नोकिया की BL-5C बैटरी की खराबी ने एक बार फिर चीनी माल की घटिया क्वालिटी के बारे में दुनिया को बता दिया। नोकिया जैसी बड़ी कंपनी थी, उसे अपनी प्रतिष्ठा की परवाह थी इसलिए 8 करोड़ रुपए से ज्यादा का खर्च झेलकर भी नोकिया ने इस सिरीज की 30 करोड़ बैटरियों में से 4 करोड़ 60 लाख वो बैटरियां वापस ले लीं। जो, नोकिया को जापानी कंपनी मात्सुशिता ने बनाकर दी थीं। आपको लगता होगा कि जापानी कंपनियां तो क्वालिटी के मामले में समझौता नहीं करतीं। फिर ये कैसे हो गया। दरअसल ये सारी बैटरियां मात्सुशिता के चीन के प्लांट में लगी हुई थीं। भारत में इन बैटरियों ने बिना फटे ही खूब हल्ला किया। दूसरा एक मामला है अमेरिकी खिलौना कंपनी मटेल टॉयज के जहरीले खिलौनों का। इन खिलौनों से बच्चों को तरह-तरह की बीमारियां होने के खतरे की बात सामने आई तो, कंपनी ने अपने कई खिलौने बाजार से वापस ले लिए। ये कंपनी भले ही अमेरिकी थी लेकिन, ये खिलौने कंपनी के चीन के प्लांट में ही बन रहे थे।
चीन के घटिया सामानों के ये उदाहरण भर हैं। चीन हमसे तेज रफ्तार से तरक्की कर रहा है। और, कई मामलों हमारे देश के नीति-नियंता भी चीन का ही उदाहरण देकर विकास की गाड़ी चीन से भी तेज रफ्तार से दौड़ाना चाहते हैं। तेज रफ्तार से विकास करते चीन का यही हल्ला आज भारत के विकास को बट्टा लगा रहा है। अब आप सोच रहे होंगे, इससे भारत के विकास पर कैसे असर पड़ सकता है। दरअसल चीनी सामानों ने कुछ इस तरह से हमारे आसपास घर कर लिया है कि अब तो, मेड इन चाइना के ठप्पे पर नजर भी नहीं जाती। चीनी सामानों की घटिया क्वालिटी के बारे में जानने के बाद भी लोग जाने-अनजाने भारत के लोग इसे खरीद रहे हैं और चीन के विकास की रफ्तार और तेज कर रहे हैं।
भारत में कंज्यूमर नाम का प्राणी सबसे तेजी से बढ़ा है। यानी वो खर्च करने वाले जिनकी जेब में पैसा है जो, मॉल में शॉपिंग करता है, मल्टीप्लेक्स में फिल्में देखता है। कंज्यूमर नाम का ये प्राणी कंज्यूम करना जानता है, इसे इस बात की ज्यादा परवाह नहीं होती कि खरीदा हुआ सामान कितना चलेगा। कंज्यूमर के पास पैसे हैं तो, उस पैसे को खींचने के लिए हर मॉल में माल ही माल भरा पड़ा है। देश में ऑर्गनाइज्ड रिटेल क्रांति की बात जोर-शोर से सुनाई दे रही है। और, ये भी कहा जा रहा है कि यही रिटेल देश में लाखों लोगों को रोजगार के नए मौके देगा। भारतीय कंपनियों की तरक्की का भी रास्ता खुलेगा। लेकिन, कुछ छोटे आंकड़े हैं जिससे साफ होता है कि भारत में हो रही रिटेल क्रांति के फायदे से चीन के विकास की गाड़ी भारत के ही विकास को मात देगी।
भारत के जितने भी बड़े ऑर्गनाइज्ड रिटेल स्टोर आ रहे हैं उसमें जिन सामानों को आप ये समझकर खरीदते हैं कि ये पैसे भारतीय कंपनियों के पास जा रहे हैं वो, पैसे चीन की कंपनियों के पास जाते हैं। ग्रॉसरी और फर्नीचर आइटम्स का 65 प्रतिशत चीनी कंपनियों का ही माल भरा पड़ा है। फैशन-कॉस्मेटिक्स-बनावटी गहने इसके 75 प्रतिशत पर चीनी कंपनियों का ही कब्जा है। मॉल से खिलौने खरीदने वाले करीब 15 प्रतिशत बच्चे ही देसी खिलौने के साथ अपना बचपन बिता पाते हैं।
चीनी सामानों का ये कब्जा सिर्फ भारत के मॉल के माल में ही नहीं है। सड़कों पर होने वाला व्यापार जिसे अनऑर्गनाइज्ड रिटेल कहा जा रहा है। वहां चीन का कब्जा और मजबूत है। सड़क किनारे बिकने वाले अजीब-अजीब से खिलौने, टॉर्च, बैटरी, कॉस्मेटिक्स, कैलकुलेटर, डिजिटल डायरी- सब कुछ चाइनीज है। सामान बेचने वाला चिल्ला-चिल्लाकर पहले ही बता देता है कि सामान मेड इन चाइना है कोई गारंटी नहीं है। फिर भी मोलभाव कर खरीदने वाले की लाइन लगी है। सड़क किनारे लगे इस बाजार में तो, 90 प्रतिशत सामान मेड इन चाइना ही है। और, देश के रिटेल बाजार में अनऑर्गनाइज्ड रिटेल का हिस्सा 95 प्रतिशत है।
अभी जापानी प्रधानमंत्री शिंजो आबे भारत में हैं। भारत-जापान के साथ अरबों डॉलर के व्यापार की बात हो रही है। दोनों देश हर मसले पर एक दूसरे के साथ खड़े हैं। लेकिन, जापानी प्रधानमंत्री के भारत आने से पहले अखबारों-टीवी चैनलों पर जो स्टोरीज सामने आईं उससे ये साफ था कि जापान में भारतीय कंपनियों को पकड़ बनाने में पसीने छूटेंगे। भारत की तरह जापान के हर मॉल में जापानी में मेड इन चाइना लिखे सामान भरे पड़े हैं। मेड इन इंडिया का एक भी ब्रांड अब तक वहां के बाजार में जगह नहीं बना पाया है।
चीनी सामान किस तरह से हमारे घरों में जगह बना लेता है और हमें पता ही नहीं चलता। मैं चाइनीज सामान जाबूझकर तो, नहीं ही खरीदना चाहता। लेकिन, जिस लेनोवो के लैपटॉप पर मैं ये लिख रहा हूं वो, चीन में बना है। मैंने रिलायंस से नेट कनेक्शन लिया। लेकिन, जब मैं कनेक्शन की डिवाइस लेकर लौटा तो, USB मोडम पर असेंबल्ड इन चाइना की मोहर लगी थी। CAS नोटीफाइड एरिया में रहने की वजह से मुझे सेट टॉप बॉक्स लेना पड़ा। देसी कंपनी WWIL का कनेक्शन लिया। लेकिन, एक दिन रिमोट पर नजर गई तो, वो मेड इन चाइन था। सेट टॉप बॉक्स भी वहीं का बना था। यानी हमारी तरक्की को दिखाने वाले सारे प्रतीक चिन्हों पर चीन ने कब्जा कर रखा है।
चीन की तरक्की की वजह भी साफ पता चल जाती है। दुनिया जिन सामानों को आगे इस्तेमाल करने वाली हो, उसे बनाने में आगे निकलो। दुनिया के बाजार को अपने माल से पाट दो, जब तक दुनिया को ये समझ में आएगा कि ये सामान कहां से आ रहा है तब तक दुनिया उन्हीं सामानों की आदी हो जाएगी। ये बात भारतीय कंपनियों के लिए समझने की है। भारतीय कंपनियां दुनिया में झंडे गाड़ रही हैं। लेकिन, देश की जरूरत के सामान बनाने में पीछे हैं। वीडियोकॉन के अलावा दूसरी भारतीय टेलीविजन बनाने वाली कंपनी का नाम भी याद नहीं आता। टाटा का वोल्टास का एसी बढ़िया होने के बावजूद मार्केटिंग और समय के साथ न बदल पाने की वजह से सैमसंग और एलजी से रफ्तार में पीछे छूट रहा है वैसे, अभी दूसरा सबसे ज्यादा बिकने वाला एसी वोल्टास का ही है। कार-मोटरसाइकिल के मामले में भारतीय कंपनियां अभी आगे हैं लेकिन, विदेशी कंपनियां तेजी से ये हिस्सा कम कर रही हैं।
दुनिया भर के लोगों को सॉफ्टवेयर ज्ञान भारतीय दे रहे हैं लेकिन, एक भी ऐसी भारतीय कंपनी लैपटॉप या कंप्यूटर नहीं बना रही है जो, डेल और लेनोवो को थोड़ा भी मुकाबला दे सके। हाल ये है कि कभी-कभी तो, पूरे इंडिया पर ही मेड इन चाइना का ठप्पा सा लगा दिखने लगता है। अच्छा ये है कि अभी पूरा देश इंडिया नहीं बना है, भारत का बड़ा हिस्सा इंडिया बनने से बचा हुआ है, इसीलिए मेड इन चाइना के ठप्पे से अभी देश का बड़ा हिस्सा बचा है। यही बचा हुआ भारत का बड़ा हिस्सा भारतीय कंपनियों के लिए बड़ा बाजार बन सकता है।
चीन के घटिया सामानों के ये उदाहरण भर हैं। चीन हमसे तेज रफ्तार से तरक्की कर रहा है। और, कई मामलों हमारे देश के नीति-नियंता भी चीन का ही उदाहरण देकर विकास की गाड़ी चीन से भी तेज रफ्तार से दौड़ाना चाहते हैं। तेज रफ्तार से विकास करते चीन का यही हल्ला आज भारत के विकास को बट्टा लगा रहा है। अब आप सोच रहे होंगे, इससे भारत के विकास पर कैसे असर पड़ सकता है। दरअसल चीनी सामानों ने कुछ इस तरह से हमारे आसपास घर कर लिया है कि अब तो, मेड इन चाइना के ठप्पे पर नजर भी नहीं जाती। चीनी सामानों की घटिया क्वालिटी के बारे में जानने के बाद भी लोग जाने-अनजाने भारत के लोग इसे खरीद रहे हैं और चीन के विकास की रफ्तार और तेज कर रहे हैं।
भारत में कंज्यूमर नाम का प्राणी सबसे तेजी से बढ़ा है। यानी वो खर्च करने वाले जिनकी जेब में पैसा है जो, मॉल में शॉपिंग करता है, मल्टीप्लेक्स में फिल्में देखता है। कंज्यूमर नाम का ये प्राणी कंज्यूम करना जानता है, इसे इस बात की ज्यादा परवाह नहीं होती कि खरीदा हुआ सामान कितना चलेगा। कंज्यूमर के पास पैसे हैं तो, उस पैसे को खींचने के लिए हर मॉल में माल ही माल भरा पड़ा है। देश में ऑर्गनाइज्ड रिटेल क्रांति की बात जोर-शोर से सुनाई दे रही है। और, ये भी कहा जा रहा है कि यही रिटेल देश में लाखों लोगों को रोजगार के नए मौके देगा। भारतीय कंपनियों की तरक्की का भी रास्ता खुलेगा। लेकिन, कुछ छोटे आंकड़े हैं जिससे साफ होता है कि भारत में हो रही रिटेल क्रांति के फायदे से चीन के विकास की गाड़ी भारत के ही विकास को मात देगी।
भारत के जितने भी बड़े ऑर्गनाइज्ड रिटेल स्टोर आ रहे हैं उसमें जिन सामानों को आप ये समझकर खरीदते हैं कि ये पैसे भारतीय कंपनियों के पास जा रहे हैं वो, पैसे चीन की कंपनियों के पास जाते हैं। ग्रॉसरी और फर्नीचर आइटम्स का 65 प्रतिशत चीनी कंपनियों का ही माल भरा पड़ा है। फैशन-कॉस्मेटिक्स-बनावटी गहने इसके 75 प्रतिशत पर चीनी कंपनियों का ही कब्जा है। मॉल से खिलौने खरीदने वाले करीब 15 प्रतिशत बच्चे ही देसी खिलौने के साथ अपना बचपन बिता पाते हैं।
चीनी सामानों का ये कब्जा सिर्फ भारत के मॉल के माल में ही नहीं है। सड़कों पर होने वाला व्यापार जिसे अनऑर्गनाइज्ड रिटेल कहा जा रहा है। वहां चीन का कब्जा और मजबूत है। सड़क किनारे बिकने वाले अजीब-अजीब से खिलौने, टॉर्च, बैटरी, कॉस्मेटिक्स, कैलकुलेटर, डिजिटल डायरी- सब कुछ चाइनीज है। सामान बेचने वाला चिल्ला-चिल्लाकर पहले ही बता देता है कि सामान मेड इन चाइना है कोई गारंटी नहीं है। फिर भी मोलभाव कर खरीदने वाले की लाइन लगी है। सड़क किनारे लगे इस बाजार में तो, 90 प्रतिशत सामान मेड इन चाइना ही है। और, देश के रिटेल बाजार में अनऑर्गनाइज्ड रिटेल का हिस्सा 95 प्रतिशत है।
अभी जापानी प्रधानमंत्री शिंजो आबे भारत में हैं। भारत-जापान के साथ अरबों डॉलर के व्यापार की बात हो रही है। दोनों देश हर मसले पर एक दूसरे के साथ खड़े हैं। लेकिन, जापानी प्रधानमंत्री के भारत आने से पहले अखबारों-टीवी चैनलों पर जो स्टोरीज सामने आईं उससे ये साफ था कि जापान में भारतीय कंपनियों को पकड़ बनाने में पसीने छूटेंगे। भारत की तरह जापान के हर मॉल में जापानी में मेड इन चाइना लिखे सामान भरे पड़े हैं। मेड इन इंडिया का एक भी ब्रांड अब तक वहां के बाजार में जगह नहीं बना पाया है।
चीनी सामान किस तरह से हमारे घरों में जगह बना लेता है और हमें पता ही नहीं चलता। मैं चाइनीज सामान जाबूझकर तो, नहीं ही खरीदना चाहता। लेकिन, जिस लेनोवो के लैपटॉप पर मैं ये लिख रहा हूं वो, चीन में बना है। मैंने रिलायंस से नेट कनेक्शन लिया। लेकिन, जब मैं कनेक्शन की डिवाइस लेकर लौटा तो, USB मोडम पर असेंबल्ड इन चाइना की मोहर लगी थी। CAS नोटीफाइड एरिया में रहने की वजह से मुझे सेट टॉप बॉक्स लेना पड़ा। देसी कंपनी WWIL का कनेक्शन लिया। लेकिन, एक दिन रिमोट पर नजर गई तो, वो मेड इन चाइन था। सेट टॉप बॉक्स भी वहीं का बना था। यानी हमारी तरक्की को दिखाने वाले सारे प्रतीक चिन्हों पर चीन ने कब्जा कर रखा है।
चीन की तरक्की की वजह भी साफ पता चल जाती है। दुनिया जिन सामानों को आगे इस्तेमाल करने वाली हो, उसे बनाने में आगे निकलो। दुनिया के बाजार को अपने माल से पाट दो, जब तक दुनिया को ये समझ में आएगा कि ये सामान कहां से आ रहा है तब तक दुनिया उन्हीं सामानों की आदी हो जाएगी। ये बात भारतीय कंपनियों के लिए समझने की है। भारतीय कंपनियां दुनिया में झंडे गाड़ रही हैं। लेकिन, देश की जरूरत के सामान बनाने में पीछे हैं। वीडियोकॉन के अलावा दूसरी भारतीय टेलीविजन बनाने वाली कंपनी का नाम भी याद नहीं आता। टाटा का वोल्टास का एसी बढ़िया होने के बावजूद मार्केटिंग और समय के साथ न बदल पाने की वजह से सैमसंग और एलजी से रफ्तार में पीछे छूट रहा है वैसे, अभी दूसरा सबसे ज्यादा बिकने वाला एसी वोल्टास का ही है। कार-मोटरसाइकिल के मामले में भारतीय कंपनियां अभी आगे हैं लेकिन, विदेशी कंपनियां तेजी से ये हिस्सा कम कर रही हैं।
दुनिया भर के लोगों को सॉफ्टवेयर ज्ञान भारतीय दे रहे हैं लेकिन, एक भी ऐसी भारतीय कंपनी लैपटॉप या कंप्यूटर नहीं बना रही है जो, डेल और लेनोवो को थोड़ा भी मुकाबला दे सके। हाल ये है कि कभी-कभी तो, पूरे इंडिया पर ही मेड इन चाइना का ठप्पा सा लगा दिखने लगता है। अच्छा ये है कि अभी पूरा देश इंडिया नहीं बना है, भारत का बड़ा हिस्सा इंडिया बनने से बचा हुआ है, इसीलिए मेड इन चाइना के ठप्पे से अभी देश का बड़ा हिस्सा बचा है। यही बचा हुआ भारत का बड़ा हिस्सा भारतीय कंपनियों के लिए बड़ा बाजार बन सकता है।
बहुत सही!!
ReplyDeleteआपने यह बात सही कही की चीनी आने वाली जरूरत के हिसाब से माल बना कर दुनिया को पाट देते है, क्या भारतीय यह नहीं कर सकते? जरूर कर सकते है, मगर याद रखिये यहाँ की अर्थव्यवस्था कैद थी, सरकारी अंकुश थे, अब कुछ खुली हवा चली है तो भी लाल झ्ण्डो की ब्रेक लगाने की प्रथा जारी है, चीन को लाभ मिल रहा है.
ReplyDeleteप्रिय हर्ष,
ReplyDeleteबहुत सटीक, आखें खोलने वाला, विश्लेषण है. आभार. मुझे तो अगला ईस्ट इंडिया हर जगह नजर आने लगा है -- शास्त्री
हिन्दी ही हिन्दुस्तान को एक सूत्र में पिरो सकती है
http://www.Sarathi.info
जानकारी आपने अच्छी दी है,अब हाल ये है कि गणपति की मूर्ती,दीपावली पर आजकल मिर्ची बल्ब का खूब धड़ल्ले से इस्तेमाल हो रहा है वो भी चीन की ही देन है,चाइनी़ज़ मोबाइल मार्केट में खूब अच्छी तरह टहल रहा है,पर अभी भी नोकिया के मार्केट को वो तोड़ नही पा रहा,अपने यहां सस्ते माल को देखकर उसे किसी भी तरह ले लेने वाली आदत सेपार पाना होगा,बंदिशे खुदपर लगानी होंगी,और रोक लगाने के लिये सरकार है जिससे कोई उम्मीद नहीं है !!
ReplyDelete