मैं रविवार को ओम शांति ओम देखकर आया। पूरी मसाला फिल्म है। मुझे जो सबसे अच्छा लगा वो इस फिल्म का साफ-साफ संदेश। संदेश ये है कि सफलता तो अकेले मिल सकती है। लेकिन, बहुत सफल होने के लिए या फिर बहुत बड़ा बनने के लिए हर किसी को एक कॉकस तैयार करना ही होता है। बिना इसके बात एक जगह पर जाकर रुक जाती है।
बेहद घिसी-पिटी पुनर्जन्म पर बनी ओम शांति ओम में कुछ भी ऐसा खास नहीं है। जिसे देखने के लिए दर्शक सिनेमा हॉल तक जाए। लेकिन, फिल्म में मायानगरी का हर स्टार नजर आ रहा है(भले ही एक झलक ही)। इसमें एक चीज जो बड़े अच्छे से फिल्माई गई है वो, है मायानगरी के अंदर की माया। बस इसी माया की झलक दर्शकों को कहीं भी बोर नहीं करती। कहानी कहीं-कहीं भौंडी कॉमेडी भले ही दिखे लेकिन, दर्शक उसमें उलझा रहता है।
शाहरुख खान एक और कोशिश में काफी सालों से लगे हुए हैं। वो, ये कि जिस तरह से तीस सालों से भी ज्यादा की पूरी पीढ़ियां अमिताभ को हीरो मानती हैं। वैसे ही आगे आने वाली पीढ़ी हर तरह के रोल में सिर्फ एक नाम ही जाने। वो, फिर DDLJ से निकला रोमांटिक हीरो शाहरुख हो या फिर ‘YO’ जेनरेशन का SRK। पुरानी पीढ़ी पान खाए गले में स्कार्फ बांधे अमिताभ को डॉन मानती होगी। लेकिन, आज के जमाने के बच्चे तो, चमड़े की जैकेट में जहाज में उड़ते शाहरुख को ही डॉन मानते हैं। कुल मिलाकर शाहरुख पुराने अभिनेताओं की छाप को हल्का करके अपनी छाप छोड़ने के अभियान में सफल हो रहे हैं। ओम शांति ओम उसी को आगे बढ़ाती कहानी है।
इस काम में शाहरुख की मदद करते करण जौहर और फराह खान जैसे लोग। जिन्हें अपना बनाया ब्रांड (SRK) खुद को ब्रांड नंबर वन बनाने के लिए चाहिए। ओम शांति ओम में करण जौहर का डायलॉग कि हीरे की समझ जौहरी को हाती है लेकिन, हीरो-हीरोइन की समझ तो जौहर ही कर सकते है। बताया ना फिल्म मायानगरी की अंदरूनी कहानी है तो, अपने एक खास ‘चरित्र’ की वजह से राजू श्रीवास्तव की बिरादरी के लिए आइटम बनने वाले करण ये मौका कैसे छोड़ सकते थे।
फिल्म में जो भी अभिनेता-अभिनेत्री जिस खेमे में हैं। उन्हें एकदम उसी तरह दिखाने का साहस करण-शाहरुख-फराह की सफलतम तिकड़ी ही कर सकती है। फिल्म में पुराने जमाने के ज्यादा अभिनेताओं का मजाक उड़ाया गया है। फिल्म में मनोज कुमार जिस तरह से पिटे वही, शायद उन्हें ज्यादा अपमानजनक लगा होगा। लेकिन, फिल्म ने एक बार फिर साबित कर दिया कि इस तिकड़ी में भी ये दुस्साहस नहीं है कि वो अमिताभ की हैसियत पर हमला कर सकें। शायद यही वजह थी कि फिल्म में अमिताभ का ‘WHO O.K.’ पूछना भी इन्हें अच्छा लगा। इस तिकड़ी ने अभिषेक बच्चन और अक्षय कुमार को इंडस्ट्री का नंबर दो की रेस में लगा हीरो भी बता दिया है। ठीक उसी तरह जैसे किसी राजनीतिक पार्टी में बड़े नेता नंबर एक की कुर्सी पाते ही नंबर दो की मजबूत लाइन खड़ी कर देते हैं जिससे उनकी सत्ता को जल्दी चुनौती न मिल सके। तो,बहुत सफल होना है तो, अपना कॉकस तैयार करना शुरू कर दीजिए।
बेहद घिसी-पिटी पुनर्जन्म पर बनी ओम शांति ओम में कुछ भी ऐसा खास नहीं है। जिसे देखने के लिए दर्शक सिनेमा हॉल तक जाए। लेकिन, फिल्म में मायानगरी का हर स्टार नजर आ रहा है(भले ही एक झलक ही)। इसमें एक चीज जो बड़े अच्छे से फिल्माई गई है वो, है मायानगरी के अंदर की माया। बस इसी माया की झलक दर्शकों को कहीं भी बोर नहीं करती। कहानी कहीं-कहीं भौंडी कॉमेडी भले ही दिखे लेकिन, दर्शक उसमें उलझा रहता है।
शाहरुख खान एक और कोशिश में काफी सालों से लगे हुए हैं। वो, ये कि जिस तरह से तीस सालों से भी ज्यादा की पूरी पीढ़ियां अमिताभ को हीरो मानती हैं। वैसे ही आगे आने वाली पीढ़ी हर तरह के रोल में सिर्फ एक नाम ही जाने। वो, फिर DDLJ से निकला रोमांटिक हीरो शाहरुख हो या फिर ‘YO’ जेनरेशन का SRK। पुरानी पीढ़ी पान खाए गले में स्कार्फ बांधे अमिताभ को डॉन मानती होगी। लेकिन, आज के जमाने के बच्चे तो, चमड़े की जैकेट में जहाज में उड़ते शाहरुख को ही डॉन मानते हैं। कुल मिलाकर शाहरुख पुराने अभिनेताओं की छाप को हल्का करके अपनी छाप छोड़ने के अभियान में सफल हो रहे हैं। ओम शांति ओम उसी को आगे बढ़ाती कहानी है।
इस काम में शाहरुख की मदद करते करण जौहर और फराह खान जैसे लोग। जिन्हें अपना बनाया ब्रांड (SRK) खुद को ब्रांड नंबर वन बनाने के लिए चाहिए। ओम शांति ओम में करण जौहर का डायलॉग कि हीरे की समझ जौहरी को हाती है लेकिन, हीरो-हीरोइन की समझ तो जौहर ही कर सकते है। बताया ना फिल्म मायानगरी की अंदरूनी कहानी है तो, अपने एक खास ‘चरित्र’ की वजह से राजू श्रीवास्तव की बिरादरी के लिए आइटम बनने वाले करण ये मौका कैसे छोड़ सकते थे।
फिल्म में जो भी अभिनेता-अभिनेत्री जिस खेमे में हैं। उन्हें एकदम उसी तरह दिखाने का साहस करण-शाहरुख-फराह की सफलतम तिकड़ी ही कर सकती है। फिल्म में पुराने जमाने के ज्यादा अभिनेताओं का मजाक उड़ाया गया है। फिल्म में मनोज कुमार जिस तरह से पिटे वही, शायद उन्हें ज्यादा अपमानजनक लगा होगा। लेकिन, फिल्म ने एक बार फिर साबित कर दिया कि इस तिकड़ी में भी ये दुस्साहस नहीं है कि वो अमिताभ की हैसियत पर हमला कर सकें। शायद यही वजह थी कि फिल्म में अमिताभ का ‘WHO O.K.’ पूछना भी इन्हें अच्छा लगा। इस तिकड़ी ने अभिषेक बच्चन और अक्षय कुमार को इंडस्ट्री का नंबर दो की रेस में लगा हीरो भी बता दिया है। ठीक उसी तरह जैसे किसी राजनीतिक पार्टी में बड़े नेता नंबर एक की कुर्सी पाते ही नंबर दो की मजबूत लाइन खड़ी कर देते हैं जिससे उनकी सत्ता को जल्दी चुनौती न मिल सके। तो,बहुत सफल होना है तो, अपना कॉकस तैयार करना शुरू कर दीजिए।
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