Friday, July 17, 2009

ई आजकल नाम भी कइसे-कइसे होते हैं

अब नाम कितना महत्वपूर्ण है ये तो, देश के राजनेताओं से कोई पूछे। लेकिन, नामों की राजनीति पर राजनेताओं से न इन बेचारों में पूछने का साहस है और न पहुंच तो, ये चिलचिलाती धूम में होर्डिंग पर दिख रहे नामों पर ही अपनी राय देते, मुस्कियाते, ठेलियाते चले जा रहे हैं। दिल्ली-हापुड़ हाईवे पर जाम में फंसे दो ट्रॉलीवाले। जाम में फंसे औ कह रहे हैं कि आजकल का नाम रखा रहा है फिल्मों का। साथी को होर्डिंग की तरफ दिखाकर कहता है-कमबख्त इश्क।


लेकिन, नाम से बहुत कुछ होता है। राजनीति में नाम वंशवादी राजनीति और अपने परिवार का ठप्पा आगे बढ़ाने के काम आता है। तो, फिल्मी नाम आज के जमाने की नब्ज बता रहा है। भइया अब इश्क तो कमबख्त ही है। ट्रॉली वाला का जाने। उसको तो इश्क का टैम ही नहीं मिला होगा। तो, ऊ का जाने बेचारा।


धीरे-धीरे खिसकते ट्रैफिक पर बगल से गुजरते स्थानीय राहगीरों की टिप्पणी थी- मजा तो बस एसियै (एयरकंडीशनर कार) म है। मैं भी कार में था लेकिन, मेरी भी कार में एसी नहीं थी। ट्रैफिक जाम में फंसे पसीना सिर के बालों से चुहचुहाते, चश्मे के नीचे से आंख में घुसकर रास्ता बनाते मूंछों के कोने से धार लेकर सरकता जा रहा था। नमकीन पसीना जब रास्ता न पाकर आंखों में घुस जा रहा था तो, चश्मा निकालकर आंख साफ करनी पड़ रही थी।


अच्छा तो आपको क्या लग रहा है कि हम सुबह 8 बजे मस्ती करने दिल्ली-हापुड़ हाईवे पे चले गए थे। नहीं भइया दरअसल मित्र को आनंद विहार बस अड्डे तक छोड़ना था। वरना ई जानते हुए कि भोले के बौराए भक्तों की वजह से दिल्ली-देहरादून राष्ट्रीय राजमार्ग बंद है। मतलब मेरठ से, देहरादून से या उधर से जहां कहीं से भी दिल्ली आना है तो, उलते-पुलटते हापुड़ के रस्ते आइए। कउन अइसी बेवकूफी करे। अरे सावन का महीना चल रहा है ना। मेरी बीवी तो, 5 सोमवार के व्रत से काम चला रही है। कम भक्तिन है ना।


ई जो ज्यादा वाले भक्त हैं। वहीं श्रवणकुमार स्टाइल वाले कांवड़िए। उनकी भक्ति से हम भी भोले बाबा को याद कर रहे हैं। औ हमहीं का जो भी बाबा के 2-4 सौ किलोमीटर के एरिया में है याद कर रहा है। हमारे दफ्तर के कुछ साथी जो, गाजियाबाद से हापुड़ हाईवे पार करके फिल्मसिटी नोएडा आते हैं। उन्हें भी भोले बाबा खूब याद आ रहे हैं। सावन भर याद आएंगे। अब 15-20 मिनट का रास्ता 1 घंटे या उससे भी ज्यादा में पूरा होगा तो, का करेंगे। गाड़ी में बैठे-बैठे थोड़ा भोले बाबा का ध्यान ही कर लेंगे। वाह रे भोले की कांवड़िया ब्रिगेड। देश के हिटलर टाइप नेताओं के अंध कार्यकर्ताओं से भी बेहद खतरनाक। सब शंकरजी की पार्टी में रहेंगे।


इन गेरुआ कांवड़िए के कैंप लगे हैं। बाकायदा सेना की टुकड़ी की तरह। अरे ऊ कउन कम्युनिस्ट बाबा कह गए थे कि धर्म अफीम की तरह होता है। हमें तो, धर्म बड़ा संबल देता है। इसलिए हम कम्युनिस्ट बाबा के ऊपर बेवजहै गुस्साते रहते थे। अब समझ में कम्युनिस्ट बाबा ने इनको देखकर ये बात बोली थी। चलो अब बहुत हो गया ऑफिस का टाइम हो गया। निकलना है-अच्छा है रास्ते में शंकरजी के ये भक्त कहीं नहीं मिलने वाले। अब नाम की राजनीति, फिल्मी नाम और समाज के बदलते पैमाने की चिंता, कांवड़ियों का धर्म, ऑफिस जाने वालों के रास्ते का जाम ... छोड़िए न बस .. सब बम बम भोले ...

6 comments:

  1. मत पूछिए आजकल छुट्टी जैसा माहोल है .....ओर सडको पे भीड़ भाड़ ...गाड़ी चलते डर लगता है

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  2. अगर भोले नाथ खुद इस युग में होते, तो उतर के चार थप्पड़ मारते ऐसे तथाकथित शिव भक्तों को.. बम बम बोल

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  3. लड़कियों के स्कूलों के बाहर खड़े कांवड़ियों का भेस धरे ईवटीजर्स को क्या कहेंगे,या फिर किसी गाड़ी में जा रही किसी महिला को देखकर चीखते चिल्लाते कांवड़ियों को क्या कहेंगे। मैं अगर जिले का कप्तान होता तो उलटा लटका कर ऐसी वाली सारी भक्ति सही रास्तों से बाहर निकाल देता, लेकिन तब कोई प्रवीण तोगड़िया पैदा हो जाता और मैं सस्पेंड। इस देश को यही सब खा गया, आम आदमी 7 परसेंट ग्रोथ.. ये वो.. कहां समझे,जब घर से दफ्तर पहुंचने में उन्हीं शिवजी के भक्त आड़े आ जाते हैं, जिनसे वो घर से नमस्ते करके चलता है। फिर लगता है कौन बड़ा भक्त है.. ताकत से तो वही बड़ा लगता है जो रास्ते रोक दे, ट्रैफिक डाइवर्ट करदे.. अब मैं भी अगले साल कांवड़ लेकर जाउंगा, कम से कम ट्रैफिक जाम में घंटों फंसने से तो अच्छा है, पुण्य भी मिलेगा.. और गाड़ी में बैठकर पसीना बहाते आम लोगों को देखने का मजा भी। बाकी मजे तो फ्री मिलते ही हैं.. बम बम बोल

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  4. बम बम भोले ...
    हम कुछ नहीं बोले...

    आस्था की अर्जी है..
    कुछ भी कहना फर्जी है..

    आप बस आम जन है..
    परेशानी ही आपका धन है..

    खूब परेशानी उठाओ..
    पी कर सो जाओ...

    सुबह को जब जागोगे..
    नये सिरे से भागोगे.

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  5. सब बम बम भोले ...
    जय हो .

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  6. बोल (एटम) बम!

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