अभी हाल में ही प्रतापजी दक्षिण अफ्रीका होकर लौटे। वहां से लौटने के बाद वहां के सामाजिक परिवेश और उसका भारत से शानदार तुलनात्मक विश्लेषण किया। उनके इन लेखों की सीरीज अमर उजाला में छपी। मैं उसे यहां भी पेश कर रहा हूं। तीसरी कड़ी में उन्होंने दक्षिण अफ्रीका के बाजार में चीन और भारत की जंग का नजारा दिखाया है।
जोहांसबर्ग की सडक़ों के किनारे भारतीय कंपंनियों की होर्डिंज्स देखते ही छाती फूल जाती है। यह जानने पर कि भारतीय कंपंनियां यहां इतना बेहतर कर रही हैं कि उनका मुकाबला चीन और दूसरे संपंन्न राष्ट्रों से किया जाता है, भीतर का सुख दोगुना हो जाता है। अपने देश में हम इन उद्यमयिों को लेकर भले ही तरह-तरह के सवाल खड़े करते रहे हैं। दूर देश में लेकिन उनकी तरक्की के किस्से सुनना कानों को प्रिय लगता है।
आप किसी भारतीय मूल के दक्षिण अफ्रीकी से सिर्फ ये पूछिए कि यहां कौन-कौन सी भारतीय कंपंनियां क्या कर रही हैं? एक सांस में वो आपको गिना देगा। ताजातरीन एमटीएन अधिग्रहण का जिक्र सबसे पहले आएगा। दक्षिण अफ्रीका की प्रमुख मोबाइल कंपनी के अधिग्रहण को लेकर अंबानी बंधुओं में जंग चल रही है। शुरूआत में भारती टेलीकाम के सुनील भारती मित्तल की कंपनी के एमटीन पर काबिज होने की खबरें आई थीं। टाटा दक्षिण अफ्रीका में छठवीं बड़ी निवेशक है। टाटा, एल एंड टी, महेद्रा, रेनबैक्सीस, किंगफिशर, सुकैम आदि कंपंनियों के बारे में यहां लोग भलीभांति जानते हैं। इसी तरह रतन टाटा, मुकेश अंबानी, अनिल अंबानी, विजय माल्या, अजय गुप्ता और जयेश रामचंद्रन वे नाम हैं जो यहां अमूमन लोगों को याद हैं। इनमें अजय गुप्ता जोहन्सबर्ग में रहते हैं।
सहारा कम्प्यूटर कंपंनी के मालिक अजय गुप्ता को मंहगी जीवन शैली और सिने स्टार फिल्म स्टार शाहरूख खान का दोस्त होने के नाते भी जाना जाता है। शाहरूख जब भी जोहांसबर्ग में होते हैं तो अजय के घर ही ठहरते हैं। जयेश रामचंद्रन दक्षिण अफ्रीका में भारतीय ïव्यंजन के रेस्टोरेंट की एक चेन राज रेस्टोरेंट की मालिक हैं। हीरे की खदानें दक्षिण अफ्रीका में हैं, लेकिन उनकी पालिशिंग का शत-प्रतिशत काम भारत में होता आ रहा है। केजीके डायमंड ने पिछले बरसों में यहां 400 करोड़ रूपए का निवेश किया है। सबसे बड़ी बात यह है कि गुणवत्ता के मामले में भी भारतीय कंपंनियों ने अपनी साख बरकरार रखी है।
भारतीय कंपंनियों के बारे में ये सब मैं इतने अधिकार नहीं कह पाता अगर मैं डेविड मैकग्रा से मेरी मुलाकात न होती। मैकग्रा दक्षिण अफ्रीका की एक बड़ी कोरियर कंपंनी न्यू एरा कोरियर के मालिक हैं। दुनिया के तमाम देशों में उनके दफ्तर हैं। अंतराष्ट्रीय कारोबार पर उनकी अपनी समझ है। केपटाउन से जोहान्सबर्ग आते समय विमान में हमारी मुलाकात हुई। पचास-पचपन साल के मैकग्रा ने पहले मुझे दो बार चाकलेट आफर किया। मैने समझ लिया कि वे मुझसे बातें करना चाहते हैं। मैं अपनी सीट से उठकर उनके पास जाकर बैठ गया। मुझे अपने एक सहयात्री से बात करते देख वो जान गए थे कि मैं भारत से आया एक पत्रकार हूं। भारत की ढेर सारी तारीफें करने के साथ वो एक सांस में चीनी कारोबारियों को कोसने लगने हैं।
मैकग्रा कहने लगे कि चीनी ज्यादातर हमारे घरेलू बाजार की कमर तोडऩे पर लगे हैं। भारत ठीक है, आटोमोबाइल, कम्युनिकेशन, पावर, कांस्ट्कशन, हास्पिटलिटी, मेडिसन के क्षेत्र में काम कर रहा है। चीनी हमारे लिए कहीं से स्वाभाविक साथी नहीं है। वो अंगरेजी नहीं बोलते। अपनी अलग बस्ती में रहना पसंद करते हैं। भारतीय हमारे समाज का एक हिस्सा है। वो मुझे भारत का प्रतिनिधि मानते हुए ही बोलते जा रहे थे कि आप लोग आओ। चीनियों से पहले। यह आपके साथ-साथ दक्षिण अफ्रीका के भी हक में है।
एक दिन पहले मैं पिक एंड पे नाम के एक रिटेल चेन शोरूम में गया था। वहां ज्यादातर माल चीन के ही भरे हुए थे। उसी वक्त लगा था कि यहां के बाजार में चीन ने अपनी मजबूत पकड़ बना ली है। हम अपने देश से तुलना करने लगे, जहां के छोटे-छोटे बहुत से उद्योग चीनी उत्पादों के चक्कर में खत्म हो गए हैं। दक्षिण अफ्रीका में तो हालत और भी खराब दिखी।
खाने के सामान के साथ रेडीमेड कपड़ों के ब्लाक पर भी चीन के लेबल नजर आ रहे थे। दक्षिण अफ्रीका में बने सामान खरीदने की बात की तो वो थोड़े से जूस और आयुर्वेदिक सामान ही दिखा पाया। अंतराष्ट्रीय स्तर पर बिकने वाले ब्रांडस के अलावा चीन की ही धूम थी। मैकग्रा की बात से मुझे 1996 के आसपास का साल याद आया, जब बाजार मे आई एक गिरावट से कोरिया और दूसरे कई देशों के बाजार पर बहुत बुरा असर पड़ा था। लेकिन भारत को उस समय कोई बड़ा झटका नहीं लगा था।
अर्थशास्त्री भारतीय अर्थव्यवस्था की तुलना हाथी से करते रहे हैं। वो आकार में भारी है, बलशाली है। आगे बढ़ रहा है, गति थोड़ा कम है, लेकिन खतरा भी कम से कम है। वही चीन को हमेशा ड्रैगन की पहचान से जोडक़र देखा जाता है। वहां की लोककथाओं से लेकर हालीवुड की फिल्मों तक चीन को ड्रैगन से जोडक़र देखा जाता है। इस तरह दक्षिण अफ्रीका के संदर्भ में देखने पर मुझे हाथी और ड्रेगन की लड़ाई नजर आती है। एक अपनी गति और शक्ति से आगे बढ़ रहा है, एक सबकुछ अपने कब्जे में कर लेना चाहता है। भारत और दक्षिण अफ्रीका के बीच सन 2004 में 180 करोड़ डालर का कारोबार हुआ। सन 2006-07 में यह दोगुने से उपर बढक़र 470 करोड़ डालर तक पहुंच गया। आने वाले 2010 में यहां फुटबाल का विश्वकप फीफा होने वाला है। साउथ एशिया टूरिज्म की इंडिया कंट्री हेड मेघा सम्पत्त का मानना है कि अगले पांच साल में यहां बहुत अधिक भारतीय निवेश बढऩे वाला है। 2010 तक भारत और दक्षिण अफ्रीका के बीच 1200 करोड़ डालर तक पहुंचने का अनुमान लगाया जा रहा है।
दक्षिण अफ्रीका के इस औद्योगिक विस्तार के बीच जब यह मालूम चलता है कि यहां के श्रम कानूनों की हालत बहुत सख्त और बेहतर है । हालांकि जो बताता है वह आलोचनात्मक पक्ष रखता है कि तीन महीने के ट्रायल के बाद किसी को निजी नौकरी से भी निकाला जाना आसान नहीं है। बताने वाला नियोक्ता था, वहां के ट्रेड यूनियन और स्थानीय प्रशासन के दखल की बात करता है। लेकिन एक दक्षिण अफ्रीकी के अधिकारों के मद्देनजर देखें तो लगता है कि औद्योगिीकरण की प्रक्रिया में इतना ध्यान रखने की जो दृष्टि नेल्सन मंडेला ने दी वो आगे भी बनी रहे तो बेहतर है।
दक्षिण अफ्रीका के साथ भारत के रिश्ते के वे दिन भी याद आए जब रंगभेद के आरोपों के चलते सन 1948 में रिश्ते तोड़ लिए थे। देश में लोकतंत्र की बहाली के साथ 1994 से फिर नए अध्याय लिखे जा रहे हैं। संभवानाओं की किताब में अभी बहुत से पन्ने रिक्त हैं। गुजरे 14 वर्षों में जो दर्ज किया गया है वो कारोबारी और भारत-दक्षिण अफ्रीका रिश्तों के लिए सुखद रहा है।
देश की दशा-दिशा को समझाने वाला हिंदी ब्लॉग। जवान देश के लोगों के भारत और इंडिया से तालमेल बिठाने की कोशिश पर मेरे निजी विचार
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ये कडी भी अच्छी लगी
ReplyDeleteइसे यहाँ प्रस्तुत करने का शुक्रिया -
-लावण्या
अच्छी जानकारी, भारतीय कंपनियों की सफलता पढ़कर खुशी हुई !
ReplyDeleteChina ke un saamano se south africa hi nahi balki jyadatar desh pate hain, yeahn US me bhi yehi haal hai....
ReplyDeleteKari shandaar rahi, kaafi kuch naya pata chala.
धन्यवाद! बहुत अच्छी जानकारी.
ReplyDeletejankari ke liye thanks...
ReplyDeleteहर्ष भाई
ReplyDeleteजानकारी बढ़ाने का शुक्रिया...चीन का कब्ज़ा जब अमेरिका के बाजार में भी हो गया है तो दक्षिण अफ्रीका की क्या बात की जाए...आप वहां के बड़े से बड़े माल में चीनी सामान को देख कर दांतों तले उंगलियाँ दबाईये...
नीरज
आभार जानकारी के लिए.
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