हम भारतीयों को सपना देखने में बड़ा मजा आता है। ऐसा कि कोई भी हमें सपना दिखा दे तो हम मजे से उसके साथ हो लेते हैं। ये बात हमारे नेताओं को गजब समझ में आई। जवाहर लाल नेहरु ने नया भारत बनाने का सपना दिखाया। भारत एक खोज हो गई, हम भारतीय नेहरु के साथ हो लिए। इंदिरा गांधी ने गरीबी हटाओ का सपना दिखाया। फिर हम भारतीय इंदिरा के साथ हो लिए। राजीव गांधी ने इक्कीसवीं सदी में ले जाने का सपना दिखाया। हम भारतीय अब राजीव के साथ हो लिए। लेकिन, हम भारतीयों को सबसे तगड़ा सपना दिखाया गैरराजनीतिक मनमोहन सरकार ने। मनमोहन सरकार कभी नेता नहीं रहे। लेकिन, हमेशा जीवन की सर्वोच्च सुख सुविधा का भोग करते रहे। उन्होंने भी एक सपना इस देश को दिखाया। और, वो अब तक का सबसे तगड़ा सपना था। हम भारतीय बिस्तर पर पड़े इस सपने की आहट भर से गुदगुदाने लगे। वो सपना था हम भारतीयों को अमेरिकी बनाने का। वो सपना था दुनिया की सारी सुख सुविधा भारत में जुटाने का। वो सपना था हम भारतीयों को जेब में जमकर रुपया भर जाने का। वो सपना था हम भारतीयों की देह पर दुनिया के सारे ब्रांडेड कपड़ों के सज जाने का। वो सपना था हम भारतीयों के पास दुनिया की सबसे शानदार कारों के होने का। वो सपना था हम भारतीयों के हंसते-खेलते बिना संयुक्त परिवार के तनाव के मियां-बीवी और बच्चे के साथ मॉल में घूमने का। वो सपना था हर गांव के शहर बन जाने का। वो सपना था हर भारतीय शहर में अमेरिकी शहरों जैसी चमक का। वो सपना था 10% की तरक्की का। हम मनमोहन सरकार के साथ हो लिए। 2004 में, फिर 2009 में। सपना टूट गया है। आधा रह गया है हमारी तरक्की की रफ्तार की तरह। अब देखिए सपने में जीने वाले भारतीय बिस्तर से बूथ तक पहुंचते हैं या इस सपने के लिए 2014 में मनमोहन सरकार का साथ देते हैं। क्योंकि, सपना तो बहुत बड़ा है। और, पूरे तो पहले के भी सपने नहीं हुए थे।
देश की दशा-दिशा को समझाने वाला हिंदी ब्लॉग। जवान देश के लोगों के भारत और इंडिया से तालमेल बिठाने की कोशिश पर मेरे निजी विचार
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सपनों की दुनियां से बाहर निकल जाना चाहिए !
ReplyDeleteपर इसबार सपनों में नहीं उलझना है...
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