मैं इंजीनियर बनना चाहता हूं ... डॉक्टर बनना चाहता हूं ... मैनेजर बनना चाहता हूं ... आईएएस, पीसीएस अफसर बनना चाहता हूं ... हीरो बनना चाहता हूं ... बड़ा बिजनेसमैन बनना चाहता हूं ... 2007 की आखिरी रात तक देश के ज्यादातर लड़कों की आरजू कुछ ऐसी ही हुआ करती थी। लेकिन, नए साल की पहली सुबह नई आरजू, कुछ नए तरह की तमन्ना लड़कों के अंदर लेकर आई है। लड़कों के सीने में दबे अरमान उबल रहे हैं। वो, कह रहे हैं मैं किसी लड़की के कपड़े फाड़ना चाहता हूं। नहीं फाड़ पाऊंगा तो, कपड़े फटते देखने का सुख तो, जरूर लूंगा।
ये 2008 के लड़के टीवी पर दिखना चाहते हैं। तिलक लगाकर टीवी पर दिख रहे हैं। इनकी मांए-बहनें इन्हें टीका लगाकर शहादत वाले भाव में कैमरों के सामने पेश कर रही हैं। ऐसे, जैसे कह रही हों जाओ, आज इम्तिहान है तुम्हारा कमीनेपन में पुरानी सारी मर्द पीढ़ी को मात देकर लौटना। वैसे पुरानी पीढ़ी के जांबाज मर्द भी उनके साथ खड़े हैं।
भगवान शंकर या फिर छत्रपति शिवाजी किसके नाम पर इन्हें इतना साहस मिलता है, आज तक मैं समझ नहीं पाया। ऐसी नाम से सेना तैयार है। सेना पता नहीं किसे जीतती है लेकिन, ठाकरे नाम जिंदा रहे इसलिए कुछ न कुछ करती रहती है। पता नहीं किसका सामना करने के लिए इनके पास सामना अखबार भी है। संपादकीय से लेकर खबर तक कपड़े फाड़ने वालों के गुणगान हैं। कहा जा रहा है सब मराठा स्वाभिमान और मराठी अस्मिता पर हमला है।
सेना से जुड़ी शहर की साध्वी मेयर का बयान आ जाता है कि मराठी तो, किसी लड़की के कपड़े फाड़ ही नहीं पाता। सब बाहर से आए लोग ही कर रहे हैं। किसी लड़की के कपड़े फाड़ने की आरजू 31 दिसंबर 2007 की रात पूरी कर लेने वालों 14 लड़कों में से 2 लड़के कुछ उत्तर प्रदेश, बिहार जैसी जगहों से आए थे और यहीं बस गए थे। वो, संस्कारी नहीं हैं। मेयर साहिबा और उनकी सेना को शायद मरीन ड्राइव पर बलात्कार करने वाले मराठी कांस्टेबल की याद नहीं रही होगी।
सेना का एक अखबार तो, मराठी अस्मिता की लड़ाई लड़ने लगा। लेकिन, दूसरे अखबारों, टीवी चैनलों को ये बात समझ में नहीं आई। एक अंग्रेजी अखबार के दो फोटोग्राफरों का ही दुस्साहस था कि इन शूरवीरों की आरजू पूरी होने के बाद बेजवह उस पर हंगामा मच गया। मन मारकर पुलिस को कार्रवाई करनी पड़ी। मीडिया ने बेवजह ऐसी घटना को तूल दे दिया जो, मुंबई के पुलिस कमिश्नर के मुताबिक, मुंबई में कहीं भी कभी भी हो जाने वाली छोटी सी घटना थी।
गृहमंत्री को राजनीति करनी थी इसलिए कमिश्नर को कड़ी कार्रवाई की निर्देश दिया। खैर, न्याय व्यवस्था को ये गंवारा नहीं हुआ और मराठी अस्मिता के सारे प्रतीक लड़के जेल से बाहर आ गए। लेकिन, बात इतने पर ही कहां रुकने वाली थी। एक पुराने सैनिक को याद आया कि उनका तो, जीवन ही सिर्फ महाराष्ट्र के नवनिर्माण को समर्पित है। और, अगर कठिन से कठिन स्थितियों में भी परिस्थितियों में बेशर्मी से खड़े रहने वाले से नौजवान उनके पाले में नहीं रहे तो, नवनिर्माण कैसे होगा। वो, पहुंच गए सबको लेकर गृहमंत्री के दफ्तर कहा- सब मीडिया की गलती है। मीडिया ने इतना बढ़ा-चढ़ाकर मामला पेश किया कि बेगुनाह जेल भेज दिए गए।
ये बेगुनाह लड़के बेचारे तो, सिर्फ ये देख रहे थे कि लड़कियों के कपड़े कौन फाड़ रहा है। कौन है जो, नए साल में नए तरह के संकल्प पूरे करने का साहस कर रहा है। अब मीडिया में फोटो आई तो, ये समझ में ही नहीं आ रहा है कि कौन सिर्फ कपड़े फटते देखने का सुख ले रहा है। कौन ज्यादा साहसी है जो, खुद कपड़े फाड़ रहा है। वैसे ऐसे संकल्पवान नौजवानों ने 31 दिसंबर की रात और उसके बाद देश के अलग-अलग हिस्से में खूब अपने संकल्प पूरे किए।
ये त्यागी नौजवान अपने नए साल के संकल्प को लोगों के सामने जाहिर नहीं करना चाहते थे। लेकिन, बेड़ा गर्क हो ये फोटोग्राफर, कैमरामैन नाम की गंदी प्रजाति का, जिन्होंने इन लड़कों का संकल्प सबके सामने पेश कर दिया। मुंबई, दिल्ली, केरल, गुड़गांव जैसी जगहों के लड़कों का साहस सबके सामने आ गया। ऐसे उत्साही नौजवानों ने संकल्प तो पूरे देश में पूरा किया होगा लेकिन, दूसरे शहरों के फोटोग्राफर नाकारा निकले कुछ दिखा नहीं सके। और, उन लड़कों को हीरो नहीं बना सके। संकलपवान लड़कों के हाथ से प्रेस कांफ्रेंस का मौका भी निकल गया।
नए साल की शुरुआत में ही महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री के अपने जिले के एक गांव के कुछ नौजवानों ने भी ऐसा ही संकल्प पूरा कर डाला। अब ऐसा संकल्प पूरा करने वाले हीरो तो, हो ही गए हैं। टीवी चैनलों पर, अखबार पर आने लगे हैं। देश के दूसरे लड़के भी ऐसे संकल्प ले रहे हैं। मैं भी संकल्पवान होने की हिम्मत जुटा रहा हूं। मै किसी लड़की के कपड़े फाड़ना चाहता हूं। मैं कमीने से भी कमीना बनना चाहता हूं। मैं अपनी जाति के नाम पर समर्थन चाहता हूं। मैं अपने क्षेत्र के लोगों से समर्थन चाहता हूं। मैं अपने प्रदेश के लोगों का समर्थन चाहता हूं। मैं हर उससे समर्थन चाहता हूं जो, मेरे नए साल के संकल्प को पूरा करने के लिए मेरे साथ खड़ा हो सके और अब तो, गंदे पत्रकारों का भी डर नहीं रहा। मेरे संकल्प को उन्होंने सबके सामने दिखाया तो, मैं हीरो तो हो ही जाऊंगा।
ये 2008 के लड़के टीवी पर दिखना चाहते हैं। तिलक लगाकर टीवी पर दिख रहे हैं। इनकी मांए-बहनें इन्हें टीका लगाकर शहादत वाले भाव में कैमरों के सामने पेश कर रही हैं। ऐसे, जैसे कह रही हों जाओ, आज इम्तिहान है तुम्हारा कमीनेपन में पुरानी सारी मर्द पीढ़ी को मात देकर लौटना। वैसे पुरानी पीढ़ी के जांबाज मर्द भी उनके साथ खड़े हैं।
भगवान शंकर या फिर छत्रपति शिवाजी किसके नाम पर इन्हें इतना साहस मिलता है, आज तक मैं समझ नहीं पाया। ऐसी नाम से सेना तैयार है। सेना पता नहीं किसे जीतती है लेकिन, ठाकरे नाम जिंदा रहे इसलिए कुछ न कुछ करती रहती है। पता नहीं किसका सामना करने के लिए इनके पास सामना अखबार भी है। संपादकीय से लेकर खबर तक कपड़े फाड़ने वालों के गुणगान हैं। कहा जा रहा है सब मराठा स्वाभिमान और मराठी अस्मिता पर हमला है।
सेना से जुड़ी शहर की साध्वी मेयर का बयान आ जाता है कि मराठी तो, किसी लड़की के कपड़े फाड़ ही नहीं पाता। सब बाहर से आए लोग ही कर रहे हैं। किसी लड़की के कपड़े फाड़ने की आरजू 31 दिसंबर 2007 की रात पूरी कर लेने वालों 14 लड़कों में से 2 लड़के कुछ उत्तर प्रदेश, बिहार जैसी जगहों से आए थे और यहीं बस गए थे। वो, संस्कारी नहीं हैं। मेयर साहिबा और उनकी सेना को शायद मरीन ड्राइव पर बलात्कार करने वाले मराठी कांस्टेबल की याद नहीं रही होगी।
सेना का एक अखबार तो, मराठी अस्मिता की लड़ाई लड़ने लगा। लेकिन, दूसरे अखबारों, टीवी चैनलों को ये बात समझ में नहीं आई। एक अंग्रेजी अखबार के दो फोटोग्राफरों का ही दुस्साहस था कि इन शूरवीरों की आरजू पूरी होने के बाद बेजवह उस पर हंगामा मच गया। मन मारकर पुलिस को कार्रवाई करनी पड़ी। मीडिया ने बेवजह ऐसी घटना को तूल दे दिया जो, मुंबई के पुलिस कमिश्नर के मुताबिक, मुंबई में कहीं भी कभी भी हो जाने वाली छोटी सी घटना थी।
गृहमंत्री को राजनीति करनी थी इसलिए कमिश्नर को कड़ी कार्रवाई की निर्देश दिया। खैर, न्याय व्यवस्था को ये गंवारा नहीं हुआ और मराठी अस्मिता के सारे प्रतीक लड़के जेल से बाहर आ गए। लेकिन, बात इतने पर ही कहां रुकने वाली थी। एक पुराने सैनिक को याद आया कि उनका तो, जीवन ही सिर्फ महाराष्ट्र के नवनिर्माण को समर्पित है। और, अगर कठिन से कठिन स्थितियों में भी परिस्थितियों में बेशर्मी से खड़े रहने वाले से नौजवान उनके पाले में नहीं रहे तो, नवनिर्माण कैसे होगा। वो, पहुंच गए सबको लेकर गृहमंत्री के दफ्तर कहा- सब मीडिया की गलती है। मीडिया ने इतना बढ़ा-चढ़ाकर मामला पेश किया कि बेगुनाह जेल भेज दिए गए।
ये बेगुनाह लड़के बेचारे तो, सिर्फ ये देख रहे थे कि लड़कियों के कपड़े कौन फाड़ रहा है। कौन है जो, नए साल में नए तरह के संकल्प पूरे करने का साहस कर रहा है। अब मीडिया में फोटो आई तो, ये समझ में ही नहीं आ रहा है कि कौन सिर्फ कपड़े फटते देखने का सुख ले रहा है। कौन ज्यादा साहसी है जो, खुद कपड़े फाड़ रहा है। वैसे ऐसे संकल्पवान नौजवानों ने 31 दिसंबर की रात और उसके बाद देश के अलग-अलग हिस्से में खूब अपने संकल्प पूरे किए।
ये त्यागी नौजवान अपने नए साल के संकल्प को लोगों के सामने जाहिर नहीं करना चाहते थे। लेकिन, बेड़ा गर्क हो ये फोटोग्राफर, कैमरामैन नाम की गंदी प्रजाति का, जिन्होंने इन लड़कों का संकल्प सबके सामने पेश कर दिया। मुंबई, दिल्ली, केरल, गुड़गांव जैसी जगहों के लड़कों का साहस सबके सामने आ गया। ऐसे उत्साही नौजवानों ने संकल्प तो पूरे देश में पूरा किया होगा लेकिन, दूसरे शहरों के फोटोग्राफर नाकारा निकले कुछ दिखा नहीं सके। और, उन लड़कों को हीरो नहीं बना सके। संकलपवान लड़कों के हाथ से प्रेस कांफ्रेंस का मौका भी निकल गया।
नए साल की शुरुआत में ही महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री के अपने जिले के एक गांव के कुछ नौजवानों ने भी ऐसा ही संकल्प पूरा कर डाला। अब ऐसा संकल्प पूरा करने वाले हीरो तो, हो ही गए हैं। टीवी चैनलों पर, अखबार पर आने लगे हैं। देश के दूसरे लड़के भी ऐसे संकल्प ले रहे हैं। मैं भी संकल्पवान होने की हिम्मत जुटा रहा हूं। मै किसी लड़की के कपड़े फाड़ना चाहता हूं। मैं कमीने से भी कमीना बनना चाहता हूं। मैं अपनी जाति के नाम पर समर्थन चाहता हूं। मैं अपने क्षेत्र के लोगों से समर्थन चाहता हूं। मैं अपने प्रदेश के लोगों का समर्थन चाहता हूं। मैं हर उससे समर्थन चाहता हूं जो, मेरे नए साल के संकल्प को पूरा करने के लिए मेरे साथ खड़ा हो सके और अब तो, गंदे पत्रकारों का भी डर नहीं रहा। मेरे संकल्प को उन्होंने सबके सामने दिखाया तो, मैं हीरो तो हो ही जाऊंगा।
शब्दों का वेहद सुंदर ताना-बाना , विचार भी ऐसे जो समाज की कुरीतियों की और इशारा करता हो !वैसे अत्यन्त मजेदार रहा आपका यह पोस्ट !
ReplyDeleteइसे देश का दुर्भाग्य ही कहा जायेगा कि एक घटिया हरकत को उन्होने मराठीमाणुस की अस्मिता का प्रतीक बना दिया।
ReplyDeleteइसे ही कहते हैं चोरी और सीना जोरी।
सामयिक मुद्दे पर सटीक सुंदर आलेख धन्यवाद
ReplyDeleteबधाई। ऐसे ही लिखते रहें।
ReplyDeleteसब सोचते हैं कौन देखता है। पर कैमरों का क्या। ये मीडिया के कैमरे ही हैं जो थोड़ा बहुत लगाम लगा सकते हैं इस मनोवृत्ति पर। पर इन्हें बढ़ावा देने वाले शायद महिलाओं के परिवारों से बेदखल हैं।
पता नहीं पुर्बियों से कहें या परप्रांतीय से पर सेना के वक्तव्य से हैरानी तो कम से कम नहीं हुई थी,क्यों आज तक सेना अपनी प्राथमिकता तय भी नहीं कर पायी है,संगठन के नाम पर लम्पट युवा उसके साथ हैं,पर सेना समझ नहीं पाती कि पहले वो मराठी मानुष हैं कि हिन्दू !!!तोड़ फ़ोड़ करना हो उसमें इनका जवाब नहीं,आपने लिखा अच्छा है
ReplyDeleteaapne kiriti ko itne sunder shabdon mein likha hai ki lagta hi nahi ki tane diye jaa rahe hain
ReplyDeleteshayad ise hi kahte hain
chandi ke wark main lapet kar juti marna
भाई साहब, इसीलिए कहते हैं कि भीड़ का कोई चरित्र नहीं होता, जहां मौका मिला बड़े बड़े लोग हाथ साफ करने से नहीं चूकते। ये वाली घटना तो खुल गई, किसी पब डिस्को में चले जाइये इससे थोड़े छोटे स्तर पर रोजाना ये होता दिख जाएगा। कहने को सभी मॉड और मेट्रोसेक्सुअल बने दिखते हैं, लेकिन मौका कोई नहीं छोड़ता..ऐसे ही एक अरब को थोड़े पार कर गए हम लोग
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