Friday, January 04, 2008

ये कोई पहेली तो है नहीं जो किसी की समझ में नहीं आती

देश के इतिहास में ये पहली बार हुआ है कि किसी सांसद के खिलाफ पुलिस ने अपराधियों की तरह स्केच जारीकर उसे भगोड़ा घोषित कर दिया। माननीय (मुझे ये लिखते हुए शर्म आ रही है) सांसदों की सुरक्षा के लिए लगी रहने वाली पुलिस एक सांसद की तलाश में पिछले कई महीनों से घूम रही है। सफलता नहीं मिली तो, सांसद के चेहरे के सात संभव तरीके वाले स्केच जारी किए।

ये सांसद हैं इलाहाबाद की फूलपुर संसदीय सीट से सांसद अतीक अहमद। अतीक अहमद पर वैसे तो इतने अपराधिक मामले और आरोप दर्ज हैं कि उनकी बिना पर ही सांसद को दो-तीन जन्म तो जेल में काटने ही पड़ सकते हैं। लेकिन, एक अपराधी से लगातार चार बार विधायक और फिर उसी जिले की एक सीट से अतीक को संसद का भी सफर करने का रास्ता मिल गया।

अतीक उस फूलपुर सीट से सांसद हैं जहां से देश के पहले प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरु सांसद थे। और, जिस सीट से दलित चेतना के प्रणेता कांशीराम को चुनाव हारना पड़ा था। अतीक पर आरोप सामान्य नहीं है। सांसद अतीक और उनके विधायक भाई अशरफ पर बसपा से विधायक चुने गए राजू पाल की हत्या का आरोप है। इलाहाबाद की शहर पश्चिमी सीट से लगातार चार बार विधायक अतीक ने जब अपनी विधानसभा सीट अपनी पैतृक संपत्ति समझकर आपने छोटे भाई अशरफ को सौंपी तो, समाजवादी पार्टी ने जिताऊ गणित के तहत अशरफ को टिकट भी दे दिया। क्योंकि, 2004 में अतीक को फूलपुर से लोकसभा से चुनाव लड़ना था।

लेकिन, बरसों से अतीक के आतंकराज से डरी-सहमी-ऊबी जनता ने नवंबर 2004 में हुए विधानसभा चुनाव में बसपा के राजू पाल को जिता दिया। राजू पाल भी अपराधी था लेकिन, जनता को लगा कि अतीक से तो बेहतर ही होगा। लेकिन, जनता को क्या पता था कि पैतृक विरासत छिनने पर कोई अपराधी क्या-क्या कर सकता है। आरोप है कि अतीक अहमद और अतीक के छोटे भाई अशरफ ने मिलकर राजू पाल की हत्या की साजिश रची और हत्या करवा दी। सपा के शासन में ये सब हुआ था तो, पार्टी के ही बाहुबली सांसद और उसके छोटे भाई के खिलाफ कोई कार्रवाई कैसे हो सकती थी। कुछ हुआ भी नहीं।

25 जनवरी 2005 को राजू पाल की हत्या हुई थी उसके बाद हुए दूसरे उपचुनाव में अतीक का छोटा भाई अशरफ जीतकर विधानसभा पहुंच गया। लेकिन, जब 2007में राज्य में विधानसभा के चुनाव हुए तो, अतीक, अशरफ के साथ पूरे राज्य सपा के पापों का घड़ा भर चुका था और पश्चिमी विधानसभा से अपराधी अशरफ और राज्य से अपराधियों की सरकार कही जाने वाली सपा सरकार गायब हो गगई और राजू पाल की पत्नी पूजा पाल विधायक हो गई।

उत्तर प्रदेश में ही एक और फैसला आया है। उत्तर प्रदेश कैबिनेट ने फैसला किया है कि उत्तर प्रदेश में पक्षी विहार प्रतापगढ़ की कुंडा तहसील में बेंती में ही बनेगा। बेंती अब भी रजवाड़ा है और बाहुबली उदय सिंह और सामान्य अपराधी से नेता, विधायक और मंत्री तक बन चुके उनके बेटे रघुराज प्रताप सिंह के आतंक से त्रस्त है। मायावती के शासन में बेंती में रजवाड़े के अवैध कब्जे वाली झील को पक्षी विहार बनाया गया और सरकार ने लाखों रुपए खर्च करके वहां पर पक्षी विहार बनाया। बसपा की सरकार गई और सपा की सरकार आ गई। बस इतने से ही सारा मामला बदल गया अपराधी कहे जा रहे रघुराज प्रताप सिंह सपा की सरकार में मंत्री बन गए। अब सरकारी पैसे से बना पक्षी विहार राजा रघुराज प्रताप सिंह की निजी संपत्ति बन गया । लेकिन, अच्छा हुआ कि मायावती ने फिर से सरकारी पैसे का दुरुपयोग और एक बाहुबली के आतंक को थोड़ा कम करने की कोशिश की।

उत्तर प्रदेश सरकार का इलाहाबाद के एक अपराधी सांसद और उसके छोटे अपराधी भाई और उससे सटे प्रतापगढ़ जिले के एक रजवाड़े (अब विधायक) के खिलाफ चलाया जा रहा अभियान निश्चित तौर पर काबिले तारीफ है। ये गलत कामों के खिलाफ चल रहा अभियान है। लेकिन, सच्चाई यही है कि ये अभियान इसीलिए चल रहा है क्योंकि, इन दोनों ने समाजवादी पार्टी की सरकार के दौरान मायावती से निजी पंगा ले लिया था। और, एक मुख्यमंत्री की निजी रुचि लेने की वजह से ही ये सब हो पा रहा है।

सवाल ये है कि क्या एक सरकार बदलने की वजह से ही सिर्फ अपराधी है या नहीं ये तय होता है। मायावती की ही सरकार में उनके कई मंत्री, विधायक, नेता अपराध कर रहे हैं और पुलिस उन्हें सलामी बजा रही है। अतीक अहमद और अशरफ को भी पुलिस की सुरक्षा मिली हुई थी। क्या वो पुलिस भी उन्हें बचाने में लगी रही जो, अब तक उन दोनों अपराधियों को पुलिस पकड़ नहीं सकी। सांसद अतीक के खिलाफ यूपी पुलिस ने संसद से अपील की है कि वो, अपराधी अतीक को शरण न दे। लेकिन, देश में उत्कृष्ट मापदंड की बात करने वाले सभी पार्टियों के नेता क्या अतीक जैसे अपराधी को संसद में अब तक शरण नहीं दे रहे थे।

फिर सब कुछ जानते-बूझते इस तरह के सवाल पहेली क्यों बने हुए हैं। जिसका खामियाजा लोगों को भुगतना पड़ता है। लेकिन, शायद जनता खुद ही इसकी जिम्मेदार है क्योंकि, हो सकता है अगले लोकसभा चुनाव में अतीक को वो फिर से सांसद और उसके छोटे भाई अशरफ को विधायक बना दे। साफ है सरकार बदली या फिर केंद्र में कहीं सपा के समर्थन से कोई लंगड़ी सरकार बनने की नौबत आई तो, अतीक जैसे लोग दिल्ली में शाही मेहमाननवाजी का भी मजा पा सकते हैं। लोकतंत्र की कुछ बड़ी खामियों में से ये सबसे बड़ी है।

3 comments:

  1. सब राजनीति और अपराध की जुगलबंदी है।

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  2. अभी भी यह तो पब्लिक परसेप्शन के लिये बताया जा रहा है। यह नूरा कुश्ती न हो, क्या भरोसा?

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  3. अतीक ,असरफ अल्पसंख्यक हैं इनके आतंक को आत्मसात किया जाना है .क्योंकि हमे विश्वास फैलाना है हम धर्म निरपेक्षता को लपेट कर रखे हुए हैं . क्या कमेंट दूँ ? अतीक, असरफ अहमद न होकर अतीक शर्मा , अतीक सिंह या अतीक मोदी होता तब देखा जाता . अब आतंकित आदमी आतंक पर क्या बोलेगा .
    अल्पसंख्यक को बहुसंख्यक पोस्ट और टिपण्णी की जरूरत है .इनके अपराध, इनके आतंक हमेशा देश हित मे ही
    होते है .

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