दिल्ली से राजेंद्र नगर पटना को जाने वाली राजधानी नई दिल्ली स्टेशन से छूटती है और करीब इसी समय शाम को चार बजकर पचास मिनट पर दिल्ली से राजेंद्र नगर पटना को जाने वाली गरीब रथ हजरत निजामुद्दीन स्टेशन से छूटती है। राजधानी में टिकट वेटिंग था और गरीब रथ में आसानी से टिकट मिल गया तो, तुरंत मैंने आरक्षण करा लिया। लेकिन, स्टेशन से लेकर ट्रेन में बैठने तक गरीब रथ के बुरे हाल का नजारा साफ दिखा।
लालू प्रसाद यादव के रेलमंत्री न रहने से बिहार का कितना नुकसान रेलगाड़ियों के विषय में हुआ ये राजनीतिक बहस का मुद्दा हो सकता है लेकिन, लालू जी के जाने का सबसे बुरा असर पड़ा है तो, उनके सबसे पसंदीदा गरीब रथ प्रोजेक्ट पर। हजरत निजामुद्दीन से राजेंद्र नगर पटना जाने वाली गरीब रथ प्लेटफॉर्म नंबर2 पर आकर लगी तो, लगा कि कौन सी गंधौरी ट्रेन आकर खड़ी हो गई है।
धूल से सनी प्लेट पर पढ़कर यकीन करना पड़ा कि ये गरीब रथ ही है। दरअसल पूरी ट्रेन पर ही धूल-गंदगी की इतनी परतें चढ़ गईं थीं कि लग रहा था महीनों से ट्रेन की सफाई नहीं हुई है। डिब्बों के शीशे तो परादर्शिता का अपना स्वभाव ही एकदम भूल चुके थे।
ट्रेन में ही बैठने पर पता चला कि इस ट्रेन के कुछ डिब्बों में एयर कंडीशनर का पानी भी चूता रहता है। और, लालू की दी हुई दुर्गति के शिकार यात्री गरीब रथ में अभी भी हो रहे हैं कि किनारे की सीटें दो से बढ़कर तीन हो गई हैं। और, ज्यादा सीटें ठेलने के चक्कर में सीटों की संख्या रिजर्वेशन टिकट पर पड़ी संख्या से भी मेल नहीं खातीं। बस भला इतना है कि करीब आधे दाम में राजधानी जैसी सुविधा (खाना-कंबल-चद्दर छोड़कर) गरीब रथ अभी भी दे रही है और टिकट एक दिन पहले भी मिल गया।
अब ये जिस स्टेशन से रवाना हुई उस हजरत निजामुद्दीन स्टेशन का भी हाल जरा देख लीजिए। ये साफ-सफाई पर गर्व करने वाला गंदगी से चमकता बोर्ड आप देख चुके ना। अब देखिए स्टेशन पर इस बोर्ड के लिखे को कीचड़ में मिलाती ये तसवीरें।
देश की दशा-दिशा को समझाने वाला हिंदी ब्लॉग। जवान देश के लोगों के भारत और इंडिया से तालमेल बिठाने की कोशिश पर मेरे निजी विचार
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इस ट्रेन के बारे में आपको इस बात पर भी लिखना चाहिए था कि किस दर्जे के लोगों के लिए ये ट्रेन लायी गयी थी औऱ किस दर्जे के लोग इसमें बैठते हैं। वैसे तो दुकान-बाजार-हाटों में किसी को कुछ कह दे तो तुरंत अपनी औकात बताने में लग जाता हैं लेकिन गरीब रथ में बैठने के लिए अपनी औकात तुरंत गिरा देते हैं। मैं कई ऐसे लोगों को जानता हूं जो कि पेशे से लेक्चरर हैं,वकील हैं,सम्पन्न घरों से आते हैं लेकिन गरीब रथ में यात्रा करते हैं और वो भी शान से। असुविधा होने पर आपकी तरह गरियाते हैं। एक मिनट के लिए भी नहीं सोचते कि हम ऐसा करते हुए किसी की हक मार रहे हैं।.
ReplyDeleteपटरी पर दौड़ने वाला हर रथ आज ग़रीब है और जो ग़रीब नहीं है वह पटरी पर नहीं है।
ReplyDeleteमनोज जी से सहमत हू
ReplyDeleteसत्य प्रदर्शन!!
ReplyDeleteई है भैया रिपोर्टिंग...उम्दा..
ReplyDeleteबढिया रिपोर्टिंग |
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