हिंदुस्तान मुर्दाबाद, मुजफ्फराबाद (पाक अधिकृत कश्मीर) चलो। भारत की सरकार हमारे लोगों पर जुल्म ढा रही है। भारतीय सेना के लोग हमें मार रहे हैं। प्रताड़ित कर रहे हैं। हमारी बहू-बेटियों की इज्जत लूटते हैं। कश्मीर में पिछले कुछ समय से कुछ इसी तरह की भारत विरोधी भावनाएं फिर से उफान पर हैं। क्या सचमुच कश्मीर (जम्मू-लद्दाख छोड़कर) के लोगों के साथ भारत सरकार और भारतीय सेना इसी तरह का व्यवहार कर रही हैं। क्या सचमुच भारत ने जबरदस्ती कश्मीर पर कब्जा कर रखा है। कश्मीर का एक चक्कर लगाकर आइए तो, आपको ये बात और मजबूती से समझ में आएगी।
फिर, दुनिया में गुटनिरपेक्ष, शांति के प्रतीक और मानवता के सबसे बड़े पक्षधर देश भारत को ये क्यों नहीं समझ में आ रहा कि कब्जा, भारत और भारतीयों के मूल स्वभाव में नहीं है। इसलिए वो, ये काम तो मजबूती से कर ही नहीं सकते। हमारे देश में चीन की तरह तानाशाह शासन तो है नहीं कि जो, फैसला हमने लिया उस पर अमल कर सकें। हमारे पास इतनी भी सैन्य ताकत नहीं है कि हम हर दिन भारतीय सीमा का अतिक्रमण करने वाले पाकिस्तानी सैनिकों और उनकी शह से भारत में आतंक मचाने वालों का बाल भी बांका कर सके। चीन और पाकिस्तान अवैध कब्जा भारत की जमीन पर किए हैं उसे हम छुड़ा नहीं पा रहे हैं फिर, हम क्यों कश्मीर को कब्जे में रखे हुए हैं। बेवजह देश की सेना की वहां आहुति दे रहे हैं, देश के लोगों की मेहनत की कमाई घाटी में झोंक रहे हैं। विदेश में पढ़कर लौटे और भारत के लोकतंत्र की वजह से ही सत्ता की मलाई काट रहे अब्दुल्ला और मुफ्ती के बेटे-बेटी भी कह रहे हैं कि भारत की सरकार कश्मीरियों पर जुल्म ढा रही है।
हुर्रियत और दूसरे अलगाववादी तो पहले से ही ये बात गला फाड़कर कह रहे हैं कि कश्मीर, ऐसी समस्या है जिसका हल निकालने के लिए भारत को कश्मीरियों के साथ पाकिस्तान या किसी तीसरे पक्ष को भी बिठाना होगा। श्रीनगर की रैलियों में पाकिस्तान के झंडे लहराए जाते हैं। पाकिस्तान जिंदाबाद और हिंदुस्तान मुर्दाबाद के नारे लगते हैं। मैं जब शादी के बाद कश्मीर घूमने गया था तो, घाटी में बहुत बढ़िया माहौल था फिर भी, मैं जिस बोट में रुका था उसके, मालिक ने कहाकि- हिमाचल प्रदेश के सेब कारोबारी, कश्मीर का सेब न बिके इसके लिए सेना और सरकार के साथ मिलकर कश्मीर में आतंकवादी गतिविधि चला रहे हैं। बेहद वाहयात तर्क हैं लेकिन, आप-हम कुछ नहीं कर सकते। उनको भारतीय सेना पर, भारत सरकार पर भरोसा ही नहीं है। सेना के सामने कश्मीर के लोग ठीक वैसे ही नारे लगाते हैं जैसे- शायद आजादी के आंदोलन के समय कश्मीर से लेकर कन्याकुमार तक के भारतीय अंग्रेजों के खिलाफ नारे लगाते थे।
कश्मीर से वो पाकिस्तान जाने की तैयारी करते हैं तो, उनकी करते वक्त जो मरा वो, एक आतंकवादी था। और, द इकोनॉमिक टाइम्स के संपादकीय पृष्ठ पर Pushing Kashmir toward Pakistan में स्वामीनाथन अय्यर कह रहे हैं कि जम्मू के आंदोलन की वजह से कश्मीर, पाकिस्तान के नजदीक जा रहा है। स्वामीनाथन साहब खुद ही अपने लेख की शुरुआत में, पुराने वाकये में एक कश्मीरी अधिकारी के हवाले से कहते हैं कि, पाकिस्तान के साथ उनका व्यापार ज्यादा स्वाभाविक है। अब स्वामीनाथन साहब कहीं भी ये नहीं बताते कि जब 60 साल से कश्मीरियों की सारी गलत (अलगाववादी पढ़ें) हरकतों के बाद भी जम्मू में कभी एक भी मुसलमान के सिर की पगड़ी नहीं उछली तो, भी क्या कश्मीर के अलगाववादी कश्मीर को पाकिस्तान के पास नहीं ले जा रहे थे।
कश्मीर के सेब व्यापारी करीब पंद्रह दिनों से सेब से भरा ट्रक लिए खड़े जम्मू-श्रीनगर नेशनल हाईवे पर खड़े रहे गए तो, वो पाकिस्तान में सेब बेचने चल पड़े। लेकिन, शायद ही कोई एक वाकया सुनने मिला हो कि देश के किसी भी हिस्से में किसी कश्मीरी मुसलमान ने एक पल भी दहशत में गुजारा हो। लेकिन, जब श्रीनगर, पहलगाम और गुलमर्ग के आसपास अलगाववादियों ने तांडव मचा रखा तो, मेरे परिवार जैसे जाने कितने धरती के स्वर्ग पर डरे सहमे थे कि- अब घर सही-सलामत लौट पाएंगे या नहीं।
दरअसल सच्चाई ये नहीं है कि अमरनाथ श्राइन बोर्ड को जमीन देने या उसे वापस लेने से ये सारा हंगामा घाटी में चल रहा है। सच्चाई वो है जो, मशहूर कश्मीरी गायक गुलाम मोहम्मद बताते हैं गुलाम मोहम्मद जम्मू में रहते हैं वो, कहते हैं कि, ये लड़ाई हिंदू-मुसलमान की है ही नहीं। ये लड़ाई है जम्मू के अधिकारों की। उन्होंने तर्क देते हुए कहा कि चाहे अंग्रेजी में J&K कहो चाहे देसी जुबान में जम्मू-कश्मीर, आता जम्मू ही पहले है। लेकिन, विडंबना देखिए कि जम्मू के लोग भारत माता की जय बोलते हैं, 60 सालों में कभी देश के लोगों को डराकर नहीं रखा। कभी कोई धार्मिक आधार पर हिंसी नहीं की। फिर भी भारत सरकार से तवज्जो नहीं पाते।
जबकि, कश्मीर के लोग लगातार भारत पर कब्जे का आरोप लगाते रहते हैं। हिंदुस्तान के खिलाफ नारे लगाते हैं, पाकिस्तान के झंडे लहराते हैं, हिंदुस्तानी झंडे को आग लगाते हैं। अभी कल के अखबारों में भी श्रीनगर से मुजफ्फराबाद जाने वालों के हाथ में भारत को बंटवाकर पाकिस्तान बनवाने वाले मोहम्मद अली जिन्ना के फोटो थे। आज 14 अगस्त है। आज ही के दिन 1947 में पाकिस्तान आजाद हुआ था यानी भारत से बंटा था। अब मुझे तो आज के हालात देखने के बाद लगता है कि कश्मीर को आजाद कर देना ही भारत के लिए सबसे बेहतर होगा।
कश्मीरियों की भाषा में भारत सरकार कश्मीर पर जबरी कब्जा जमाए हुए है। और, उसका खामियाजा पूरे देश के लोग तो भुगत ही रहे हैं। सबसे ज्यादा जम्मू-लद्दाख के वो, लोग भुगत रहे हैं जो, अलगाव की धमकी भरी भाषा नहीं बोलते। जहां, सचमुच धरती पर स्वर्ग जैसा माहौल रहता है। लेकिन, हमारी सरकार तो, धमकी ही भाषा सुनती है। और, उमर अब्दुल्ला और महबूबा मुफ्ती को भी पाकिस्तान के थोड़ा और नजदीक जाकर ही भारतीय लोकतंत्र की अहमियत समझ में आएगी।
फिर, दुनिया में गुटनिरपेक्ष, शांति के प्रतीक और मानवता के सबसे बड़े पक्षधर देश भारत को ये क्यों नहीं समझ में आ रहा कि कब्जा, भारत और भारतीयों के मूल स्वभाव में नहीं है। इसलिए वो, ये काम तो मजबूती से कर ही नहीं सकते। हमारे देश में चीन की तरह तानाशाह शासन तो है नहीं कि जो, फैसला हमने लिया उस पर अमल कर सकें। हमारे पास इतनी भी सैन्य ताकत नहीं है कि हम हर दिन भारतीय सीमा का अतिक्रमण करने वाले पाकिस्तानी सैनिकों और उनकी शह से भारत में आतंक मचाने वालों का बाल भी बांका कर सके। चीन और पाकिस्तान अवैध कब्जा भारत की जमीन पर किए हैं उसे हम छुड़ा नहीं पा रहे हैं फिर, हम क्यों कश्मीर को कब्जे में रखे हुए हैं। बेवजह देश की सेना की वहां आहुति दे रहे हैं, देश के लोगों की मेहनत की कमाई घाटी में झोंक रहे हैं। विदेश में पढ़कर लौटे और भारत के लोकतंत्र की वजह से ही सत्ता की मलाई काट रहे अब्दुल्ला और मुफ्ती के बेटे-बेटी भी कह रहे हैं कि भारत की सरकार कश्मीरियों पर जुल्म ढा रही है।
हुर्रियत और दूसरे अलगाववादी तो पहले से ही ये बात गला फाड़कर कह रहे हैं कि कश्मीर, ऐसी समस्या है जिसका हल निकालने के लिए भारत को कश्मीरियों के साथ पाकिस्तान या किसी तीसरे पक्ष को भी बिठाना होगा। श्रीनगर की रैलियों में पाकिस्तान के झंडे लहराए जाते हैं। पाकिस्तान जिंदाबाद और हिंदुस्तान मुर्दाबाद के नारे लगते हैं। मैं जब शादी के बाद कश्मीर घूमने गया था तो, घाटी में बहुत बढ़िया माहौल था फिर भी, मैं जिस बोट में रुका था उसके, मालिक ने कहाकि- हिमाचल प्रदेश के सेब कारोबारी, कश्मीर का सेब न बिके इसके लिए सेना और सरकार के साथ मिलकर कश्मीर में आतंकवादी गतिविधि चला रहे हैं। बेहद वाहयात तर्क हैं लेकिन, आप-हम कुछ नहीं कर सकते। उनको भारतीय सेना पर, भारत सरकार पर भरोसा ही नहीं है। सेना के सामने कश्मीर के लोग ठीक वैसे ही नारे लगाते हैं जैसे- शायद आजादी के आंदोलन के समय कश्मीर से लेकर कन्याकुमार तक के भारतीय अंग्रेजों के खिलाफ नारे लगाते थे।
कश्मीर से वो पाकिस्तान जाने की तैयारी करते हैं तो, उनकी करते वक्त जो मरा वो, एक आतंकवादी था। और, द इकोनॉमिक टाइम्स के संपादकीय पृष्ठ पर Pushing Kashmir toward Pakistan में स्वामीनाथन अय्यर कह रहे हैं कि जम्मू के आंदोलन की वजह से कश्मीर, पाकिस्तान के नजदीक जा रहा है। स्वामीनाथन साहब खुद ही अपने लेख की शुरुआत में, पुराने वाकये में एक कश्मीरी अधिकारी के हवाले से कहते हैं कि, पाकिस्तान के साथ उनका व्यापार ज्यादा स्वाभाविक है। अब स्वामीनाथन साहब कहीं भी ये नहीं बताते कि जब 60 साल से कश्मीरियों की सारी गलत (अलगाववादी पढ़ें) हरकतों के बाद भी जम्मू में कभी एक भी मुसलमान के सिर की पगड़ी नहीं उछली तो, भी क्या कश्मीर के अलगाववादी कश्मीर को पाकिस्तान के पास नहीं ले जा रहे थे।
कश्मीर के सेब व्यापारी करीब पंद्रह दिनों से सेब से भरा ट्रक लिए खड़े जम्मू-श्रीनगर नेशनल हाईवे पर खड़े रहे गए तो, वो पाकिस्तान में सेब बेचने चल पड़े। लेकिन, शायद ही कोई एक वाकया सुनने मिला हो कि देश के किसी भी हिस्से में किसी कश्मीरी मुसलमान ने एक पल भी दहशत में गुजारा हो। लेकिन, जब श्रीनगर, पहलगाम और गुलमर्ग के आसपास अलगाववादियों ने तांडव मचा रखा तो, मेरे परिवार जैसे जाने कितने धरती के स्वर्ग पर डरे सहमे थे कि- अब घर सही-सलामत लौट पाएंगे या नहीं।
दरअसल सच्चाई ये नहीं है कि अमरनाथ श्राइन बोर्ड को जमीन देने या उसे वापस लेने से ये सारा हंगामा घाटी में चल रहा है। सच्चाई वो है जो, मशहूर कश्मीरी गायक गुलाम मोहम्मद बताते हैं गुलाम मोहम्मद जम्मू में रहते हैं वो, कहते हैं कि, ये लड़ाई हिंदू-मुसलमान की है ही नहीं। ये लड़ाई है जम्मू के अधिकारों की। उन्होंने तर्क देते हुए कहा कि चाहे अंग्रेजी में J&K कहो चाहे देसी जुबान में जम्मू-कश्मीर, आता जम्मू ही पहले है। लेकिन, विडंबना देखिए कि जम्मू के लोग भारत माता की जय बोलते हैं, 60 सालों में कभी देश के लोगों को डराकर नहीं रखा। कभी कोई धार्मिक आधार पर हिंसी नहीं की। फिर भी भारत सरकार से तवज्जो नहीं पाते।
जबकि, कश्मीर के लोग लगातार भारत पर कब्जे का आरोप लगाते रहते हैं। हिंदुस्तान के खिलाफ नारे लगाते हैं, पाकिस्तान के झंडे लहराते हैं, हिंदुस्तानी झंडे को आग लगाते हैं। अभी कल के अखबारों में भी श्रीनगर से मुजफ्फराबाद जाने वालों के हाथ में भारत को बंटवाकर पाकिस्तान बनवाने वाले मोहम्मद अली जिन्ना के फोटो थे। आज 14 अगस्त है। आज ही के दिन 1947 में पाकिस्तान आजाद हुआ था यानी भारत से बंटा था। अब मुझे तो आज के हालात देखने के बाद लगता है कि कश्मीर को आजाद कर देना ही भारत के लिए सबसे बेहतर होगा।
कश्मीरियों की भाषा में भारत सरकार कश्मीर पर जबरी कब्जा जमाए हुए है। और, उसका खामियाजा पूरे देश के लोग तो भुगत ही रहे हैं। सबसे ज्यादा जम्मू-लद्दाख के वो, लोग भुगत रहे हैं जो, अलगाव की धमकी भरी भाषा नहीं बोलते। जहां, सचमुच धरती पर स्वर्ग जैसा माहौल रहता है। लेकिन, हमारी सरकार तो, धमकी ही भाषा सुनती है। और, उमर अब्दुल्ला और महबूबा मुफ्ती को भी पाकिस्तान के थोड़ा और नजदीक जाकर ही भारतीय लोकतंत्र की अहमियत समझ में आएगी।
कश्मीर का अर्थ केवल घाटी ही आज तक समझा जाता रहा है और इसी कारण जम्मू और लद्दाख के पास कभी कोई आवाज नहीं रही। पाकिस्तान के झंडे ले कर कश्मीर का अमन स्याह करते देशद्रोहियों नें अपना हश्र खुद चुन लिया है...इन्हे पाकिस्तान भेजा जाना चाहिये "व्हाया मुजफ्फराबाद" फिर लौट आने की इजाजत नहीं देनी चाहिए..
ReplyDelete***राजीव रंजन प्रसाद
पिछले इक्कीस सालों से कश्मीर जल रहा है और भारत येन केन प्रकारेण वहां शांति स्थापित करने की कोशिश कर रहा है। लेकिन एक आग बुझती है तो दूसरी जल उठती है ऐसे में देर-सबरे आम भारतीय पूछेगा ही कि कश्मीर के साथ रहने से नुकसान ज्यादा है या फायदा। और इसका आकलन भी होना चाहिए कि कश्मीर से भारत को कितने आर्थिक, सामरिक और कूटनीतिक फायदे होते हैं। क्योंकि ये बिल्कुल साफ हो चुका है कि कश्मीर के लोग भारत से उस तरह तो कतई नहीं जुड़े हैं जैसे बिहार, तमिलनाडु या फिर कहें सिक्किम के लोग। और ये भी है कश्मीर की आग का बुझाने के चक्कर में जम्मू और लद्दाख को विकास का हक नही मिला है।
ReplyDeleteशीर्षक सही है..
ReplyDeleteबुरा हो इस लोकतंत्र का जो ऐसे हुक्मरान पैदा कर रहा है कि ये देश बाँटने की बात करने वालों से भी सहमें हुए हैं। संप्रभुता (sovereignty)जैसी कोई चीज बची ही नहीं लगती। मुफ़्ती और अब्दुल्ला की जगह जेल होनी चाहिए, देशद्रोह में। लेकिन ये ही हैं जो आँख में घूर रहे हैं। हतभाग्य हिन्दुस्तान, भगवान भी तेरी रक्षा नहीं करेगा...
ReplyDeleteकश्मीर को भारतीय जनता के हवाले कर देना चाहिए .
ReplyDeleteदरअसल कश्मीर को भारत से अलग करने का हिडन एजेंडा लेकर कांग्रेस नेहरू से लेकर आज तक याने धारा 370 से लेकर श्राईन बोर्ड की जमीन वापिस करने तक देश को और कश्मीर वासियों को यही समझाती आ रही है कि कश्मीर भारत का हिस्सा नहीं है..पिछले 50 वर्षों से हमने जिन सांपों को दूध पिलाया है वो बंदकर कश्मीर मैं जो रहना चाहैं वो रहें और जो नहीं रहना चाहें वे पाकिस्तान जायें या के जहन्नुम मै.कश्मीर भारत का हिस्सा नहीं ह वो भारत ही है ये याद रखें
ReplyDeleteदरअसल कश्मीर को भारत से अलग करने का हिडन एजेंडा लेकर कांग्रेस नेहरू से लेकर आज तक याने धारा 370 से लेकर श्राईन बोर्ड की जमीन वापिस करने तक देश को और कश्मीर वासियों को यही समझाती आ रही है कि कश्मीर भारत का हिस्सा नहीं है..पिछले 50 वर्षों से हमने जिन सांपों को दूध पिलाया है वो बंदकर कश्मीर मैं जो रहना चाहैं वो रहें और जो नहीं रहना चाहें वे पाकिस्तान जायें या के जहन्नुम मै.कश्मीर भारत का हिस्सा नहीं ह वो भारत ही है ये याद रखें
ReplyDeleteभ्रष्टाचार सहित देश की 99% समस्यायें कांग्रेस की ही देन हैं, सबसे पहले कांग्रेस को ज़मीन के 6 फ़ुट नीचे गाड़ना होगा, बाकी काम अपने-आप हो जायेगा… वैसे कश्मीर को अलग करने का विचार मैने भी हाल ही में दो पोस्ट में लिखा था… सालों को अलग कर ही देना चाहिये… पेट पर लात पड़ेगी तो अकल ठिकाने आ जायेगी…
ReplyDeleteराजीव रंजन जी से सहमत हूँ। देशद्रोहियों की जगह देश में नहीं होनी चाहिए ..!
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