Monday, August 20, 2007

सेक्युलरिज्म नहीं देश बचाइए

तसलीमा की हत्या करके कोई भी कितने भी पैसे कमा सकता है। ये फतवा जारी किया है कोलकाता के एक मस्जिद के इमाम ने। मौलाना मानते हैं कि तसलीमा ने इस्लाम का अपमान किया है, जिसकी कीमत तसलीमा की जान से कम नहीं हो सकती। देश की धर्मनिरपेक्ष ताकतें तसलीमा के बचाव में भी खुलकर नहीं आ रही हैं। वैसे अगर एमएफ हुसैन की भारत माता या किसी देवी-देवता को गलत तरीके दिखाने वाली पेंटिंग पर किसी हिंदू संगठन ने कुछ कहा होता तो, अब तक देश की सभी धर्मनिरपेक्ष ताकतें मिलकर हुसैन की तरफदारी में अभिव्यक्ति की आजादी के कसीदे पढ़ने लगतीं। वो, सिर्फ इसलिए हो पाता है क्योंकि, किसी उग्र हिंदू संगठन या लोगों का विरोध करके उन्हें भारत के उस धर्मनिरपेक्ष जमात में शामिल होने का मौका मिल जाता है जो, भारत में सेक्युलर नाम से बड़ा सम्मान पाती है।
आखिर क्या वजह है ऐसे ही मामले में तोगड़िया का विरोध करने वाले तसलीमा के खिलाफ फतवा जारी करने वाले मौलाना के खिलाफ कुछ न बोलकर अपनी बात कहने वाली तसलीमा के ही विरोधी हो जाते हैं। और, ये मौलाना कोलकाता की एक मस्जिद के हैं जिस राज्य पश्चिम बंगाल में पिछले तीस सालों से सेक्युलर लेफ्ट पार्टियों की सरकार है। वैसे सेक्युलरिज्म के नाम पर एक खास तरह का विद्वेष फैलाने का लेफ्ट पार्टियों का ये पहला उदाहरण नहीं है। इससे पहले तसलीमा के ही उपन्यास लज्जा को भारत में अकेली पश्चिम बंगाल सरकार ही थी, जिसने प्रतिबंधित कर दिया था। मामला सिर्फ इतना ही नहीं है। इससे कुछ दिन पहले ही हैदराबाद में मुस्लिम संगठन MIM के विधायकों ने तसलीमा के ऊपर हमला कर दिया था। आंध्र प्रदेश में कांग्रेस की सरकार है और सिर्फ सेक्युलरिज्म ही है जिसके नाम पर अल्पमत की कांग्रेस दूसरे सेक्युलर दलों के साथ मिलकर सरकार में आ जाती है। फिर कांग्रेस की सरकार तसलीमा के मामले में सेक्युलर क्यों नहीं रह पाई।

दरअसल देश में सेक्युलर ताकतों का यही असली चरित्र है। मुस्लिम कट्टरपंथियों के मामले में वो शांत रहकर ही सेक्युलर हो पाते हैं। काफी दबाव के बाद हैदराबाद पुलिस ने तसलीमा पर हमला करने वाले विधायक अकबरुद्दीन ओवैसी के खिलाफ मामला दर्ज कर लिया। लेकिन, सेक्युलरिज्म फिर हावी हो गया और तसलीमा के खिलाफ भी सरकार ने धार्मिक भावनाएं भड़काने और उसका अपमान करने का मामला दर्ज कर लिया। ऐसी ही सेक्युलर कारगुजारियों की वजह से तोगड़िया की बात सुनने वाले और उसे सुनकर कुछ करने वाले बढ़ते जाते हैं।

वैसे ये मामला सिर्फ आंध्र प्रदेश या पश्चिम बंगाल तक ही सीमित नहीं है। उत्तर प्रदेश में भी ऐसे कई वाकये हुए हैं जब, सरकार मुस्लिम समाज से जुड़े होने की वजह से आतंकवादियों या फिर बदमाशों पर कार्रवाई नहीं कर पाई। उत्तर प्रदेश में तो, एक मंत्री हाजी याकूब कुरैशी ने कथित तौर पर मोहम्मद साहब का गलत चित्र बनाने पर दानिश कार्टूनिस्ट के सिर पर 51 लाख रुपए का इनाम जारी कर दिया था। खुलेआम ऐलान के बाद भी कुरैशी के खिलाफ कुछ नहीं हो पाया। इससे पहले इलाहाबाद के फूलपुर में कुछ आतंकवादियों को पकड़ने के लिए जब पुलिस ने छापा मारा तो, पुलिस को लोगों की पत्थरबाजी का सामना करना पड़ा। इस पत्थरबाजी के पीछे इलाहाबाद के ही एक बड़े माफिया का हाथ था। लेकिन, पुलिस ने कोई कार्रवाई नहीं की। बाद में जब आतंकवादी पकड़ा गया तो, उसके तार अंडरवर्ल्ड और उग्रवादी संगठन सिमी से जुड़े निकले।

सरकारों का हाल ये है कि हैदराबाद में हमले के बाद 14 अगस्त को इलाहाबाद विश्वविद्यालय में तसलीमा का कार्यक्रम कैंसिल कर दिया गया। कुलपति प्रोफेसर आर जी हर्षे चाहते थे कि तसलीमा का कार्यक्रम हो लेकिन, राज्य सरकार से ये निर्देश मिला कि कानून व्यवस्था की मुश्किल हो सकती है। इसलिए ये कार्यक्रम निरस्त कर दिया जाए। तसलीमा के विचार सुनने का मौका इलाहाबाद के लोगों के हाथ से निकल गया। सवाल यही है कि क्या सेक्युलर यानी धर्मनिरपेक्ष होने के मायने यही है। क्या ऐसी घटनाएं हिंदू और मुस्लिम दोनों ओर कट्टरपंथियों की जमात बड़ी करने का मौका नहीं देती हैं। क्या किसी मौलाना या मुस्लिम मंत्री के फतवा जारी करने के बाद भी कोई कार्रवाई न करने से धर्मनिरपेक्षता बचेगी। मुझे तो यही लगता है कि अब जरूरत इस बात की है कि धर्मनिरपेक्षता शब्द और इससे जुड़ी जमात की बात खत्म हो। धर्मनिरपेक्ष होने की वकालत ही कट्टरता बढ़ा रही है। सभी धर्मों का आदर करने की बात ज्यादा अच्छे से समझ में आती है। और, कहीं भी कानून धर्म देखकर एक्शन में नहीं आना चाहिए।

वैसे अच्छी बात ये है कि तसलीमा का वीजा बढ़ गया है। बांग्लादेश से कट्टरपंथियों के हमले से बचने के लिए भागी तसलीमा तब से भारत में ही रह रही हैं। ये इस देश की सभी धर्मों और मानवता का आदर करने की सबसे बड़ी मिसाल है। लेकिन, बांग्लादेश में जिन कट्टरपंथियों से भागकर तसलीमा भारत आई हैं, वही भारत में तसलीमा पर हमला करने में सफल होते हैं तो, इससे देश को ही नुकसान होगा।

3 comments:

  1. यही तो सेकुलरिज्म है.

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  2. Anonymous3:15 PM

    तो क्या सेक्युलरिजम कोई और बला है?!! हम तो यही समझते आये है.

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  3. देश में सेक्युलरिज्म की यही तो समस्या हो गई है। ये भी एक लॉबी बन गया है। हर किसी को सेक्युलर होने की इजाजत नहीं देता। इसीलिए तसलीमा जैसे मसलों पर सेक्युलर थोड़े खामोश हो जाते हैं। यही देश के लिए घातक हो जाता है। मैंने दूसरे भी ऐसे कई संदर्भ अपने लेख में दिए हैं।

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