Thursday, December 20, 2007

गुजरात के एक गांव की कमाई है 5 करोड़ रुपए

(गुजरात चुनावों में मैं सौराष्ट्र इलाके में करीब हफ्ते भर था। गुजरात के गांवों में विकास कितना हुआ है। ये जानने के लिए मैं राजकोट के नजदीक के एक गांव में गया। और, मुझे वहां जिस तरह का विकास और विकास का जो तरीका दिखा वो, शायद पूरे देश के लिए आदर्श बन सकता है।)

गुजरात में राजकोट से 22 किलोमीटर दूर एक गांव की सालाना कमाई है करीब पांच करोड़ रुपए। इस गांव के ज्यादा लोगों की आजीविका का प्रमुख साधन खेती ही है। कपास और मूंगफली प्रमुख फसलें हैं। गांव में 350 परिवार हैं जिनके कुल सदस्यों की संख्या है करीब 1800।

छोटे-मोटे शहरों की लाइफस्टाइल को मात देने वाले राजसमढियाला गांव की कई ऐसी खासियत हैं जिसके बाद शहर में रहने वाले भी इनके सामने पानी भरते नजर आएं। 2003 में ही इस गांव की सारी सड़कें कंक्रीट की बन गईं। 350 परिवारों के गांव में करीब 30 कारें हैं तो, 400 मोटरसाइकिल।

गांव में अब कोई परिवार गरीबी रेखा के नीचे नहीं है। इस गांव की गरीबी रेखा भी सरकारी गरीबी रेखा से इतना ऊपर है कि वो अमीर है। सरकारी गरीबी रेखा साल के साढ़े बारह हजार कमाने वालों की है। जबकि, राजकोट के इस गांव में एक लाख से कम कमाने वाला परिवार गरीबी रेखा के नीचे माना जाता है। कुछ समय पहले ही गरीबी रेखा से ऊपर आए गुलाब गिरि अपनी महिंद्रा जीप से खेतों पर जाते हैं। गुलाब गिरि हरिजन हैं। गुलाब गिरि की कमाई खेती से एक लाख से कम हो रही थी तो, उन्हें गांव में ही जनरल स्टोर खोलने में मदद की हई।

गांव के विकास की इतनी मजबूत बुनियाद और उस पर बुलंद इमारत बनाई आजीवन गांव के सरपंच रहे स्वर्गीय देवसिंह ककड़िया ने। दस साल पहले गांव के खेतों में पानी की बड़ी दिक्कत थी तो, ककड़िया ने एक आंदोलन सा चलाया और गांव के आसपास 45 छोटे-छोटे चेक डैम बनाए। गांव के ही 40-50 लोग एक साथ डैम बनाने का काम करते थे। अब चेक डैम के पानी से आसपास के करीब 25 गांवों के खेत में भी फसल हरी-भरी है।

राजसमढियाला गांव को गुजरात के पहले निर्मल ग्राम का पुरस्कार तत्कालीन राष्ट्रपति अब्दुल कलाम के हाथों मिला था। ये पुरस्कार स्वच्छता के लिए मिलता है। गांव के विकास की कहानी इतनी मजबूत है कि तेजी से तरक्की करते शहर फरीदाबाद से आया विशंभर यहीं बस गया है। वो, गांव के एक व्यक्ति का जेसीबी चलाता है। महीने के छे हजार तनख्वाह मिलती है जो, पूरी की पूरी बच जाती है। खाना-पीना भी गांव में ही होता है। लेकिन, अंग्रेजी माध्यम का स्कूल न होने से परिवार को फरीदाबाद ही छोड़ आया है।

इतना ही नहीं है इस गांव के लोग ताला भी नहीं लगाते। लेकिन, इधर कुछ फेरी वालों की हरकतों की वजह से कुछ लोग ताला लगाने की शुरूआत कर रहे हैं। गांव का अपना गेस्ट हाउस है। पंचायत भवन खुला हुआ था। राशन की दुकान में तेल के ड्रम खुले में रखे थे। गांव के लोग पुलिस थाने में शिकायत लेकर नहीं जाते। गांव की लोक अदालत ही सारे मामले सुलझाती है।

गुजरात देश का सबसे ज्यादा तेजी से शहरी होता राज्य है। दरअसल गुजरात के गांव वाले सिर्फ शहरी रहन-सहन ही नहीं अपना रहे। कई साल पहले से उन्होंने इसके लिए अपनी कमाई भी बढ़ाने का काम शुरू कर दिया था। अब राजसमढियाला गांव के नई पीढ़ी के कई लोग राजकोट फैक्ट्री लगा रहे हैं। शहरों में घर खरीद चुके हैं। साफ है गांव-शहर के बीच विकास का संतुलन इससे बेहतर और क्या हो सकता है। लेकिन, गांव में व्यापार, खेती का माहौल ऐसा है कि गांव में ज्यादा पढ़े-लिखे लोग कम ही मिलते हैं। गांव में स्कूल भी दसवीं तक का ही है। ऊंची पढ़ाई के लिए कम ही लोग बाहर जाते हैं क्योंकि, कमाई तुरंत ही शुरू हो जाती है।

गांव में विकास के नाम पर नेता वोट मांगने से डरते हैं। विकास में ये सरकारों की भागीदारी अच्छे से लेते हैं। लेकिन, अपनी मेहनत से खुद विकास करते हैं। यही वजह है कि चुनावों के समय भी इस गांव में कोई भी चुनावी माहौल नजर नहीं आया। न किसी पार्टी का झंडा न बैनर। गांव बाद में एक साथ बैठकर तय करते हैं कि वोट किसे करना है। और, अगर किसी ने वोट नहीं डाला तो, पांच सौ रुपए का जुर्माना भी है।

(ये लेख दैनिक जागरण के चुनाव विशेष संस्करण में छपा है)

11 comments:

  1. क्या बात है। बहुत बढ़िया!!
    क्या यह गांव भूकंप की चपेट में नही आया था या फ़िर उबर गया?
    क्योंकि जहां तक मुझे याद है, 2003 मे हीं मैं छत्तीसगढ़ सरकार द्वारा गोद लिए एक भूकंप पीड़ित गांव के पुनरूद्धार के बाद लोकार्पण के कवरेज के लिए गया था, और वह गांव राजकोट रोड पर ही मोरवी या मोरबी के पास था।

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  2. अच्छा, आपने मोदी बैशिन्ग से इतर कुछ लिखा ब्लॉग पोस्ट में। लोग तो उसके अलावा कुछ लिख सोच ही नहीं रहे!

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  3. शानदार गांव के जिंदादिल बाशिंदे...जानकारी के लिए धन्यवाद

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  4. यह तस्‍वीर का सिर्फ एक पहलू है जो आपने देखा. पंजाब में ऐसे कई गांव मैने देखे हैं. लेकिन विकास हो रहा है तो अच्‍छी बात है. दूसरों को भी सीख लेना चाहिए.

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  5. एक नया अनुभव। खुद जाकर देखने की इच्छा जगा दी आपने।

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  6. सर, सचमुच ये गांव नेताओं के विकास के नाम पर वोट पॉलिटिक्स को मुंह चिढ़ाता है। ऐसा नहीं है कि गांव के लोग विकास में राजनीतिक पार्टियों या सरकारों की मदद नहीं लेते। लेकिन, सिर्फ सरकार भरोसे ये नहीं रहते।

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  7. यह गाँव पूरे भारत के लिये अशा की किरण और एक आदर्श है। इतना बढ़िया और सकारात्मक समाचार देने के लिये साधुवाद!

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  8. बहुत अच्छी खबर। ये खबर सुर्खियां बननी चाहिए थी, चैनलो पर, सांप अजगर की खबरों के स्थान पर। हमे हर गांव को ऐसा ही कुछ बनाना है, लेकिन इसलिए लिए हर गांव मे इच्छा शक्ति की जरुरत होगी, सरकार जितना कर सकती है करती है, ज्यादा की उम्मीद रखेंगे तो वे सिर्फ़ डंका पीटेंगे, देंगे कुछ नही। इसलिए खुदी को कर बुलंद इतना.......

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  9. जीतेंद्र जी हमारे चैनल सीएनबीसी आवाज पर मैंने ये खबर फाइल भी की थी। औऱ, ये सुर्खियां भी थी।

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  10. असली धन है मिट्टी, पानी. इस पर जिसका हक होगा वही समृद्धि की कहानी लिखेगा. अलवर हो या सौराष्ट्र इन्होंने इस हिसाब से बहुत बेहतर उदाहरण प्रस्तुत किये हैं.

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  11. काश , इससे कुछ और लोग भी प्रेरित हो और स्व विकास की राह पकडें।

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