विनोद दुआ वरिष्ठतम और देश के सबसे काबिल पत्रकारों में से हैं। उस पीढ़ी के पत्रकार हैं जब टीवी ठीक से पैदा भी नहीं हुआ था। नए दौर का टेलीविजन न्यूज आया तो, विनोद दुआ स्टार और उसके बाद फिर एनडीटीवी पर अच्छे और अलग तरीके के शो लेकर आए। उनके शो में कुछ हटकर होता है। और, नए लोगों के लिए बहुत कुछ सीखने को मिलता है। इधर, एनडीटीवी पर उनका खबरदार एक ऐसा शो है जो, लोगों को खबरें देने के साथ बहुत कुछ सीखने-समझने वाला शो है।
लेकिन, हाल के दिनों में खबरदार और चुनाव के दौरान गुजरात की यात्रा में विनोद दुआ कुछ ऐसा बर्ताव करते नजर आए। जो, खास तौर पर एक ऐसे पत्रकार, जिसको देख-सुनकर एक पूरी पत्रकार पीढ़ी जवान हुई हो, से उम्मीद नहीं की जाती। गुजरात में नरेंद्र मोदी के कारनामों की कलई खोलना और उसके पक्ष में तर्क रखना एक निष्पक्ष पत्रकारिता का तकाजा है। जरूरी है कि मोदी जैसे लोगों के खिलाफ मुहिम चलाई जाए। लेकिन, विनोद दुआ जैसे वरिष्ठ पत्रकार का ये सवाल कि आप मोदी को वोट देंगे या अच्छे आदमी को। जिससे दुआ साहब ने सवाल पूछा- उसका जवाब था मोदी ने विकास किया है, अच्छा आदमी है। फिर दुआ साहब का सवाल था- मोदी के आदमी को वोट देंगे या अच्छे आदमी को। अब ये तर्क का विषय हो सकता है लेकिन, मेरा सवाल ये है कि क्या बीजेपी से लड़ने वाला एक भी प्रत्याशी अच्छा नहीं हो सकता।
मैं भी अभी गुजरात से ही लौटकर आया हूं। नरेंद्र मोदी के खिलाफ लड़ाई लड़ते-लड़ते विनोद दुआ जैसे बड़े पत्रकारों ने ऐसा हाल कर दिया है कि गुजरात के लोग मानने लगे हैं कि नेशनल मीडिया गुजरात को बदनाम करने की कोशिश में लगा हुआ है। कोई एक पूरा राज्य अगर ये मानने लगे कि लोकतंत्र का एक स्तंभ पत्रकारिता ही उन्हें देश की मुख्य धारा से काटने में लग गया है तो, फिर ये सोचने वाली बात है (इस पर फिर से तर्क आ सकते हैं कि पूरा राज्य ऐसा मानता तो, मोदी को पूरे वोट मिलते लेकिन, लोकतंत्र में बहुसंख्या जिसके साथ रहती है, उसी को जनादेश माना जाता है)। मोदी के खिलाफ लड़ाई में विनोद दुआ जैसे पत्रकार बीजेपी के किसी भी फैसले के खिलाफ मुहिम सी चलाते दिखते हैं। किसी भी राजनीतिक दल के फैसलों पर टिप्पणी करना पत्रकार का धर्म है। जनता उसे देखे और तय करे कि क्या सही है क्या गलत।
बीजेपी के खेमे से एक और खबर आई कि लाल कृष्ण आडवाणी बीजेपी की तरफ से प्रधानमंत्री पद के उम्मीदवार होंगे। ये बहुत समय से अपेक्षित खबर थी। इसके पीछे कुछ दूसरे कारण हो सकते हैं लेकिन, जैसा नेशनल मीडिया बता रहा है कि मोदी से डरकर आडवाणी को प्रधानमंत्री पद का उम्मीदवार बनाया गया। ये समझ में नहीं आया। मैं मानता हूं और उत्तर प्रदेश के विधानसभा चुनावों में मोदी की अपील भी देख चुका हूं। गुजरात के बाहर मोदी के विकास राग को सुनकर लोग खुश हो सकते हैं। लेकिन, गुजरात के बाहर के किसी राज्य में मोदी कभी भी इतने बड़े नेता नहीं हो पाए कि वो लाल कृष्ण आडवाणी की बराबरी कर पाएं।
इस खबर पर विनोद दुआ खबरदार कार्यक्रम में बार-बार दर्शकों को यही बताते रहे कि हम आपको बता दें कि लाल कृष्ण आडवाणी अभी प्रधानमंत्री बने नहीं हैं उन्हें सिर्फ अपनी पार्टी की ओर से उम्मीदवार बनाया गया है। अब ये क्या बताने की जरूरत है कि कांग्रेस की अगुवाई में यूपीए की सरकार में बीजेपी का नेता प्रधानमंत्री कैसे हो सकता है। न तो मध्यावधि चुनाव हुए और न ही आडवाणी ने कांग्रेस ज्वाइन किया। साथ ही ये भी कि आडवाणी अभी से भगवान का आशीर्वाद मांगने लगे हैं। दुआ बार-बार ये भी कह रहे थे कि आडवाणी इस अंदाज में लोगों का शुक्रिया अदा कर रहे हैं जैसे वो प्रधानमंत्री बन गए हों। अब मुझे समझ में नहीं आता कि एक नेता जो देश का उप प्रधानमंत्री रह चुका हो। देश की सबसे बड़ी विपक्षी पार्टी का नेता हो उसकी क्षमता पर इस तरह से संदेह करना क्या किसी पार्टी के प्रवक्ता जैसा व्यवहार नहीं है।
लेकिन, हाल के दिनों में खबरदार और चुनाव के दौरान गुजरात की यात्रा में विनोद दुआ कुछ ऐसा बर्ताव करते नजर आए। जो, खास तौर पर एक ऐसे पत्रकार, जिसको देख-सुनकर एक पूरी पत्रकार पीढ़ी जवान हुई हो, से उम्मीद नहीं की जाती। गुजरात में नरेंद्र मोदी के कारनामों की कलई खोलना और उसके पक्ष में तर्क रखना एक निष्पक्ष पत्रकारिता का तकाजा है। जरूरी है कि मोदी जैसे लोगों के खिलाफ मुहिम चलाई जाए। लेकिन, विनोद दुआ जैसे वरिष्ठ पत्रकार का ये सवाल कि आप मोदी को वोट देंगे या अच्छे आदमी को। जिससे दुआ साहब ने सवाल पूछा- उसका जवाब था मोदी ने विकास किया है, अच्छा आदमी है। फिर दुआ साहब का सवाल था- मोदी के आदमी को वोट देंगे या अच्छे आदमी को। अब ये तर्क का विषय हो सकता है लेकिन, मेरा सवाल ये है कि क्या बीजेपी से लड़ने वाला एक भी प्रत्याशी अच्छा नहीं हो सकता।
मैं भी अभी गुजरात से ही लौटकर आया हूं। नरेंद्र मोदी के खिलाफ लड़ाई लड़ते-लड़ते विनोद दुआ जैसे बड़े पत्रकारों ने ऐसा हाल कर दिया है कि गुजरात के लोग मानने लगे हैं कि नेशनल मीडिया गुजरात को बदनाम करने की कोशिश में लगा हुआ है। कोई एक पूरा राज्य अगर ये मानने लगे कि लोकतंत्र का एक स्तंभ पत्रकारिता ही उन्हें देश की मुख्य धारा से काटने में लग गया है तो, फिर ये सोचने वाली बात है (इस पर फिर से तर्क आ सकते हैं कि पूरा राज्य ऐसा मानता तो, मोदी को पूरे वोट मिलते लेकिन, लोकतंत्र में बहुसंख्या जिसके साथ रहती है, उसी को जनादेश माना जाता है)। मोदी के खिलाफ लड़ाई में विनोद दुआ जैसे पत्रकार बीजेपी के किसी भी फैसले के खिलाफ मुहिम सी चलाते दिखते हैं। किसी भी राजनीतिक दल के फैसलों पर टिप्पणी करना पत्रकार का धर्म है। जनता उसे देखे और तय करे कि क्या सही है क्या गलत।
बीजेपी के खेमे से एक और खबर आई कि लाल कृष्ण आडवाणी बीजेपी की तरफ से प्रधानमंत्री पद के उम्मीदवार होंगे। ये बहुत समय से अपेक्षित खबर थी। इसके पीछे कुछ दूसरे कारण हो सकते हैं लेकिन, जैसा नेशनल मीडिया बता रहा है कि मोदी से डरकर आडवाणी को प्रधानमंत्री पद का उम्मीदवार बनाया गया। ये समझ में नहीं आया। मैं मानता हूं और उत्तर प्रदेश के विधानसभा चुनावों में मोदी की अपील भी देख चुका हूं। गुजरात के बाहर मोदी के विकास राग को सुनकर लोग खुश हो सकते हैं। लेकिन, गुजरात के बाहर के किसी राज्य में मोदी कभी भी इतने बड़े नेता नहीं हो पाए कि वो लाल कृष्ण आडवाणी की बराबरी कर पाएं।
इस खबर पर विनोद दुआ खबरदार कार्यक्रम में बार-बार दर्शकों को यही बताते रहे कि हम आपको बता दें कि लाल कृष्ण आडवाणी अभी प्रधानमंत्री बने नहीं हैं उन्हें सिर्फ अपनी पार्टी की ओर से उम्मीदवार बनाया गया है। अब ये क्या बताने की जरूरत है कि कांग्रेस की अगुवाई में यूपीए की सरकार में बीजेपी का नेता प्रधानमंत्री कैसे हो सकता है। न तो मध्यावधि चुनाव हुए और न ही आडवाणी ने कांग्रेस ज्वाइन किया। साथ ही ये भी कि आडवाणी अभी से भगवान का आशीर्वाद मांगने लगे हैं। दुआ बार-बार ये भी कह रहे थे कि आडवाणी इस अंदाज में लोगों का शुक्रिया अदा कर रहे हैं जैसे वो प्रधानमंत्री बन गए हों। अब मुझे समझ में नहीं आता कि एक नेता जो देश का उप प्रधानमंत्री रह चुका हो। देश की सबसे बड़ी विपक्षी पार्टी का नेता हो उसकी क्षमता पर इस तरह से संदेह करना क्या किसी पार्टी के प्रवक्ता जैसा व्यवहार नहीं है।
वरिष्ठतम और काबिलतम होने का (व्यर्थ) अहसास ही समस्या है शायद! बाकी पक्का नहीं। आजकल टीवी देखता नहीं, सो अथॉरिटी से नहीं कह सकता।
ReplyDeleteहालिया समय में विनोद दुआ को सचमुच कुछ हो गया है. बहुत समय पहले नाना-पाटेकर के साथ उनकी गणेश चतुर्थी की कवरेज देखी थी, फिर वंदे-मातरम पर मुंह सड़ाते देखा. जिनको गाना है, गाओ, न गाना, तो मत गाओ. लेकिन लगा कि उन्हें इस गान से ही एलर्जी है. फिर महसूस हुआ कि काश वो खुद को नाना-पाटेकर की गणेश चतुरथी जैसी खबरों तक ही सीमित रकें तो एहससान होगा.
ReplyDeleteवाकई!!
ReplyDeleteबहुत सही बात छेड़ी आपने।
मीडिया का व्यहार तो अजीब लगता ही है गुजरात के मामले में लेकिन खासतौर से समूचा एन डी टी वी , जहां गुजरात या मोदी की बात आती है वहां पर पत्रकार की बजाय मोदी विरोधी राजनीतिक दल के कार्यकर्ता से ज्यादा लगने लगते हैं!!
बात तो आपकी सही है. लेकिन मुझे तो यह देख कर कोफ्त होती है कि नेशनल मीडिया के अधिकांश पत्रकार खासतौर पर टीवी से जुड़े ज्ञानीजन अकसर ऐसा व्यवहार करते हैं कि गोया पत्रकार ना होकर कोई थानेदार हैं जिसने समाज को सुधारने का ठेका भी ले रखा है. जिनके अपने दामन काले हैं वे दूसरों पर अंगुली उठाने की जुर्रत कैसे कर सकते हैं. इलेक्ट्रॉनिक मीडिया जब तक अपनी हदों को खुद तय नहीं करता, यह हिपोक्रेसी भी चलती रहेगी. इलेक्ट्रॉनिक मीडिया ऐसे गाफिल लोगों की जमात बन कर रह गया है, जो खुद को इस देश का संचालक मानने के मुगालते में जी रहे हैं.
ReplyDeleteहर्ष जी स्वर्गीय राजेंद्र माथुर की लिखी कुद पंक्तियां यहां उद्धृत करना चाहता हूं: 'लोहा क्या है हम नहीं जानते लेकिन लोहारी करना हमने बरसों पहले सीख लिया था. सच क्या है हम नहीं जानते लेकिन पत्रकारिता करना हमने बरसों पहले सीख लिया. सच का यथारूप संप्रेषण ही पत्रकारिता है, हां इस प्रक्रिया में सच की कुछ औद्योगिक प्रोसेसिंग की जा सकती है; लेकिन किसी भी कीमत पर उसके मूल स्वरूप को हम नहीं बदल सकते.'
ReplyDeleteदुर्भाग्य से पत्रकारिता इसके विपरीत चल रही है और सच को अपनी अपनी सुविधा से गढ़कर पेश किया जा रहा है. सबके अपने अपने सच हैं. विनोद दुआ का अपना सच है, लेकिन इस सब में पत्रकारिता कहां है?
विनोद दुआ जैसे वरिष्ठतम कलाकारों की कलाकारी का ही तो नतीजा है कि हर्ष भाई को भी लिखना पड़ा,"गुजरात में नरेंद्र मोदी के कारनामों की कलई खोलना और उसके पक्ष में तर्क रखना एक निष्पक्ष पत्रकारिता का तकाजा है। जरूरी है कि मोदी जैसे लोगों के खिलाफ मुहिम चलाई जाए।" दरअसल बौद्धिक जगत में वामपंथियो का वैचारिक आतंकवाद इस कदर हावी है कि इन क्षेत्रों में आगे बढ़ने की महत्वाकांक्षा रखने वाला कोई भी छात्र दक्षिणपंथी खेमे में खड़ा रहने का ख़तरा नहीं उठाना चाहता। इसके बावजूद हर्ष ने सीधे विनोद दुआ की पत्रकारिता को ललकार कर जो खतरा उठाया है, उसके लिए साधुवाद।
ReplyDeleteदुआ साहब की समस्या शायद उनकी सोच से पैदा हुई है. उन्हें लगता है कि वे जो बोलेंगे वही सच है और राष्ट्र का निर्माण उन जैसे पत्रकारों की वजह से ही होगा. पिछले दस सालों से एक ही बात, एक ही जुमला, एक ही सोच लेकर चल रहे हैं.
ReplyDeleteउन्हें समझने की जरूरत है कि भारत बदल रहा है, लोगों की सोच बदल रही है, सो उनकी सोच में भी बदलाव की जरूरत है. अगर सालों से सबकुछ एक ही जगह रहे तो उसमें से बदबू निकलना स्वाभाविक है.
आपकी बात में दम है लेकिन वो प्रोग्राम मैंने देखा नहीं है. इसलिए कुछ भी कहना सही नही होगा.. लेकिन हमें विचार करना होगा कि हम पत्रकारिता के नाम पर क्या कर रहे हैं ?
ReplyDeleteIts a shame for those media person who are just critcising a man like MODI jst due to post GODHRA rights I prsonnally condem that rights but now we have to look farward for new Gujrat I talked to young Gujrati boy about Modi he told me that he is proud that his C.M.is a person like MODI nd believe me he was a MUSLIM engineering student of M.N.N.I.T I suggest MR Dua to come out of air conditioning rooms and talk to public instead of lefties and congress . I think that he might be thinkig to become member R.Sabha with support of Congress n reward of criticising MODI
ReplyDeleteमैं भुवन जी से सहमत हूँ |
ReplyDeleteआपने ये आशा क्यों कर कर लिया की NDTV कभी निष्पक्ष होगा | आखिर विनोद दुआ भी तो NDTV मैं हैं ना फिर वो क्यों सेकुलर बनाने से पीछे हटें... जब उनके आका ही खुले आम हिन्दू विरोध कर रहा हो तो ... विनोद दुआ उनको कॉपी करेंगे ही ...