बीस साल पुराना बोफोर्स मामला फिर सुर्खियों में है। इस बार सुर्खियों की वजह देश के किसी नेता के आरोप से नहीं बल्कि स्वीडन से आ रही है। बोफोर्स मामले की जांच कर रहे स्वीडन के अधिकारी सोनिया गांधी से जवाब मांग रहे हैं। स्वीडन के जांच अधिकारी स्वेन लिंडस्टॉर्म सोनिया और क्वात्रोची के रिश्ते की पूरी हकीकत जानने के लिए सोनिया से सवाल पूछना चाहते हैं। जो आरोप अब तक कांग्रेस की विरोधी पार्टियों के नेता लगाते थे, उसकी पुष्टि स्वीडन के जांच अधिकारी लिंडस्टॉर्म कर रहे हैं। शुक्र है कि लिंडस्टॉर्म के विदेशी होने से कांग्रेस इसे त्याग की देवी सोनिया गांधी पर राजनीतिक हमला बताकर देश को धोखा नहीं दे सकती। एक निजी टीवी चैनल पर लिंडस्टॉर्म ने साफ कहा कि बोफोर्स की खरीद के मामले में कमीशन के तौर पर अलग-अलग खाते में करोड़ो रुपए जमा किए गए। ये खाते बोफोर्स मामले के मुख्य आरोपी ओटावियो क्वात्रोची के नियंत्रण वाले थे। इन्हीं में से एक खाते में जमा तीस करोड़ रुपए सीबीआई की लापरवाही से करीब दस महीने पहले क्वोत्रोची लंदन से निकालने में सफल हो गया। कांग्रेस की अगुवाई वाली भारत सरकार ने खाता फ्रीज करने तक की अर्जी समय पर नहीं दी।
लिंडस्टॉर्म ने भारतीय जांच एजेंसी सीबीआई पर भी सवाल खड़ा किया है। लिंडस्टॉर्म का कहना है कि जब वो खुद इस मामले से जुड़ी सारी जानकारी सीबीआई को देने को तैयार हैं तब, हाल ये है कि सीबीआई ने अब तक उनसे सिर्फ बीस मिनट की मुलाकात की है। वो, भी आज से 19 साल पहले, 1988 में। लिंडस्टॉर्म को कोई हैरानी नहीं है कि एक इटैलियन को भारतीय रक्षा सौदे में कमीशन क्यों मिला। भारत में क्वात्रोची का इटैलियन कनेक्शन किसी से छिपा नहीं है। लिंडस्टॉर्म कहते हैं कि क्वात्रोची के इटैलियन सोनिया माइनो गांधी से अच्छे रिश्ते ही क्वात्रोची को पैसे मिलने की वजह बनी।लिंडस्टॉर्म कहते हैं कि सीबीआई उनसे जानकारी इकट्ठी नहीं करना चाहती। लेकिन, एक ऐसे बोफोर्स अधिकारी से पूछताछ की इजाजत मांग रही है जो, बहुत पहले मर चुका है।
वैसे बोफोर्स मामले में लिंडस्टॉर्म सीबीआई को सवालों के घेरे में भले खड़ा कर रहे हों। लेकिन, इससे कुछ निकलने वाला नहीं है। क्योंकि, देश के लोगों को अच्छी तरह पता है कि एक सीमा के बाद सीबीआई भी सरकार में बैठे लोगों के खिलाफ कुछ नहीं कर सकती। और, वो भी तब जब, आजाद भारत के सबसे बड़े गांधी-नेहरू परिवार से जुड़ा मामला हो। सीबीआई की खुद की जांच में ये निकलकर आया है कि क्वात्रोची को करोड़ो रुपए मिले हैं। लेकिन, सरकार से बंधे होने की वजह से सीबीआई तो ये नहीं कह सकती कि सोनिया के रिश्ते की वजह से क्वात्रोची को ये पैसे मिले हैं।
सोनिया गांधी ने जब प्रधानमंत्री नहीं बनने का फैसला लिया था तो, उस वक्त हुई नौटंकी शायद ही किसी को भुलाए भूलेगी। वो, नौटंकी मुझे इसलिए भी अच्छे से याद है कि मैं सोनिया को प्रधानमंत्री न बनने देने के लिए गोविंदाचार्य के अभियान की शुरुआत के समय वहीं पर था। दक्षिण भारत के जाने-माने पत्रकार चो रामास्वामी के घर पर हुई गोविंदाचार्य की प्रेस कांफ्रेंस में देश के वरिष्ठ पत्रकार राम बहादुर राय जी के साथ मैं भी गया था। उस समय मैं खुद पूरी तरह से नहीं समझ पा रहा था कि ये सचमुच देश हित के लिए किया जा रहा आंदोलन है या दूसरे आंदोलनों की तरह सिर्फ राजनीतिक लाभ पाने की कोशिश है। अब इसमें मुझे कोई संदेह नहीं है कि गोविंदाचार्य का वो आंदोलन भले ही बहुत प्रभावी न हो पाया हो। लेकिन, वो राजनीतिक लाभ पाने की कोशिश तो बिल्कुल ही नहीं थी।
गोविंदाचार्य के आंदोलन को देश के एक बहुत बड़े वर्ग का प्रत्यक्ष-अप्रत्यक्ष समर्थन भी मिला था जो, ये बिल्कुल नहीं चाहता कि देश की सबसे ताकतवर कुर्सी पर कोई ऐसा विदेशी बैठे जिसके ऊपर देश के ही रक्षा सौदे में दलाली के आरोपियों से रिश्ते रखने के आरोप हों। वैसे ये शायद ऐसे ही लोगों के विरोध का नतीजा था कि सोनिया ने खुद प्रधानमंत्री की कुर्सी पर बैठने से इनकार कर दिया। हां, खुद देश की सत्ता परदे के पीछे से चलाती रहीं। अब राहुल गांधी को 2009 के लोकसभा चुनाव से ठीक पहले कांग्रेस का महासचिव बनाकर सोनिया ने साफ संकेत दे दिए हैं कि कांग्रेस की सरकार बनी तो, देश का अगला प्रधानमंत्री कौन होगा।
वैसे कांग्रेस के नेता बनाने के इस फासीवादी तरीके का ये पहला उदाहरण नहीं है। गांधी-नेहरू परिवार के बाहर भी अगर किसी को सत्ता मिली तो, वो इस परिवार के दरबारियों को ही मिली। फिल्म अभिनेता देवानंद इंदिरा गांधी के लगाए आपातकाल के दिनों की याद करते हुए कहते हैं कि संजय गांधी ने उस समय खुद को देश का प्रधानमंत्री पेश करने की हर कोशिश की थी। फिल्म अभिनेता देवानंद ने ऑटोबायोग्राफी में लिखा है कि इसके लिए फिल्म अभिनेताओं पर दबाव डाला गया। जो नहीं माना उसे परेशान भी किया गया।
देश के लिए चिंता की वजह ये तो है ही कि जिन लोगों के ऊपर रक्षा सौदे में दलाली के आरोपियों के साथ मिले होने के आरोप लगे हैं वही, देश की सत्ता चला रहे हैं। लेकिन, उससे भी ज्यादा चिंता की बात ये है कि जो पिछले बीस साल से बोफोर्स मामले पर ही कांग्रेस को कठघरे में खड़ा करते रहे। वो, खुद वो भी सत्ता में आकर इस मामले में कुछ नहीं कर सके। स्वर्गीय राजीव गांधी पर बोफोर्स की दलाली का आरोप लगाकर कांग्रेस छोड़ने वाले और फिर इसी बूते देश का प्रधानमंत्री बनने वाले वी पी सिंह भी अपने कार्यकाल में इस दिशा में कुछ नहीं कर सके। अकेली विपक्षी पार्टी होने का दावा करने वाली बीजेपी भी जब सत्ता में आयी तो, कुछ नही हुआ। एनडीए के नेता अटल बिहारी बाजपेयी को इतने समय तो, प्रधानमंत्री रहने का मौका मिला ही था कि वो, इस सौदे की सच्चाई पता कर पाते। और, यही सबसे बड़ी चिंता की बता है कि ये नेता एक दूसरे के खिलाफ घिनौने से घिनौने आरोप तो लगाते रहते हैं। लेकिन, सत्ता में आने के बाद अपने ही लगाए घिनौने आरोपों को भूल जाते हैं। डर यही कि दूसरा सत्ता में लौटा तो, उनकी बजेगी। इससे तो यही लगता है कि एक दूसरे के भ्रष्टाचार को छिपाना भारतीय नेताओं के खून में शामिल हो गया है।
वैसे देश के बीमारू कहे जाने वाले दो राज्यों उत्तर प्रदेश और बिहार से इस मामले में कुछ अच्छे संकेत मिल रहे हैं। नीतीश सरकार ने हाईकोर्ट में याचिका दायर कर बिहार के पूर्व मुख्यमंत्री और अब के रेल मंत्री लालू प्रसाद यादव के खिलाफ चारा घोटाले में फिर से मामला दायर करने की अर्जी डाली थी। जो, मंजूर हो गई। उधर, उत्तर प्रदेश में मुलायम राज में हुई पुलिस भर्ती घोटाले के बाद उत्तर प्रदेश के पूर्व मुख्य सचिव के खिलाफ भी मायावती सरकार कार्रवाई कर रही है। मुलायम सिंह यादव के शासनकाल में लखनऊ में प्लॉटों के आवंटन में घपले का आरोप है। मुलायम-लालू दोनों इसे राजनीतिक साजिश बता रहे हैं। अब ये चाहे जो भी अच्छा है। कम से कम एक दूसरे के भ्रष्टाचार को उजागर करेंगे तो, खुद भी तो, भ्रष्टाचार करने से डरेंगे। क्योंकि, लोकतंत्र की तमाम खामियों के बाद भी ये अच्छाई तो है ही कि जनता जब चाहे जिसको उल्टा करे दे। तो, जनता जागो। अब तुम्हारा समय आ रहा है। 2009 में फिर से लोकसभा चुनाव होने हैं। कमर कस लो कि भ्रष्टाचार करने वाले और भ्रष्टाचार छिपाने वाले को तो, संसद तक नहीं पहुंचने देंगे। और, नहीं तो फिर मस्त रहिए। सोनिया को सत्ता दे दीजिए। और बोफोर्स को सिर्फ अखबार-टीवी के लिए एक-दो दिन के हल्ले भर की खबर भर बनकर रह जाने दीजिए।
लिंडस्टॉर्म ने भारतीय जांच एजेंसी सीबीआई पर भी सवाल खड़ा किया है। लिंडस्टॉर्म का कहना है कि जब वो खुद इस मामले से जुड़ी सारी जानकारी सीबीआई को देने को तैयार हैं तब, हाल ये है कि सीबीआई ने अब तक उनसे सिर्फ बीस मिनट की मुलाकात की है। वो, भी आज से 19 साल पहले, 1988 में। लिंडस्टॉर्म को कोई हैरानी नहीं है कि एक इटैलियन को भारतीय रक्षा सौदे में कमीशन क्यों मिला। भारत में क्वात्रोची का इटैलियन कनेक्शन किसी से छिपा नहीं है। लिंडस्टॉर्म कहते हैं कि क्वात्रोची के इटैलियन सोनिया माइनो गांधी से अच्छे रिश्ते ही क्वात्रोची को पैसे मिलने की वजह बनी।लिंडस्टॉर्म कहते हैं कि सीबीआई उनसे जानकारी इकट्ठी नहीं करना चाहती। लेकिन, एक ऐसे बोफोर्स अधिकारी से पूछताछ की इजाजत मांग रही है जो, बहुत पहले मर चुका है।
वैसे बोफोर्स मामले में लिंडस्टॉर्म सीबीआई को सवालों के घेरे में भले खड़ा कर रहे हों। लेकिन, इससे कुछ निकलने वाला नहीं है। क्योंकि, देश के लोगों को अच्छी तरह पता है कि एक सीमा के बाद सीबीआई भी सरकार में बैठे लोगों के खिलाफ कुछ नहीं कर सकती। और, वो भी तब जब, आजाद भारत के सबसे बड़े गांधी-नेहरू परिवार से जुड़ा मामला हो। सीबीआई की खुद की जांच में ये निकलकर आया है कि क्वात्रोची को करोड़ो रुपए मिले हैं। लेकिन, सरकार से बंधे होने की वजह से सीबीआई तो ये नहीं कह सकती कि सोनिया के रिश्ते की वजह से क्वात्रोची को ये पैसे मिले हैं।
सोनिया गांधी ने जब प्रधानमंत्री नहीं बनने का फैसला लिया था तो, उस वक्त हुई नौटंकी शायद ही किसी को भुलाए भूलेगी। वो, नौटंकी मुझे इसलिए भी अच्छे से याद है कि मैं सोनिया को प्रधानमंत्री न बनने देने के लिए गोविंदाचार्य के अभियान की शुरुआत के समय वहीं पर था। दक्षिण भारत के जाने-माने पत्रकार चो रामास्वामी के घर पर हुई गोविंदाचार्य की प्रेस कांफ्रेंस में देश के वरिष्ठ पत्रकार राम बहादुर राय जी के साथ मैं भी गया था। उस समय मैं खुद पूरी तरह से नहीं समझ पा रहा था कि ये सचमुच देश हित के लिए किया जा रहा आंदोलन है या दूसरे आंदोलनों की तरह सिर्फ राजनीतिक लाभ पाने की कोशिश है। अब इसमें मुझे कोई संदेह नहीं है कि गोविंदाचार्य का वो आंदोलन भले ही बहुत प्रभावी न हो पाया हो। लेकिन, वो राजनीतिक लाभ पाने की कोशिश तो बिल्कुल ही नहीं थी।
गोविंदाचार्य के आंदोलन को देश के एक बहुत बड़े वर्ग का प्रत्यक्ष-अप्रत्यक्ष समर्थन भी मिला था जो, ये बिल्कुल नहीं चाहता कि देश की सबसे ताकतवर कुर्सी पर कोई ऐसा विदेशी बैठे जिसके ऊपर देश के ही रक्षा सौदे में दलाली के आरोपियों से रिश्ते रखने के आरोप हों। वैसे ये शायद ऐसे ही लोगों के विरोध का नतीजा था कि सोनिया ने खुद प्रधानमंत्री की कुर्सी पर बैठने से इनकार कर दिया। हां, खुद देश की सत्ता परदे के पीछे से चलाती रहीं। अब राहुल गांधी को 2009 के लोकसभा चुनाव से ठीक पहले कांग्रेस का महासचिव बनाकर सोनिया ने साफ संकेत दे दिए हैं कि कांग्रेस की सरकार बनी तो, देश का अगला प्रधानमंत्री कौन होगा।
वैसे कांग्रेस के नेता बनाने के इस फासीवादी तरीके का ये पहला उदाहरण नहीं है। गांधी-नेहरू परिवार के बाहर भी अगर किसी को सत्ता मिली तो, वो इस परिवार के दरबारियों को ही मिली। फिल्म अभिनेता देवानंद इंदिरा गांधी के लगाए आपातकाल के दिनों की याद करते हुए कहते हैं कि संजय गांधी ने उस समय खुद को देश का प्रधानमंत्री पेश करने की हर कोशिश की थी। फिल्म अभिनेता देवानंद ने ऑटोबायोग्राफी में लिखा है कि इसके लिए फिल्म अभिनेताओं पर दबाव डाला गया। जो नहीं माना उसे परेशान भी किया गया।
देश के लिए चिंता की वजह ये तो है ही कि जिन लोगों के ऊपर रक्षा सौदे में दलाली के आरोपियों के साथ मिले होने के आरोप लगे हैं वही, देश की सत्ता चला रहे हैं। लेकिन, उससे भी ज्यादा चिंता की बात ये है कि जो पिछले बीस साल से बोफोर्स मामले पर ही कांग्रेस को कठघरे में खड़ा करते रहे। वो, खुद वो भी सत्ता में आकर इस मामले में कुछ नहीं कर सके। स्वर्गीय राजीव गांधी पर बोफोर्स की दलाली का आरोप लगाकर कांग्रेस छोड़ने वाले और फिर इसी बूते देश का प्रधानमंत्री बनने वाले वी पी सिंह भी अपने कार्यकाल में इस दिशा में कुछ नहीं कर सके। अकेली विपक्षी पार्टी होने का दावा करने वाली बीजेपी भी जब सत्ता में आयी तो, कुछ नही हुआ। एनडीए के नेता अटल बिहारी बाजपेयी को इतने समय तो, प्रधानमंत्री रहने का मौका मिला ही था कि वो, इस सौदे की सच्चाई पता कर पाते। और, यही सबसे बड़ी चिंता की बता है कि ये नेता एक दूसरे के खिलाफ घिनौने से घिनौने आरोप तो लगाते रहते हैं। लेकिन, सत्ता में आने के बाद अपने ही लगाए घिनौने आरोपों को भूल जाते हैं। डर यही कि दूसरा सत्ता में लौटा तो, उनकी बजेगी। इससे तो यही लगता है कि एक दूसरे के भ्रष्टाचार को छिपाना भारतीय नेताओं के खून में शामिल हो गया है।
वैसे देश के बीमारू कहे जाने वाले दो राज्यों उत्तर प्रदेश और बिहार से इस मामले में कुछ अच्छे संकेत मिल रहे हैं। नीतीश सरकार ने हाईकोर्ट में याचिका दायर कर बिहार के पूर्व मुख्यमंत्री और अब के रेल मंत्री लालू प्रसाद यादव के खिलाफ चारा घोटाले में फिर से मामला दायर करने की अर्जी डाली थी। जो, मंजूर हो गई। उधर, उत्तर प्रदेश में मुलायम राज में हुई पुलिस भर्ती घोटाले के बाद उत्तर प्रदेश के पूर्व मुख्य सचिव के खिलाफ भी मायावती सरकार कार्रवाई कर रही है। मुलायम सिंह यादव के शासनकाल में लखनऊ में प्लॉटों के आवंटन में घपले का आरोप है। मुलायम-लालू दोनों इसे राजनीतिक साजिश बता रहे हैं। अब ये चाहे जो भी अच्छा है। कम से कम एक दूसरे के भ्रष्टाचार को उजागर करेंगे तो, खुद भी तो, भ्रष्टाचार करने से डरेंगे। क्योंकि, लोकतंत्र की तमाम खामियों के बाद भी ये अच्छाई तो है ही कि जनता जब चाहे जिसको उल्टा करे दे। तो, जनता जागो। अब तुम्हारा समय आ रहा है। 2009 में फिर से लोकसभा चुनाव होने हैं। कमर कस लो कि भ्रष्टाचार करने वाले और भ्रष्टाचार छिपाने वाले को तो, संसद तक नहीं पहुंचने देंगे। और, नहीं तो फिर मस्त रहिए। सोनिया को सत्ता दे दीजिए। और बोफोर्स को सिर्फ अखबार-टीवी के लिए एक-दो दिन के हल्ले भर की खबर भर बनकर रह जाने दीजिए।
जनता जागो। अब तुम्हारा समय आ रहा है। 2009 में फिर से लोकसभा चुनाव होने हैं। कमर कस लो कि भ्रष्टाचार करने वाले और भ्रष्टाचार छिपाने वाले को तो, संसद तक नहीं पहुंचने देंगे।
ReplyDeleteकाश ऐसा हो पाता, मुझे नहीं लगता कि जनता कभी जागेगी भी।
achcha thhha... padhna shuru kiya to padhta hi chala gaya....
ReplyDeletearticle to achha thha hi... ye line mazedaar lagi
"डर यही कि दूसरा सत्ता में लौटा तो, उनकी बजेगी।"
keep it up