पता नहीं मेरे अलावा
और कितने लोग ये कहते मानते होंगे। मानते भी होंगे तो सार्वजनिक तौर पर कितने
मानते होंगे। लेकिन, मैं सार्वजनिक तौर पर कहता हूं कि ये देश भ्रमित लोगों का देश
है। पत्रकार हूं तो तुक्का भिड़ाने के लिहाज से मैं भ्रमित भारत बोलता हूं। भ्रमित
भारत यानी क्या करना है किधर जाना है क्यों जाना है या ये सब पता भी है तो भी
क्यों करें या कर भी लें तो करने से क्या होगा या हो भी गया तो भी क्या। कुछ इस
टाइप वाला भ्रमित भारत। और इसी भ्रमित भारत और भारतीयों का सबसे मजबूत प्रतिबिंब अपने
को समझने वाली पार्टी है भारतीय जनता पार्टी। यानी भ्रमित भारतीय जनता की पार्टी।
यानी भ्रमित जनता की पार्टी। मतलब पक्के तौर पर बीजेपी मतलब भ्रमित जनता पार्टी
लिख सकते हैं। चलिए जनता भी हटाते हैं सिर्फ जनता पार्टी लिखते हैं। वैसे इस समय
ये लिखना खतरे से खाली नहीं है। क्योंकि, भ्रमित जनता पार्टी के पक्के नेता के
समर्थक भ्रमित नहीं हैं। वो भ्रमित होते भी हैं तो पूरी तरह से। वो भ्रमित हैं कि
उनका नेता गुजरात की सेवा करना चाहता है या देश की। 6 करोड़ गुजरातियों की सेवा
करने में उसे मजा मिल रहा है या 122 करोड़ भारतीयों की सेवा करने का मजा लेना
चाहता है। गर्वी गुजरात कहना चाहता है या जय भारत। लेकिन, कमाल ये है कि इस भ्रमित
जनता पार्टी के नेता के समर्थक बिल्कुल भ्रमित नहीं हैं। वो एकदम उसे भगवान की तरह
देखते हैं। जो भी वो बोला वही ब्रह्मवाक्य। लेकिन, ऐसे ही भगवान की तरह उस महान
नेता को देखने वाला एक अधिकारी भ्रमित हो गया है। वो कह रहा है कि उसके भगवान ने
उसे धोखा दे दिया।
इस धोखे देने की बात
उसके भगवान नेता को जोर से लगी। उसे फिर भ्रम हो गया कि वो 6 करोड़ गुजरातियों का
ही कर्ज उतारने के लिए है। अरे अभी पक्के तौर पर 20 दिन भी नहीं बीते थे। जब टीवी
न्यूज चैनलों पर भ्रम फैल गया था कि लाल किला दिखाएं या लालन कॉलेज। अच्छा हुआ कि
लाल किले के बाद लालन कॉलेज दिखाने का विकल्प था। भ्रम को काफी लोगों ने सच्चाई
मान लिया कि असली लाल किले वाला तो लालन कॉलेज पर है। लालन कॉलेज से भारतीयों का
भ्रम ऐसा दूर हो रहा था कि पहले प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरु भी पहले लाल किले के
भाषण में क्या भ्रम दूर कर पाए होंगे। भ्रम दूर हो गया था। राष्ट्रीय स्वयंसेवक
संघ भी भ्रम से बाहर निकल आया था। उसने कहा अब भारतीय जनता पार्टी को भ्रमित नहीं
होने देना है। तय हुआ कि भ्रम दूर करने वाले नेता को प्रधानमंत्री का दावेदार बना
दो। आधी लड़ाई तो ऐसे ही जीत लेंगे। लेकिन, भ्रमित भारत है भ्रमित भारतीय हैं और
उन्हीं भ्रमित भारतीयों की जनता पार्टी है। उसके कुछ नेताओं ने भ्रम बढ़ा दिया। ये
कहकर कि प्रधानमंत्री की लड़ाई तो 2014 में है फिर 2013 में हमारे मुख्यमंत्री
बनने में भ्रम कयों फैला रहे हो। इस भ्रम के समर्थन में वो भ्रमित भारतीय जनता
पार्टी के नेता आ गए जो इस भ्रम में हैं कि भ्रम बना रहा तो हम प्रधानमंत्री बन
सकते हैं। कम से कम तब तक जब तक कोई दूसरा प्रधानमंत्री न बन जाए। लेकिन, संघ इस
भ्रम में फंसने को तैयार नहीं। और इस बार वाला स्वयंसेवक तो पुराने प्रधानमंत्री
स्वयंसेवक से भी कम भ्रमित है। उसे मुखौटे की भी जरूरत कम ही है। टोपी की भी। भ्रम
दूर होने ही वाला था।
भ्रम दूर हो भी जाता
कि वही भगवान मानने वाले अधिकारी की चिट्ठी आ गई। भ्रम बढ़ गया। भ्रम ऐसा बढ़ गया
कि लालन कॉलेज को लाल किले से श्रेष्ठ करार देने वाले टीवी न्यूज चैनलों पर
नामंजूरी की खबरें भी आ गईं। और, इस नामंजूरी की खबर का आधार बना वही 6 करोड़ गुजरातियों की सेवा का 2017 तक का करार। इसी 6 करोड़ गुजरातियों की सेवा के जज्बे को देखकर ही तो 122 करोड़ भ्रमित भारतीय अपना नेता मानने को तैयार बैठे दिख रहे थे। लेकिन, जब नेता ही भ्रम बढ़ाने लगे तो जनता भला कैसे बिना भ्रमित हुए रह सकती थी। वैसे भ्रमित होने से बचने की जरूरत है। इसी भ्रम की शिकार जनता को भ्रमित करके कांग्रेस हमारे भ्रमित भारतीयों को यहां तक लेकर आ गई है। अब देखिए ये भ्रम आगे हमें कितना भ्रमित करके रखता है।
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