर्चित
हैशटैग हैं। और, ये चरम पर तब पहुंचा था जब देश के दो सबसे बड़े उद्योग संगठनों CII और FICCI ने राहुल गांधी और नरेंद्र मोदी को हफ्ते भर के भीतर ही
अपने मंचों पर बुलाया। राहुल गांधी CII की एजीएम में आए तो, नरेंद्र मोदी FICCI की महिला शाखा के कार्यक्रम में।
सोशल मीडिया के जरिए
राजनीति कैसे बदल रही है इसका अंदाजा सरकारों को भी लग रहा है। देश की ज्यादातर
सरकारें अब सोशल मीडिया के जरिए तुरंत अपनी उपलब्धि या फिर अपने खिलाफ दुष्प्रचार
को खारिज करने के लिए सोशल मीडिया का इस्तेमाल कर रही हैं। प्रधानमंत्री मनमोहन
सिंह के लिए मौनी बाबा जब सरकार की छवि को गर्त में पहुंचाने लगा तो, प्रधानमंत्री
कार्यालय का सोशल मीडिया अवतार हुआ और @PMOIndia के जरिए प्रधानमंत्री कार्यालय से सरकार की उपलब्धियों का
जमकर बखान किया जाने लगा। हालांकि, @PMOIndia विवादों में भी रहा कि कई ट्विटर अकाउंट्स को उसने इसलिए
ब्लॉक कर दिया कि वो सरकार के लिए अप्रिय स्थितियां पैदा कर रहे थे। हाल ये कि @PMOIndia के ब्लॉक करने को भी कई
ट्विटरबाज अपने ट्विटर प्रोफाइल पर किसी सम्मान जैसा चमकाए रखे हैं। सरकार के हर
मंत्रालय की उपलब्धियां उस मंत्रालय के ट्विटर हैंडल के अलावा @PIB_India पर भी चमकने लगी हैं। प्लानिंग कमीशन का ट्विटर हैंडल @PlanComIndia तो बाकायदा नौजवानों को जोड़ने के लिए उनसे पंचवर्षीय योजना पर टिप्पणियां
मांगने लगा।
राजनीति में सोशल मीडिया का
महत्व किस कदर बढ़ गया है इसका अंदाजा एक छोटी सी बात से लगाया जा सकता है। यूपीए
2 के एक बेहतर मंत्री अजय माकन चुनाव से ठीक पहले इस्तीफा दे देते हैं। अजय माकन
अब कम्युनिकेशन डिपार्टमेंट के इंचार्ज हैं। @ajaymaken के ट्विटर प्रोफाइल
पर ये दर्ज है। नरेंद्र मोदी के सोशल मीडिया अभियान को रोकने के लिए अजय माकन की
कांग्रेसी सोशल मीडिया ब्रिगेड हरसंभव कोशिश में लगी है। हैशटैग्स के जरिए नारों
की तरह सोशल मीडिया की लड़ाई में हैदराबाद रैली के दिन कांग्रेसी ब्रिगेड #FaekuExpress को टॉप ट्विटर ट्रेंड में
दर्ज कराने में कामयाब रही। हालांकि, इसके जवाब में बीजेपी आईटी सेल ने #PappuPassenger को भी ट्विटर ट्रेंड बनाने
की भरसक कोशिश की। नरेंद्र मोदी समर्थकों के लिए सुकून की बात ये थी कि ज्यादातर
समय ट्विटर का नंबर वन ट्रेंड #NaMoInHyd ही रहा। लेकिन, नरेंद्र मोदी जब हैदराबाद की रैली के बाद
हर तरफ से तारीफ पा रहे थे तो अजय माकन का ये दिलचस्प ट्वीट आया
Why is #fakuexpress
trending at number one? Has it something to do with some other wrong figures
and lies feted out in hyderabad today?
अजय माकन के इस ट्वीट को 128 रीट्वीट मिले और 23 लोगों का ये पसंदीदा ट्वीट बना। लेकिन, जरूरी नहीं कि सारे
रीट्वीट अजय माकन के साथ ही हों। 128 रीट्वीट में से एक दिलचस्प जवाब सुन लीजिए-
Interesting
@ajaymaken’s role has been reduced to checking twitter trends. That’s what happens when all that u do is to please
1 dynasty.
हैदराबाद की इस रैली का
सबसे ज्यादा प्रचार-प्रसार भी सोशल मीडिया पर ही हुआ। आंध्र प्रदेश बीजेपी के
अध्यक्ष और अंबरपेट विधानसभा से चुने गए जी किशन रेड्डी @kishanreddybjp ने कई महीने पहले से ही नरेंद्र मोदी की हैदराबाद रैली के लिए समां बांधना
शुरू कर दिया था। किशन रेड्डी खुद भी ट्विटर पर अत्यंत सक्रिय हैं। जिस तरह से
धरातल की राजनीति में किसी बड़े नेता के नीचे उससे कम प्रभाव वाले नेताओं की उसी लिहाज
से सीढ़ी बनती है। वैसा ही सोशल मीडिया के राजनीतिक धरातल पर हो रहा है। नरेंद्र
मोदी या फिर कांग्रेस समर्थकों की फॉलोअर संख्या ये बताती है कि कौन कितना तगड़ा
प्रचार इस जमीन पर चला पा रहा है और उसको कितना समर्थन मिल रहा है। सोशल मीडिया की
ताकत का अंदाजा राजनेताओं को नरेंद्र मोदी की बढ़ती लोकप्रियता के बाद लगा। कई
लेखों में तो 2014 के चुनाव से पहले ही नरेंद्र मोदी सोशल मीडिया का प्रधानमंत्री
तक कह दिया गया। लेकिन, अब नरेंद्र मोदी या दूसरे नेताओं को सोशल मीडिया प्रभाव के
अलावा तथ्य भी जुड़ने लगे हैं। एक सर्वे कह रहा है कि देश की 160 संसदीय सीटों पर
सोशल मीडिया यानी वही 18 साल से ऊपर का स्मार्टफोन, टैबलेट वाला नौजवान तय करेगा
कि संसद कौन पहुंचेगा। यही वजह थी कि गोवा में बीजेपी की लोकसभा चुनाव प्रचार
अभियान समिति का अध्यक्ष बनने के बाद जब पहली बार नरेंद्र मोदी मुंबई पहुंचे तो,
उन्होंने पार्टी पदाधिकारियों से साफ कहा कि उन्हें 48 लाख सोशल मीडिया आईडी
चाहिए। महाराष्ट्र में कुल 48 लोकसभा सीटें हैं। यानी हर लोकसभा सीट से एक लाख
सोशल मीडिया आईडी। यानी एक लोकसभा में एक लाख लोगों तक मोदी एक झटके में अपनी बात
पहुंचाने की तरकीब का बेहतर से बेहतर इस्तेमाल करना चाहते हैं।
सोशल मीडिया की ताकत का
अंदाजा पिछले कुछ समय से सबको लग रहा है। इसका सबसे बड़ा प्रभाव तब दिखा था जब
अप्रैल 2011 में पहले जंतर मंतर और उसके बाद रामलीला मैदान से अन्ना हजारे ने
भ्रष्टाचार के खिलाफ बड़ी लड़ाई छेड़ी थी। उस समय टीम अन्ना का सबसे बड़ा चेहरा
अरविंद केजरीवाल थे। और भारतीय इतिहास में ये सबसे बड़ा आंदोलन साबित हुआ जो पूरी
तरह से सोशल मीडिया की जमीन पर पाला पोसा गया था। हालांकि, उस समय इस आंदोलन के
पूरी तरह से सामाजिक होने की बात थी। जो मेरा खुद का भी अनुमान था। लेकिन,
धीरे-धीरे अरविंद की राजनीतिक महत्वाकांक्षा ने अन्ना हजारे के सामाजिक आंदोलन को
अकेला कर दिया। उसके पीछे की बड़ी वजह भी यही रही कि अन्ना हजारे की अपील थी है
लेकिन, अन्ना अपनी बात उस वर्ग तक नियमित पहुंचाने का साधन नहीं खोज पाए जो उनके
लिए रामलीला मैदान में 13 दिन तक डटा रहा था। और जब सोशल मीडिया के जरिए आने वाली
भीड़ बंद हुई तो टीवी का कैमरा और अखबार की कलम भी अन्ना से हट गए। भारतीय राजनीति
को उसी समय सोशल मीडिया की जोरदार अहमियत का अंदाजा हुआ था। अन्ना की टीम से
राजनीति के मैदान में पूरी तरह से कूद चुके अरविंद केजरीवाल की असल ताकत अभी भी भी
सोशल मीडिया पर अपने लोगों तक पहुंचना और जुड़े रहना है।
सोशल मीडिया पर राजनीति का
वाकया जम्मू कश्मीर से भी जुड़ा है जब आडवाणी ने ब्लॉग पर धारा 370 के खिलाफ लिखा।
ट्विटर पर पूरी तरह से सक्रिय कश्मीर के मुख्यमंत्री उमर अब्दुल्ला लालकृष्ण
आडवाणी को चुनौती देने वाले अंदाज में आ गए। उसके बाद अभी किश्तवाड़ में हुई हिंसा
की भी असल खबरें पहले सोशल मीडिया के जरिए ही आईं। उसके बाद ही मुख्य धारा के
मीडिया में ये खबरें दिखनी शुरू हुईं। ट्विटर पर लोकसभा में विपक्ष की नेता सुषमा
स्वराज और जम्मू कश्मीर के मुख्यमंत्री उमर अब्दुल्ला के बीच विवाद टीवी चैनलों की
सुर्खियां बना और अगले दिन अखबारों की। फास्ट फूड वाली जेनरेशन के समय सोशल मीडिया
नौजवानों के लिए फास्ट फूड की तरह है। फास्ट फूड जैसे हर चौराहे पर वैसे ही सोशल
मीडिया की खबर हर स्मार्टफोन, टैबलेट पर।
जिस तरह से असल राजनीति में
कीचड़ उछालने और छवि खराब करने का खेल चलता है वो यहां सोशल मीडिया में भी है। जो
पसंद नहीं या जिसकी छवि खराब करनी हो उसके नाम से एक आईडी बनाओ और उसी से उसका
मजाक बनाओ। कांग्रेसी खेमे खासकर राहुल, सोनिया को सबसे ज्यादा परेशान करने वाले
सुब्रमण्यम स्वामी ट्विटर पर भी यही काम जोर शोर से कर रहे हैं। अब @swamy39 बीजेपी में शामिल हो गए हैं। तो, कांग्रेस खेमे ने @BJPShooSwamy के नाम से एक अकाउंट बनाकर उनका छवि बिगाड़ने का अभियान
छेड़ रखा है। कुल मिलाकर सोशल मीडिया भारतीय राजनीति को बदल रहा है लेकिन, बहुत सी
बातें पुरानी राजनीति की यहां नए रंग में देखने को मिलेंगी।
आज शोशल मीडिया एक ऐसी ताकत बन चूका है जो परंपरागत मीडिया को सच्चाई दिखाने को मजबूर कर रहा है और जब सच्चाई जनता तक पहुँचती है और सरकारें तो चाहती ही नहीं है कि सच जनता तक पहुंचे !! एक तरह से देखा जाए तो शोशल मीडिया परंपरागत मीडिया और सरकारों की मिलीभगत के लिए सबसे बड़ा खलनायक बन कर उभर रहा है !
ReplyDeleteपूरी बहस सुनी, सच कहा है आपने। आज भले ही कोई आगे रहे या पीछे पर आने वाले समय में सच ही जीतेगा और सोशल मीडिया सच को स्थापित रखने के लिये सबको बाध्य करेगा।
ReplyDelete.. जैसा कि मैं पहले ही कह चुका हूं कि आप की प्रस्तुति दमदार थी। बहुत अच्छे..
ReplyDeleteताकतवर विचार इनका प्रत्येक नुक्कड़ पर हो प्रचार एवं प्रसार।
ReplyDeleteइस नुक्कड़ पर हो गया तो हर नुक्कड़ पर हो ही जाएगा।
Deleteफ़ेसबुक और ट्विट्टर आज सोशल मीडिया के प्रर्याय बन गए हैं.
ReplyDeleteब्लॉग को इसमें छोड़ना ठीक नहीं होगा।
Deleteआह.. संचालन किये जाने की वजह से कितना कुछ सुनने से रह गये..
ReplyDeleteहां संचालक बंध तो जाता है लेकिन, फिर भी हम उस तरह के हलवाई बन गए जो मिठाई खुद भी जमकर खाता है :)
Deleteकांग्रेस भले ही ये स्थापित करने की कोशिश करे कि इक्कीसवीं सदी में वही देश को लेकर गई। लेकिन, इक्कीसवीं सदी में पहुंचे देश के नौजवान को सबसे सलीके से साधने में कामयाब होते दिख रहे हैं गुजरात के मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी। नरेंद्र मोदी देश के ऐसे राजनेता बने जिन्होंने नौजवान को उसके मौज मस्ती वाले अड्डे यानी सोशल मीडिया पर जाकर धर लिया और ऐसा पकड़ा कि देश के ज्यादातर राजनेताओं को नौजवानी के मस्त अड्डे सोशल मीडिया पर जाना पड़ रहा है।
ReplyDeleteबहुत सुन्दर आलेख विमर्श को आमंत्रित करता ,अभिसिंचित अभिमंत्रित करता -
ना काँटों का सितम होता
ना कुनबा बेरहम होता .
ये भारत भी चमन होता .
हंसी अपना वतन होता .
निकलते और कुछ पहले
ये मैले आसमां में तुम -
तो सच मानो कभी उजड़ी
ये फुलवारी नहीं होती .
नमो नारायण कहना
सीख लेते सब जहाँ वाले
हमारे यार मोदी सा ना -
कोई अहले करम होता .
अब इसको रोकना ना -
टोकना पागल हवाओं तुम .
ये पर्वत सा गुरु होगा -
रुका ना - जो शुरू होगा .
अभी कुछ और हो जाता ,
अभी कुछ भी नहीं बिगड़ा ,
ज़रूरी दुम दबाके भागना उनका ,
जिन्हें सेकुलर कहा जाता।