करीब 9 महीने बाद मुंबई जाने का मौका मिला। मुंबई राजधानी में दिल्ली से मुंबई के लिए सफर शुरू हुआ। मुंबई का रोमांच- मुंबई की भीड़, गणपति, मुंबई की नई पहचान ताजा बना बांद्रा-वर्ली सी लिंक- अपनी ओर खींच रहा था।
यात्रा शुरू हुई। मेरे सामने की चार सीटों पर सिर्फ एक महिला यात्री थीं। लेकिन, माशाअल्ला पर्सनालिटी क्या पूरा पर्सनालटा था। लंबाई-चौड़ाई सब ऐसी थी कि शायद उन्हें हमारी तरह साइड की बर्थ मिली होती तो, उनके लिए उसमें समाना मुश्किल होता। किसी संभ्रांत मुस्लिम परिवार की बुजुर्ग भद्र महिला थीं। उनको छोड़ने संभवत: उनकी भतीजी और दामाद आए थे। माशाअल्ला भतीजी भी आपा पर ही गई थी। भतीजी के पति ने ऊपर वाली बर्थ एकदम से ऊपर उठा दी जिससे आपा का सर शान से उठा रहे कोई तकलीफ न हो। और, चूंकि चारो सीटों पर वो अकेली ही थीं तो, इस इत्तफाक के बहाने दामाद ने पूरी आत्मीयता उड़ेल दी और आपा के ना-ना करने के बावजूद सीट ऊपर कर दी। एसी द्वितीय श्रेणी के कूपे की ऊपर वाली सीटें फोल्डिंग हैं और, अगर आपको भी संयोग मिले कि नीचे आप हों और ऊपर की सीट खाली हो तो, इसका मजा ले सकते हैं।
कुली आपा का सामान रख चुका था। उसे पैसे देने के लिए भतीजी ने पैसे निकाले तो, आपा ने मीठी आवाज में I have lot of change … कहकर पर्स में से एक साथ निकल आई ढेर सारी नोटों में से एक 100 की नोट कुली को थमा दी। कुली बेचारा इतनी अंग्रेजी अगर समझ गया होगा तो, सोचता कि काश ऐसे ही रोज 5-10 लोग चेंज देने वाले मिल जाते तो, जीवन सुधर जाता। खैर, 100 रुपया चेंज होता है ये जानकर थोड़ा तो मैं भी हदस गया था।
मुंबई पहुंचने में अभी पूरी रात बाकी थी लेकिन, दिल्ली स्टेशन से RAJDHANI EXPRESS छूटने के साथ ही मुंबई लोकल जैसा माहौल कुछ लोगों की कृपा से बन गया था। पहले केबिन में भजन मंडली थी। शायद गुजराती थे। जोर-जोर से ताली बजा-बजाकर भगवद् भक्ति कर रहे थे। तो, दूसरे में कोई रेलवे के साहब टाइप आदमी थे। उन्होंने मोबाइल पर तेज धुन में भगवद् भक्ति पूरे कूपे के लोगों को करानी शुरू कर दी।
अब जो रेलवे के साहब टाइप आदमी लग रहे थे। मुंबई पहुंचते-पहुंचते वो मुझे रेलवे ठेकेदार या फिर किसी नेता के गंभीर चम्मच टाइप के आदमी दिखने लगे थे। दरअसल जब वो, दिल्ली स्टेशन पर आए तो, एक राजधानी का एक वेंडर उनका ब्रीफकेस लेकर आया। चद्दर-वद्दर भी उन्हीं लोगों ने बिछाई। हम सब सेकेंड एसी में ही सफर कर रहे थे। लेकिन, उनकी आवभग बड़े पैमाने पर चल रही थी। इससे मुझे वो रेलवे के साहब लगे। लेकिन, फिर किसी से फोन पर उनकी बात सुनी। वो, चीख रहे थे- मैं आया तो, तू गाजियाबाद बैठ गया। ऐसे नहीं चलने का ... मैं टेंडर फॉर्म लेकर आया था ... पूरे चार घंटे तेरा फोन नहीं उठा ... मैं दिल्ली सिर्फ इसी काम के लिए आया था।
खाना-वाना आया। ममता दीदी की सीजनल सब्जी भी पारंपरिक पनीर-मटर की सब्जी के साथ थी। लेकिन, लगा कि घर से पूड़ी- आलू की भुजिया सब्जी भर ही बनाकर रख ली होती तो, राजधानी के इस महान खाने को उदरस्थ करने से बच जाते। आज तक मुझे समझ में नहीं आया कि राजधानी एक्सप्रेस में मिलने वाला पराठा बनता कहां और कैसे है। कुछ विशेष विधि ही होगी।
खाना पेट में गया। थोड़ी देर में सोने के लिए मैं ऊपर की बर्थ पर चला गया। आपा से सटी चार सीटों पर सिर्फ दो लोग थे। एक नाइजीरियन महिला और, साथ में अपना पूरा दम लगाकर नीइजीरियन महिला को अंग्रेजी में पूरा भारत समझा देने की कोशिश करता एक बालक। बालक के कुछ संवाद सुनिए --
U KNOW Mumbai is very crowdy
U like second ac
I get bored
I like third ac only, I get bored inside the curtain of second ac compartment
अब भइया कउन कहे रहा तुमसे कि सेकेंड एसी क टिकट कटाओ पइसओ जादा लगै और बोरौ होई रहे हो। अटलजी तो, अब कुछ बोलते ही नहीं। नहीं तो, कहते- ये अच्छी बात नहीं है। वैसे यही बतिया अटलजी बीजेपी के भी हाल पे कह रहे होंगे। पर अब कोई उनकी बतिया सुनता नहीं ना। न पार्टी वाले औ न मीडिया।
खैर, कुपोषण का तगड़ा शिकार दिखती नीइजीरियन महिला ने मुंह पर कंबला डाला तो, सेकेंड एसी के परदों में बोर हो रहे भाई ने बोरियत मिटाने के लिए दूसरी लाइन लगा ली। गुस्से के साथ फुसफुसाने के प्रयास में वो, आवाज ज्यादा दूर तक जा रही थी। भाई बोल रहा था – इसमें पैसे खत्म हैं। दूसरे नंबर से करता हूं फोन उठा लेना। उधर से जो भी हुआ हो। इधर से फिर तुम समझती क्यों नहीं हो कोई बात ... अच्छा पहले फोन उठाओ तब बात करता हूं। दूसरे फोन से बात शुरू हुई। अब मुझे तो सिर्फ इधर के भाई की ही बात सुनाई दे रही थी ...
तुमने फोन क्यों नहीं किया... न उठाया न कॉल बैक किया ...
तुम अपने आप को समझती क्या हो ...
मुझे भी तुमसे बात नहीं करनी लेकिन, ये बताओ कि तुमने फोन क्यों नहीं उठाया ...
ठीक है जाओ मुझे भी तुमसे बात नहीं करनी फोन कट ...
मैंने सोचा चलो अब सो जाऊं। तब तक ट्रेन सूरत पहुंच चुकी थी। अचानक कोहराम मच गया। टीटी महोदय आधी नींद से भागे चले आए थे।
किसने आप लोगों को यहां लिटाया। किसने ये सीट दी।
अपने बाल मैं हेयरबैंड लगाती बलशाली बालिका बोली। इन्हीं भैया ने तो, कहा था। ये दोनों सीट ले लीजिए। हमारी दो में से एक सीट पर कोई और है। वही बोर होने वाले भाईसाहब। दरअसल उनकी नाइजीरियन महिला के ऊपर वाली बर्थ थी। वो, लेट गए नीचे की ही सीट पर बेचारे ने टीटी से पूछा भी था। खैर, टीटी ने फिर से बलशाली मां-बेटी को उनकी सीट दी। बेहद मॉडर्न मां-बेटी ने वेटर से सूप और आइसक्रीम की फरमाइश कर दी। तभी बेटी का फोन बजा --
hello ... hello ... यार नेटवर्क में problem लग रही है ... फोन कट गया
बेटी ने बताया वो, कह रहा है कि ऐसा गंदा फोन लेकर चलती हो। जिससे बात ही नहीं होती। आग लगा दो ... मां ने तुरंत कहा -- उसे बोलो आग लगा देती हूं ... और, उससे अच्छा फोन खरीदवा लो, दोनों मां-बेटी ठहाका लगाकर हंस रहे थे। ये नए जमाने की मां-बेटी हैं ... नए अच्छे मॉडल वाला फोन देने वाला मिलता रहे तो, कोई दिक्कत नहीं। नैतिकता, morality पता नहीं ये शब्द मेरे कानों में बेवजह गूंजने लगे। कुछ पुराने ख्यालात का आदमी हूं क्या मैं?
हुआ ये था कि जो, रेलवे के साहब टाइप इंप्रेशन वाले मराठी आदमी थे। उनकी नींच खुली तो, देखा कि सेकेंड एसी में जो, निजी कूपे का मजा था। उसमें तो, मां-बेटी ने आकर खलल डाल दिया था। वो, सीधे गए टीटी को हड़काया। उसके बाद हड़कंप मच गया। डॉट खाने के बीच में ही बेचारे ऑर्डर लेने वाले मुख्य वेटर से मैंने पूछा- वो, भाईसाहब क्या रेलवे में हैं। तो, उसने ऐसे ही हां में मुंडी हिला दी।
लेकिन, सुबह जब मैंने उनका पूरा बर्ताव देखा तो, मुझे समझ में आ गया। ये कोई दिल्ली-मुंबई के बीच के दलाल टाइप, ठेकेदार टाइप या फिर किसी बड़े नेता के चंपू टाइप आदमी हैं। और, संभवत: वो राजधानी के सेकेंड एसी में बिना टिकट शाही सेवा लेते हुए मुंबई जा रहे थे। रेलवे के घाटे-मुनाफे का तो, पता नहीं। लेकिन, जो आप कभी-कभी फलाना जी के नाम पर ढमाका जी के यात्रा और उन पर पेनाल्टी या फिर मुफ्त यात्रा करते पकड़े जाने की खबर सुनते हैं वो, ऐसे ही जुगाड़ू लोग होते हैं। भ्रष्टाचार की ऐसी सुप्त गाथाएं हर जगह चल रही हैं। जो, कभी-कभी दिख जाती हैं। ज्यादातर रसूख बढ़ाने में काम आती हैं। खैर, छोड़िए भ्रष्टाचार तो अब मुद्दा ही नहीं रहा है। मेरा भी सफर खत्म हो गया।
देश की दशा-दिशा को समझाने वाला हिंदी ब्लॉग। जवान देश के लोगों के भारत और इंडिया से तालमेल बिठाने की कोशिश पर मेरे निजी विचार
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ReplyDeleteदिप्ती तुम्हारा ध्यान किधर है ? ये साहब सेकेंड एसी से यात्रा करते है हम जनरल बोगी वालो को ये बताने मे उन्होने इतनी लंबी पोस्ट लिख डाली और आप ध्यान तक नही दे रही कैसे चलेगा ?
ReplyDeleteअरे! हम तो उस पर्सनालटे के चक्कर में पूरी पोस्ट पढ़ गए और आपने कुछ बताया ही नहीं उनकी पर्सनालटी के बारे में :-)
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