वंशवाद की बात अब किसी को समझ में नहीं आ रही है। कम से कम उनको तो नहीं ही समझ में आ रही है जिनके बेटे-बेटी या कोई नजदीकी रिश्तेदार इतने बड़े हो गए हैं कि चुनाव लड़ सकें। और, वो पहले से ही किसी पार्टी में इस हैसियत में हैं कि अपने चुनाव लड़ने लायक उम्र वाले बेटे-बेटी या फिर नजदीकी रिश्तेदार को टिकट दिलवा सकें।
दरअसल सारा मामला पलट गया है। कांग्रेस के वंशवाद के खिलाफ लड़ाई लड़ते-लड़ते विपक्षी पार्टियों के लोगों की उम्र बढ़ गई और उन्हें अंदाजा ही नहीं लगा कि कब उनके बेटे-बेटी भी वंशवादी राजनीतिक विरासत को संभालने के लिए तैयार हो गए। लेकिन, अभी रूडी के बेटे-बेटी शायद टिकट लेने भर की उम्र के नहीं हुए हैं इसीलिए बीजेपी प्रवक्ता राजीव प्रताप रूडी ने राष्ट्रपति प्रतिभा पाटिल के बेटे राजेंद्र शेखावत को कांग्रेस का टिकट मिलने का संभावना दिखते ही बयान जारी कर दिया कि “the prez should have refrained from this entire ticket business.... It seems that the prez house too has got infected from this family fiefdom...”
लेकिन, रूडी महाराष्ट्र में ही अपने सबसे बड़े नेता गोपीनाथ मुंडे को शायद याद नहीं रख पाए थे। महाराष्ट्र में वंशवादी राजनीति को आगे बढ़ाने की होड़ सी लगी है। कांग्रेस में ऐसे 67 नेता हैं जिनके बेटे-बेटी या फिर नजदीकी रिश्तेदारों को टिकट देने का दबाव है। विलासराव देशमुख बेटे अमित के लिए टिकट चाहते हैं, सुशील कुमार शिंदे बिटिया प्रणीति को, पतंगराव कदम बेटे विश्वजीत को, प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष मानिकराव ठाकरे बेटे राहुल को विधानसभा में देखना चाहते हैं।
बीजेपी में वंशवादी राजनीति का सबसे बड़ा ठेका खुद गोपी बाबू ने उठा रखा है। अरे वही मुंडे साहब जो, अब भी महाराष्ट्र बीजेपी में स्वर्गीय प्रमोद महाजन के राजनीतिक कौशल की दुहाई देकर मजे लूट रहे हैं। प्रमोद महाजन की बिटिया पूनम का नाम लोकसभा में आगे नहीं बढ़ा पाए लेकिन, अब विधानसभा में तो पार्टी को टिकट देना ही था। लगे हाथ मुंडे ने अपनी बिटिया पंकजा पाल्वे और दामाद का नाम भी आगे बढ़ा दिया। कह रहे हैं कि भांजे धनंजय को भी अगर बीजेपी टिकट दे दे तो, पार्टी का उत्थान होने में देर नहीं लगेगी।
उधर, शिवसेना में भी सांसद शिवसैनिक अपनी पत्नी, बेटे-बेटी को विधायक शिवसैनिक बनाना चाहते हैं। इस वंशवादी राजनीति के खिलाफ कांग्रेस-बीजेपी-शिवसेना सबमें बगावत हो रही है। लेकिन, बगावत करने वाले वही लोग हैं जो, खुद अभी टिकट की मारामारी में हैं। अभी उनकी हैसियत नहीं बन पाई है कि वो, परिवार वाद को आगे बढ़ा पाएं तो, वो खिलाफत कर रहे हैं। जिनकी हैसियत बनती जा रही है वो, मानिकराव ठाकरे की तरह तर्क दे रहे हैं कि परिवार में कांग्रेस का कार्यकर्ता है तो, उसे परिवार वाद के नाम पर नकारना ठीक नहीं है। अब तो बीजेपी भी इसे परिश्रमवाद जैसा कुछ बताने की कोशिश कर रही है। कुल मिलाकर कांग्रेस और गांधी परिवार को वंशवाद के नाम पर गरियाने वालों की बात अब बेवकूफी लगती है।
देश की दशा-दिशा को समझाने वाला हिंदी ब्लॉग। जवान देश के लोगों के भारत और इंडिया से तालमेल बिठाने की कोशिश पर मेरे निजी विचार
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बिलकुल सही कहा आपने वैसे भी इन नेताओं की आदर है खुद शीशे के घर मे बैठ कर दूसरों के घरों पर पत्थर मारना शुभकामनायें
ReplyDeleteहर क्रान्ति वंश परम्परा पर बलिदान होती है।
ReplyDeleteवंशवाद एक ऐसी चीज़ है जो हरेक जगह मौजूद है। वो कोई भी क्षेत्र हो। डाक्टरी से लेकर फ़िल्मों तक में। जो इसका हिस्सा नहीं वो इसे गरियाता है जो है वो चुप रहता हैं। ऐसे कितने ही संगीत के घराने मिलेंगे जहाँ गायक या वादक ने केवल बच्चों को ही सिखाया है चाहे वो कितने ही निक्कमे क्यों न हो।
ReplyDeleteबिल्कुल सही बात कही है आपने | पिछले 60 वर्षों से जब देश पे राज एक ही परिवार का चल रहा है तो ये गुल तो खिलना ही था
ReplyDeleteRaje maharaje chale gaye par neta unakee hee parampara ,ki takat ko apni ya apno kee mutthi me seemit rahe ,chala rahe hain. Aur jaise hee koee thode bade pad par pahunchta hai apne ko Raja se kum nahee aankta.
ReplyDeleteमुझे तो कोंग्रेसियों की निम्न स्तर की सोच पर तरस आता है जो सत्ता के अंधे कुंए में इतने अंधे हो गए कि काल, स्थिति और सीमाओं की व्याख्या भी ठीक से नहीं समझ पाते ! जो भी कहो आज जून सा भी नेता बस्वाद को बढावा दे रहा हो मगर यह देंन तो कोंग्रेस की ही है !!
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