Monday, August 13, 2007

60 साल का बूढ़ा या 60 साल का जवान देश

ये किसी च्यवनप्राश का विज्ञापन नहीं है। ये भारत के लोगों के लिए दुनिया में मौके की राह दिखाने वाली लाइन है। 2020 तक दुनिया के सभी विकसित देशों में काम करने वाले लोगों की जबरदस्त कमी होगी। यहां तक कि भारत से ज्यादा आबादी वाले देश में भी बूढ़े लोग ज्यादा होंगे। दुनिया के इन देशों में आबादी बढ़ने की रफ्तार पर काबू पाया जा चुका है। और, अच्छी स्वास्थ्य सुविधाओं की वजह से विकसित देशों में लोग ज्यादा उम्र तक जियेंगे। तब दुनिया के विकसित देशों को अपने यहां काम की जरूरतों को पूरा करने के लिए विकासशील कहे जाने वाले देशों की ही तरफ देखना होगा। और, इसमें भी भारत को सबसे ज्यादा फायदा होगा। क्योंकि, यहां पर अभी 60 प्रतिशत लोग 30 साल से कम उम्र के हैं। यानी जिन्होंने अभी काम करना कुछ पांच-आठ साल पहले ही शुरू किया है। अगर भारत के 45 साल के लोगों की उम्र तक जोड़ ली जाए तो, ये लोग कुल मिलाकर देश की जनसंख्या के 70 प्रतिशत हो जाते हैं।
दरअसल आजादी के साठ सालों में भारत अभी जवान हुआ है। और, इसी जवानी के बूते पर दुनिया भर में अपनी ताकत का लोहा मनवाने लायक भी हो गया है। लोकतंत्र और मजबूत हुआ है। लालफीताशाही खत्म हुई है। हर संस्था पर सामाजिक दबाव बढ़ा है। कुछ भी छिपाकर नहीं किया जा सकता। विकास सिर्फ राजनीतिक नारा नहीं, राजनीति की जरूरत भी बन गया है। हर कोई विकसित होते भारत में अपना भी हिस्सा देने की जी-तोड़ कोशिश कर रहा है। लेकिन, असली चुनौती अगले करीब दो दशकों की है। जब भारत के पढ़े-लिखे-जानकार लोगों की कद्र दुनिया में और बढ़ेगी। पिछले करीब दो दशकों में आईटी और बीपीओ सर्विसेज के बूते दुनिया में झंडा गाड़ने वाले भारत के काबिल युवाओं को हर क्षेत्र में दुनिया बुला रही है। 2020 में भारत में काम करने वाले करीब 5 करोड़ लोग ज्यादा होंगे। यानी ये दुनिया की जरूरतों को करीब-करीब पूरा करने के लायक होंगे। इनमें से ज्यादातर मौके नॉलेज प्रॉसेस आउटसोर्सिंग के ही होंगे। यानी बीपीओ में काम करने वाले सिर्फ अंग्रेजी बोलने वाले और दुनिया के लोगों को सिर्फ कस्टमर सपोर्ट देने वाले नहीं चलेंगे। चलेंगे वो, जो काम जानते हैं, जिनका दिमाग अच्छा चलता है, कुछ नया करके दे सकते हैं। इसके अलावा ऑटो, मैन्युफैक्चरिंग, फार्मा, रिसर्च, इंजीनियरिंग, मीडिया इन सभी क्षेत्रों में भारत की बढ़त की रफ्तार अगले दो दशकों में सबसे तेज रहने वाली है।

दुनिया के विकसित देशों के शहरों के मुकाबले भारत के शहर अभी भी सस्ते हैं और यहां के काम करने वाले लोग भी काफी सस्ते हैं। लेकिन, ये लोग उत्पादन क्षमता के मामले में दूसरों को मात देते हैं। यही वजह है कि दुनिया की बड़ी कार कंपनियां, बड़ी कंप्यूटर-लैपटॉप बनाने वाली कंपनियां, दुनिया के बड़े रिटेलर, दुनिया की बड़ी फार्मा कंपनियां- सब भारत के दरवाजे पर लाइन लगाए खड़ी हैं। हर कोई भारत को अपना हब बनाना चाहता है। डेल और लेनोवो भारत में अपनी मैन्युफैक्चरिंग यूनिट लगा रही हैं। भारतीयों की जरूरत के लिहाज से लैपटॉप और पर्सनल कंप्यूटर बन रहे हैं। कभी सिर्फ आयात होकर आने वाली कारें आपके शहर के बगल में ही बन रही हैं। जो, नहीं बन रही हैं उन्होंने किसी न किसी राज्य में यूनिट लगाने की अर्जी दे रखी है। साफ है सस्ते में अच्छे काम करने वाले भारत से बेहतर शायद ही धरती के किसी कोने में मिल पा रहे हैं। बात ये भी है कि ये भारतीय जवान भी धरती के दूसरे कोनों में ज्यादा महंगे हो जाते हैं। इसलिए कंपनियां भारत में ही भारतीयों के हुनर का फायदा लेना चाहती हैं।

एविएशन और टेलीकॉम ऐसे क्षेत्र हैं। जिसमें अब दुनिया की सभी कंपनियों को भारत में ही सबसे ज्यादा मौके दिख रहे हैं। भारत में एयरलाइंस के एक दूसरे में विलय से कुछ लोग बेवजह ये अंदाजा लगाने लगे थे कि फिर 90 के दशक की तरह एयरलाइंस की लैंडिंग न शुरू हो जाए। लेकिन, भारतीय आसमान में तो रास्ते अब साफ हो रहे हैं। भारत में संभावनाएं बढ़ेंगी तो, हवाई सफर करने वाले और बढ़ेंगे। वर्जिन ग्रुप भारत के आसमान में उड़ना चाहा है और भारतीयों को वर्जिन मोबाइल पर बात भी कराना चाहता है। वर्जिन ग्रुप के चेयरमैन रिचर्ड ब्रैनसन ने तो यहां तक कहा है कि वो साल भर में ही वर्जिन मोबाइल भारत में शुरू कर देंगे। हां, एयरलाइंस आने में थोड़ा समय लग सकता है। दुनिया की बड़ी मोबाइल कंपनी वोडाफोन पहले ही हिंदुस्तान आ चुकी है।
भारत इन सबके लिए तैयार भी हो रहा है। सरकारी नीतियों में भले ही कुछ गड़बड़ियों की वजह से SEZ के अच्छे के बजाए बुरे परिणाम ही मिलते दिख रहे हैं। लेकिन, सच्चाई यही है कि देश आगे जा रहा है और इसमें सरकार ज्यादा दखल देने की हालत में नहीं है। सब कुछ इस जवान देश के कामकाजी जवानों के हाथ में है। सरकार के हाथ में सिर्फ इतना है कि वो कहीं रोड़ा नहीं बने तो, देश के जवानों को थोड़ा कम मेहनत करनी पड़ेगी। आजाद भारत के साठ साल पूर होने पर ये बातें इसलिए भी ज्यादा महत्व की हैं। क्योंकि, चाइनीज ड्रैगन भी बुढ़ा रहा है।

2020 तक चीन में दुनिया के सबसे ज्यादा बूढ़े होंगे। यानी दुनिया में हमारी विकास की संभावनाओं को चुनौती देने वाला अकेला देश भी तब तक हांफने लगेगा। इसलिए जरूरी है कि अगले दो दशकों में हम जवानी की तेज रफ्तार का पूरा फायदा उठा लें। क्योंक, दो दशकों के बाद आज का साठ साल का ये जवान देश साठ साल के बू़ढ़े देश में बदल जाएगा।

1 comment:

  1. Anonymous3:01 PM

    जिन्दा लोगों की तलाश! मर्जी आपकी, आग्रह हमारा!!

    काले अंग्रेजों के विरुद्ध जारी संघर्ष को आगे बढाने के लिये, यह टिप्पणी प्रदर्शित होती रहे, आपका इतना सहयोग मिल सके तो भी कम नहीं होगा।
    ============

    उक्त शीर्षक पढकर अटपटा जरूर लग रहा होगा, लेकिन सच में इस देश को कुछ जिन्दा लोगों की तलाश है। सागर की तलाश में हम सिर्फ सिर्फ बूंद मात्र हैं, लेकिन सागर बूंद को नकार नहीं सकता। बूंद के बिना सागर को कोई फर्क नहीं पडता हो, लेकिन बूंद का सागर के बिना कोई अस्तित्व नहीं है।

    आग्रह है कि बूंद से सागर में मिलन की दुरूह राह में आप सहित प्रत्येक संवेदनशील व्यक्ति का सहयोग जरूरी है। यदि यह टिप्पणी प्रदर्शित होगी तो निश्चय ही विचार की यात्रा में आप भी सारथी बन जायेंगे।

    हम ऐसे कुछ जिन्दा लोगों की तलाश में हैं, जिनके दिल में भगत सिंह जैसा जज्बा तो हो, लेकिन इस जज्बे की आग से अपने आपको जलने से बचाने की समझ भी हो, क्योंकि जोश में भगत सिंह ने यही नासमझी की थी। जिसका दुःख आने वाली पीढियों को सदैव सताता रहेगा। गौरे अंग्रेजों के खिलाफ भगत सिंह, सुभाष चन्द्र बोस, असफाकउल्लाह खाँ, चन्द्र शेखर आजाद जैसे असंख्य आजादी के दीवानों की भांति अलख जगाने वाले समर्पित और जिन्दादिल लोगों की आज के काले अंग्रेजों के आतंक के खिलाफ बुद्धिमतापूर्ण तरीके से लडने हेतु तलाश है।

    इस देश में कानून का संरक्षण प्राप्त गुण्डों का राज कायम हो चुका है। सरकार द्वारा देश का विकास एवं उत्थान करने व जवाबदेह प्रशासनिक ढांचा खडा करने के लिये, हमसे हजारों तरीकों से टेक्स वूसला जाता है, लेकिन राजनेताओं के साथ-साथ अफसरशाही ने इस देश को खोखला और लोकतन्त्र को पंगु बना दिया गया है।

    अफसर, जिन्हें संविधान में लोक सेवक (जनता के नौकर) कहा गया है, हकीकत में जनता के स्वामी बन बैठे हैं। सरकारी धन को डकारना और जनता पर अत्याचार करना इन्होंने कानूनी अधिकार समझ लिया है। कुछ स्वार्थी लोग इनका साथ देकर देश की अस्सी प्रतिशत जनता का कदम-कदम पर शोषण एवं तिरस्कार कर रहे हैं।

    अतः हमें समझना होगा कि आज देश में भूख, चोरी, डकैती, मिलावट, जासूसी, नक्सलवाद, कालाबाजारी, मंहगाई आदि जो कुछ भी गैर-कानूनी ताण्डव हो रहा है, उसका सबसे बडा कारण है, भ्रष्ट एवं बेलगाम अफसरशाही द्वारा सत्ता का मनमाना दुरुपयोग करके भी कानून के शिकंजे बच निकलना।

    शहीद-ए-आजम भगत सिंह के आदर्शों को सामने रखकर 1993 में स्थापित-ष्भ्रष्टाचार एवं अत्याचार अन्वेषण संस्थानष् (बास)-के 17 राज्यों में सेवारत 4300 से अधिक रजिस्टर्ड आजीवन सदस्यों की ओर से दूसरा सवाल-

    सरकारी कुर्सी पर बैठकर, भेदभाव, मनमानी, भ्रष्टाचार, अत्याचार, शोषण और गैर-कानूनी काम करने वाले लोक सेवकों को भारतीय दण्ड विधानों के तहत कठोर सजा नहीं मिलने के कारण आम व्यक्ति की प्रगति में रुकावट एवं देश की एकता, शान्ति, सम्प्रभुता और धर्म-निरपेक्षता को लगातार खतरा पैदा हो रहा है! हम हमारे इन नौकरों (लोक सेवकों) को यों हीं कब तक सहते रहेंगे?

    जो भी व्यक्ति स्वेच्छा से इस जनान्दोलन से जुडना चाहें, उसका स्वागत है और निःशुल्क सदस्यता फार्म प्राप्ति हेतु लिखें :-
    डॉ. पुरुषोत्तम मीणा, राष्ट्रीय अध्यक्ष
    भ्रष्टाचार एवं अत्याचार अन्वेषण संस्थान (बास)
    राष्ट्रीय अध्यक्ष का कार्यालय
    7, तँवर कॉलोनी, खातीपुरा रोड, जयपुर-302006 (राजस्थान)
    फोन : 0141-2222225 (सायं : 7 से 8) मो. 098285-02666
    E-mail : dr.purushottammeena@yahoo.in

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