ब्लॉग एग्रीगेटर्स का गुणा गणित समझना मेरे लिए दिन ब दिन मुश्किल होता जा रहा है। ब्लॉग लिखते हुए मुझे करीब दस महीने हो रहे हैं। और, मैंने ऊट-पटांग-गंभीर से लेकर हर तरह के विषय पर काफी कुछ लिख मारा है। लेकिन, मेरी समझ में नहीं आता कि आखिर किसी ब्लॉग एग्रीगेटर के पसंद का पैमाना क्या होता है। क्योंकि, एकाध वाकयों को छोड़ दें तो, मेरा लिखा कभी एग्रीगेटर की पसंद में शामिल नहीं हो पाता।
मैं बात कर रहा हूं ब्लॉगवाणी में आज की पसंद की। जिसमें एक बार लेख आ जाए तो, ज्यादा से ज्यादा पाठकों के पसंद होने की उसकी गारंटी तो ऐसे ही हो जाती है। क्योंकि, कम से कम 24 घंटे तक तो आज की पसंद का लेख सबसे ऊपर दिख ही रहा होता है। इसका क्या क्राइटेरिया होता है ये मैं आज तक समझ नहीं पाया हूं। ये स्वचालित है या फिर इसमें कुछ चिट्ठे तय हैं कि उन चिट्ठों पर कुछ भी लिखा गया तो, वो आज की पसंद में शामिल हो ही जाएगा।
एक और जो बात मैंने आज की पसंद में देखी है कि ज्यादातर ऐसे चिट्ठे आज की पसंद में जरूर होते हैं जिसमें एक-दूसरे की लड़ाई-झगड़े की प्रवृत्ति को ललकारने की कुछ क्षमता हो। यानी एक चिट्ठे ने किसी दूसरे चिट्ठे को निशाना बनाकर या फिर एक चिट्ठाकार ने किसी दूसरे चिट्ठाकार को निशाना बनाकर कुछ लिखा तो, वो जरूर ब्लॉगवाणी की आज की पसंद में शामिल हो जाएगा। उसके बाद अगर उस भड़काऊ लेखन पर प्रतिउत्तर आता रहा तो, वो टीवी के सीरियल की तरह लगातार ब्लॉगवाणी की आज की पसंद बन जाएगा।
मेरा ये आंकलन कितना सही है, दूसरे चिट्ठाकारों से अनुरोध है कि वो भी इसे जरूर बताएं कि वो क्या सोचते हैं। जहां तक मुझे याद आ रहा है विनोद दुआ की समस्या क्या है के अलावा एक और लेख ही मेरे चिट्ठे बतंगड़ से आज तक ब्लॉगवाणी की आज की पसंद बन सका। एक लेख पाकिस्तान और पश्चिम बंगाल कितने एक से दिखने लगे हैं बतंगड़ के जरिए तो ब्लॉगवाणी की आज की पसंद नहीं बन सका। लेकिन, जब वही लेख दूसरे ब्लॉग पर छपा तो, आज की पसंद बन गया। हो सकता है ये महज इत्तफाक हो लेकिन, मेरे लेख आज की पसंद में शामिल होने का महज इत्तफाक फिर क्यों नहीं बन पाता।
अगर गुणवत्ता या कोई स्वचालित मशीनी प्रक्रिया है इस ब्लॉगवाणी के आज की पसंद बनने का तो, भी कैसे हो सकता है कि मेरे लेख भूल-भटके भी इसमें शामिल न हो पाएं। अब इसके अलावा तो एक ही क्राइटेरिया बचता है वो है जुगाड़ या सेटिंग। क्योंकि, इसी मामले में मैं कमजोर हूं। तो, भइया ब्लॉगवाणी वालों बता दो कि मेरी सेटिंग कैसे हो सकती है। क्योंकि, ये तो हर लिखने-पढ़ने वाला चाहता है उसका लिखा-पढ़ा ज्यादा से ज्यादा लोग पढ़े-सुनें और इस मोह से मैं भी मुक्त नहीं हूं।
मैं बात कर रहा हूं ब्लॉगवाणी में आज की पसंद की। जिसमें एक बार लेख आ जाए तो, ज्यादा से ज्यादा पाठकों के पसंद होने की उसकी गारंटी तो ऐसे ही हो जाती है। क्योंकि, कम से कम 24 घंटे तक तो आज की पसंद का लेख सबसे ऊपर दिख ही रहा होता है। इसका क्या क्राइटेरिया होता है ये मैं आज तक समझ नहीं पाया हूं। ये स्वचालित है या फिर इसमें कुछ चिट्ठे तय हैं कि उन चिट्ठों पर कुछ भी लिखा गया तो, वो आज की पसंद में शामिल हो ही जाएगा।
एक और जो बात मैंने आज की पसंद में देखी है कि ज्यादातर ऐसे चिट्ठे आज की पसंद में जरूर होते हैं जिसमें एक-दूसरे की लड़ाई-झगड़े की प्रवृत्ति को ललकारने की कुछ क्षमता हो। यानी एक चिट्ठे ने किसी दूसरे चिट्ठे को निशाना बनाकर या फिर एक चिट्ठाकार ने किसी दूसरे चिट्ठाकार को निशाना बनाकर कुछ लिखा तो, वो जरूर ब्लॉगवाणी की आज की पसंद में शामिल हो जाएगा। उसके बाद अगर उस भड़काऊ लेखन पर प्रतिउत्तर आता रहा तो, वो टीवी के सीरियल की तरह लगातार ब्लॉगवाणी की आज की पसंद बन जाएगा।
मेरा ये आंकलन कितना सही है, दूसरे चिट्ठाकारों से अनुरोध है कि वो भी इसे जरूर बताएं कि वो क्या सोचते हैं। जहां तक मुझे याद आ रहा है विनोद दुआ की समस्या क्या है के अलावा एक और लेख ही मेरे चिट्ठे बतंगड़ से आज तक ब्लॉगवाणी की आज की पसंद बन सका। एक लेख पाकिस्तान और पश्चिम बंगाल कितने एक से दिखने लगे हैं बतंगड़ के जरिए तो ब्लॉगवाणी की आज की पसंद नहीं बन सका। लेकिन, जब वही लेख दूसरे ब्लॉग पर छपा तो, आज की पसंद बन गया। हो सकता है ये महज इत्तफाक हो लेकिन, मेरे लेख आज की पसंद में शामिल होने का महज इत्तफाक फिर क्यों नहीं बन पाता।
अगर गुणवत्ता या कोई स्वचालित मशीनी प्रक्रिया है इस ब्लॉगवाणी के आज की पसंद बनने का तो, भी कैसे हो सकता है कि मेरे लेख भूल-भटके भी इसमें शामिल न हो पाएं। अब इसके अलावा तो एक ही क्राइटेरिया बचता है वो है जुगाड़ या सेटिंग। क्योंकि, इसी मामले में मैं कमजोर हूं। तो, भइया ब्लॉगवाणी वालों बता दो कि मेरी सेटिंग कैसे हो सकती है। क्योंकि, ये तो हर लिखने-पढ़ने वाला चाहता है उसका लिखा-पढ़ा ज्यादा से ज्यादा लोग पढ़े-सुनें और इस मोह से मैं भी मुक्त नहीं हूं।