Saturday, December 01, 2007

धन्य हो सेक्युलर इंडिया की धर्मनिरपेक्षता के पहरेदारों!

तसलीमा नसरीन ने सीपीएम नेता गुरुदास दास गुप्ता को फोन करके कह दिया कि वो अपनी विवादित किताब द्विखंडिता से वो लाइनें हटा देंगी जो, मुस्लिम समुदाय के लोगों को आहत कर रही हैं। गुरुदास दास गुप्ता पूरे जोश के साथ टीवी चैनलों पर प्रकट हुए और कहा कि तसलीमा का ये कृत्य समाज के हित में है। जिन लोगों को तसलीमा की उन लाइनों से कष्ट पहुंचा था। अब उन्हें शांति मिली है। कोलकाता में अब शांति हो जाएगी। दरअसल कोलकाता में शांति की बात कहते समय गुरुदास दास गुप्ता के चेहरे पर जिस तरह के संतोष का भाव था उससे, साफ देखा जा सकता था कि लेफ्ट के नेता अपने गढ़ (पश्चिम बंगाल), वोट बैंक (मुस्लिम) और धर्मनिरपेक्षता (अल्पसंख्यकों का तुष्टीकरण) की रक्षा करने में सफल होते दिख रहे हैं।

कई मुस्लिम संगठनों ने भी तसलीमा के फैसले को उचित बताया और कहा कि अब शांति हो जाएगी। जमायते उलेमा हिंद के मोहम्मद मदनी भी खुश हैं। मदनी ने कहा कि अब तसलीमा कहीं भी रह सकती हैं। जैसे भारत उनकी जागीर हो वो, उसके जागीरदार और तसलीमा उनकी गुनहगार प्रजा। ऐसी गुनहगार प्रजा जिसने गुनाह कबूल कर लिया हो। और, उसे उसके गुनाह के लिए बड़े दिल के राजा ने माफ कर दिया हो।

एक और बयान आया MIM के सांसद असादुद्दीन ओवैसी का। शायद ये अकेला बयान था जो, ईमानदार था। ओवैसी के कृत्य जायज-नाजायज हो सकते हैं। लेकिन, तसलीमा के किताब से लाइनें हटाने के फैसले पर ओवैसी का बयान ईमानदार था। ओवैसी ने कहा- तसलीमा मौकापरस्त हैं। वो सिर्फ इसलिए पन्ने हटाने पर राजी हुई क्योंकि, तसलीमा को लगने लगा था कि भारत के दरवाजे उनके लिए बंद होने वाले हैं। ओवैसी का मानना है कि तसलीमा भविष्य में फिर ऐसे बयान दे सकती हैं जिससे देश का सांप्रदायिक सौहार्द बिगड़ जाए। अब क्या ये देश ओवैसी लोगों की बपौती है कि तसलीमा को देश का दरवाजा बंद होता दिख रहा था।

तसलीमा ने अपनी किताब द्विखंडिता से चार विवादित पन्ने हटा दिए। अब तसलीमा किसी की भावना को आहत नहीं करना चाहती हैं। ये वही तसलीमा हैं जिन्हें दुनिया भर में अभिव्यक्ति की आजादी का प्रतिनिधि माना जाता है। और, भारत को दुनिया के धर्मनिरपेक्ष देशों का नेता। लेकिन, कांग्रेस सरकार और लेफ्ट के नेताओं के तसलीमा के मामले पर दोगले रवैये ने इन लोगों की तथाकथित धर्मनिरपेक्षता की कलई खोलकर रख दी है। तसलीमा ने किताब के विवादित पन्ने हटाने के साथ ही धर्मनिरपेक्ष भारत पर जोरदार तमाचा जड़ दिया। तसलीमा ने कहा मुझे समझौता करना पड़ रहा है। मैंने वो किया जो, मैंने अपनी जिंदगी में कभी नहीं किया था।

हाल ये है कि बांग्लादेश से आने वाले घुसपैठिये मजे से पश्चिम बंगाल में वहां की नागरिकता लेकर रह रहे हैं। बांग्लादेश में रहने वाले अपने भाई-बंधुओं से मिलने के लिए ये घुसपैठिये निरंतर बाड़ फांदकर आते-जाते रहते हैं। इनके पास बातचीत करने के लिए बांग्लादेश का मोबाइल नंबर होता है। इनके पास पश्चिम बंगाल सरकार की ओर से जारी राशन कार्ड होता है। और, इतने से लेफ्ट सरकार के खिलाफ हर उठने वाली आवाज को दबाने के लिए हर कर्म-कुकर्म करने का इनको लाइसेंस मिल जाता है। वैसे मुसलमानों के हितों पर हमेशा सजग दिखने वाली लेफ्ट सरकार तसलीमा की नागरिकता के खुले विरोध में है।

ये महज संयोग तो नहीं हो सकता न कि कोलकाता में तसलीमा की खिलाफत में हिंसा उसी समय हुई जब, नंदीग्राम में सुनियोजित सरकारी (लेफ्ट कैडर प्रायोजित) नरसंहार के खिलाफ पूरा देश एक स्वर से आवाज उठा रहा था। 15 सालों बाद कोलकाता में इतना हिंसक विरोध हुआ कि कर्फ्यू लगाना पड़ा। कोलकाता के हर एक गली-मुहल्ले में लाल सलाम का कब्जा जैसा है। ऐसा कब्जा कि लेफ्ट कैडर की इजाजत के बिना पत्ता भी नहीं हिलता। कुछ लोग ये भी कह रहे हैं कि कोलकाता में हिंसा करने वाले लोग लेफ्ट के समर्थक ही थे।

कोलकाता में जिस दिन हिंसा हुई थी। टीवी चैनलों पर काफी समय तक ये साफ नहीं हो पा रहा था कि ये सब नंदीग्राम के विरोध में हो रहा है। रिजवानुर की मौत के विरोध में या फिर तसलीमा को निकाल बाहर कर देने के समर्थन में। कर्फ्यू लग गया तो, साफ हुआ कि ये सब तसलीमा के विरोध में हो रहा था। धर्मनिरपेक्ष, मुस्लिम हितों की रक्षक लेफ्ट सरकार ने तसलीमा को बंगाल से निकाल बाहर करने में कोई देरी नहीं की। केंद्र में बैठी दूसरी धर्मनिरपेक्ष सरकार को भी तसलीमा की जान बचाने के लिए सांप्रदायिक भाजपा! के शासन वाला राज्य राजस्थान ही मिला।

राजनीति का मौका मिल गया था लगे हाथ दो और सांप्रदायिक भाजपाई सरकारों! ने तसलीमा का सुरक्षा का जिम्मा मांगा। लेकिन, दो धर्मनिरपेक्ष (कांग्रेस और कॉमरेड) सरकारों को ये कैसे पचता कि जिनको वो सांप्रदायिक बताते रहे हैं उसे तसलीमा की सुरक्षा का जिम्मा देकर उन्हें धर्मनिरपेक्ष बनने का मौका कैसे दे देते।

खैर, तसलीमा के बयान के बाद पिछले कई दिनों से तसलीमा की जान किसी तरह बचाए घूमती खुफियां एजेंसियों को भी थोड़ी राहत मिली होगी। कांग्रेस प्रवक्ता अभिषेक मनु सिंघवी ने कहा- जो, भी शांति कायम करने में मदद करे उस कदम का स्वागत है। दरअसल तसलीमा को मुस्लिम कट्टरपंथियों से सुरक्षित रखना जिस तरह से सरकार के लिए मुश्किल हो रहा था उसमें निश्चित तौर पर कांग्रेस की अगुवाई वाली यूपीए सरकार के लिए इससे राहत की बात क्या हो सकती है।

वैसे कांग्रेस के नेता इस बात पर बोलने से बच रहे हैं कि सरकारों का दुमछल्ला बन चुकी केंद्रीय खुफिया एजेंसी सीबीआई ने जगदीश टाइटलर को क्लीन चिट कैसे दे दी। सीबीआई कुछ इस तरह से काम कर रही है जैसे उसे बनाया ही गया है नेहरू-गांधी परिवार और उनके दरबारियों को हर मुश्किल से बाहर निकालने के लिए। क्वात्रोची के मामले में सीबीआई के कृत्य तो अब देश के ज्यादातर लोगों को पता चल चुका है।

एक बार फिर सीबीआई ने दिखा दिया कि ये एक ऐसी एजेंसी बन चुकी है जो, किसी भी मामले को बरसों तक खींच सकती है। और, उसके बाद सरकार, सत्ता में बैठे लोगों के मनमुताबिक, फैसले सुना देती है। सीबीआई इतने सालों में उस जसबीर सिंह को नहीं खोज पाई जिसे सीएनएन-आईबीएन ने खोज निकाला। और, सिर्फ खोज ही नहीं निकाला। जसबीर का बयान भी टीवी पर चला कि उससे सीबीआई ने कभी कोई पूछताछ नहीं। ये वही जसबीर सिंह है जो, जगदीश टाइटलर के खिलाफ सिखों के नरसंहार का मुख्य गवाह है। अब सीबीआई चैनल से ही जसबीर सिंह को खोजने के लिए मदद मांग रही है। अब क्या कोई तुक बनता है इस एजेंसी को बनाए रखने का।

सवाल तसलीमा की किताब से 4 पन्ने निकलने और जगदीश टाइटलर को सीबीआई की क्लीन चिट मिलने भर का नहीं है। सवाल ये है कि इस तरह भारत किस धर्मनिरपेक्षता का दावा कर सकता है। कांग्रेस और कम्युनिस्ट किस तरह की धर्मनिरपेक्षता की रक्षा में जुटे हैं। क्या धर्मनिरपेक्षता सिर्फ सत्ता बचाने तक की बची रह पाती है।

4 comments:

  1. तसलीमा जी को मैने कभी बहुत गम्भीर हो कर नहीं लिया। पर उनके माध्यम से बहुत से लोगों का बौनापन सामने आ गया - यह देख कर बड़ा रोचक लगता है!

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  2. यही तो हमारी छह दशकों के लोकतंत्र की राजनीतिक कमाई है हर्ष बाबू। भारतीय संविधान की रक्षा का हैदराबादी ठेकेदार पूरी दुनिया (टेलीविजन) के सामन तसलीमा हमला करता है और अगले दिन तसलीमा पर ही दंगे भड़काने का मुकदमा दायर होता है। हैदराबाद में फिर घुसने पर हत्या की धमकी देने वाला विधायक इस देशी की धर्मनिरपेक्षता का प्रतीक है, क्योंकि एक वोट बैंक है। बनारस हिंदू विश्वविद्याल में तसलीमा का व्याख्यान रद्द कर दिया जाता है और छात्र नेता नामधारी मुस्लिम गुंडे विश्वविद्यालय परिसर में विजय जुलूस निकालते हैं। दरअसल ये इस देश के सेकुलर होने की कीमत है, जो यहां का बहुसंख्यक समाज दूसरे दर्ज़े की नागरिकता में जीकर चुका रहा है। गोधरा और गुजरात के दंगे आज भले ही हमारे सामाजिक जीवन पर पैबंद लगते हों लेकिन कल की हमारी सामाजिक सच्चाई हैं। क्योंकि जब देश का प्रधानमंत्री सार्वजनिक बयान देता है कि देश के संसाधनों पर पहला हक़ अल्पसंख्यकों (मुसलमानों पढ़िए) का है, तो देश के बहुसंख्यक समाज के सामने क्या रास्ते बच जाते हैं। हम एक बहुत ही भयानक समय की ओर बढ़ रहे हैं, तैयारी कीजिए।

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  3. सभी पार्टियाँ इस तथाकथित विवाद के बहाने अपने अपने वोट बैंक को बिखरने से रोकने की जुगत में जुटी हैँ...

    सभी ने अपनी-अपनी रोटियाँ सेंकनी हैँ...
    अपने भुट्टे भूनने हैँ...

    इसलिए...

    "आग को पानी नहीं..हवा दो...
    अलाव को यूँ ही जलता रहने दो"

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  4. हर कुर्ते मे दाग है,
    जरा नज़र झुकाकर तो देखें।

    सभी पार्टियां जो धर्मनिरपेक्ष होने का दावा करती है मेरी नज़र मे वो सब ढोंग करती है। सभी अपने अपने वोटबैंक की राजनीति करती है। हिन्दू हो या मुसलमान, अगड़ी जाति का हो या पिछड़ी जाति का, सभी एक दिन अपने आपको ठगा हुआ महसूस करेंगे, लेकिन इनका मोहभंग कभी नही होगा, क्योंकि नेता लोग नए वादे करने के लिए तैयार बैठे होंगे। सारे नेता लोग जनता की नस नस से वाकिफ़ है कि कब उनको पुचकारना है, कब भड़काना और कब धोखा देना है। ये क्रम यूं ही चलता रहेगा, अनवरत....यही इस देश की विडम्बना है।

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