मैंने अपनी पिछली दो पोस्टों में बेटियों का पैर छूने की परंपरा के गलत असर का उदाहरण देकर इसकी खिलाफत की थी। जिसके बाद इसके समर्थन में ज्यादातर लोग आए। लेकिन, कुछ लोगों ने इससे ये मतलब भी निकाल लिया कि मैं एकदम से ही पैर छूने के खिलाफ हूं।
मैं एकदम साफ कर दूं कि मुझे नहीं लगता कि अपने से बड़े को सम्मान देने के लिए उसका पैर छूने में कोई बुराई है। चाहे वो फिर मां-बाप हों, दूसरे रिश्तेदार या फिर कोई भी भले ही वो, ऐसे किसी रिश्ते में न आते हों जो, स्वाभाविक-सामाजिक तौर पर पैर छूने की जगह पाते हैं। और, मुझे संजय शर्माजी की एक बात तो एकदम सही लगती है कि आखिर छोटे-बड़े का कोई पैमाना तो होगा ही। और, ऐसे में छोटे, बड़े का पैर छुए, इसमें गलत क्या है। हां, कोई छोटा भी अगर ये समझता है कि किसी बड़े के लिए उसके मन में सम्मान नहीं है तो, फिर उसे अपने बड़े का भी पैर नहीं छूना चाहिए। भले ही उस पर दबाव पड़े।
और, टिप्पणियों में ही ये भी आया था कि अगर, बेटी का पैर छूना गलत है तो, कन्यादान भी। निश्चित तौर पर कन्यादान भी गलत है। पहले के जमाने की परिस्थितियों के लिहाज से बेहतर था कि बेटी जो, पति के घर जाने के बाद दरवाजे से भी बाहर नहीं निकलती थी। और, उसके पिता के घर से कभी-कभी ही उसकी हाल-खबर ली जाती थी। उस समय बेटी को सुरक्षा के लिहाज से शायद उसके पति के परिवार को ज्यादा सम्मान दिए जाने की परंपरा रही होगी। वो, सामाजिक और आर्थिक सुरक्षा दोनों ही रही होगी। लेकिन, आज के संदर्भ में तो ये बिल्कुल ही फिट नहीं बैठती। लेकिन, अब ये भी ठीक नहीं होगा कि इसे आधार बनाकर रिश्तों को सम्मान देना भी बंद कर दिया जाए।
देश की दशा-दिशा को समझाने वाला हिंदी ब्लॉग। जवान देश के लोगों के भारत और इंडिया से तालमेल बिठाने की कोशिश पर मेरे निजी विचार
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मुझे लगता है कि पुराने जमाने में बेटियों के महत्व को बढ़ाने के लिए ही उनके पैर छूने की प्रथा विकसित की गयी होगी।
ReplyDeleteहर्ष जी मैं दोनों ही बातों पर आपसे असहमत हूँ.
ReplyDelete१. बड़ों के पैर छूने और छोटों के कान मरोड़ने की प्रथा ने हिन्दुस्तान का सत्यानाश किया है क्योंकि इस परम्परा की वजह से नक्कारे लोगों को जाति, पद, आयु, वरिष्ठता आदि के दम पर जबरिया आदर हथियाने की आदत पद जाती है और विद्वता और सक्षमता की कीमत कम हो जाती है.
२. कन्याओं के पाँव छूने की परम्परा का कारण भी वही है जो बड़ों के पाँव छूने का है - आदर और सम्मान - यत्र नार्यस्तु पूज्यन्ते.. के देश में सिर्फ़ यही तो तो एक प्रतीक बच्चा है नारी के सम्मान का - इसको भी ढहा देंगे तो नारी की दुर्दशा में वृद्धि ही होनी है कमी नहीं. और जिस समाज में नारी की दुर्दशा होती है उसके पतन को कोई रोक नहीं सकता है.
... दूसरे शब्दों में, मैं पैर छूने की प्रथा के सकत ख़िलाफ़ हूँ मगर आदर की जो भी परम्परा अपनाई जाए उसे नारी के प्रति व्यक्त किए जाने का कठोर पक्षधर हूँ.
ReplyDeleteमेरे मामा जी, उच्चकोटि के विद्वान थे। उन से अक्सर चर्चा होती रहती थी। मैं कभी उन के पैर छूता था, कभी नहीं भी। इस तरह के व्यवहार पर उन्होंने कभी टिप्पणी नहीं की। एक दिन मैंने उन से पूछा ऐसा क्यूँ होता है कि कभी आप के या किसी के भी पैर छूने को मन करता है, और कभी नहीं। मैं अपने मन की बात करता हूँ, कहीं गलत तो नहीं करता।
ReplyDeleteउन का कहना है कि पैर छूने की सही वजह पर तुम पहुँच गए बाकी सब दिखावा है।
सार्थक चिन्तन चल रहा है, अच्छा लगा.
ReplyDeleteसमय के साथ सब बदल रहा है । शहरों में अब रिश्तेदारियों को कोई समझौता समझ के नहीं निभा रहा । बचपन में शादियों की यादों के साथ ये भी जुडा हुआ है कि कोई एक रिश्तेदार जरा सी बात पर बिदक गये कि खाना नहीं खायेंगे और सब लोग उनको मनाने में लगे हैं । आज अगर खाना खाना है तो खाओ कोई दोबारा नहीं पूछेगा ।
ReplyDeleteमेरी नानीजी हमारे घर पर खाना खाती थीं तो उसके पैसे देती थीं हिसाब लगाकर लेकिन ये अब नहीं होता । जब मैं अपनी बडी दीदी (३ वर्ष बडी) की ससुराल गया तो माताजी ने कहा था कि कोई पैसे दे तो न लेना और दीदी की सास को इतने रूपये चलते समय देकर आना । मुझे अटपटा तो लगा पर सोचा कि देखा जायेगा । वापिस चलते समय दीदी की सासू माँ ने कहा कि तुम उम्र में छोटे हो तुम्हारे माता-पिता होते तो बात अलग थी । और उल्टे मुझे ही कपडे और पैसे देकर विदा किया, उनके इस व्यवहार से मन इतना प्रसन्न हुआ कि पूछिये मत, पैसे मिले वो अलग :-)
धीरे धीरे मान्यतायें बदलेंगी इसमें कोई सन्देह नहीं है ।
हमारे यहाँ बड़ों के पैर छूने की परंपरा है, ये नही देखा जाता कि कौन छू रहा है बेटा या बेटी।
ReplyDeleteहर्ष जी , मुझे लगता है पहले बड़ों की परिभाषा देना चाहिए था उसके बाद ही पैर छूने न छूने पर चर्चा . बड़ों की श्रेणी में माँ , बुआ, नानी मामी मौसी , चाची, दादी , बहन भाभी भी आती है , अब ये नारी है तो चरण स्पर्श किया जाय .देवता दौडे आ जायेंगे . और बड़ों की श्रेणी में ही दादा , बाप ,भाई ,चाचा , मामा नाना मौसा फूफा को प्रणाम नही करो क्योंकि ये पुरूष है . इनमे अकड़ आ जायेगी ये सामंतवादी हो जायेंगे .इस टाईप की सोच को एक बार और सोचने की जरुरत है .
ReplyDeleteसभी शक्ति के सामने झुकते ही है . माँ बाप को अपने अन्दर शक्ति संचार करने वाला तत्व जो न मानता हो वह क्यों झुकेगा उसे झुकना भी नही चाहिए .
हर्षवर्धन जी, यदि कन्यादान गलत है तो 'हिन्दू-विवाह-संस्कार' पर प्रश्नवाचक-चिह्न लग जाता है क्योंकि विवाह-संस्कार में कन्यादान ही प्रमुख है। अब आप क्या कहेंगे? क्या 'हिन्दू-विवाह-संस्कार' ही गलत है ?
ReplyDeleteharsh ji i am totally agree with dineshrai ji. matlab pata hona chahiyee ki peer quoin pardne hain.
ReplyDeleteपिछली दोनो कड़ियाँ पढ़ चुके हैं,इस पोस्ट को पढ़ने के बाद बस एक ही ख्याल मन मे आता है जो बचपन से सुना फिर स्कूल कॉलेज मे भी सीखा... लौ के घेरे में आने के लिए अगरबती, धूपबत्ती और मोमबत्ती को हल्का सा झुकाना पड़ता है तभी प्रकाश और सुगन्ध फैलती है..
ReplyDeleteमुझे लगता है कि पैर छूने के संदर्भ में कई चीजें गड्डमड्ड कर दी गई हैं। अगर किसी के प्रति श्रद्धा है तो पैर छूकर उसे व्यक्त करना सर्वथा उपयुक्त है। इसलिए इसे परंपरा को पूरी तरह से नकारना ठीक नहीं होगा। लेकिन बाद में श्रद्धा तो गौण होती गई और पैर छूने के कई दूसरे आधार बनते गए। और उसमें सबसे अजीबोगरीब है अपने से छोटी बहन का पैर इसलिए छूना क्योंकि वो उच्च कुल की है। इतना ही नहीं बहन के ससुराल के हर छोटे बड़े का भी पैर छूना क्योंकि वो उच्च कुल के हैं। इसमें कुछ लोग नारी को सम्मान देने की भावना देख सकते हैं लेकिन मुझे ऐसा नहीं लगता है क्योंकि वही नारी जब अपनी पत्नी या बहू होती है तब तो उसका पैर छूने की कोई कोशिश नहीं होती बल्कि घर या रिश्तेदार सभी के समुचित सम्मान देने (पैर छूकर ही) की जिम्मेदारी बहू की सबसे ज्यादा होती है। इसलिए मुझे तो मूल दिक्कत इस सोच में ही लगती है कि वरपक्ष हमेशा ऊंचे पायदान पर बैठेगा और कन्यापक्ष हमेशा निचले। लड़की के घर वाले, वरपक्ष को हर तरह का सम्मान देंगे लेकिन वरपक्ष को लड़कीवालों की फिक्र करने की जरूरत नहीं है। आखिर ये रिश्तेदारी बराबरी पर क्यों नहीं हो सकती है। और पैर छूने का आधार व्यक्तिगत श्रद्धा ही क्यों ना हो।
ReplyDeleteपैर छूने से कोई लाभ नहीं है। ना बडे के पैर छूने चाहिए और ना ही छोटे के, एडीसन एक वैज्ञानिक था उसने अपने जिवनमे कभी पैर भले ना छुए हो लेकिन उन्होने जो संसार की मद की है वो कोई भारत का नागरिक आज वैज्ञानिक नही बन पा रहा, लोग पैर छूने को भी विज्ञान के साथ जोडते है अगर आत्मा एक ही है तो फिर क्यु कोई किसी के पैर छुए ?
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