लीजिए
उत्तर प्रदेश भाजपा उपाध्यक्ष दयाशंकर सिंह को पद से हटा दिया गया। भारतीय जनता
पार्टी इस कदर डरती है। दूसरी पार्टियों में ऐसी तुलना करने वाले को तरक्की मिल
जाती है। लेकिन, छोड़िए
इसे। सवाल ये है कि क्या दयाशंकर के बयान के मूल पर चर्चा होगी। दयाशंकर का बयान
और पूरे उत्तर प्रदेश में हर किसी के संज्ञान में ये बात है कि टिकट का ज्यादा दाम
मिला नहीं कि कम दाम वाले का टिकट बसपा से कटा नहीं। लेकिन, इस पर क्यों बात
करना। इससे कोई लोकतंत्र मुश्किल में थोड़े ना है।
अच्छा
मान लीजिए कि किसी ब्राह्मण, सवर्ण, पुरुष
अध्यक्ष वाली पार्टी पर कोई पिछड़ों या दलितों वाली पार्टी का नेता ऐसे ही आरोप
लगाता कि उस पार्टी में ऐसे टिकट बदल दिए जाते हैं कि वेश्याएं भी पीछे छूट जाएं, तो भी क्या ऐसे ही
प्रतिक्रिया होती। क्योंकि, दलित या महिला होने के नाते तो कोई आरोप अभी भी नहीं लगा है। लेकिन, राजनीति में ऐसे
सहूलियत हो जाती है और फिर खांचे में राजनीति में ज्यादा मुश्किल भी नहीं होती।
बेवकूफ समर्थक उसी खांचे को आराध्य मान लेते हैं। भले ही मूर्तिपूजा छोड़ दें।
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