महंगाई देश की तरक्की की रफ्तार में सबसे बड़ा ब्रेकर है। ये सबको पता है फिर भी महंगाई बढ़ रही
है। वैसे महंगाई के बढ़ने की असल वजह ज्यादातर बिचौलिए ही होते है। वैसे हम कह सकते हैं कि इस देश की ज्यादा जरूरत वाली आबादी के लिए तो सरकार खाद्य सुरक्षा बिल लेकर आई है। फिर चिंता किस बात की। लेकिन, ऐसे लोगों के बारे में सरकार शायद नहीं जानती कि खाली पेट और भूख लगती है। अब भूख लगती है तो लगती रहे। अगस्त महीने के महंगाई दर के जो आंकड़े आए हैं उनसे ये संकेत मिल रहे हैं कि महंगाई कम नहीं होने वाली। ये आंकड़े थोक महंगाई दर के हैं। हालांकि, आंकड़ों में ये 5.79% से बढ़कर 6.10% ही हुए हैं। लेकिन, खतरनाक बात इसमें जो छिपी थी
वो ये कि महंगाई दर को करीब दशमलव दो प्रतिशत बढ़ाने में खाने-पीने के सामानों की
बड़ी अहम भूमिका है। वैसे तो समय-समय पर सरकार की नीति से खाने-पीने के सामान की महंगाई बढ़ती रहती है। लेकिन, पहले की तरह इस बार भी तगड़ा मोर्चा प्याज ने संभाला है। प्याज ने किचन का बजट पीटकर पटरा कर दिया है।
प्याज कीमतें 250 प्रतिशत से ज्यादा बढ़ीं थीं। प्याज की कीमतें बढ़ी हैं इसमें
कोई बहस नहीं है और इसकी खबरें भी मीडिया में आनी ही चाहिए। लेकिन, ये खबर जिस तरह
से परोसी जा रही है वो खतरनाक है। प्याज किचन में काटते वक्त आंसू रुलाता है इसलिए
टीवी चैनलों की खबर में जब प्याज और वो भी खूब महंगा प्याज आता है तो जाहिर है खबर
देखने वालों की आंख से आंसू निकलेंगे ही। सोमवार को थोक महंगाई दर के आंकड़े क्या
आए। मंगलवार के लिए टीवी चैनलों पर खबरों का प्राथमिक एजेंडा तय हो गया। प्याज।
आंसू निकालने वाला प्याज। इसके बाद तय होता है कि प्याज पर हमारी खबर पर ही सबसे
ज्यादा आंसू निकलना चाहिए। इसके लिए जरूरी है कि सबसे ज्यादा लगने वाली खबर हो।
मतलब सबसे ज्यादा महंगी प्याज हमारे चैनल पर ही बिके।
एक चैनल पर खबर आई
प्याज ने आंसू निकाले। दिल्ली में प्याज की कीमत 70 रुपये किलो पहुंची। ये नंबर एक
वाला चैनल था तो उसके ठीक पीछे वाले चैनल ने खबर चलाई। दिल्ली में प्याज के भाव 80
रुपये किलो हुए। अब सवाल ये कि भैया दिल्ली में भाव या 70 होगा या 80 दो चैनलों पर
अलग-अलग भाव के प्याज कैसे। खैर ये भी सवाल गलत क्योंकि, हो सकता है दोनों चैनलों
के रिपोर्टर अलग-अलग दुकानों से अलग किस्म का प्याज लेकर आए हों। नंबर एक चैनल को
बुरा लगा उसने हेडलाइन में ही डाल दिया महंगाई का शतक प्याजा! अब भले ही इस हेडलाइन का कोई मतलब न हो लेकिन, भाव तो समझ में आ रहा है कि इस
चैनल पर प्याज 100 रुपये किलो तक बिक रही है। पक्का हो गया कि नंबर एक चैनल की
प्याज ही सबसे महंगी है। तो अब इसी पर सबसे ज्यादा आंसू निकलेंगे। लोग आंसू पोछेंगे
और फिर से भाव देखेंगे। टीआरपी भी देंगे। प्याज पर सरकारें पहले तो गिरी हैं। इस
बार का पता नहीं। लेकिन, टीवी चैनल वालों को ये प्याज इतनी अच्छी लगती है कि हर
तरह के प्रचार तंत्र की पारंपरिक धारणाओं को तोड़ देने वाले नरेंद्र मोदी का
जन्मदिन और मां का आशीर्वाद भी टीवी चैनलों के प्याज पर भारी नहीं पड़ सका। अब समझ
में ये नहीं आता कि क्या ऐसी खबरों पर किसी को भी मंडी भेजकर भाव तय करा लिए जाते
हैं। या एक बार चैनल अपने आर्थिक पत्रकार से ये भी समझने की कोशिश करता है कि
प्याज ने जो ये आंसू निकाले, ये जो किचन के बजट में आग लगाई, ये सब कब हुआ। लेकिन,
ये पूछ लिया जाए तो सोमवार को ही मंगलवार का एजेंडा कैसे तय हो पाएगा। और न्यूजरूम
के तय करने वाले लोग कैसे बढ़िया पैकेजिंग कर पाएंगे। देश के हर कोने से रिपोर्टर
से तय तरीके से मंडी से महंगी प्याज का वॉकथ्रू करा पाएंगे। जाहिर है हर जगह से
महंगी प्याज का वॉकथ्रू तो तय करके ही आ सकता है। दरअसल सोमवार को जो थोक महंगाई
दर के आंकड़े आएं हैं वो 2 हफ्ते पहले खत्म हो गए महीने के हैं। और उस समय जो
महंगाई थी उसमें प्याज का योगदान 250 प्रतिशत का था। किसी भी टीवी चैनल पर प्याज
के आंसू रोकने के लिए ये बात नहीं बताई गई। जाहिर है टीवी तो थोक मंडी वाला भी
देखता है और खुदरा मंडी वाला भी। उसे लगता है अरे ये टीवी चैनलों के पढ़े लिखे
जानकार लोग तो टीवी पर 70-100 रुपये किलो प्याज बेच रहे हैं। जबकि, इनको न खरीदना
है न बेचना है। तो हम क्यों पीछे रहें।
थोक मंडी वाला 30-35 रुपये किलो वाली प्याज
का भाव बढ़ाकर 40-45 कर देता है। खुदरा कारोबारी 70-100 के बीच में कहीं बेच लेगा।
और इसका असर ये कि बड़ी मुश्किल से 50-60 के बीच के भाव तक लौटा प्याज फिर से
70-100 पर चला जाएगा। और सितंबर के महंगाई के आंकड़ों में प्याज रुलाने की अपनी
शानदार भूमिका अदा करता दिखेगा। 20 सितंबर को रघुराम राजन गवर्नर बनने के बाद पहली
बार मॉनिटरी पॉलिसी का एलान करेंगे। राजन के आने बाजार, रुपया सुधरा था। सब ये भी
उम्मीद लगा बैठे थे कि राजन सुब्बाराव जैसा व्यवहार नहीं करेंगे और बढ़ती ब्याज
दरें कुछ घटाएंगे। हालांकि, उसकी उम्मीद कम ही थी। लेकिन, टीवी चैनलों पर चल रही
प्याज की हॉरर स्टोरी अर्थशास्त्र के सारे सिद्धांतों को ध्वस्त कर देगी। राजन
सुब्बाराव वाले सुर में आ जाएंगे। विकास की जगह महंगाई रिजर्व बैंक के एंजेडे में
आ जाएगी और हम महंगाई के दुष्चक्र में फंसे रहेंगे क्योंकि, टीवी चैनलों को
व्यवस्थित तरीके से स्टोरी कराने के लिए व्यवस्थित खबर चाहिए। और वो तभी होगी जब 2
हफ्ते पहले के भाव को आज का भाव साबित किया जा सके।
कितना अच्छा लिखा है आपने।
ReplyDeleteबहुत उत्कृष्ट अभिव्यक्ति.हार्दिक बधाई और शुभकामनायें!
कभी यहाँ भी पधारें और लेखन भाने पर अनुसरण अथवा टिपण्णी के रूप में स्नेह प्रकट करने की कृपा करें |सादर मदन
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sundar :)
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