Tuesday, September 08, 2009

भारतीयों में गुलामी का इनबिल्ट सॉफ्टवेयर

YSR रेड्डी की दुखद मौत के बाद आंध्र प्रदेश से करीब 150 लोगों की जान जाने की खबर आई है। कुछ लोगों ने अपने प्रिय नेता की मौत के बाद आत्महत्या कर ली। कुछ इस अंदाज में कि अब मेरे भगवान न रहे तो, हम रहकर क्या करेंगे। और, कुछ बेचारों ने आत्महत्या तो, नहीं की लेकिन, रेड्डी की मौत की खबर सुनने के बाद वो, ये सदमा झेल नहीं पाए। इससे जुड़ी-जुड़ी दूसरी खबर ये कि आंध्र प्रदेश से संदेश साफ है कि YSR रेड्डी का बेटा जगनमोहन रेड्डी की राज्य की बागडोर संभालेगा तो, राज्य का भला हो पाएगा। पिता के अंतिम संस्कार के समय टेलीविजन पर दिखती जगनमोहन की हाथ जोड़े तस्वीरें किसी शोक में डूबे बेटे से ज्यादा राज्य की विरासत संभालने के लिए तैयार खडे, दृढ़ चेहरे वाले प्रशासक की ज्यादा दिख रही है।



हालांकि, कांग्रेस हाईकमान के कड़े इशारे के बाद जगनमोहन का मुख्यमंत्री बनने का सपना फिलहाल हकीकत में बदलता नहीं दिख रहा है। लेकिन, सवाल यहां मुख्यमंत्री या प्रधानमंत्री बनने का नहीं है। सवाल ये है कि क्या ये नेताओं की भगवान बनने की कोशिश नहीं है जिसमें भगवान के खिलाफ खड़ा हर कोई राक्षस नजर आता है। जैसा दृष्य आज जगनमोहन को मुख्यमंत्री बनाने के लिए दिख रहा है ठीक वैसा ही दृष्य आज से कुछ साल पहले दिल्ली में देखने को मिला था जब सोनिया गांधी ने प्रधानमंत्री पद का त्याग करने का एलान कर दिया था। अब बिना प्रधानमंत्री बने भी देश की सर्वोच्च सत्ता पर सोनिया गांधी ही काबिज हैं लेकिन, जगनमोहन को ये अच्छे से पता है कि कोई दूसरा मुख्यमंत्री बनेगा तो, पिछले 5 सालों से उनके इर्द गिर्द घूम रही राज्य की सत्ता की शक्ति का केंद्र कोई और बन जाएगा।


सवाल ये है कि क्या कई सौ सालों की गुलामी झेलने वाले हम भारतीयों के अंदर गुलामी का सॉफ्टवेयर ऐसा इनबिल्ट हो गया है कि ये भारतीयों के हार्डवेयर का हिस्सा बन गया है। जवाहरलाल नेहरू की मौत के बाद भले ही गुलजारी लाल नंदा और लाल बहादुर शास्त्री को थोड़े समय के लिए प्रधानमंत्री बनने का मौका मिल गया हो। लेकिन, इस देश के अंध भक्त कांग्रेसियों को इंदिरा गांधी के सत्ता संभालने के बाद ही लगा कि अब इस देश को असली शासक मिला है। और, सिर्फ कांग्रेसियों को ही क्यों खुद अटल बिहारी वाजपेयी ने संसद में इंदिरा को दुर्गा कह डाला था।


वाजपेयी ने इंदिरा को दुर्गा कहा था। उस समय बांग्लादेश बनाने में इंदिरा गांधी के रोल पर। लेकिन, आजादी मिलने के बाद से ही इस देश में हर नेता खुद को भगवान बनाने की जीतोड़ कोशिश में जुटा है। उसकी शुरुआत खुद के कुछ भक्त तैयार करने से होती है। और, एक बार सत्ता मिली तो, उसका इस्तेमाल भगवान के चमत्कारों (सत्ता की शक्ति) से ज्यादा से ज्यादा लोगों को भक्त बनाने की प्रक्रिया शुरू होती है। अब ताजा उदाहरण YSR रेड्डी का ही लें। रेड्डी निस्संदेह आंध्र प्रदेश के चमत्कारी नेता थे। जमीन से जुड़े हुए थे। गांव-गिरांव तक उनकी पहुंच थी। सीधे जनता से संवाद था। लेकिन, इस पहलू की चर्चा कम ही हो रही है कि 2004 से 2009 के 5 साल के समय में YSR रेड्डी के मुख्यमंत्री रहते बेटे जगनमोहन रेड्डी ने कैसे विशाल कारोबारी साम्राज्य खड़ा कर लिया।


कंस्ट्रक्शन से लेकर मीडिया तक कोई कारोबार नहीं है जिसमें जगनमोहन की थोड़ी बहुत ही सही हिस्सेदारी न हो। अब जगनमोहन के पक्ष में अगर कांग्रेसी विधायकों के 70 प्रतिशत से ज्यादा का समर्थन है तो, इसे कैसे आंध्र प्रदेश की जनता की भावना मान लें। ये वो, लोग हैं जो YSR रेड्डी के सहारे 5 साल के बाद दोबारा सत्ता में हैं। ये भी उसी रेड्डी भगवान के भक्त हैं जिसने 2004 से 2009 के बीच ये साबित कर दिया कि जो, भी रेड्डी भगवान के खिलाफ है वो, राक्षस है।


ऐसा नहीं है कि ये भगवान बनने और गुलाम बनाने की कोशिश कांग्रेसी नेताओं का ही कॉपीराइट है। मायावती पूरे प्रदेश में खुद की मूर्तियां लगवा रही हैं। कह रही हैं इससे वो, मनुवाद को चुनौती दे रही हैं। अब तो लखनऊ में एक छात्र ने मायावती को देवी दिखाने वाली मूर्ति भी बना डाली है। इसी छात्र ने मायावती के साथ डॉक्टर भीमराव अंबेडकर और कांशीराम को ब्रह्मा, विष्णु, महेश के अंदाज में दिखाया है। ज्यादा समय नहीं हुआ जब राजस्थान की मुख्यमंत्री वसुंधरा के राज में उन्हें उनके राजनीतिक भक्तों ने अन्नपूर्णा देवी बना दिया था। लगे हाथ आडवाणी, राजनाथ और अटल बिहारी को भी ब्रह्मा, विष्णु और महेश बनने का मौका मिल गया।



गुलाम बनने-बनाने का ये चक्र गजब चल रहा है। हर कोई मौका मिलते ही अपने से नीचे वाले का भगवान बनना चाहता है। नीचे वालों को गुलाम बनाने का मौका मिले इसलिए अपने से बड़े भगवान की भक्ति करने से कोई नहीं चूक रहा। ये गुलाम मानसिकता ऐसी है कि अटल-आडवाणी जैसे भगवान नहीं रहे तो, बीजेपी को कोई तारनहार ही नहीं नजर आ रहा। ऐसा नहीं है कि अच्छा काम करने पर नेता का समर्थक होना उसका अनुगामी होना भी बुरा नहीं है। लेकिन, अंधआस्था के स्तर तक किसी नेता के पीछे खड़ी ये जमात हमें अंग्रेजों की गुलामी से भी बुरे दौर में ले जा रही है। भगवान के नाम पर अंधआस्था के विरोध में तो मुहिम चलती मिल भी जाती है लेकिन, नेताओं के प्रति इस अंधआस्था, गुलामी से न बचे तो, ये मानसिक गुलामी बड़ी मुश्किल बनने जा रही है। YSR रेड्डी की दुखद मौत के बाद हुई करीब 150 मौतें इस भयानक खतरे का संकेत भर हैं।

15 comments:

  1. भारतीय संस्कृति की जय हो!

    ReplyDelete
  2. ये दिल का मामला है भाई इस मे कोई कुछ नहीं कर सकता इस हार्ड्वेयर को बदला भी तो नहीम जा सकता य फिर कोई भलमनुस वायरस आये तो कुछ हो सके आलेख अच्छा है आभार्

    ReplyDelete
  3. जनता ही सारी भ्रष्ट है तो नेता भी इन्ही की पौध से तो निकलते है ! गुलामी का खून युगों से नसों में दौड़ रहा है !

    ReplyDelete
  4. हजार साल की गुलामी...यूँ ही नहीं पिघलेगी....

    ReplyDelete
  5. चप्पुओं, चमचों की बिरादरी दक्षिण में कभी-कभी भावुक भी हो जाती है। आपने सही लिखा। और भी कई खामियां है भारतीय समाज में। लोग नाराज होते हैं पर मैं अक्सर कहता हूं कि भला हो अंग्रेजों का जो बहुत कुछ सिखा गए इस सुप्त, आत्ममुग्ध, मुर्छित आत्मा वाली कौम को।
    आत्मगौरव के नाम पर सिर्फ एक ही मूर्खतापूर्ण फार्मूला कि अणु-परमाणु ज्ञान से लेकर हवाई जहाज और न जाने क्या क्या सब प्राचीन भारतीयों के पास था। वे भारतीय इनके फार्मूले लिख कर क्यों नहीं गए? डाक्यूमेंटेशन के नाम पर हमारे यहां ब्रह्मांड से भी बड़ा शून्य क्यों नज़र आता है?
    मूलतः भीरू, आलसी, अतीतजीवी ढपोरशंख हैं हम। हमारे नेताओं को राष्ट्रवाद और क्रांति के गुर सीखने के लिए भी आज से सौ साल पहले विदेशों में ही जाना पड़ता था। जिस पिस्तौल से सांडर्स का कत्ल हुआ शायद उसका फार्मूला भी प्राचीन भारतीय ग्रंथों में दर्ज रहा होगा।

    ReplyDelete
  6. भारतीयों की इस गुलाम मानसिकता को तो शायद ईश्वर भी नहीं बदल सकता!!!!!

    ReplyDelete
  7. aajad hone ke bad bhi hamari gulam mansikta aaj bhi bani hue hai...aapne sahi kaha..badhai aapko..chadnrapal@aakhar.org

    ReplyDelete
  8. जय सत्यम जय रामलिंगराजू!

    ReplyDelete
  9. जो लोग रास्ते में पोस्टर और बैनर लिए खड़े थे, उन्हें देखकर तो हम दंग रह गए. यहाँ हाल यह है कि प्रिंटर को एडवांस देते हैं तो भी वह तय समय में मैटेरियल प्रिंट करके नहीं देता. और वहां २ घंटे में बैनर और पोस्टर तैयार. कर्मठता का ऐसा उदाहरण कहीं नहीं देखा.

    और जगन बाबू को देखकर लगा कि बस अब गा ही देंगे कि; "जिसका मुझे था इंतजार, जिसके लिए दिल था बेकरार...वो घड़ी आ गई आ गई...."

    ReplyDelete
  10. जो ना हो वो कम ही है इस देश मे।जय हो।

    ReplyDelete
  11. डबल रोल वाले पिक्‍चर में सही दिखलाया जाता है .. कुछ वर्षों तक डांट मार कर रखा जाए तो .. हीरो भी अपनी शक्ति का आकलन नहीं कर पाता .. और मालिक की मार खाने को मजबूर होता है .. यहां तो मामली जनता है .. और हजारो वर्ष की गुलामी है .. कैसे सुधर जाए ?

    ReplyDelete
  12. आपने बिलकुल सटीक विश्लेषण किया है | इस तरह की आत्महत्या दक्षिण प्रान्त मैं ही होती है, उत्तर के राज्यों मैं ऐसा कम ही देखने को मिलता है |

    रही बात Y Samuel Reddy (YSR) की तो मुझे लगता है उनकी मृतु के बाद उन्हें झूठा मसीहा बनाया जा रहा है | YSR की करतूतों को सभी भूल कर बस गुण-गान करने मैं लग गए हैं | आपलोग तो ये सब भूल ही गए ki YSR ने local लेवल पे हजारों विपक्षी नेताओं को मरवाया था |

    और भी कई ऐसी चीजें रही जहाँ मैं सरतिया कह सकता हूँ की वो एक अच्छे मुखमंत्री नहीं थे :

    * तिरुपति के ७ मैं से २-४ पहाडियों पे कब्जा कर चर्च बनाने की योजना |
    * हिन्दू मंदिरों की दान को क्रिश्चियन मिसनरी के लिए उपयोग करना |
    * अनंतपुर मैं तो YSR के बेटे ने एक हिन्दू मंदिर को तोडा है |
    * लाखों हिन्दू YSR के कुत्सित प्रयास से क्रिश्चियन बने |
    ..........

    ReplyDelete
  13. भारतीय अस्मिता तब जागेगी
    जब् हरेक भारतीय
    अपने आप को सम्मान देगा
    और भारत भूमि के लिए
    अपना कार्य करेगा
    - लावण्या

    ReplyDelete
  14. फ़िर भी मेरा भारत महान। बहुत खूब, कब हम इस गुलामी की मानसिकता से उबरेंगे।

    ReplyDelete

हिन्दू मंदिर, परंपराएं और महिलाएं निशाने पर क्यों

हर्ष वर्धन त्रिपाठी Harsh Vardhan Tripathi अभी सकट चौथ बीता। आस्थावान हिन्दू स्त्रियाँ अपनी संतानों के दीर्घायु होने के लिए निर्जला व्रत रखत...