Wednesday, December 19, 2007

दिलीप जी आपको टिप्पणी चाहिए या नहीं?

दिलीप मंडल ने एक बहस शुरू की और और अभय तिवारी उस बहस में खम ठोंककर खड़े हो गए हैं। वैसे अभय जी, दिलीपजी की तरह एक पक्ष को लेकर उसी पर चढ़ नहीं बैठे हैं। लेकिन, सलीके-सलीके में वो अपनी बात कहते जा रहे हैं। इन दोनों लेखों पर टिप्पणियां भी खूब आईं हैं। और, ज्यादातर टिप्पणियां दिलीप जी के निष्कर्षों के आधार पर ही हैं। पोस्ट और टिप्पणी मिलाकर इतना मसाला तैयार हो गया कि टिप्पणीकार ने भी एक पोस्ट ठेल दी।

मैंने जब दिलीप जी की ब्लॉग को लेकर नए साल की इच्छाएं देखीं थी। उसी समय मैं लिखना चाह रहा था लेकिन, समय न मिल पाने से ये हो नहीं सका। और, इस बीच अभय जी बहस आगे ले गए। दिलीपजी को सबसे ज्यादा एतराज ब्लॉगर मिलन पर है। लेकिन, सबसे ज्यादा टिप्पणियां इसी पक्ष में आई हैं कि ब्लॉगर मिलन होना चाहिए। मैं भी ब्लॉगर मिलन का पूरा जोर लगाकर पक्षधर हूं। समीर जी के मुंबई आने पर पहली बार किसी ब्लॉगर मिलन की वजह से ही मुंबई में तीन साल में पहली बार मुझे थोड़ा सामाजिक होने का भी अहसास हुआ।

अनिलजी और शशि सिंह को छोड़कर पहले मैं किसी से कभी नहीं मिला था। अभय जी से ब्लॉग के जरिए ही संपर्क हुआ और फोन पर एकाध बार बात हुई थी। अनीताजी से दो बार वादा करके भी मैं IIT पवई में हुए ब्लॉग मिलन में कुछ वजहों से शामिल नहीं हो पाया। मैं वहां ब्लॉगर्स के साथ सबसे कम समय रहा। लेकिन, प्रमोद जी, बोधिसत्व जी, यूनुस, विमल, विकास से इतनी पहचान तो हो गई कि आगे मिलने पर मुस्कुराकर मिलेंगे। प्रमोदजी और बोधि भाई के बारे में और नजदीक से जानने की इच्छी भी जागी है।

जहां तक चमचागिरी/ चाटुकारिता की दिलीपजी की बात है तो, बस इतना ही जानना चाहूंगा कि किस संदर्भ में कौन सी तारीफ चमचागिरी/चाटुकारिता हो जाती है। और, ज्यादातर ऐसा नहीं होता कि अपने लिए की गई साफ-साफ चमचागिरी भी अच्छी लगती है लेकिन, दूसरे की सही की भी तारीफ चाटुकारिता नजर आने लगती है।

और, दिलीपजी जहां तक तारीफ वाली टिप्पणियों से ब्लॉग को साहित्य वाला रोग लगने की बात है तो, लगने दीजिए ना। उस तरह के साहित्यकार आप ही के कहे मुताबिक, पांच सौ के प्रिंट ऑर्डर तक सिमटकर रह जाएंगे। वैसे आपके ब्लॉग पर भी ई मेल से सब्सक्राइब करने और फीड बर्नर से कितने लोगों ने सब्सक्राइब किया है, का बोर्ड लगा दिख रहा है।

हां, साधुवाद-साधुवाद का खेल नहीं होना चाहिए। लेकिन, अगर पूरी पोस्ट पढ़कर एक ही पाठक किसी के ब्लॉग की ज्यादातर पोस्ट पर टिप्पणी कर रहा है तो इसमें क्या हर्ज है। क्या किसी अखबार के नियमित पाठक और किसी टेलीविजन चैनल के नियमित दर्शक नहीं होने चाहिए। दिलीप जी ये बदल-बदलकर दर्शक खोजने के चक्कर में हम पड़े तो हम सब की रोजी-रोटी भी मारी जाएगी।

अप्रैल में मैंने ब्लॉग शुरू किया था। शुरू में तो मैंने अपने दोस्तों को ही बताया और सिर्फ उन्हीं की टिप्पणियां आती थीं। जाहिर है ज्यादातर लोग तारीफ ही करते थे। धीरे-धीरे लगातार लिखते-लिखते नई-नई टिप्पणियां आने लगीं। और, उन नई टिप्पणियों के जरिए नए लोग दोस्त भी बन गए। अभी मुंबई में मिले दस-बारह ब्लॉगर को छोड़ दें तो, ज्यादातर टिप्पणी करने वाले ब्लॉगर/पाठक से मैं मिला भी नहीं हूं। मुझे तो टिप्पणी चाहिए अब दिलीपजी की वो जानें। तो, सब लोग जरा जमकर टिप्पणी करना। बहुत अच्छा भी चलेगा।

हां, आपकी पोस्ट पर भुवन की एक टिप्पणी मेरी भी चिंता में शामिल है। कहीं ऐसा तो नहीं है कि कुछ-कुछ लोगों का ब्लॉग कॉकस बन जा रहा हो। वैसे मेरा अनुभव ये भी बताता है कि बिना कॉकस बनाए सफल होना मुश्किल हो जाता है। आप तो, ज्यादा अनुभवी हैं।

जहां तक आपके नए साल के अरमानों की बात है तो, मेरी राय ये रही। आगे जनता की मर्जी

हिंदी ब्लॉग्स की संख्या कम से कम 10,000 हो -- क्या खूब
हिंदी ब्ल़ॉग के पाठकों की संख्या लाखों में हो -- बहुत खूब
विषय और मुद्दा आधारित ब्लॉगकारिता पैर जमाए -- आपकी सोच हकीकत में बदले
ब्लॉगर्स के बीच खूब असहमति हो और खूब झगड़ा हो -- लेकिन, इतना न हो जाए कि अमर्यादित रिश्ते बनाने तक बात पहुंचने लगे
ब्ल़ॉग के लोकतंत्र में माफिया राज की आशंका का अंत हो -- ये आशंका ही बेवजह है क्योंकि, ब्लॉगिंग के लिए कोई प्रिंटिंग प्रेस या टीवी चैनल खोलने की जरूरत नहीं होती
ब्लॉगर्स मीट का सिलसिला बंद हो -- माफ कीजिएगा, आपकी ये इच्छा कभी पूरी नहीं होगी। पहला मौका मिलते ही हम फिर मिलेंगे और इस बार हम भी लिखेंगे, ब्लॉगर मिलन पर
नेट सर्फिंग सस्ती हो और 10,000 रु में मिले लैपटॉप और एलसीडी मॉनिटर की कीमत हो 3000 रु -- आप सचमुच बहुत अच्छा सोचते हैं लेकिन, थोड़ा और अच्छा सोच सकते थे

11 comments:

  1. ब्लॊग नेटवर्किन्ग का भी उतना ही महत्वपूर्ण विषय है जितना अच्छे लेखन का। ब्लॉगर मीट नेटवर्किन्ग का एक माध्यम है। जब तक आप भारत भर में अपने पाठक खोज रहे है - यह महत्वपूर्ण है। विदेशों में खोजने लगेंगे तो और तरीके ज्यादा अपनाने होंगे।

    ReplyDelete
  2. ब्लॉगर्स मीट जिन्दाबाद। हर्षवर्धन जिन्दाबाद।
    अब इसे भले ही चमचागिरी ही क्यों न समझा जाए।

    ReplyDelete
  3. ब्लॉगर मिलन मिलन ही रहे तो उससे बेहतर क्या हो सकता है ।लेकिन जब वह तयशुदा एजेंडा के तहत काम करंर वालों की मीटिंग बन जाए या ब्लॉअगर यूनियन हो जाए तो यह खतरनाक है । पिछ्ली दो मीटिंग्स में कुछेक को कहते सुना- सब अपनी अपनी बात कर रहे थे,फलाना जी मीटिंग का रुख मोडकर मुद्दों की तरफ लाए ....। नाम बताने की आवश्यकता नही ,पर यह किसी ब्लॉगर मीट का तरीका नही । मुद्दे माने क्या ? क्या हम कोई संगठन हैं ? हरेक का अपने ब्लॉग का अलग एजेंडा है ,ठीक है ,पर सबका एक एजेंडा है तो यह एक संगठन है संस्था है एक स्ट्रक्चर में बान्धने की कोशिश है । जबकि ब्लॉग की प्रकृति संरचनाओं से मुक्ति की कोशिश की ही है ।

    ReplyDelete
  4. कुछ लोग शौक से ब्लॉग लिखते हैं, कुछ की आदत बन चुकी है, कुछ सहज भाव से लिखते हैं और कुछ का कोई गंभीर मकसद या कहें एजेंडा भी है। ब्लॉगरों के बीच शुरुआती कुछ मुलाकातों में एक-दूसरे से व्यक्तिगत परिचय और अनौपचारिक बातचीत ही होती है, लेकिन जब कभी एक साथ दस-बीस लोग मिल रहे हों और उनमें से ज्यादातर एक-दूसरे से पहले से परिचित भी हों तो अलग-अलग वन-टू-वन चर्चा की बजाय कुछ ऐसे विषयों या मुद्दों पर सामूहिक चर्चा कर लेना बेहतर रहता है, जो प्रासंगिक हों और जिसमें ज्यादातर लोगों की दिलचस्पी हो। सीमित समय में कुछेक खास-खास प्रासंगिक विषयों पर चर्चा भी हो जाए और बातचीत का दायरा अधिक भटक न जाए, इसके लिए यदि कोई व्यक्ति चर्चा को संभालने की पहल करता है तो कुछ लोगों को कोफ्त होने लगती है, जिसे नोटपैड जी की उपर्युक्त टिप्पणी में भी महसूस किया जा सकता है। उसकी वजह शायद यह होती होगी कि वे केवल कुछेक खास ब्लॉगर के साथ मिलने-मिलाने के लिए आए हों और उनकी रुचि के किसी विषय या एजेंडे पर चर्चा नहीं हो पा रही हो। दूसरी बात, जब दस-बीस या उससे अधिक लोग कभी मिल रहे हों तो एक तरह का छोटा आयोजन हो ही जाता है, जिसकी व्यवस्था का दायित्व एक-दो लोगों को संभालना जरूरी हो जाता है। सब लोग अलग-अलग जगह से आते हैं और सभी एक समय पर नहीं पहुंच पाते हैं और अपनी सुविधा के हिसाब से जाते भी हैं। इस तरह की व्यवस्था की देखरेख को कोई यूनियनबाजी की तरह देखे तो इसे उनकी मानसिक संकीर्णता ही कहेंगे।

    दिलीप जी या किसी अन्य ब्लॉगर को दूसरे ब्लॉगरों से मिलने का मन न हो वह ऐसी बैठकों में शामिल न हो। कोई जबरदस्ती तो है नहीं, कोई औपचारिकता भी नहीं है। यदि किसी ब्लॉगर को अपनी पसंद के ही ब्लॉगरों से मिलने का मन हो तो वह अलग से उन्हीं खास-खास ब्लॉगरों को आमंत्रित करके मिल ले। मन में कोफ्त पालने की क्या जरूरत है। अक्सर देखा यह गया है कि जिन्हें इस तरह के मिलन से कोफ्त होती है, उनका ब्लॉगिंग में अपना कोई खास एजेंडा होता है और वे एक कॉकस बना कर ब्लॉगिंग करते हैं।

    ReplyDelete
  5. चर्चा को संभालने की पहल करता है तो कुछ लोगों को कोफ्त होने लगती है, जिसे नोटपैड जी की उपर्युक्त टिप्पणी में भी महसूस किया जा सकता है।
    '''''
    मेरी टिप्पणी मे आपको जो महसूस हुआ उसे भी कोफ्त ही कहेंगे । सलाह के लिए शुक्रिया । कहाँ किसे जाना चाहिये किसे नही -यह आप ही समझ आ जाता है । मिलन के बाद लोग दोस्त हो जाएँ और बात है । किससे मिलना है यह तो तय नही पर अब इतना समझ आ गया है कि किससे नही मिलना है । किसी ब्ळोगर संस्था के सदस्य हम नही हैं । आप रहिये । झण्डा भी उठाइए ।चर्चा को अपने हिसाब से मोडिये । कोई आपत्ति नही । जो महसूस हुआ उसे हमने कहा । आपको कोफ्त हुई और आपने प्रकट कर दी ।

    ReplyDelete
  6. व्यवस्था का दायित्व एक-दो लोगों को संभालना जरूरी हो जाता है।
    ------व्यवस्था का दायित्व तो मैथिली जी ने ले ही लिया था । आप किस व्यवस्था की बात कर रहे हैं ?मुद्दों की ? विषय की ?
    खैर ,गडी बातें उखडने के मूद मे हम नही थे । आप खामखाह यह ले बैठे । आइन्दा ध्यान रखा जाएगा कि इस अध्याय को न छेडा जाए क्योंकि प्रतिक्रियाएँ भी पहले से ही अनुमानित किस्म की आती हैं ।

    ReplyDelete
  7. इसके बाद का विष वमन देखने मै नही लौटूंगी । सो मेरी ओर से इसे किसी विवाद का आरम्भ न माना जाए ।

    ReplyDelete
  8. हर्ष जी आप ने सही कहा, मैं भी ब्लोगर मीट के पक्ष में हूँ। मनीष जी के आने पर हुई ब्लोगर मीट मेरे लिए पहला अनुभव था। मैं उस समय सिर्फ़ मनीष जी को ब्लोग के जरिए जानती थी और विकास से एक बार मिली हुई थी। अभय जी और विमल जी के ब्लोग मैंने कभी देखे भी न थे तो उनको तो बिल्कुल नहीं जानती थी। अगर ये ब्लोगर मीट न होती तो शायद इनको जानने में हम और समय लगा देते। आप तो तीन साल की बात कर रहे हैं हमे तो इतने साल हो गये बम्बई में कभी अपनी तरफ़ के लोगों से मिलना न हो सका।
    नेट सर्फ़िंग सस्ती हो, हिन्दी ब्लोगरस ज्यादा बनें ये हम भी चाह्ते है। वैसे आप ने अपनी बात बड़ी अच्छी शैली में कही है, अच्छा लगा पढ़ कर

    ReplyDelete
  9. आपस में मिलनाजुलना, इष्ट विषयों पर वार्तालाप करना, नजरिये का आदान प्रदान करना अदि तो हर समाज के लिये जरूरी है. ब्लॉगर समाज के लिये भी जरूरी है.

    टिप्पणी द्वारा चिट्ठाकारों को प्रेरित करना भी जरूरी है. सही समय पर सही मात्रा में प्रेरणा मिल जाये तो हम सब उन्नति की शिखरों को छू सकते हैं.

    ReplyDelete
  10. सही है सही है हर्ष भाई,पर इतनी आसानी से इस बहस को समाप्त नही होने देना चाहिये,आपकी बात से शतप्रतिशत सहमत हूं. !!!

    ReplyDelete
  11. छोड़ मरदवा... जेकर मन मिली, से आपस में मिली। न मिली त तू अपना घरे खुश आ हम अपना घरे मस्त। बाकी हमार त मानना है कि मेलजोल आ बात व्यवहार में प्रेम आ भाईचारा बढ़ेला।

    ReplyDelete

शिक्षक दिवस पर दो शिक्षकों की यादें और मेरे पिताजी

Harsh Vardhan Tripathi हर्ष वर्धन त्रिपाठी  9 वीं से 12 वीं तक प्रयागराज में केपी कॉलेज में मेरी पढ़ाई हुई। काली प्रसाद इंटरमी...