Sunday, May 27, 2007

हमें गुलामी ज्यादा पसंद आती है

भारत के ज्यादातर लोगों को अभी गुलामी ज्यादा पसंद आती है। गुलामी की प्रवृत्ति यानी किसी की जय-जयकार से ही काम बन सकता है, ऐसा सोचने वाले लोग बहुत ज्यादा हैं। और, ये बात हर दूसरे-चौथे दिन अखबारों-टलीविजन चैनलों में दिखने वाली खबरों से साबित होती रहती है। कल की दो बड़ी खबरें हैं। पहली खबर है वसुंधरा राजे अन्नपूर्णा देवी बन गई हैं और राजे के ही राज में आडवाणी, राजनाथ और अटल बिहारी को भी ब्रह्मा, विष्णु और महेश बनने का मौका मिल गया। वरना तो, प्रधानमंत्री बन जाने के बाद भी अटल बिहारी बाजपेयी मानुष भर ही रहते। राजे के राज में भगवान बनने का मौका मिला तो, फिर वो क्यों कुछ कहते, भगवान भला भक्तों को कुछ कहते हैं।

ये थी बीजेपी राज की खबर। दूसरी खबर है महाराष्ट्र के कांग्रेसी राज से। विलासराव देशमुख को भी कुछ भक्त मानस वाली जनता ने भगवान श्रीकृष्ण बना दिया। और, इस भगवान के जन्मदिवस के समारोह में बॉलीवुड की अप्सरा थोड़ा देर से पहुंची तो, भक्त मानस वाली जनता नाराज हो गई और अप्सरा पर चप्पलें फेंकनी शुरू कर दी।

खैर, ये दोनों खबरें बहाना भर हैं मैं जो बात रखने की कोशिश कर रहा हूं वो, ये कि भारत के ज्यादातर लोगों को अभी भी जय-जयकार से ही आगे जाने का रास्ता दिख रहा है। यानी गुलामी में ही राजसी ठाट के मजे लिए जा सकते हैं ये सोचने वाले बहुतेरे हैं। चलिए ये बात कैसे साबित होती है। वसुंधरा को अन्नपूर्णा देवी का दर्जा देने वाले कौन हैं ये हैं राजस्थान में बीजेपी के एक विधायक। विधायकजी राजे को देवी सिर्फ इसलिए बता रहे हैं कि राजस्थान में उनका भी राज ठीक-ठाक चलता रहे। इसका विरोध भी हो रहा है यहां तक कि खुद बीजेपी नेता जसवंत सिंह की पत्नी ने राजे और आडवाणी, राजनाथ, अटल को देवी-देवता दिखाने वाले कैलेंडर के प्रकाशक के खिलाफ धार्मिक भावनाएं भड़काने का मामला दर्ज करा दिया है। लेकिन, अब तक बीजेपी के किसी बड़े नेता ने राजे से ये नहीं पूछा कि उनके राज में ये क्या हो रहा है।

महाराष्ट्र में यही काम कांग्रेस के लोग कर रहे हैं। पूरी मुंबई में विलासराव देशमुख के अलग-अलग स्टाइल के चित्र किसी न किसी नेता के साथ चिपके हुए हैं। सभी उनको जन्मदिन की बधाई दे रहे हैं। मंत्रालय जाने वाली सड़क पर ये ज्यादा इसलिए लगे हैं विलासराव भी अच्छे से जान जाएं कि उनकी गुलामी की मानसिकता वाले कितने लोग हैं जो, जय-जयकार कर उनसे कुछ पाना चाहते हैं। और, ये रोग सिर्फ राज्यों में नहीं है। कांग्रेस में तो इसलिए भी कोई कुछ नहीं बोलने वाला क्योंकि, गुलामी से लड़कर देश को आजाद कराने वाली कांग्रेस आजादी के बाद सिर्फ और सिर्फ गुलामी को पालने-पोसने में लगी है। गुलामी का ये चक्र इंदिरा गांधी-संजय गांधी के समय में चरम पर था।

आपातकाल के बाद इस मानसिकता के लोगों को थोड़ा धक्का लगा लेकिन, बाद में पता चला कि ये धक्का इसलिए था कि उन्हें गुलाम नहीं मिल रहे थे। जो, उनकी जय-जयकार करते। जब उन्हें ज्ञान हुआ कि बिना राज के राजा नहीं बना जा सकता। तो, ये राजा के खिलाफ दूसरे को तैयार करने लगे जो, पुराने गुलामों के खिलाफ नारे लगा सकें। खैर इन्हें सत्ता मिली नए गुलाम भी मिले। किसी गुलाम ने लालू प्रसाद यादव की भक्ति में लालू चालीसा लिखी। लेकिन, ये उसी समय हुआ जब लालू डेढ़ दशक तक एक राज्य के मुख्यमंत्री (राजा) थे। अब वसुंधरा औऱ विलासराव का राज है इसलिए अब दूसरे गुलामों ने वसुंधरा को देवी और विलासराव को देवता बना दिया।

खैर बात कांग्रेसियों की हो रही थी। आजादी की लड़ाई वाली पार्टी का नाम बदनाम कर रहे इन लोगों में गुलामी के सबसे ज्यादा अवशेष मिलते हैं जो, अक्सर उभर कर सामने आ जाते हैं। उत्तर प्रदेश में जब कांग्रेस को पिछली विधानसभा से तीन सीटें कम मिलीं तो, मीडिया में हल्ला मचा कि राहुल बाबा फेल हो गए। लेकिन, राहुल बाबा क्यों फेल होने लगे जब गुलामों की पूरी टीम किसी भी फेल होने को अपने सर लेने और कुछ भी बढ़िया होने पर राहुल बाबा का चमत्कार बताने के लिए तैयार खड़ी हो। फिर क्या था राजकुमार राहुल और साम्राज्ञी सोनिया ने कहा कि उन्होंने तो कांग्रेस को पुनर्जीवित करने की पूरी कोशिश की लेकिन, उत्तर प्रदेश में कांग्रेस का संगठन किसी लायक न होने से पार्टी का ये बुरा हाल हुआ है। अब कोई इनसे ये पूछने वाला तो, था नहीं कि मैडम उत्तर प्रदेश का संगठन किसने बनाया है। लेकिन, कोई पूछता भी कैसे जब संगठन के लोगों ने ही ये मान लिया कि वही खराब हैं मैडम और राहुल बाबा ने तो बहुत मेहनत की थी।

मामला सिर्फ इतना भर नहीं है ये गुलामी का रोग इतना मजा देने लगा है कि हर जगह जय-जयकार करने वाले चापलूसों की फौज खड़ी है जो, जानते-बूझते भी किसी गलत को सही मानने को सिर्फ इसलिए तैयार खड़ी है कि इससे उसका गुलामी का रुतबा तो कायम है और उसके नीचे कुछ गुलाम मिल रहे हैं। विद्रोह सिर्फ वही कर रहा है जिससे नीचे के गुलाम छीने जा रहे हों। लेकिन, क्या इसी के लिए अंग्रेजों की गुलामी के खिलाफ इतना खून बहा। इतने शहीदों के घर दीपक बुझ गए।

नेताओं के जरिए ये बात मैंने रखने की कोशिश की। सिर्फ इसलिए कि ये लोग ज्यादा जाने समझे जाते हैं। और, इससे लोगों की समझ में बात जल्दी आएगी। लेकिन, सच्चाई यही है कि सिर्फ राजनीतिक दलों में ही नहीं ज्यादातर ऑफिसों में और दूसरी जगहों पर भी गुलामों, जय-जयकार करने वालों की फौज खडी है। इसीलिए विलासराव, वसुंधरा, राहुल, सोनिया जैसे लोग गुलामों को पाल-पोसकर बड़ बनते जा रहे हैं। और, ब़ड़े बनने की इच्छा तो सबमें होती है। तो, सब गुलाम बन रहे हैं, गुलाम बना रहे हैं औऱ बड़े बन रहे हैं।

6 comments:

  1. गजब का विश्लेषण है. इस लेख को इसी हफ्ते हम "सारथी-उद्धरण 2" लेख के द्वारा सारथी के पाठकों (www.iicet.com)के ध्यान में लाने वाले हैं.

    -- शास्त्री जे सी फिलिप

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  2. यह गुलामी नहीं है बाबू. बात का बतंगड़ क्यों बना रहे हो.

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  3. हाँ यह मानसिकता हममें बहुत बुरी तरह से भरी है और पूरे भारत में पाई जाती है । हमें जन्म से केवल अनुकरण व जयजयकार करना सिखाया जाता है प्रश्न करना कभी नहीं ।
    घुघूती बासूती

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  4. सही है।लोग आसान तरीक से अपने आकाओं को खुश करना चाहते हैं।

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  5. कही ये ग़ुलामी - विकल्प हीनता तो नही ? अगर कोई ऐसा विकल्प हो लोगों के पास जिसमे उन्हे ग़ुलामी की ज़रूरत न पड़े तो ? मेरे ख़्याल से लोगो के पास विकल्प नही है नही तो वो ऐसी हरकतें न करते

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  6. बिलकुल सही कहा है आपने | यही गुलामी वाली मानसिकता के कारन ही ऐसे भारतियों की लाइन लगी है जो विरफ और सिर्फ इम्पोर्टेड (आयातित) विचारों के सहारे ही जीना चाहता है | धन्य हो ....

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