Wednesday, July 13, 2016

इलाहाबादी प्रदेश अध्यक्ष की टीम से इलाहाबाद गायब

उत्तर प्रदेश में भारतीय जनता पार्टी का प्रदेश अध्यक्ष घोषित होने के तीन महीने से ज्यादा समय के बाद भारतीय जनता पार्टी के प्रदेश पदाधिकारियों का एलान हो गया। तीन दिन में घोषित होने वाली टीम को बनने में तीन महीने लग गए। आठ अप्रैल को केशव प्रसाद मौर्या प्रदेश अध्यक्ष बने थे और 12 जुलाई को भाजपा की टीम घोषित हुई है। इलाहाबाद से प्रदेश अध्यक्ष चुनने के बाद जब इलाहाबाद में राष्ट्रीय कार्यसमिति हुई तो, संदेश साफ था। कांग्रेस की बुनियाद की जमीन को आधार बनाकर भारतीय जनता पार्टी उत्तर प्रदेश में अपना 14 साल का वनवास खत्म करना चाह रही है। लेकिन, प्रदेश अध्यक्ष केशव प्रसाद मौर्या की नई टीम से दो बातें साफ हैं। पहली इसमें केशव के गृह जिले इलाहाबाद को और केशव के नजदीकियों को जगह नहीं मिल सकी है। पूरे इलाहाबाद मंडल से किसी को भी प्रदेश की टीम में जगह नहीं मिल सकी है। प्रदेश मंत्री बने अमरपाल मौर्य को छोड़ दें तो, ऐसा नाम खोजना मुश्किल है, जिस पर केशव की छाप हो। मजबूत नेता की केशव की छवि कमजोर पड़ रही है। दूसरी ये टीम भले कहने को प्रदेश अध्यक्ष की है। लेकिन, उत्तर प्रदेश में भारतीय जनता पार्टी का मतलब सुनील बंसल है, ये और मजबूती से साबित हुआ है। सुनील बंसल उत्तर प्रदेश में भारतीय जनता पार्टी के प्रदेश महामंत्री संगठन हैं। सुनील बंसल राष्ट्रीय अध्यक्ष अमित शाह के बेहद नजदीकी माने जाते हैं। विद्यार्थी परिषद के रास्ते भारतीय जनता पार्टी में आए सुनील बंसल की छाप नई टीम पर साफ दिखती है। जेपीएस राठौर, अशोक कटारिया, संतोष सिंह, कामेश्वर सिंह, दयाशंकर सिंह, कौशलेंद्र सिंह पटेल विद्यार्थी परिषद से ही भाजपा में आए हैं। लक्ष्मीकांत बाजपेयी की टीम में प्रवक्ता रहे विजय बहादुर पाठक को महामंत्री बनाना साफ दिखाता है कि बंसल ने जिसे जहां चाहा, वहां बैठाया। माना जा रहा है कि पाठक ही मीडिया भी देखेंगे। इस बार बीजेपी की प्रदेश की टीम बड़ी हो गई है। 15 उपाध्यक्ष और मंत्री बनाए गए हैं। साथ ही 8 महामंत्री बनाए गए हैं। प्रदेश उपाध्यक्ष में राज्यसभा सांसद बने शिवप्रताप शुक्ला का नाम अपेक्षित था। पहले भी शिवप्रताप शुक्ला उपाध्यक्ष रहे हैं। पार्टी शिवप्रताप को ब्राह्मण चेहरे के तौर पर आगे बढ़ा रही है। कलराज मिश्र के 75 पार करने के साथ मंत्री पद से हटने की खबरों के बीच ब्राह्मणों को रिझाने के लिए शिवप्रताप शुक्ला और हालिया बदलाव में मंत्री बने महेंद्र पांडेय बेहतर विकल्प के तौर पर देखे जा रहे हैं।


नई टीम में बड़े नेताओं के बेटों को पूरा सम्मान दिया गया है। कल्याण सिंह के बेटे राजवीर सिंह राजू एटा से सांसद हैं और नई समिति में उपाध्यक्ष बने हैं। लालजी टंडन के बेटे गोपाल टंडन लखनऊ से विधायक हैं और नई समिति में उपाध्यक्ष बन गए हैं। गृहमंत्री राजनाथ सिंह के बेटे पंकज सिंह को फिर से महामंत्री बनाया गया है। अब सवाल ये भी उठता है कि क्या पदाधिकारी को टिकट न देने को बीजेपी लागू कर सकेगी। प्रदेश अध्यक्ष के दावेदार रहे विधायक धर्मपाल सिंह को प्रदेश उपाध्यक्ष बनाया गया है। बागपत से सांसद सतपाल सिंह को भी प्रदेश उपाध्यक्ष बनाया गया है। केंद्र में मंत्री बनने की आस रखने वाले सतपाल को प्रदेश में पद देकर संभालने की कोशिश है। शामली के विधायक सुरेश राणा को प्रदेश उपाध्यक्ष बनाने से साफ है कि पश्चिमी उत्तर प्रदेश में बीजेपी के लिए कैराना जैसे मुद्दे रहेंगे ही रहेंगे। बरेली से विधायक राजेश अग्रवाल को कोषाध्यक्ष का भी जिम्मा दे दिया गया है। हालांकि, रणनीति के लिहाज से इतने सांसदों और विधायकों को ही प्रदेश में पद देना बहुत बेहतर तो नहीं कहा जा सकता। भारतीय जनता पार्टी का नया जातीय समीकरण इस टीम में भी साफ दिखता है। दलित और पिछड़ों को भरपूर जगह मिली है। कौशांबी के सांसद विनोद सोनकर को उपाध्यक्ष से हटाया गया तो, सैदपुर सुरक्षित से पूर्व सांसद रहे विद्यासागर सोनकर को वही पद दे दिया गया। इससे भी समझ में आता है कि पार्टी जातीय संतुलन को लेकर कितनी सजग है। फिलहाल मीडिया टीम और प्रवक्ताओं का एलान अभी भी बाकी है। टीम के एलान में एक बात जो सबसे ज्यादा खटकती है कि आखिर पार्टी अगले दस साल बाद प्रदेश में किन नेताओं को अगली कतार में देखना चाह रही है। 

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