Friday, July 03, 2009

ये पिछड़ने का ब्लू प्रिंट है

तनाव, मुकाबला, आगे निकलने की दौड़, पिछड़ने की पीड़ा ये सब खत्म होने वाली है। न कोई आगे निकलने पर अब शाबासी देगा, न पिछड़ने पर कोई पीड़ा होगी। सब बराबर हो जाएंगे। तनाव तो बिल्कुल नहीं होगा। तनाव नहीं होगा तो, आत्महत्या भी नहीं होगी। ये फॉर्मूला है हमारे नए कानूनविद शिक्षामंत्री कपिल सिब्बल जी का।


सिब्बल साहब शिक्षा में बड़े-बड़े बदलाव की बात कर रहे हैं। और, सबसे पहले जो, सबसे बड़े बदलाव की बात कर रहे हैं वो, देखिए। हाईस्कूल (10वीं) की बोर्ड परीक्षा खत्म कर दी जाए। क्योंकि, 10वीं की परीक्षा से बच्चे और उनके माता-पिता तनाव में आते हैं। ये तनाव इतना बढ़ जाता है कि कई बच्चे तो आत्महत्या तक कर लेते हैं। इसका सीधा सा तरीका सिब्बल साहब ये लेकर आ गए कि परीक्षा होगी ही नहीं या वैकल्पिक होगी। जरा मुझे कोई बताए न कि 10वीं में कितने बच्चे होंगे जो, परीक्षा देने के लिए परेशान रहते हैं।


जहां तक 10वीं की परीक्षा में फेल होने के तनाव और उससे बच्चे और उनके माता-पिता के तनाव में रहने की बात है तो, इसमें कोई संदेह-बहस नहीं है कि ये संवेदनशील मामला है और बच्चों को फेल होने से रोकने की कोशिश होनी चाहिए। आत्महत्या का भाव मन में उपजे उसकी बजाए कोई तरीका खोजना होगा कि वो, और मजबूती से पढ़ाई करें, आगे निकलें। लेकिन, परीक्षा ही हटा देना ये तो, देश की पीढ़ी को पीछे ढकेलने जैसी बात होगी।



कितनी बड़ी विसंगति है कि एक तरफ हम बच्चों को इतना परिपक्व मानने लगे हैं कि कक्षा 6 से ही उन्हें यौन शिक्षा (sex education) देने की वकालत कर रहे हैं। वहीं दूसरी ओर 10वीं कक्षा में पढ़ने वाले बच्चे को इतना कच्चा समझ रहे हैं कि उसे फेल होने के तनाव से निजात दिलाना चाहते हैं। हर दूसरी बात पर हम ये जुमला सुनते रहते हैं कंपटीशन का जमाना है। और, अब यहां तक पहुंचने के बाद हम कह रहे हैं कि कंपटीशन खत्म कर दो।


परीक्षा में फेल होने पर 12वीं में भी बच्चे आत्महत्या कर लेते हैं और, इंजीनियरिंग-डॉक्टरी की प्रवेश परीक्षा में फेल होने पर भी। क्या करेंगे सारी परीक्षाएं खत्म कर देंगे। और, सिब्बल साहब आप तो, राजनीति में हैं। यहां के कंपटीशन के लिए कितनी तैयारी करनी होती है। राजनीति में किस ग्रेड सिस्टम की वकालत करेंगे आप। आप वकील साहब हैं आपको तो, पता है जितनी अच्छी मुकदमे की तैयारी वकील जूनियर रहते कर लेता है। वही उसे बड़ा वकील बनने में मदद करती है।


मुकाबला छोड़ने वाले पीछे छूटते जाते हैं। अब चूंकि सिब्बल साहब सहमति के बाद ही इसे लागू करने की बात कह रहे हैं। इसलिए मैं भी सुझाव दे रहा हूं कि मुकाबला छोड़ने का नहीं मुकाबले के लिए और मजबूती से देश के बच्चों को तैयार करने का ब्लूप्रिंट तैयार कीजिए सिब्बल साहब। गलत कह रहा हूं तो, बताइए।

10 comments:

  1. विचारणीय मुद्दा है !

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  2. महत्वपूर्ण है आपका कहना । आभार ।

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  3. मुझे लगता है कि बात में कहीं लौंचा है। वर्तमान परीक्षा पद्यति को जाँच पद्यति में बदलने की बात है। जो संभवतः मूल्यांकन का श्रेष्ठ तरीका हो सकता है।

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  4. आगे दाखिले / नौकरी आदि के लिए प्रवेश परीक्षा अनिवार्य कर दो, लम्बी-लम्बी परसेंटेज का खेल और इससे उपजने वाला तनाव अपने आप ख़त्म हो जायेंगे.

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  5. परीक्षा लेने का सिलसिला बहुत है देश में। और उसे लेने वाले कोई तीसमारखां नहीं हैं - मूल्यांकन में या तो धांधली करते हैं या हांफ जाते हैं।
    यह क्रैप खत्म होना चाहिये।

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  6. मुझे तो पढ़ाई के लिए थोड़ा तनाव होना जरूरी लगता है। विद्यार्थी को यदि परीक्षा पास करने और अपनी योग्यता प्रदर्शित करने की कोई फिक्र ही नहीं रहेगी तो पढ़ाई के प्रति नैसर्गिक रुझान पैदा करना बहुत कठिन हो जाएगा।

    यह उम्र ऐसी नहीं होती कि बच्चे में पढ़ाई के प्रति स्वतःस्फूर्त लगन पैदा होती रहे। विद्यार्थी को अनुशासित और परिश्रमी बनाने में अध्यापक, अभिभावक, और फेल होने से सामाजिक अस्वीकृति का डर बहुत सहायक होता है ।

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  7. आप सही कह रहे हैं .

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  8. राजनीति में किस ग्रेड सिस्टम की वकालत करेंगे आप।


    खूब घेरा है:)

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  9. ..अब कुछ तो करेंगे ही। बेहतर होता पहले संसदीय राजनीति में ग्रेडिंग सिस्‍टम लागू करते कि जो सांसद संसद में अपने क्षेत्र की समस्‍याओं को नहीं उठाएगा उसे अयोग्‍य घोषित कर दिया जाएगा...या

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  10. परिक्षा खत्म करने से तो तनाव सिर्फ टलेगा खत्म नही होगा । और थोडा बहुत तनाव जरूरी है ।

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