(पहले चरण के चुनाव होने से पहले मैं हफ्ते भर तक गुजरात के सौराष्ट्र इलाके में था। राजकोट, भावनगर, अलंग पोर्ट, जामनगर और इन शहरों के आसपास मैंने चुनावी नजरिए से गुजरात को समझने-जानने की कोशिश की। इसके बाद मुझे गुजरात एक ऐसी कंपनी की तरह लगा जिसे सीईओ नरेंद्र मोदी ज्यादा से ज्यादा मुनाफा दिलाने की कोशिश में लगे हैं। और, यहां के लोगों के लिए ये चुनाव काफी हद तक कंपनी की पॉलिसी तय करने वाले बोर्ड ऑफ डायरेक्टर्स के चुनाव जैसा ही है। इसीलिए गुजरात के एक बड़े वर्ग को मोदी के खिलाफ कही गई कोई भी बात यहां के विकास में अड़ंगा जैसा लगता है।)
वाइब्रैंट गुजरात के विकास में किस तरह की रुकावटें आ रही हैं। गुजरात जैसी तेजी से मुनाफा कमाने वाली कंपनी (राज्य) में क्या कुछ किया जा सकता है जिससे यहां विकास की रफ्तार और तेज हो सके। राज्य बनने के बाद से (पब्लिक से प्राइवेट कंपनी बनने) वाइब्रैंट गुजरात में किस सीईओ (मुख्यमंत्री) की पॉलिसी सबसे ज्यादा पसंद की गई। ये सब मैंने जानने समझने की कोशिश की।
नरेंद्र मोदी की कुर्सी पर मुझे कोई खतरा नहीं दिखता है। गुजरात के बोर्ड ऑफ डायरेक्टर्स (विधानसभा) में मोदी के इतने मेंबर्स शामिल हो जाएंगे जो, मोदी को फिर से गुजरात का प्रॉफिट बढ़ाने के लिए उन्हें सीईओ और चेयरमैन (मुख्यमंत्री) की कुर्सी सौंप देगा।
बाइब्रैंट गुजरात का साल दर साल प्रॉफिट 15 प्रतिशत से ज्यादा की रफ्तार से बढ़ रहा है। वाइब्रैंट गुजरात में काम करने वाले कर्मचारियों (आम जनता) को हर साल अच्छा इंक्रीमेंट मिल रहा है। पूरे गुजरात में सड़कें-बिजली-पानी सब कुछ लोगों को देश के दूसरे राज्यों से अच्छे से भी अच्छा मिल रहा है। गांवों में भी कमोबेश हालात देश की दूसरी कंपनियों (राज्यों) से अच्छे हैं।
वाइब्रैंट गुजरात में हर कोई अपना इंक्रीमेंट बढ़ाने के लिए जमकर काम करने में लगा हुआ है। सीईओ की पॉलिसी ऐसी हैं कि शेयरहोल्डर्स (आम जनता, किसान), उसमें पैसा लगाने वाले इंडस्ट्रियलिस्ट और FII (NRI) सब खुश हैं। हर किसी को यहां अच्छा मुनाफा दिख रहा है। ऐसा नहीं है वाइब्रैंट गुजरात लिमिटेड में इसके पहले के सीईओज ने बहुत कुछ न किया हो। लेकिन, नया सीईओ (मुख्यमंत्री) तुरंत फैसले लेता है। यूनियन (केशूभाई पटेल, सुरेश मेहता, कांशीराम रांणा, भाजपा संगठन, विहिप) पर रोक लगा दी गई है। हर कंपनी की तरह वाइब्रैंट गुजरात में भी ऊपर के अधिकारियों की सैलरी तेजी से बढ़ी है। लेकिन, खुद को साबित करके आगे बढ़ने का मौका सबके पास है। लेकिन, कंपनी के सीईओ नरेंद्र मोदी से पंगा लेकर यूनियन (केशूभाई पटेल, सुरेश मेहता, कांशीराम रांणा, भाजपा संगठन, विहिप) के लोगों से हाथ मिलाने की कोशिश की तो, फिर मुनाफा तो छोड़िए मूल पूंजी भी जा सकती है।
भारतीय शेयर बाजार के बाद अकेले तौर पर सबसे ज्यादा विदेशी निवेश वाइब्रैंट गुजरात में ही आ रहा है। नरेंद्र मोदी अब तक 75 हजार करोड़ रुपए से ज्यादा के निवेश की बात करते हैं। सीईओ की कार्यशैली से कंपनी (गुजरात राज्य) में पैसा लगाने वाले इतने खुश हैं कि राजकोट में मुझे एक इंडस्ट्रियलिस्ट ने ये समझाने की कोशिश की बोर्ड ऑफ डायरेक्टर (विधायक) अलग-अलग व्यक्ति को चुनने के बजाए पार्टी (बीजेपी में नरेंद्र मोदी या कांग्रेस में सोनिया गांधी) को ही बोर्ड ऑफ मेंबर्स में हिस्सेदारी मिल जाए। फिर पार्टी (विधानसभाओं में हिस्सेदारी के आधार पर) जिसे चाहे अपने हिस्से का बोर्ड ऑफ डायरेक्टर (विधायक) नॉमिनेट कर दे।
नरेंद्र मोदी के कंपनी हित में लिए गए कड़े फैसलों (तानाशाही) से उसमें पैसा लगाने वाले खुश हैं। क्योंकि, इस कंपनी (गुजरात राज्य) से जुड़े किसी काम के लिए सबको खुश नहीं करना पड़ता। सीईओ या फिर उनके पसंदीदा बोर्ड मेंबर्स (विधायक) और सीईओ के प्रशासनिक अधिकारियों (IAS अफसरों) के जरिए बिना किसी रोक-टोक के हो सकता है। FII’s (NRI) तो नरेंद्र मोदी को ही दुबारा सीईओ और चेयरमैन देखना चाहते हैं। राज्य में 500 से ज्यादा FII (NRI) वाइब्रैंट गुजरात में कितना भी पैसा लगाने के वादे के साथ शेयरहोल्डर्स से अगले पांच सालों के लिए फिर से नरेंद्र मोदी को सीईओ और चेयरमैन बनाकर उनकी पॉलिसी पर मुहर लगाने को कह रहे हैं।
कांग्रेस (पहले के सीईओ) के गुजरात को मोदी (नए सीईओ) ने वाइब्रैंट गुजरात बना दिया है। अब गुजरात को पहले चलाने वाले लोगों (कांग्रेस) की नई पीढ़ी के साथ कुछ देसी निवेशक (सूरत के कुछ हीरा व्यापारी) कह रहे हैं कि नया सीईओ गुजरात को खराब कर रहा है। इससे लंबे समय में कंपनी के मुनाफे पर असर पड़ सकता है। नए सीईओ के परिवार के कुछ बुजुर्ग भी (भाजपा, संघ, विहिप के नेता) कह रहे हैं कि जब से इस बच्चे को कमान सौंपी गई ये फैसलों में किसी की सुनता ही नही। लेकिन, अब शेयर होल्डर्स (जनता) इनकी सुनते नहीं दिख रहे।
बोर्ड ऑफ डायरेक्टर्स और पैसा लगाने वाले सब कह रहे हैं कि सीईओ कंपनी (गुजरात राज्य) की भलाई के लिए कड़े फैसले ले सके, इसके लिए सीईओ और उसके पसंदीदा बोर्ड ऑफ डायरेक्टर्स के पास 51 प्रतिशत से ज्यादा हिस्सेदारी (विधानसभा में 93 से ज्यादा सीटें) होनी चाहिए। कंपनी का मुनाफा देखते हुए इस बात के पूरे संकेत दिख रहे हैं कि शेयरहोल्डर्स फिलहाल किसी नए सीईओ को कमान सौंपने के पक्ष में नहीं दिखते। क्योंकि, कंपनी की तरक्की में वो फिलहाल किसी तरह का ब्रेक नहीं लगाना चाहते।
ये अलग बात है कि अगर इस बार नए सीईओ को कमान मिली तो, परिवार के किसी भी सदस्य (भाजपा, संघ, विहिप) के पास एक भी शेयर (अधिकार) नहीं बचेंगे। कंपनी में 51 प्रतिशत शेयरों की हिस्सेदारी के साथ सारे फैसले लेने के अधिकार कंपनी की पहली एजीएम (नरेंद्र मोदी के मुख्यमंत्री पद की शपथ लेते ही) में फिर से सीईओ बने नरेंद्र मोदी को सौंप दिए जाएंगे।
देश नेताओं की तर्ज पर बहुत चला/बर्बाद हो लिया। सीईओ की तर्ज पर बतौर कार्पोरेट एण्टिटी भी चल कर देख ले!
ReplyDeleteआउट पुट तो है ना..? यह तो सिर्फ़ इनपुट टैक्स ही है..बाकी भगवान का भी भरोसा इन पर से उठ गया है
ReplyDeleteनए नजरिये से कमाल का विश्लेषण.
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